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बनारसः नागरी प्रचारिणी सभा में खींचतान, 42 लाख के घपले का आरोप, कमिश्नरेट पुलिस ने शुरू की जांच!

जाने-माने साहित्यकार काशीनाथ सिंह का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार का दायित्व बनता है कि वह हिंदी भाषा, लिपि और साहित्य के उन्नयन के लिए देश की इस प्रतिष्ठित संस्था के हालात को सुधारने के लिए आगे आए।
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बनारस में अंतरराष्ट्रीय महत्व की हिंदी की सेवा संस्था नागरी प्रचारिणी सभा को लेकर दो पक्षों के बीच तनातनी बढ़ गई है और आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं। अप्रैल, 2023 में वाराणसी ज़िला प्रशासन की देखरेख में हुए चुनाव और वोटों की गिनती के बाद नई प्रबंध समिति गठित हुई, जिसमें संस्कृतिकर्मी व्योमेश शुक्ल संस्था के प्रधानमंत्री चुने गए। व्योमेश का आरोप है कि नागरी प्रचारिणी सभा के नई दिल्ली स्थित केनरा बैंक के ख़ाते से सवा साल में करीब बयालीस लाख रूपये निकाले गए हैं। निजी क्रेडिट कार्ड का भुगतान भी संस्था के खाते से किया गया है।"

हिंदी के उन्नयन के लिए स्थापित नागरी प्रचारिणी सभा देश की प्राचीनतम संस्था है, जिसका मुख्यालय बनारस में है। यहीं आर्यभाषा पुस्तकालय भी है, जिसे हिंदी भाषा और भारतीय साहित्य की अनमोल दुर्लभ पांडुलिपियों का सबसे बड़ा ख़ज़ाना माना जाता है। केंद्र सरकार पांडुलिपियों और प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण और डिजिटलाइजेशन में गहरी दिलचस्पी ले रही है, लेकिन लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद आर्काइव कहीं उपलब्ध नहीं है। नागरी प्रचारिणी सभा की नई दिल्ली और हरिद्वार में शाखाएं हैं। नई दिल्ली स्थित सभा भवन एक व्यावसायिक इमारत है, जिससे एक बड़ी राशि किराये के तौर पर संस्था को मिलती है। केंद्र सरकार ने इस भूखंड को इसी मकसद से दिया था कि इससे होने वाली आय को वाराणसी में नागरी प्रचारिणी सभा के उद्देश्यों को पूरा करने पर ख़र्च किया जाएगा।

संस्था के धन के दुरुपयोग का आरोप

नागरी प्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री व्योमेश शुक्ल की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि कानूनी दांव-पेच के चलते चुनाव के बाद भी सभा का काम सुचारू ढंग से नहीं हो पा रहा है। पिछले चालीस सालों से संस्था की कमान एक परिवार के पास थी, जिसके चलते संस्था के धन का जमकर दुरुपयोग किया गया। दिल्ली और वाराणसी के पुलिस आयुक्त के अलावा प्रवर्तन निदेशालय के चीफ विजिलेंस आफिसर को भेजे शिकायती-पत्र में व्योमेश शुक्ल ने कहा है, " नागरी प्रचारिणी की नियमावली और कोर्ट के आदेश की रोशनी में उन्हें बैंक खातों के संचालन का पूरा अधिकार है। अभी तक संस्था के दो खाते उजागर हुए हैं, जिनमें एक बैंक ऑफ बड़ौदा की विश्वेश्वरगंज (वाराणसी) में खाता है और दूसरा खाता नई दिल्ली स्थित जीत सिंह मार्ग के केनरा बैंक में है।

नई दिल्ली के केनरा बैंक के अकाउंट का स्टेटमेंट निकलवाने पर जानकारी मिली कि संस्था के पूर्व कथित प्रधानमंत्री डॉ. कुसुमाकर पांडेय ने बिना किसी अधिकार के 42 लाख 29 हजार 382 रुपये निकाल लिए हैं। एक अप्रैल 2022 से 31 मार्च 2023 की अवधि में संस्था के लाखों रुपये हड़पने की नीयत से जान-बूझकर केनरा बैंक को धोखा देकर निकाला गया है। बैंक स्टेटमेंट से साफ पता चलता है कि ज्यादातर धनराशि बियरर चेक के जरिए निकाली गई है। डॉ. कुसुमाकर पांडेय ने अपने दस्तखत के साथ संस्था के प्रधानमंत्री की मुहर लगाकर एक अप्रैल 2022 से 22 जुलाई 2023 के बीच करीब 42 लाख रुपये निकाल लिए हैं। उनके निजी क्रेडिट कार्ड से ली गई एक बड़ी राशि का भुगतान भी नागरी प्रचारिणी सभा के खाते से किया गया है। "

संस्था के प्रधानमंत्री व्योमेश शुक्ल ‘न्यूज़क्लिक’ से कहते हैं, "छह अप्रैल 2023 को मतगणना के बाद वाराणसी के असिस्टेंट रजिस्ट्रार, सोसाइटीज़ मंगलेश पालीवाल ने नई कमेटी को 11 अप्रैल, 23 को मान्यता दी थी। इसके बावजूद डॉ. कुसुमाकर ने प्रधानमंत्री की मुहर और हस्ताक्षर बनाकर केनरा बैंक से दस लाख रुपये निकाल लिए। नई प्रबंध समिति को इस गबन की जानकारी तब हुई जब हाईकोर्ट के आदेश पर हमें बनारस के साथ ही दिल्ली स्थित संस्था के बैंक खाते के संचालन का अधिकार मिला। नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से हमने बैंक स्टेटमेंट और तमाम साक्ष्य के साथ नई दिल्ली और वाराणसी के पुलिस मुख्यालयों, इनकम टैक्स और प्रवर्तन निदेशालय में विस्तृत शिकायत दर्ज कराई है।"

नागरी प्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री व्योमेश शुक्ल ने 17 जुलाई 2023 को कमिश्नरेट पुलिस के डीसीपी काशी आरएस गौतम से मुलाकात की और उन्हें शिकायती-पत्र और बैंक से जुड़े सभी दस्तावेज सौंपे। उन्होंने डीसीपी को बताया कि पूर्व पदाधिकारी मनमाने ढंग से संस्था की मूल्यवान चल-अचल संपत्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं। इससे ‘सभा’ की वाराणसी, नई दिल्ली और हरिद्वार स्थित भौतिक व बौद्धिक संपदा और इसकी स्थापना के संकल्प ख़तरे में हैं। मूल्यवान चल-अचल संपत्ति का दुरुपयोग अभी जारी है। डीसीपी ने व्योमेश की शिकायतों को गंभीरता से लिया और उन्होंने इस मामले की जांच एसीपी प्रतीक कुमार को सौंपी है। जांच के बाद पुलिस दोषियों के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज करेगी और सख्त एक्शन लेगी।

बर्बाद हो रही पुस्तकें 

खाते का संचालन होल्ड

उधर, नागरी प्रचारिणी सभा में लाखों का कथित घपला उजागर होने के बाद दिल्ली के केनरा बैंक ने खाते के संचालन को होल्ड कर दिया है। हालांकि डॉ. कुसुमाकर पांडेय ने दावा किया है कि यह खाता उन्होंने होल्ड कराया है, जबकि बैंक प्रबंधन का कहना है कि वित्तीय अनियमितता रोकने के लिए इसे होल्ड किया गया है। इस खाते से अब किसी तरह का कोई लेन-देन नहीं किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री व्योमेश शुक्ल की शिकायतों के बाबत पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. कुसुमाकर पांडेय का पक्ष जानने के लिए उन्हें एक मेल भेजा और व्हाट्सएप के जरिये संपर्क किया तो उन्होंने पहली बार ‘न्यूज़क्लिक’ से विस्तार से बात की। व्योमेश शुक्ल पर आरोपों की झड़ी लगाते हुए डॉ. कुसुमाकर कहा, "बनारस के पत्रकार एकतरफा खबरें छाप रहे हैं। वो वही लिखते हैं जो व्योमेश शुक्ल कहते हैं। नागरी प्रचारिणी सभा का इलेक्शन जरूर हो गया है, लेकिन कोर्ट ने अगले आदेश तक के लिए इफेक्टिव कंट्रोल अपने पास रखा है। इसके बावजूद व्योमेश मीडिया में भ्रामक खबरें छपवाते जा रहे हैं। हम सिर्फ कोर्ट का फैसला मानेंगे। कोर्ट उनके पक्ष में फैसला देगा तो हम खुद ही छोड़कर चले जाएंगे।"

"व्योमेश को नागरी प्रचारिणी परिसर के किसी दफ्तर में अधिकार के साथ एलाऊ ही नहीं है। उन्होंने संस्था के एक कमरे पर जबरिया कब्जा कर रखा है। जबसे संस्था का संचालन उनके हाथ में आया है तब से वह कई बार बिजली कटवा चुके हैं। दफ्तर के लोग आते हैं और चले जाते हैं। उन्हें हाईकोर्ट के फैसले के बाद ही वहां जाना चाहिए था। 7 अप्रैल 2023 से पहले नागरी प्रचारिणी सभा परिसर में कोई दिक्कत नहीं थी। पहले गोष्ठियां होती थी और शोधार्थी भी आते थे, लेकिन अब वहां सिर्फ भय और आतंक का वातावरण है। व्योमेश अवैध तरीके से कुछ अफसरों को मिलाकर संस्था पर कब्जा करना चाहते हैं, इसीलिए वो रोजाना अवांछनीय तत्वों को वहां इकट्ठा करते हैं।"

डॉ. कुसुमाकर ने यह भी कहा, "चिट्स फंड सोसाइटी के रजिस्ट्रार ने कायदा-कानून के विपरीत चुनाव कराया है। उस चुनाव में हम शामिल नहीं हुए। हमारी कमेटी यथावत काम कर रही है। ऐसे में हम इनलीगल कैसे हो जाएंगे। हमें जो कोर्ट कहेगा, उसके आदेश के मानेंगे। जब तक फैसला नहीं आता, तब तक यथास्थिति बनी रहनी चाहिए। व्योमेश शुक्ल ने हाईकोर्ट को भी गुमाराह किया है। उन्होंने नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से एक ऐसा केस हाईकोर्ट में डाला है जिसमें उन्होंने हमें पार्टी ही नहीं बनाया। जनहित में कोर्ट ने इनको खाते के संचालन करने का अधिकार दिया है, जिसे हमने चुनौती दी है।"

"अचरज की बात यह है कि जब वह प्रधानमंत्री हैं तो कोर्ट और प्रशासन से चार्ज क्यों मांग रहे हैं? बड़ा सवाल यह है कि उन्हें नागरी प्रचारिणी सभा के परिसर में आने की अनुमति किसने दी? व्योमेश सिर्फ अफवाहें फैला रहे हैं और दुष्प्रचार कर रहे हैं। इनके खौफ से शोधार्थी वहां नहीं जा रहे हैं। कुछ कर्मचारियों को उन्होंने अपने खेमें में मिला लिया है। हमारे ऊपर झूठे आरोप लगाने के अलावा उनके पास कोई काम नहीं है। वह बीस-बीस लोगों के साथ नागरी प्रचारिणी सभा में जाते हैं और चाय-नाश्ता करके लौट जाते हैं।"

डॉ. कुसुमाकर कहते हैं, "कुछ दिन पहले उन्होंने आरोप लगाया था कि संस्था की पांडुलिपियों, हस्तलेखों और दुर्लभ पोथियों का डिजिटलाइजेशन नहीं कराया गया है। मैं बनारस के लोगों को बताना चाहता हूं कि मैंने हर काम ईमानदारी से किया है और दुर्लभ पांडुलिपियों के डिजिटलाइजेशन के बाद हमने हाईकोर्ट में आर्काइव जमा करा दिया है। व्योमेश के झूठ का जवाब देने के लिए हमने उनके अलावा बैंक ऑफ बड़ौदा के मैनेजर शैलेश कुमार सिंह और चिट्स फंड के रजिस्ट्रार मंगलेश पालीवाल के खिलाफ हाईकोर्ट में अदालत की अवमानना का केस दायर किया है। कोर्ट ने विपक्षियों को नोटिस जारी कर दी है। मेरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि व्योमेश शुक्ल को अगर अभी तक चार्ज नहीं मिला है तो वो परिसर में कैसे घुस गए। हमने बनारस की मीडिया को खबर भेजी, लेकिन किसी ने हमारी बात नहीं छापी। हमें बहुत दुख हुआ।"

129 साल पुरानी है संस्था

नागरी प्रचारिणी सभा करीब 129 साल पुरानी संस्था है। पिछले छह दशक से पूर्व राज्यसभा सांसद रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुधाकर पांडेय और उनका परिवार इस संस्था को चला रहा है। आरोप है कि संस्था के पूर्व पदाधिकारी लाइब्रेरी और अन्य दफ्तरों पर ताला लगाकर गायब हैं। बनारस में नागरी प्रचारिणी सभा के पूर्वी हिस्से में स्थित प्रकाशन-कार्यों के लिए बनाया गया ऐतिहासिक भवन एक दवा व्यापारी को दस साल के लिए ‘लीज़’ पर दे दिया गया है।

यह वह भवन है जिसका उद्घाटन देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने किया था। भवन के बाहर लगा उनके नाम का शिलापट्ट हटा दिया गया है। यह भी आरोप है कि सभा के अतिथि गृह में कुछ लोगों का कब्ज़ा है। यही हाल नई दिल्ली के अतिथि गृह का भी है। वह भूखंड भी भारत सरकार ने ‘सभा’ को दिया है, लेकिन हिंदी के उन्नयन के बाबत उसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। अलबत्ता लगभग पूरी इमारत ही किराये पर उठा दी गई है। ख़ास बात यह है कि नागरी प्रचारिणी सभा की दिल्ली शाखा की बैलेंस शीट, बैंक ऑपरेशन और आय खर्च से जुड़ा कोई अभिलेख वाराणसी के सहायक निबंधक दफ्तर में मौजूद नहीं है।

हिंदी शब्दसागर भी बिक चुका है!

प्रधानमंत्री व्योमेश शुक्ल कहते हैं, "नागरी प्रचारिणी सभा की भू-संपदा को ग़ैरकानूनी तरीक़े से बेचे जाने अथवा बहुत लंबी अवधि के लिए किराए पर उठा देने के षड्यंत्र के साथ-साथ ‘सभा’ की बौद्धिक संपदा को भी विदेशियों और दूसरी संस्थाओं को चोरी-छिपे बेच देने की कोशिशें हुई हैं। इस मामले में उच्चस्तरीय जांच के बाद गोलमाल और घपले उजागर हो सकते हैं। संस्था द्वारा संकलित, संपादित और प्रकाशित ग्रंथ ‘हिंदी शब्दसागर’ को नागरी प्रचारिणी सभा की अनधिकृत सोसायटी ने अपनी जनरल काउंसिल (साधारण सभा) की अनुमति के बग़ैर शिकागो विश्वविद्यालय के एक विभाग को सिर्फ 21 लाख रुपये में बेच दिया है। ऐतिहासिक मुद्रण और प्रकाशन विभाग सालों से बंद है। संस्था के पास कई दुर्लभ पुस्तकें हैं जिसे दूसरे प्रकाशक अवैध तरीके से छापकर चोरी-छिपे बेच रहे हैं। "

व्योमेश बताते हैं, "नागरी प्रचारिणी सभा के मुख्य भवन में हिंदी का सबसे पुराना ‘आर्यभाषा पुस्तकालय’ है। सवा सौ साल पुरानी इस हेरिटेज इमारत को संरक्षित करने की जरूरत है। रख-रखाव के अभाव में वह जीर्ण होकर गिरने की स्थिति में पहुंच गई है। भूतल पर स्थित इस इमारत का एक हिस्सा ढह चुका है। साल 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सी-डैक के जरिये संस्था की दुर्लभ पांडुलिपियों, हस्तलेखों और पोथियों का डिजिटाइजेशन करवाया था; लेकिन उसकी सीडी अथवा सॉफ्ट कॉपी किसके पास है, यह किसी को पता नहीं है।"

संस्था का योगदान

हिंदी के दिग्गज विद्वानों की करीब 25 सालों की कड़ी मेहनत के बाद ‘हिंदी शब्दसागर’ नामक हिंदी का पहला प्रामाणिक शब्दकोश नागरी प्रचारिणी सभा ने तैयार कराया था। अदालतों में हिंदी को कामकाज की भाषा बनाने के लिए नागरी प्रचारिणी सभा ने देश भर में आंदोलन चलाया और सरकारी व अदालती कामकाज की सुविधा के लिए संस्था ने एक ‘कचहरी हिंदी कोश’ भी प्रकाशित कराई थी। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका की तर्ज पर 12 खंडों का ‘हिंदी विश्वकोश’, 16 खंडों का ‘हिंदी साहित्य का वृहत इतिहास’ और 500 से ज़्यादा ग्रंथ प्रकाशित किए थे।

करीब सौ साल पहले स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए हिंदी का पहला पाठ्यक्रम नागरी प्रचारिणी सभा ने ही बनाया था।

आरोप है कि संस्था के भवनों की जो स्थिति बनारस में है, उससे भी बुरी हालत दिल्ली और हरिद्वार की है। बनारस के जाने-माने साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने कहा है, "हिंदी साहित्य के नजरिये से नागरी प्रचारिणी की अहमियत को समझने की जरूरत है। इसे काशी का साहित्यिक हेरिटेज घोषित करते हुए नए सिरे से संवारने की पुरजोर कोशिश की जानी चाहिए। केंद्र और राज्य सरकार का दायित्व बनता है कि वह हिंदी भाषा, लिपि और साहित्य के उन्नयन के लिए देश की इस प्रतिष्ठित संस्था के हालात को सुधारने के लिए आगे आए और ताले में बंद सड़ रहीं हज़ारों दुर्लभ पांडुलियों, हस्तलेखों और पोथियों को बचाने के लिए सार्थक क़दम उठाया जाए।"

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