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परिवार के इतिहास ने एक जटिल पहचान अपनाने में मेरी मदद की : लिन इनेस

गीता हरिहरन के साथ इस बातचीत में, इनेस अपनी किताब, उसमें महिलाओं की जटिल कहानियाँ और अन्य चीज़ों के बारे में चर्चा कर रही हैं।
परिवार के इतिहास ने एक जटिल पहचान अपनाने में मेरी मदद की : लिन इनेस

द लास्ट प्रिंस ऑफ़ बंगाल एक परिवार और भारतीय, अंग्रेज़ी और ऑस्ट्रेलियाई इतिहास में उसकी पहचान की कहानी है। महारानी विक्टोरिया के साथ शाही संबंधों से लेकर एक विवादित मुस्लिम शादी तक; और बंगाल टाइगर के शिकार से लेकर ऑस्ट्रेलिया में शीप फ़ार्मिंग तक, यह किताब 19वीं और 20वीं सदी में अंग्रेज़ी हुकूमत की हदों पर बात करते हुए जाति, वर्ग और लिंग की जटिल पूर्वधारणाओं को उजागर करती है। इसके साथ ही इस किताब में लिन इनेस अपने परिवार की राजशाही से लेकर गुमनामी तक के अप्रत्याशित सफ़र को भी याद करती हैं।

गीता हरिहरन के साथ इस बातचीत में, इनेस अपनी किताब, उसमें महिलाओं की जटिल कहानियाँ और अन्य चीज़ों के बारे में चर्चा कर रही हैं।

गीता हरिहरन : हालांकि 'द लास्ट प्रिंस ऑफ़ बंगाल' नाम में ही एक पूरे सफ़र का इशारा मिलता है, मगर महाद्वीपों में एक और मज़बूत कहानी साथ चलती है। यह कहानी है उन महिलाओं की- जो हाशिये पर रहती हैं या धकेल दी जाती हैं; और उनकी कहानी जो अपने लिए एक अलग पहचान चाहती हैं काफ़ी हद तक कामयाब भी होती हैं। क्या आप महिलाओं की कहानी के इस जटिल जाल की बात अपनी किताब में करेंगी?

लिन इनेस : किताब लिखने में मुझे जो परेशानी हुई, वह थी महिलाओं की कई छिपी कहानियों के बारे में मेरी जागरूकता, जिन्हें मैं उजागर नहीं कर पा रही थी और उनके बारे में केवल संकेत भर दे रही थी।

इसमें नवाब की सबसे प्यारी पत्नी हसीना की कहानी है, जो उनकी माँ की अफ़्रीकी गुलाम थी। इसने कई अन्य कहानियों का भी सुझाव दिया, जिनके बारे में कोई भी नहीं लिखता है, जो उत्तरी अफ़्रीका से भारत में लाई गई और धनी भारतीय परिवारों को बेची जाने वाली महिलाओं के बारे में है।

और फिर अन्य निकाह और मुताह पत्नियों की कहानियाँ हैं, कुल मिलाकर कोई 26, जिनके साथ नवाब के 100 से अधिक बच्चे थे। उनकी कहानियाँ भी मेरे लिए अज्ञात हैं, हालाँकि अगर मेरी उर्दू और फ़ारसी बेहतर होती, तो शायद मैं उनमें से कुछ को शामिल कर पाती।

जब नवाब इंग्लैंड आए तो अखबारों के साथ-साथ स्केच और तस्वीरों में भी उनका लगभग हर रोज़ ज़िक्र होता था, लेकिन 10 साल की शादी के दौरान कहीं भी उनकी पत्नी सारा, मेरी परदादी का कोई उल्लेख नहीं है। न ही कोई फ़ोटो था। वह औपचारिक अवसरों पर उनके साथ कभी नहीं गईं, क्योंकि अतिथि सूचियों में उनका कोई उल्लेख नहीं है। जब नवाब के मरने के बाद वह अपने बच्चों की कस्टडी के लिए लड़ने लगीं, तब उनका नाम अख़बारों में छपा, और उसी के ज़रिए मैं उनके चरित्र और हिम्मत की झलक पा सकी।

उस समय, उनके लिए हिरासत हासिल करना तभी संभव होता यदि वह दावा कर पातीं कि उनकी शादी नाजायज़ थी, जिसका मतलब यह भी होता कि वह एक सम्मानित विवाहित महिला के रूप में अपनी पहचान खो देतीं, और नवाब की पेंशन पर भी कोई दावा नहीं कर पातीं। इसके बावजूद उन्होंने तर्क दिया कि शादी नाजायज़ थी, और अपने बच्चों को वापस पाने की कोशिश में सब कुछ दांव पर लगा दिया। विडंबना यह है कि अदालत ने यह कहते हुए असहमति जताई कि उनकी शादी एक वैध मुस्लिम विवाह थी, हालांकि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 10,000 पाउंड का महर देने से इनकार कर दिया था, जिसका वादा नवाब ने शादी के समय किया था। और इसलिए, सिंड्रेला की तरह, वह राजकुमार से शादी करने के बाद गुमनामी में चली गईं और फिर से सामने आने के उसके लापता होने का इंतज़ार किया। हालांकि फिर भी उनकी शादी ने उन्हें ग़रीबी और रोज़मर्रा की कड़ी मेहनत से बचने में मदद की।

मेरी दादी सारा की तरह, सारा और नवाब के सबसे छोटे बेटे नुसरत की एल्सी से शादी, एक दाई से राजकुमारी तक वर्ग के मामले में एक बड़ी छलांग थी। यह एक ऐसी पहचान थी जिसमें उन्होंने आनंद लिया और जिसने उन्हें एक लेखक के रूप में पहचान पाने में मदद की। इसने उन्हें कई अलग-अलग समय में कई तरीकों से अपने जीवन को फिर से लिखने में मदद की।

गीता : यहाँ आप वर्ग, जाति और भाषाओं के मिश्रण की इतिहासकार भी हैं और कहानीकार भी। आप ख़ुद को कहानी के एक हिस्से के रूप में, उसके अतीत और उस पहचान/पहचानों के रूप में कैसे देखती हैं जो आपने ख़ुद को अभी दी है? अपने ही परिवार पर शोध करना कैसा लगा?

लिन : जब मैं बड़ी हो रही थी तब ऑस्ट्रेलिया में श्वेत ऑस्ट्रेलिया आव्रजन नीति अभी भी लागू थी और भारतीयों को ऑस्ट्रेलिया में रहना मना था। परिणामस्वरूप मेरी माँ ने शायद ही कभी अपनी भारतीय विरासत के बारे में बात की और हमें इसके बारे में बात करने से हतोत्साहित किया। तो शुरूआत में एक भारतीय पृष्ठभूमि की भावना तो थी, लेकिन यह एक रहस्य भी था, थोड़ा निंदनीय रहस्य।

बाद में मुझे पता चला कि मेरी दादी ख़ुद को एक राजकुमारी कहती हैं और एक शाही संबंध के विचार ने मुझे एक टीनएजर के रूप में नाराज़ नहीं किया। जब मैंने ऑस्ट्रेलिया छोड़ दिया और कट्टरपंथी राजनीति में शामिल हो गई, तो मैंने अपनी भारतीय विरासत को अपनाना शुरू कर दिया और यह चाहती थी कि रॉयल्टी शामिल न हो। इसलिए ये दोतरफ़ा भावनाएँ थीं जब मैंने पहली बार अपने पारिवारिक इतिहास पर शोध करना शुरू किया और महसूस किया कि यह भारत पर ब्रिटिश क़ब्ज़े की शुरूआत से जुड़ा हुआ है। मुझे याद है कि कुछ साल पहले एक भाषण देते हुए एक युवा बंगाली ने मुझसे पूछा था कि मीर जाफ़र के वंशज होने पर कैसा लगता है? मैंने उत्तर दिया कि मुझे न तो गर्व महसूस हुआ और न ही शर्म, लेकिन फिर भी यह महसूस किया कि इसने मुझे भारत और भारत के इतिहास से जोड़ा, और इसके लिए मुझे ख़ुशी है। इसके अलावा, इसने मुझे ऑस्ट्रेलिया, या इंग्लैंड या यहां तक ​​कि यूरोप की तुलना में एक व्यापक दुनिया से संबंधित होने की भावना दी। और परिवार के इतिहास पर शोध करने से ब्रिटिश शासन के अधीन होने के तरीकों की एक स्पष्ट समझ सामने आई और इसने भारत में व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित किया और विभाजित और द्विपक्षीय वफ़ादारी पैदा की। सबसे बढ़कर, मुझे लगता है कि इसने मुझे सरल पहचान की धारणा को अस्वीकार करने, नस्लीय श्रेणियों की बेरुखी का एहसास करने और एक जटिल और अक्सर विरोधाभासी पहचान की भावना को अपनाने के लिए प्रेरित किया है। मैं विशेषाधिकार प्राप्त हूं, लेकिन शाही वंश के कारण नहीं, मैं ऑस्ट्रेलियाई हूं, लेकिन वह ऑस्ट्रेलियाई नहीं जो अधिकांश लोग समझते हैं, मैं श्वेत भी हूँ और अश्वेत भी हूँ, मैं भारतीय भी हूँ और ग़ैर भारतीय भी हूँ।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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