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सूडान संकट : हिंसा में मृतकों की संख्या 100 से ज़्यादा हुई

कई क्षेत्रों के पेशेवर और एक्टिविस्ट उस समय तक सार्वजनिक हड़ताल और सविनय अवज्ञा में भाग लेने के लिए डटे हैं जब तक कि जुंटा असैनिक बलों को सत्ता सौंप नहीं देता है।
Sudan
फोटो साभार: Al Jazeera

100 से अधिक प्रदर्शनकारियों को रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएप) द्वारा मार दिए जाने के बाद 3 जून को अफ्रीकी संघ ने सूडान को तब तक के लिए निलंबित कर दिया है जब तक कि वह असैनिक बलों को सत्ता सौंप नहीं देता है। सूडान के विपक्षी गठबंधन ने भी बातचीत को फिर से शुरू करने के मिलिट्री जुंटा (सेना का शासन) के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। गठबंधन ने कहा है कि जब तक सत्ता नागरिकों को हस्तांतरित नहीं की जाती है तब तक बातचीत नहीं होगी। इस हत्याकांड के लिए जिम्मेदार आरएसएफ का नेतृत्व जुंटा के उपाध्यक्ष कर रहे हैं।

3 जून को हुए नरसंहार में मरने वालों की संख्या पहले 60 बताई गई थी। फिर नील नदी में तैर रही कम से कम 40 और लाशों को निकाला गया जिससे मरने वालों की संख्या 100 से अधिक हो गई। पीपल्स डिस्पैच को कई श्रोताओं ने बताया कि और लाशें अभी भी तैर रही हैं। ये नरसंहार तब हुआ जब आरएसएफ की टुकड़ी ने खार्तूम में सेना मुख्यालय के बाहर जमा प्रदर्शनकारियों को इलाके से खाली करने की कोशिश की।

रेडियो दबंग के अनुसार नदी से बरामद किए गए शवों में से कुछ के शरीर में गोली के ज़ख्म थे जबकि अन्य को छुरे से काट दिया गया था। सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक वीडियो में देखा जा सकता है कि एक पिकअप ट्रक के पीछे नदी से निकाले गए गए शव हैं। एक शव के शरीर पर भारी पत्थर बंधा हुआ था।

हमले में घायल हुए सैकड़ों लोगों को इलाज के लिए कई अस्पतालों में ले जाया गया। लेकिन जल्द ही अस्पतालों की घेराबंदी करने से पहले आरएसएफ के जवान इन अस्पतालों में घुस गए और कई स्वास्थ्य कर्मचारियों और डॉक्टरों से मारपीट की और मरीजों को जबरन बाहर कर दिया। प्राथमिक चिकित्सा देने के लिए प्रदर्शन स्थल पर लगाए गए तंबू को भी जला दिया गया और कई लोग गिरफ़्तार कर लिए गए।

खार्तूम के दक्षिण में लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर ब्लू नाइल स्टेट की राजधानी एड-दामाज़िन में स्थानीय सेना की चौकी से पहले मौजूद प्रदर्शनकारियों को भी आरएसएफ द्वारा हिंसक तरीके से तितर-बितर किया गया था। आरएसएप ने प्रदर्शनकारियों द्वारा वहां बनाए किए गए सभी टेंटों को जला दिया। रिवर नाइल स्टेट की राजधानी अटबारा शहर में प्रदर्शन को जहां 19 दिसंबर से सत्ता-विरोधी विद्रोह शुरू हुआ था वहां भी सेना द्वारा तितर बितर कर दिया गया था।

एड दमाज़िन और अटबारा सहित सूडान के कई शहरों और नगरों में अगले ही दिन बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स से सभी प्रमुख सड़कों को जाम कर दिया और अटबारा में सार्वजनिक परिवहन को अवरुद्ध कर दिया जिससे शहर में असामान्य स्थिति पैदा हो गई।

हालांकि विभिन्न क्षेत्रों में बैरिकेडिंग और छोटे मोटे प्रदर्शनों को छोड़कर खार्तूम की सड़कें मंगलवार को आरएसएफ बलों की कार्रवाई के चलते में सुनसान थीं, हथियारों से लैस पिक-अप ट्रकों पर शहर में गश्त लगाई गई। सूत्रों के अनुसार सड़कों पर पाए जाने वाले लोगों को निशाना बनाते हुए पीटा गया और गोली मारी गई।

इसकी पुष्टि सोशल मीडिया पर उन एक्टिविस्ट द्वारा अपलोड किए गए फुटेज से होती है जो जुंटा द्वारा इंटरनेट और प्रेस पर प्रतिबंध से बचने में में कामयाब रहे। ये प्रतिबंध आज भी बरकरार है।

डर के माहौल में जुंटा ने पिछले सभी समझौतों को वापस लेने की घोषणा की है जो विपक्षियों के साथ हुआ था। सूडानी प्रोफेशनल्स एसोसिएशन (एसपीए) जो दिसंबर से बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों की अगुवाई कर रहा है उसने पहले से ही किसी भी अन्य बातचीत से दूर रहने की घोषणा की थी। ये प्रदर्शनकारियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर एक अम्ब्रेला ऑर्गनाइजेशन बनाने के लिए एक साथ आगे बढ़ा। इस संगठन का नाम डेकेल्यरेशन ऑफ फ्रीडम एंड चेंज फोर्सेस (डीएफसीएफ) रखा।

उस दिन शाम को और उसके बाद सुबह के समय सशस्त्र बलों के सैनिक खार्तूम में भिड़ गए। पत्रकार यूसरा एलबागिर ने घटना स्थल के स्रोतों का हवाला देते हुए ट्वीट किया। हालांकि एक अन्य ट्विटर यूजर ने उन्हें फटकारते हुए कहा, "किसी झड़प की पुष्टि नहीं हुई .. सेना की छवि को फिर से चमकाने के लिए [यह अफवाह का एक प्रयास है] .."

एक अन्य यूजर ने कहा, "इन झड़पों को लेकर बहुत ज़्यादा चर्चा है। चाहे वे सही हैं या गलत, यह क्रांति को प्रभावित नहीं करेगा क्योंकि यह सेना पर आधारित नहीं है .. । ये क्रांति उनके साथ शुरू नहीं हुई और उन पर निर्भर नहीं है।’’

अगले दिन खार्तूम की घेराबंदी जारी रही। आरएसएफ को एक काफिले में विरोध स्थल पर तितर बितर करते हुए देखा गया। इस काफिले में कम से कम तीन यूएई-निर्मित एनआईएमआर अजबन 440 ए शामिल थे। इन बख्तरबंद वाहनों की छतों को बंदूकों से लैस किया गया था।

इस बीच इस नरसंहार की इंग्लैंड सहित पूरे यूरोप के कई देशों में सूडान के दूतावासों के सामने प्रदर्शनों कर के व्यापक तरीके से निंदा की गई। पेरिस में प्रदर्शनकारियों ने सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र के दूतावास के बाहर प्रदर्शन करने के लिए जमा हुए जो सूडान में जुंटा की सेना की मदद कर रहे हैं।

दबाव में जुंटा ने बातचीत को फिर से शुरू करने की पेशकश की लेकिन इस बीच आरएसएफ की सेना खार्तूम को भयभीत करना जारी रखे हुए है। विपक्षियों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है और सभी क्षेत्रों में पेशेवर और श्रमिकों द्वारा एक सार्वजनिक राजनीतिक हड़ताल करने के लिए अपने आह्वान को फिर दोहराया है।

इसने सविनय अवज्ञा के लिए अपने आह्वान को भी दोहराया है जहां जनता ने "कूप काउंसिल" द्वारा किए गए सभी आदेशों और निर्णयों का पालन करने से इनकार कर दिया है जिसे एसपीए ने अब संक्रमणकालीन सैन्य परिषद (टीएमसी) कहा है और जिसके माध्यम से सेना को शक्ति प्राप्त है।

इंजीनियरों, फार्मासिस्टों और अन्य पेशे के विभिन्न संघों ने घोषणा की है कि वे एसपीए द्वारा बुलाए गई हड़ताल में भाग लेंगे। नियोक्ताओं के कई संघों ने भी अपना समर्थन देने की बात कही है।

पेट्रो एनर्जी ऑयलफील्ड ऑपरेशंस ग्रुप लिमिटेड के पेशेवर भी हड़ताल और सविनय अवज्ञा में शामिल हो रहे हैं। कंपनी का 5% शेयर राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम सुडापेट के पास हैं जबकि चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन इंटरनेशनल (सीएनपीसीआई) के पास अन्य 95% शेयर है।

वरिष्ठ प्रबंधन के साथ इस एजेंडा को बढ़ाने और "विदेशी भागीदार को इन घटनाओं की एक व्यापक व्याख्या" देने के बाद इस कंपनी द्वारा नियोजित पेशेवरों ने वेस्ट कोर्डोफ़ोन में सभी छह क्षेत्रों में तेल के कुओं में उत्पादन को रोकने का संकल्प लिया है।

तेल की पंपिग को पूरी तरह से बंद करने की अपनी तैयारी की घोषणा करते हुए पेशेवरों ने सविनय अवज्ञा के लिए अपनी प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि की है।

सौजन्य: पीपल्स डिस्पैच

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