तटीय क्षेत्र अधिसूचना 2018 के ख़िलाफ़ मछुआरों ने किया विरोध प्रदर्शन

देश भर के मछुआरों ने तटीय क्षेत्र अधिसूचना 2018 के मसौदे के ख़िलाफ़ सोमवार को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया। नेशनल फिशवर्कर्स फोरम (एनएफएफ) के बैनर के तले ये मुछआरे तटीय क्षेत्र विनियमन अधिसूचना, 2018 के मसौदे का विरोध करते हुए तटीय राज्यों में इकट्ठा हुए(सीआरजेड, 18)। ये मसौदा 18 अप्रैल, 2018 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा जारी किया गया था।
प्रत्येक तटीय राज्य में "तटीय क्षेत्रों को पुनर्स्थापित किया जाए, हमारी आजीविका सुरक्षित किया जाए" के नारों के साथ एनएफएफ के अधीन अन्य संगठनों ने प्रदर्शन किया और सरकार से अधिसूचना को रद्द करने का आग्रह किया जो तटीय क्षेत्रों के पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को निर्बल करते हैं। ये मसौदा पर्यावरण(संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार"... ऐसे सभी उपायों को करेगी जो इसके गुणवत्ता की सुरक्षा और सुधार के उद्देश्य से आवश्यक या उपयुक्त मानती हैं। पर्यावरण प्रदूषण को रोकना, नियंत्रित करना और सुरक्षित करना तथा उसे बेहतर करना।" वर्तमान सीआरजेड2011 अधिसूचना के अनुसार घटे क्षेत्र का निर्धारण किया जाए, आजीविका संरक्षित हो, और अनियंत्रित विकास रोका जाए। हालांकि सीआरजेड2018 का मसौदा सुरक्षा उपायों को हटाकर और विकास को सुविधाजनक बनाकर इन्हें पलट देता है और बदले में सगारमाला कार्यक्रम के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। एनएफएफ ने केंद्र के निहित हित को भी उजागर किया जो बिल पास करने के कगार पर है। इसके अलावा एमओईएफसीसी ने केवल अंग्रेज़ी में ही सीआरजेड अधिसूचना प्रकाशित की है और बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने वाले समुदायों के प्रति अपनी कुटिलता को प्रदर्शित किया है।
एनएफएफ मांग करता रहा है कि एमओईएफसीसी में भारत सरकार सीआरजेड 2018 के मसौदे को रद्द कर दे, और तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा जनवरी 2011 में किए गए वादे के मुताबिक़ एक व्यापक तटीय विनियमन क्षेत्र अधिनियम के लागू करने के लिए तत्काल क़दम उठाए। ये अधिनियम तटीय मछुआरों के समुदायों और संबंधित नागरिकों के साथ खुले और उचित परामर्श के माध्यम से तैयार किया जाना चाहिए और इन संसाधनों पर निर्भर तटीय प्राकृतिक संसाधनों और सतत आजीविका की रक्षा के उद्देश्य से ये पूरी तरह वैज्ञानिक, पर्यावरण और सामाजिक सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।
इसके अलावा एनएफएफ की अन्य लंबित मांग यह है कि सीआरजेड, 2011 के तहत तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (सीजेडएमपी) को सामुदायिक भागीदारी और पारंपरिक समझ के संयोजन के साथ एक पारदर्शी और उत्तरदायी तरीके़ से तटीय मछुआरों के समुदायों की पट्टियों, क्षेत्रों, योजनाओं, और दीर्घकालिक आवास की आवश्यकताओं की सीमांकन सहित पूरा किया जाए।
इस देशव्यापी विरोध से पहले एनएफएफ के अध्यक्ष नरेंद्र पाटिल ने कहा कि "हम सबसे बड़े प्राथमिक ग़ैर-उपभोग करने वाले हितधारक हैं और तटीय प्राकृतिक संसाधनों के प्राकृतिक संरक्षक हैं। भारत के मछुआरे इस दस्तावेज पर चुप नहीं रहेंगे जो हमारे परामर्श के बिना तैयार किया गया है।"
सोमवार को केरल में एनएफएफ की सहयोगी केरल स्वातंत्र मत्स्यथोजिलाली फेडरेशन (केएसएमटीएफ) ने राज्य की राजधानी में मार्च निकाला। एनएफएफ के महासचिव पीटर थॉमस ने कहा कि "सीआरजेड 2018 का विरोध करते हुए, हमने तिरुवनंतपुरम में एजी के कार्यालय तक मार्च किया और मछुआरों ने अपनी मांगों को लेकर केंद्र को पत्र भेजा है।"
पीटर ने आगे कहा, "कोई भी नए नियम पेश किए जाने से पहले सरकार को सीआरजेड, 1991 और सीआरजेड, 2011 को लागू करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी त्रुटियों का निपटारा कर लिया गया है। सीआरजेड 2018 की अधिसूचना के मसौदे में पिछले त्रुटियों के किसी भी उल्लेख के बिना एमओईएफसीसी अनिवार्य रूप से ऐसे सभी उल्लंघन करने वालों को माफ़ कर रही है।"
गोवा में एनएफएफ के साथ काम करने वाली संस्था गोयनशिया रैपोनकारंचो एकवॉट (जीआरई) ने गोवा तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (जीसीजेएमएमए) के सदस्य सचिव को एक ज्ञापन सौंपा है। इस ज्ञापन में सीआरजेड अधिसूचना 2018 के मसौदे को लेकर विरोध किया गया और उनसे आग्रह किया कि गोवा और जीसीजेडएमए को मछुआरों की तरफ से इस आपत्ति पत्र को भेजा जाए।
एनएफएफ के उपाध्यक्ष और जीआरई के महासचिव ओलेनसियो सिमोस ने कहा, "जीआरई और एनएफएफ ने सर्वसम्मति से इस मसौदे को ख़ारिज कर दिया क्योंकि यह अधिसूचना तटीय रेखाओं के सुरक्षा उपायों को कम कर रही है और इसलिए यह पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 का उल्लंघन करती है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ऐसे सभी उपायों को करेगी जो पर्यावरण की गुणवत्ता की सुरक्षा और सुधार और पर्यावरण प्रदूषण को रोकने, नियंत्रित करने और सुरक्षित करने के उद्देश्य से आवश्यक या उपयुक्त माना जाता है।"
जीसीजेएमएमए को प्रस्तुत ज्ञापन में लिखा गया है: "यह स्पष्ट क्यों नहीं है कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय 2011 के सीआरजेड अधिसूचना को शिथिल करने का प्रयास कर रहा है, इससे बिल्डरों और उद्योगपतियों को लाभ हो सकेगा, सच्चाई यह है कि हमारा ग्रह पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है।"
राज्य भर में मछुआरों की चिंताओं का ज़िक्र करते हुए सिमोस ने कहा: "हम लगभग 80,000 मछुआरे हैं इसलिए हम सभी प्रभावित होंगे और एचटीएल के 50किलोमीटर के भीतर निर्माण की इजाज़त देकर समुद्र तट के 105 किलोमीटर क्षेत्र को नष्ट कर दिया जाएगा। कोई भी सीआरजेड नहीं बचेगा।"
उन्होंने आगे कहा कि "क्योंकि कोई तट नहीं बचेगा इसलिए यह अंततः मछुआरों और पर्यटन के लिए समाप्त ही हो होगा। यदि नो डेवलप्मेंट ज़ोन (डीजेड) 50मीटर तक कम कर दिया जाता है तो गोवा अपनी तटीय रेखा को खो देगा क्योंकि 105 किमी गोवा की तटीय रेखा का 20 प्रतिशत पहले से ही अपरदन से प्रभावित हुआ है। उत्तरी गोवा में कोल्वाले क्षेत्र और दक्षिणी गोवा में तल्पोना नदी पहले से ही अपरदन से प्रभावित हैं।"
वांगकडाल मीन थोजिलालार संगम (वीएमटीएस), रामनाडू ज़िला के फिशवर्कर्स यूनियन (आरडीएफयू), कोस्टल एक्शन नेटवर्क (सीएएन) और भारतियर मीनावर संगम सहित कई यूनियनों ने तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों रामानाडू, चेन्नई, नागपट्टिनम, तिरुववूर और कडलूर समेत कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन किया।
आरएफटीयू के अध्यक्ष ए पालसामी ने रामानाडू में प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहा, "अधिसूचना के अधिनियम बन जाने के बाद, स्थानीय मछुआरे तट के500 मीटर के भीतर अपने नाव जाल के साथ रहने लायक नहीं होंगे।"
इसके अलावा एनएफएफ के सहयोगियों ने अपने संबंधित राज्यों में विरोध किया। इसमें गुजरात के भरूच में माछिमार अधिकार संघर्ष संगठन, महाराष्ट्र के मुंबई में महाराष्ट्र माछिमार कृति समिति, मंगलोर में कोस्टल कर्नाटक फिशरमेन एक्शन कमेटी, पुडूचेरी में कराइकल फिशवर्कर्स यूनियन, विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) में डेमोक्रेटिक ट्राडिशनल फिशर्स एंड फिशवर्कर्स फॉरम, कोणार्क (ओडिशा में) उड़ीसा ट्राडिशनल फिश वर्कर्स यूनियन और पूर्वी मिदनापुर (पश्चिम बंगाल) में दक्षिणीबंगा मत्स्यजीबी फोरम शामिल हैं।
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