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तमिलनाडु क्यों कावेरी प्रबंधन बोर्ड चाहता है

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के क्रियान्वयन में देरी से केवल किसानों की बदहाली बढ़ेगी, खासकर कावेरी बेल्ट के जिलों में |
कावेरी प्रबंधन बोर्ड

तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी नदी जल साझाकरण विवाद कई दशकों से खींच जा रहा है। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इस साल फरवरी में अपना निर्णय दिया था, विवाद अभी भी केंद्र सरकार कि ओर से ये मामला स्थिर बना हुआ है,  ज़बकी सरकार अदालत के आदेश को लागू करने के लिए बाध्य है, जिसमें अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम , 1956 की धारा 6 ए के तहत एक "योजना" बनाने का आदेश दिया है |  परन्तु  इस दिशा में सरकार ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया हैं |

तमिलनाडु के किसान राज्य भर में विरोध कर रहे हैं, कावेरी प्रबंधन बोर्ड (सीएमबी) की तत्काल स्थापना के लिए केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं, साथ ही राज्य के सांसदों ने बजट सत्र के दूसरे चरण के दौरान इस मुद्दे को भी उठाया है ।  इस बीच, कर्नाटक सरकार ने सीएमबी के विरोध के अपने  रुख पर कायम है और इसके साथ हाल ही में केंद्र को एक और योजना का प्रस्ताव भेजा है।
यह बताया गया है कि तमिलनाडु के कावेरी डेल्टा जिलों के सैकड़ों किसानों ने दिल्ली में उच्चतम न्यायालय के आदेश को लागू करने में केंद्र सरकार के देरी के विरोध में दिल्ली में अनिश्चितकालीन उपवास शुरू करने का आह्वान किया हैं |

तमिलनाडु की तरफ से एक मुख्य दलील है कि कर्नाटक, जो जलाशयों से जल जारी करने का अधिकार रखता हैं, ने कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल के अंतिम फैसलें का वर्षों तक पालन नहीं किया। इसलिए, सीएमबी की एक अलग नियामक निकाय की स्थापना हुई, ताकि जलाशयों को खोलने की जिम्मेदारी कर्नाटक सरकार की बजाय सीएमबी द्वारा लागू की जा सके |

सर्वोच्चतम न्यायालय का फैसला

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने 16 फरवरी, 2018 को कावेरी जल विवाद पर अपना फैसला सुनाया। तदनुसार, अदालत ने कावेरी पानी के राज्यवार बंटवारा इस प्रकार किया - तमिलनाडु -404.25 टीएमसीएफटी, कर्नाटक -284.75 टीएमसीएफटी, केरल- 30 टीएमसीएफटी और पुडुचेरी - 7 टीएमसीएफटी। 2007 में कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल (सीडब्ल्यूडीटी) द्वारा अंतिम फैसले से तुलना करे तो  तमिलनाडु के लिए जल आवंटन का हिस्सा 14.75 टीएमसीएफटी प्रति वर्ष कम हुआ हैं। यह आदेश अगले 15 सालों तक लागू करने के लिए कहा गया है। अदालत ने केंद्र सरकार को इस फैसले को लागू करने के लिए एक योजना बनाने का निर्देश दिया है ।

कर्नाटक द्वारा प्रस्तावित योजना

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए सीएमबी जैसे एक स्वतंत्र नियामक संस्था के गठन का विरोध करते हुए, कर्नाटक सरकार ने "विवाद समाधान" तंत्र के रूप में एक अन्य योजना को अवधारणा के साथ केंद्र का प्रस्ताव भेजा है। तदनुसार, इस योजना में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री की अध्यक्षता वाली एक छह सदस्यीय कावेरी निर्णय क्रियान्वयन समिति (CDIC) शामिल है और इसके तहत ही 11 सदस्यीय निगरानी एजेंसी केंद्रीय जल संसाधन सचिव की अध्यक्षता में गठित हो | अर्थात्, कर्नाटक पानी के छोड़े जाने के अपने प्राधिकार को छोड़ना नहीं चाहती है , इसलिए सीएमबी के खिलाफ।

कावेरी डेल्टा मे तनाव

सिंचाई के पानी की उपलब्धता में अनिश्चितता के कारण, डेल्टा क्षेत्र के किसान दावा करते हैं कि वे प्रति वर्ष केवल एक फसल सत्र का ही उपयोग कर पते है | इसके अलावा, कावेरी डेल्टा  में अक्सर तूफान, चक्रवात, बाढ़ और सूखे की संभावना रहती है | मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के पूर्व प्रोफेसर एस० जनकारंजन ने पिछले चार दशकों में तीन कावेरी डेल्टा जिलों - तंजावुर, तिरूवरूर और नागापट्टिनम – ने इस दौरान या बहुत बड़ा बदलाव देखा की यहाँ खेती वाली भूमि भी बंजर भूमि  क्षेत्र में बदल गई है | उदाहरण के लिए, इन जिलों में 1971 और 2014 के बीच, इन जिलों में बंजर भूमि 62 वर्ग किमी से 536 वर्ग किलोमीटर तक बढ़ी है |

चूंकि इस मुद्दे को सुलझाने में केंद्र सरकार की देरी स्पष्ट रूप से समझ आ रही है , या तो वो कर्नाटक विधानसभा की चुनाव के कारण या तमिलनाडु में भाजपा के लिए मैदान तैयार करने के इरादें के कारण हो सकता है , परन्तु ये सब सरकार किसान की पीड़ा की कीमत पर कर रही है ।

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