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लोगों के एक घर बनाने में टूटने और उजड़ जाने की कहानी

देश में बुलडोज़र की राजनीति ने ऐसा आतंक मचाया है कि इसका ख़ौफ़ अब आम जन मानस के चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा है।
लोगों के एक घर बनाने में टूटने और उजड़ जाने की कहानी
लोगों के एक घर बनाने में टूटने और उजड़ जाने की कहानी

इज़रायल की कुसंगत में रहकर भारतीय राजनीति ने कई घातक, जनविरोधी और हठी प्रयोग सीखे हैं। बुलडोज़र नई तकनीक है जो अमेरिकी तीलियों पर खड़े एक विफल राष्ट्र इज़रायल से आयात की गई है। अदालत के बाहर लोगों को सबक़ सिखाने की इस असंवैधानिक ज़िद ने जहांगीरपुरी में जो ज़ख्म दिए हैं वो भारतीय नागरिकों को ही लगे हैं। बशीर बद्र जब 80 के दशक में कह रहे थे कि- ‘लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में’, तो शायद वो यह मान रहे थे कि बुरे लोग ही बस्तियाँ उजाड़ते हैं। शायद बद्र नहीं सोच पाए होंगे कि राज्य नाम की संस्था भी ऐसा कर सकती है।

देश में बुलडोजर की राजनीति ने ऐसा आतंक मचाया है कि इसका ख़ौफ़ अब आम जन मानस के चेहरे पर साफ नज़र आ रहा है। दिल्ली के जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक झड़प के बाद ‘अतिक्रमण’ हटाने के नाम पर चलने वाले दिल्ली नगर निगम के बुलडोज़र पर भले ही सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी हो, लेकिन दिल्ली की झुग्गी बस्तियों/कच्ची कॉलोनियों पर लगातार बुलडोजर का खतरा मंडरा रहा है। दिल्ली के सीमावर्ती इलाक़े ओखला, मदनपुर, बदरपुर जैसे इलाक़ों में झुग्गी बस्तियों में रहने वाले मजदूरों को लगातार यह डर सता रहा है कि अतिक्रमण हटाने के नाम पर उनके आशियाने को उजाड़ दिया जाएगा। दशकों से झुग्गियों में रह रहे इन मजदूरों का यह डर उस वक्त और बढ़ जाता है जब एमसीडी में सत्तारूढ़ भाजपा के नेता इन बस्तियों में आकर बुलडोजर चलाने की चेतावनी देकर जाते हैं। भाजपा के नेता इन झुग्गियों में रहने वाले ग़रीबों को न सिर्फ उजाड़ने की धमकी देते हैं, बल्कि वे उनकी राष्ट्रीयता को ही संदिग्ध बनाकर चले जाते हैं। हाल ही में हरियाणा से सटे जैतपुर की विश्वकर्मा कॉलोनी की झुग्गियों में भाजपा नेता पहुंचे थे, उन्होंने वहां जाकर विश्वकर्मा कॉलोनी को ‘अवैध’ बताते हुए उस पर बुलडोजर चलाने की बात कही, इतना ही नहीं स्थानीय पार्षद केके शुक्ला ने इन झुग्गियों में रहने वाले लोगों की राष्ट्रीयता को ही संदिग्ध करार दे दिया।

वर्कशॉप चलाने वाले 50 वर्षीय मोहम्मद क़ासिम 20 वर्षों से जैतपुर की खड्डा कॉलोनी में रह रहे हैं। साल 2013 तक वे किराए पर रहते थे, उसके बाद उन्होंने 2013 में उन्होंने विश्वकर्मा कॉलोनी में क़िस्तों में प्लाट खरीदा और मकान बनाकर रहने लगे। लेकिन हाल ही में भाजपा के नेता कुछ ‘चैनल’ वाले पत्रकारों के साथ इस इलाक़े में गए तो मोहम्मद क़ासिम के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं। क़ासिम कहते हैं, “वे आए थे, कुछ पुलिसकर्मी और एमसीडी के कर्मचारी भी उनके साथ थे। वे कह रहे थे कि यहां बहुत जल्द बुलडोजर चलेगा, क्योंकि इस बस्ती में बंग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं।” क़ासिम बताते हैं कि इस बस्ती में क़रीब 500 घर हैं, जिसमें हिंदू भी हैं, मुसलमान भी हैं, सब मिल जुलकर रहते हैं। सबके सब ही मजदूर वर्ग से हैं। किसी तरह पेट काटकर उन्होंने यह ज़मीन ख़रीदकर उस पर झोपड़ी, मकान बनाए हैं, ताकि उन्हें ‘किराए’ के मकानों से छुटकारा मिल सके और वे ‘अपने’ घरों में रह सकें।

वर्कशॉप चलाने वाले 50 वर्षीय मोहम्मद क़ासिम

क़ासिम की बात को ही सुधा देवी आगे बढाती हैं। सुधा बिहार से हैं, पिछले कुछ वर्षों से विश्वकर्मा कॉलोनी में रह रही हैं। सुधा कहती हैं कि, “यहां न कोई बंग्लादेशी है, न कोई रोहिंग्या है, सब हिंदुस्तानी है, और सभी ग़रीब हैं। जिन्होंने मेहनत मजदूरी करके, क़िस्तों पर प्लॉट खरीदे और फिर टिन की चादर से उन्हें ‘घर’ बनाया है।” विश्कर्मा कॉलोनी कच्ची कॉलोनी है, और मलूभूत आवश्यक्ताओं के लिये भी तरस रही है। कॉलोनी में बिजली के पोल नहीं हैं, पानी की पाइपलाइन नहीं है। सुधा कहती हैं, “लोगों को परेशान न किया जाए बल्कि उन्हें सुविधा दी जाएं, यहां सरकार वोट के टाइम तो आती है, लेकिन उसके बाद कोई सुध लेने नहीं आता।”

सुधा बिहार से हैं, पिछले कुछ वर्षों से विश्वकर्मा कॉलोनी में रह रही हैं।

कॉलोनी को तुड़वाना चाहती है भाजपा

विश्वकर्मा कॉलोनी में मोहम्मद सलीम का भी प्लॉट है। सलीम आरोप लगाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के नेता इस कॉलोनी को तुड़वाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि भाजपा के नेता एमसीडी कर्मचारियों के साथ आते हैं और इस कॉलोनी में रोहिंग्या के बसे होने का आरोप लगाते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि इस कॉलोनी में रहने वाले सभी लोग मजदूर हैं, जिन्होंने किसानों से प्लॉट खरीदकर उस पर घर बनाए हुए हैं। यहां इस कॉलोनी में न तो कोई रोहिंग्या है, न कोई बंग्लादेशी, जो हैं सब भारतीय हैं और सभी मजदूर हैं। 

सलीम आरोप लगाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के नेता इस कॉलोनी को तुड़वाना चाहते हैं।

सलीम के आरोप पर भाजपा के स्थानीय पार्षद और एसडीएमसी में चेयरमैन रहे कमलेश कुमार शुक्ला 1731 पीएम उदय योजना के अंतर्गत नामित कॉलोनियों का हवाला देते हैं, कि उस लिस्ट में विश्वकर्मा कॉलोनी का नाम नहीं है। कमलेश कहते हैं कि 1996 से लेकर 2016 तक जो कॉलोनी बसी हैं, उनमें भी विश्वकर्मा कोलोनी का नाम नहीं है। केके शुक्ला कहते हैं कि, “यह ज़मीन किसानों की ज़मीन थी, इस पर किसी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता था, लेकिन भू-माफियाओं ने पहले किसानों से इस ज़मीन को लिया और उसके बाद से इन लोगों को बेच दिया, इस पर होने वाला निर्माण कार्य पूर्णतः अवैध ही है।” 

 कमलेश कुमार शुक्ला

विश्वकर्मा कॉलोनी में रोहिंग्या और बंग्लादेशी बसे होने के सवाल पर शुक्ला कहते हैं, “कंचन कुंज में रोहिंग्या हैं, इन बस्तियों में भी रोहिंग्या रह रहे हैं। अब यह जांच का विषय है, इसकी जांच होनी चाहिए और अवैध तरीक़े से रहने वाले लोगों को वापस भेजना चाहिए।”

केके शुक्ला द्वारा बार-बार विश्वकर्मा कॉलोनी में रोहिंग्या बसे होने के आरोप को गिरधारी लाल खारिज कर देते हैं। गिरधारी लाल यूपी के गाजीपुर के रहने वाले हैं, वे इस इलाक़े में क़रीब 15 वर्षों से रह रहे हैं। सब्जी बेचकर गुजारा करने वाले गिरधारी लाल भी विश्कर्मा कॉलोनी में ही रहते हैं, वे कहते हैं कि सब लोगों के पास कागज़ हैं, सभी ने जमीन खरीदकर उस पर घर बनाया है। लेकिन ये अचानक से उनके घरों को अवैध बताकर उस ‘बुलडोजर’ चलाए जाने का डर अब लोगों की परेशानी बढ़ा रहा है।

सब्जी बेचकर गुजारा करने वाले गिरधारी लाल

इसी बस्ती में रहने वाले मोहम्मद इरफ़ान का डर भी बाक़ी लोगों के डर से जुदा नहीं है। इरफान दिहाड़ी मजदूर हैं, वे यूपी के रहने वाले हैं। इरफ़ान कहते हैं कि, “हम यहां काफी साल से रह रहे हैं, सभी लोगों ने ज़मीनें ख़रीदकर घर बनाए हैं, कोई अवैध कब्ज़ा नहीं है, इस बस्ती में रहने वाले ज्यादातर लोग यूपी से ही हैं, हमें सुकून से रहने दिया जाए।”  

इरफान

मोमीना ख़ातून सिलाई का काम करके अपना परिवार चलाती हैं। वे कहती हैं कि हम यहां 15 वर्षों से रहे हैं, क़रीब छह साल पहले क़िस्तों पर 12 हज़ार रुपये प्रति गज के हिसाब प्लॉट खरीदा था। लेकिन जब से भाजपा नेताओं ने एमसीडी के कर्माचारियों के साथ जाकर इस बस्ती पर बुलडोजर चलाने की ‘धमकी’ दी है तभी से मोमीना चिंतित हो गई हैं। मोमीना सारा आरोप कमलेश्लर शुक्ला पर लगाते हुए कहती हैं कि “यह सब केके शुक्ला का किया धरा है, वह नहीं चाहते थे कि यह कॉलोनी बसे, जब इस कॉलोनी में प्लॉटिंग शुरू हुई थी, तभी वो (शुक्ला) केस डाल दिया था।” वहीं केके शुक्ला कहते हैं कि, दिल्ली के सौंदर्यकरण की योजना के तहत यह कृषि भूमि है, इस पर निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता। 

मोमीना ख़ातून सिलाई का काम करके अपना परिवार चलाती हैं।

जमुना के किनारे बसी विश्वकर्मा कॉलोनी के निवासियों का डर एक जैसा है। सभी को इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं एसडीएमसी का ‘सियासी’ बुलडोजर उनके आशियानों को न उजाड़ दे।

राजनीति जब निर्माण से निकलकर विध्वंस में दाख़िल हो जाए तो वह ऐसे ही निर्णय करवाती है। जब बाबरी मस्जिद को गिराया जा रहा था तो उसके साथ साथ राज्य और संविधान की ज़िम्मेदारी भी गिर रही थी। यही से भारतीय राजनीति में निर्माण की जगह विध्वंस ने लेनी शुरू कर दी थी। आज ध्वंस के धुँए पर सवार भारतीय जनता पार्टी अपने ही नागरिकों के घर उजाड़ रही है तो विश्वास नहीं होता कि इसी देश का एक नागरिक दुनिया का चौथा सबसे अमीर इंसान बन गया है। आइए हम सब मिलकर इस महान उपलब्धि पर अमीर न. 4 गौतम अडानी जी को बधाई दें।

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