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पक्ष-प्रतिपक्ष: आर्यन ख़ान होने के फ़ायदे, आर्यन ख़ान होने के नुक़सान

कानूनी मामलों के जानकार कहते हैं कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत अगर आप को आरोपी बना लिया गया गया,आप दोषी नहीं हैं, आपके पास पैसा और रसूख नहीं है तो खुद को निर्दोष साबित करने में आपकी पूरी ज़िंदगी तबाह हो सकती है।
aryan khan

मनोविज्ञान की दुनिया में कहा जाता है कि बाजार इतना ताकतवर बन चुका है कि वह हमारी पूरी संवेदना को नियंत्रित करता है। हमारी पसंद - नापसंद से लेकर हमारी सोच को वैसी दिशा में मोड़ देता है जैसा वह चाहता है। शाहरुख खान भारतीय बाजार के सबसे बड़े ब्रांड में से एक हैं। उनके बेटे आर्यन खान को ड्रग्स लेने के आरोप में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने गिरफ्तार किया ।एनडीपीएस एक्ट की कठोर धाराएं लगाई। जिनके तहत जमानत मिलना आसान नहीं होता। बाद में पता चला कि आर्यन खान के पास किसी भी तरह का ड्रग्स नहीं था। न ही इसका प्रमाण मिला कि आर्यन खान ने किसी तरह के ड्रग्स का सेवन किया है। फिर भी एनसीबी ने आर्यन खान को 3 हफ्ते तक जेल के भीतर रखा।

इस दौरान कई जनसरोकारी खबरें आती और जाती रही लेकिन मीडिया की सुर्खियों में शाहरुख खान और आर्यन खान बने रहे। न्यूज़ मीडिया और सोशल मीडिया का एक वर्ग उनके ऊपर ऐसा हमलावर था कि जैसे उसका बस चले तो बाप-बेटे को फांसी पर लटका दे और दूसरा एक वर्ग बेहद सहानुभूति से इस पूरे केस को देख रहा था। यही फायदा और नुक़सान है आर्यन ख़ान या शाहरुख ख़ान होने का। जिस मामले में एक-दो दिन में ज़मानत मिल सकती थी उसमें 21 दिन लग गए और दूसरा पक्ष ये कि ऐसे ही कितने मामलों में हज़ारों लोग सालो-साल से जेलों में हैं।

आर्यन खान की तरफ से भारत के भूतपूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी को रातो रात लंदन से भारत बुलाया गया। उन्होंने अदालत में उनके लिए वकालत की। मामला जब मुंबई हाई कोर्ट तक पहुंचा तब जाकर 21 दिन बाद आर्यन खान को जमानत मिली।

इस केस में यह दिखा कि शाहरुख खान के प्रशंसक अधिकतर लोग आर्यन खान को लेकर चिंतित दिखाई दिए। ऐसा लगा जैसे शाहरुख खान से जुड़े एक बाप के दर्द को भारत का बहुत बड़ा हिस्सा महसूस कर रहा है।

निरपेक्ष भाव से देखें तो इसमें कोई गलत बात नहीं है कि भारत के करोड़ों लोग किसी मशहूर व्यक्ति के साथ हो रहे नाइंसाफी से जुड़कर खुद को देखने लगे। गलत बात केवल यह है कि अधिकतर लोगों की जीवन चेतना केवल वैसे व्यक्तियों के साथ ही क्यों जुड़ती है, जो बाजार में बिक रहे सबसे बड़े माल होते है। वह तमाम लोगों के बारे में क्यो नहीं सोच पाती, जिन्हें बाजार के ब्रांड का सहारा नहीं मिला है लेकिन उनके साथ भी घनघोर किस्म का अन्याय हो रहा है।

आर्यन खान की जगह पर किसी असलम को रख दीजिए। थोड़ा उसके बारे में सोचिए। असलम किसी गांव में एक सामाजिक कार्यकर्ता है। ज्यादा बड़ा काम नहीं करता, दबे कुचले लोगों के राशन कार्ड, वृद्धा पेंशन जैसे सरकारी कागजात बनवाने में मदद करता है। धीरे धीरे वह अपने गांव में लोकप्रिय हुआ। गांव का हिंदू समाज उससे चिढ़ने लगा। एक दिन पुलिस ने तलाशी ली उसके घर ड्रग्स मिला। एनडीपीएस कानून के तहत उसे जेल में बंद कर दिया गया। जेल में बंद करने के बाद उस पर लंबे-लंबे लेख नहीं लिखे गए। उसके लिए दिग्गज लोगों ने टीवी में इंटरव्यू नहीं दिया। उसके लिए भारत के भूतपूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी जैसा कोई वकील खड़ा नहीं हुआ। अफसोस की बात यह कि उसका गांव ने उसके कामकाज जानते हुए भी उसका साथ नहीं दिया। वह सालों साल जेल में सड़ता रहा। उसे बेल नहीं मिली।

आप कहेंगे कि यह बात सही है कि भारत के अधिकतर लोगों की जिंदगी की परेशानी का ख्याल किसी को नहीं होता लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शाहरुख खान के बेटे के साथ हो रही नाइंसाफी पर चुप रह जाए।

आपकी राय बिल्कुल ठीक होगी।

लेकिन यही बात तो समझने वाली है कि बाजार ने हमें पूरी तरह से गुलाम बना लिया है। अगर हम बाजार से बन रहे मनोविज्ञान के गुलाम ना होते तो शाहरुख खान के बेटे के साथ हो रहे अन्याय पर सोचते हुए उन तमाम लोगों के साथ होने वाले अन्याय पर भी सोचते जिनका रहनुमा कोई नहीं है। जो भारत की बदहाल न्यायिक व्यवस्था की वजह से सालों साल से जेल में पड़े हुए हैं।

जितनी चर्चा हमने इन 21 दिनों में भारत के बदहाल सिस्टम पर की है अगर उतनी ही चर्चा हम दूसरे मामलों पर भी करते हैं तो भारत का यह बदहाल सिस्टम एक महत्वपूर्ण राजनीतिक सवाल होता। जितनी संवेदना हमने शाहरुख खान और आर्यन खान के साथ हो रही नाइंसाफी पर दिखाई है,उतने ही संवेदना अगर हम भारत के तमाम लोगों के साथ दिखाते तो भारत के आम लोगों के साथ होने वाली नाइंसाफी पर भारत के चुनाव लड़े जाते।

अब थोड़ा आंकड़ों के नजरिए से इसे समझिए। विधि आयोग की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 4 लाख 78 हजार 600 लोग जेल में कैदी है। इसमें से 69 फ़ीसदी यानी 3 लाख 30 हजार 487 कैदी अंडर ट्रायल है। अंडर ट्रायल का मतलब जिन्हें किसी आरोप में जेल में डाल दिया गया है। लेकिन अभी तक उनके आरोप का ट्रायल यानी सुनवाई नहीं की गई है। इसमें 36 फ़ीसदी ऐसे हैं जो 1 साल से ज्यादा वक्त से जेल में कैद हैं। तकरीबन 5011 लोग ऐसे हैं जिन्हें 5 साल से अधिक समय से जेल में कैद रखा गया है। लेकिन अभी तक किसी तरह की सुनवाई नहीं हुई है।

फैजाबाद के जगजीवन राम को साल 1968 में हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया। 2005 तक उन्हें जेल में रखा गया। उन पर कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ। किसी भी तरह के सबूत ने उनके आरोपों को दोष में नहीं बदला। साल 2006 में जाकर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। ठीक ऐसे ही कई मामले है। जिन्हें झूठे आरोप में सालों साल जेल में गुजारने के बाद रिहाई मिली। सोचिए इन लोगों पर क्या बीतती होगी? इनके परिवारों पर क्या बीतती होगी? न्याय की आवाज सुनाने के लिए जिस समाज में पहले शाहरुख खान जैसा बड़ा नाम, पैसा रसूख और पद हासिल करने की अपेक्षा रखी जाती हो सोचिए उस समाज का कितना ज्यादा पतन हो गया होगा? उस समाज की लोक चेतना कितने गहरे गड्ढे में गिरी पड़ी होगी।

हर 10 लाख की आबादी पर चीन में 147 जज हैं, अमेरिका में 102, ब्रिटेन में 56 तो भारत में हर 10 लाख की आबादी पर महज 21 जज हैं। यह आंकड़े न्यायिक व्यवस्था के जिस बदहाली को बता रहे हैं, वह एक दिन में नहीं बना है। वह सालों साल के भारतीय सरकार के कुशासन का नतीजा है। लेकिन फिर भी भारतीय सरकार धूमधाम से चलती रहती है। वह तमाम लोग जो शाहरुख खान के साथ इस वक्त खड़े हैं उनमें से अधिकतर लोग कभी भी यह जानने की कोशिश नहीं करते कि सरकार किस चिड़िया का नाम है? सरकार का उनके जीवन पर असर क्या पड़ता है? तो सरकार की कारगुजारीयों की बात तो छोड़ ही दीजिए।

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जाने-माने वकील कॉलिन गोंजाल्विस कहते हैं कि यूएपीए कानून के जरिए कई लोगों को सालों साल से जेल में कैद करके रखा गया है। यह कैसा न्याय है? अगर भारत की सुप्रीम कोर्ट न्यायिक सुधार को लेकर के बहुत अधिक गंभीर है तो उसे भीमा कोरेगांव मामले से जुड़े सभी लोगों को तुरंत जमानत देकर यह साबित करना चाहिए। पहले ही स्टेन स्वामी जीवन को अलविदा कह चुके हैं अब गौतम नवलखा के जीवन को ख़तरा है। यह सब हमारे यहां आंखों के सामने हो रहा है।

कानूनी मामलों के जानकार कहते हैं कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत अगर आप को आरोपी बना लिया गया गया,आप दोषी नहीं हैं, आपके पास पैसा और रसूख नहीं है तो खुद को निर्दोष साबित करने में पूरी जिंदगी तबाह हो सकती है। यह FIR दायर करने से शुरू होता है। इसमें सरकार के सभी हिस्से शामिल है। FIR में ऐसी बातें लिख दी जाएंगी जो आरोपी को दोषी ठहराने में काम आए। इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ऐसे काम करने लगती है जैसे उसका काम जांच पड़ताल ना होकर आरोपी को दोषी बनाना हो।

दिल्ली दंगे और भीमा कोरेगांव से जुड़े आरोपों की खबरें उठा कर देखिए। आपको लगेगा की छानबीन होने की बजाय लोगों को दोषी बनाने का काम काज चल रहा है। जमानत के लिए कौन हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है? कितने लोग के पास इतना पैसा है कि वह मुकुल रोहतगी जैसे महंगे वकील रख पाए? सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाये?

आर्यन खान का मामला न्याय की तराजू पर तराजू पर तौल कर देखा जाए तो यह पहले दिन ही जमानत हासिल करने की हैसियत रखता है। लेकिन जमानत पाने में 21 दिन लग गए। निर्दोष लोगों को सेशन कोर्ट से ही जमानत मिल जानी चाहिए। उन्हें हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाने की जरूरत नहीं। जिनके पास पैसा होता है वह हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट तक जाते हैं। लेकिन जिनके पास पैसा नहीं है वह जेल की सलाखों के पीछे कैद रहते हैं।

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हमारी न्यायिक व्यवस्था में यह सारी परेशानियां बहुत लंबे समय से मौजूद हैं। इसीलिए लोग पुलिस और कानून के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते। उन्हें अपनी जिंदगी बर्बाद होने का डर सताता रहता है। चूंकि इसमें न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका सभी के हिस्से शामिल है, इसलिए न्यायिक सुधार की शुरुआत उस सरकारी इच्छाशक्ति पर सबसे अधिक निर्भर करती है जिसे हम चुनकर संसद में भेजते हैं।

लेकिन हम खुद ऐसी गंभीर परेशानियों को मुद्दे को राजनीति का विषय नहीं बनाना चाहते इसलिए जिन्हें चुनकर हमने भेजा है उनमें से एक उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भरी सभा में कहते हैं कि अगर कोई पाकिस्तान की जीत पर सेलिब्रेट करेगा तो वह देशद्रोही होगा। उसे जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जाएगा। ऐसी सरकारों से आप क्या उम्मीद करते हैं? ऐसी सरकारें आम जनता की बातें बिल्कुल नहीं सुनती। उनकी परेशानियों से नहीं जुड़ती।

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अगर आपके पास पैसा रसूख और पद नहीं है तो आप भारतीय न्याय व्यवस्था के भीतर लंबे समय तक घुन की तरह पीसने के लिए छोड़े जा सकते हैं। कॉलिन गोंजाल्विस कहते हैं कि अगर आर्यन खान की जगह कोई छत्तीसगढ़ का आदिवासी लड़का रहता तो उसे सालों साल जेल में सड़ना पड़ता।

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