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बीएचयू : सैकड़ों छात्राएं एक बार फिर सड़क पर, खाने और साफ-सफाई को लेकर वीसी आवास पर धरना

बीएचयू छात्राओं की नाराज़गी न केवल उनके हॉस्टल के मेस में खराब क्वालिटी के खाने को लेकर है, बल्कि हॉस्टल में साफ-सफाई और उनके साथ अनुचित व्यवहार को लेकर भी है।
BHU: Hundreds of girl students once again on the road, picketing at VC residence for food and cleanliness in hostel

देश की प्रतिष्ठित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी यानी बीएचयू में एक बार फिर छात्राओं ने अपने हक़ के लिए की आवाज़ बुलंद की है। बीएचयू के न्यू पीएचडी गर्ल्स हॉस्टल में साफ-सफाई और मेस के खाने की समस्या को लेकर यूनिवर्सिटी की लड़कियां बीते सोमवार, 16 जनवरी से इस हाड़ कपा देने वाली सर्दी में वाइस चांसलर के आवास पर धरना दे रही हैं। प्रदर्शनकारी लड़कियों का कहना है कि हॉस्टल में मिलने वाले खाने की गुणवत्ता को लेकर वे बीते कई महीनों से शिकायत कर रही थीं, लेकिन इस पर जब प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्हें मजबूरन धरना प्रदर्शन शुरू करना पड़ा।

बता दें कि बीएचयू की लड़कियां सालों से अपने हक़ और हुकूक के लिए आवाज़ बुलंद करती आई हैं। यौन शोषण के खिलाफ एकजुटता हो या सुरक्षा का मामला, यहां की लड़कियों ने कभी हार नहीं मानी और प्रशासन से लोहा लेती रहीं हैं। बीएचयू की छात्राएं लंबे समय से ‘कर्फ्यू टाइमिंग’ को हटाने और गर्ल्स हॉस्टल में भी बॉयज़ हॉस्टल की तरह सुविधा मुहैया कराने की मांग करती रही हैं। अब एक बार फिर छात्राएं अपनी मांगों को लेकर संघर्ष करने को तैयार हैं।

क्या है पूरा मामला?

बीएचयू में पीएचडी कर रही लड़कियों के लिए एक नया हॉस्टल बना है- न्यू पीएचडी गर्ल्स हॉस्टल। इस हॉस्टल में तकरीबन 200 लड़कियों के रहने की व्यवस्था है। बीएचयू प्रशासन और वेबसाइट के मुताबिक बीएचयू के सभी गर्ल्स हॉस्टल्स में वाईफआई, खेल-कूद, मिनी किचन, लाइब्रेरी, कॉमन रूम आदि की सुविधा हैं, लेकिन इस हॉस्टल में कथित तौर पर सबसे ज़रूरी वाईफाई ही उपलब्ध नहीं है। वहीं छात्राओं का आरोप है कि बाकि हॉस्टेल्स के मुकाबले इस हॉस्टल की सालाना फीस भी कई गुना अधिक है और यहां पाबंदियां भी सबसे ज़्यादा हैं।

धरने पर बैठी छात्राओं ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें मेस में खाना अच्छा नहीं मिलता, उनके साथ स्टाफ भी उचित व्यवहार नहीं करता। लड़कियों पर हंसना, उनका मज़ाक बनाना और फब्तियां कसना यहां आम बात हो गई है। इसके अलावा साफ-सफाई से लेकर पीने के पानी तक की बेसिक सुविधा भी सही नहीं है। आगे उन्होंने कहा कि लड़कियां ज़्यादातर अपनी रिसर्च की वजह से बाहर ही रहती हैं, ऐसे में उनसे तरह-तरह के सवाल पूछे जाते हैं, मेस में खाना नहीं मिलता और आए दिन उनके कमरों और सामान की तलाशी ली जाती है। और जब वो अपनी समस्याओं को लेकर वार्डेन के पास जाती हैं तो वहां से उल्टा उन्हें डांटकर भगा दिया जाता है। ऐसे में उनके पास इस प्रदर्शन के अलावा कोई और रास्ता नहीं था।

लड़कियों से भेदभाव का आरोप, एडवांस में ली जाती है मेस फीस ?

यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ इंग्लिश से पीएचडी कर रही मैथली वर्मा ने मीडिया से कहा कि यहां लड़के और लड़कियों में भेदभाव किया जाता है। जहां लड़कों के हॉस्टल में प्रति 'मील' के हिसाब से पैसे लिए जाते हैं वहीं हम लड़कियों से पूरे महीने का पैसा एडवांस में ही ले लिया जाता है। फिर कोई 10 दिन खाए या 20 दिन उसे पूरे महीने का पैसा देना होता है। ऐसे में प्रशासन को सबके लिए एक समान नियम बनाने चाहिए और लड़कियों से भेदभाव बंद करना चाहिए।

बीएचयू की छात्रा और भगत सिंह छात्र मोर्चा की अध्यक्ष आकांक्षा आज़ाद ने न्यूज़क्लिक को बताया कि लड़कियां इन मसलों को लेकर बीते कई महीनों से परेशान हैं और प्रशासन से गुहार लगा रही हैं लेकिन अभी तक उन्हें कोई ठोस राहत नहीं मिली है। प्रशासन बस चाहता है कि ये धरना खत्म हो जाए, इसलिए बस आश्वासन दे रहा है लेकिन उनकी मांग है कि इसे लिखित में दिया जाए, जिससे कल कोई अपनी बातों से मुकरे नहीं।

ठंड में बाहर बैठना मुश्किल, फिर भी लड़कियों का संघर्ष जारी

धरने पर बैठी लड़कियां कहती हैं कि इतनी सर्दी में वीसी आवास के बाहर बैठना बहुत मुश्किल है, लेकिन फिर भी हमारा संघर्ष जारी है। प्रशासन की ओर से हमारे गाइड और सुपरवाइज़र को भी लगातार फोन जा रहा है, जो उन्हें लगातार धरना खत्म करने की बात कह रहे हैं। लेकिन बावजूद इसके हम अपनी मांगों पर अटल हैं और इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे सब्र का बांध अब टूट गया है। बीएचयू प्रशासन की तरफ से रजिस्ट्रार और हमारी मुलाकात हुई भी थी, लेकिन प्रशासन कुछ भी लिखित में देने को तैयार नहीं है, सिर्फ मौखिक तौर पर आश्वासन दिए जा रहे हैं।

ध्यान रहे कि बीएचयू के छात्राओं की नाराज़गी न केवल उनके होस्टल के मेस में खराब क्वालिटी के खाने को लेकर है, बल्कि हॉस्टल में साफ-सफाई और उनके साथ अनुचित व्यवहार को लेकर भी है। कुलपति के नाम लिखे गए प्रार्थना पत्र में इन छात्राओं ने लिखा है कि वे इन समस्याओं से पिछले वर्ष से जूझ रही हैं और जब वे अपनी समस्याएं लिखित व मौखिक रूप में लेकर वार्डन के पास जाती हैं तो उन्हें डांटकर, हॉस्टल से निकालने की धमकी दी जाती है और बेइज़्ज़त कर आवाज़ को शांत कर दिया जाता है।

छात्राओं के मुताबिक पूरे हॉस्टल के लिए सिर्फ एक ही मेस कॉउन्टर है, जिसमें करीब 200-250 लड़कियां आती हैं, जिस कारण उन्हें लंबी कतारों में लगना पड़ता है, अधिक समय तक इंतज़ार करना पड़ता है और मेस का समय खत्म हो जाने पर उन्हें खाना तक नहीं मिलता। मेस से जुड़े कर्मचारी उन्हें अजीब निगाहों से देखते और हंसते हैं। यहां तक की खाना परोसते समय भी उनका व्यवहार बहुत खराब होता है।

खाने का निम्न स्तर और फीस सबसे अधिक

छात्राओं ने मेस के खाने को लेकर लिखा है कि जो खाना मेस में उन्हें मिलता है वो बहुत निम्न स्तर का होता है। दूध सिन्थेटिक होता है तो, वहीं ग्रेवी और दही में टार्टरिक अम्ल का प्रयोग किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिहाज़ से ठीक नहीं है। उन्हें पीरियड्स के दौरान ऐसे खाने से बहुत दिक्कतें भी होती हैं, क्योंकि उस समय पौष्टिक खाने की ज़्यादा ज़रूरत होती है।

इसके अलावा छात्राओं ने भेदभाव का आरोप लगाते हुए लिखा है कि जहां लड़कों के हॉस्टल में प्रति डाईट व्यवस्था लागू है तो वहीं हमसे यहां एडवांस पेमेंट मांगा जाता है, जो इतने बड़े विश्वविद्यालय में लड़के-लड़कियों में भेदभाव की स्थिति को बढाता है। सभी के लिए एक जैसे नियम होने चाहिए। इसके साथ ही छात्राओं ने वार्डन और मेस कर्मचारियों पर मानसिक उत्पीड़न का भी आरोप लगाया है, उनका कहना है कि इस कारण से हम सब पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं और हमें मानसिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

न्यूज़क्लिक ने इस संबंध में प्रशासन से उनका पक्ष जानने के लिए ईमेल द्वारा संपर्क किया है, मगर ख़बर लिखे जाने तक हमें कोई जवाब नहीं मिला। जैसे ही कोई जवाब आएगा ख़बर अपडेट की जाएगी।

गौरतलब है कि बीते साल बीएचयू की लड़कियों का लाइब्रेरी और सुरक्षा को लेकर बड़ा संघर्ष देखने को मिला था। इस दौरान छात्राओं ने प्रशासन पर उन्हें शिक्षा से वंचित रखने का आरोप भी लगाया था। इससे पहले भी बीएचयू की छात्राएं अपनी मांगों को लेकर कई बार सड़क पर उतरी हैं और प्रशासन को उनके सामने झुकना भी पड़ा है। ऐसे में एक बार फिर लड़कियां अपने आज और बेहतर कल की आस लिए एक नये आंदोलन को तैयार हैं।

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