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इस कोरोना समय और लॉकडाउन संकट में भूखे पेट मज़दूर पैदल ही अपने गांव-घर की ओर चले जा रहे हैं। आज भी उन्हें न ठीक से बस मिल रही है, न ट्रेन। रोज़ ही वे सड़कों पर कुचले जा रहे हैं। मारे जा रहे हैं।
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इस कोरोना समय और लॉकडाउन संकट में भूखे पेट मज़दूर पैदल ही अपने गांव-घर की ओर चले जा रहे हैं। आज भी उन्हें न ठीक से बस मिल रही है, न ट्रेन। रोज़ ही वे सड़कों पर कुचले जा रहे हैं। मारे जा रहे हैं।

पिछले दो दिन दिन में ही अलग-अलग सड़क हादसों में 16 प्रवासी मज़दूरों की मौत हो चुकी है। यही नहीं महोबा के पास पनवाड़ी कस्बे के पास प्रवासी मजदूरों से भरा एक ट्रक देर रात पलट गया, जिससे उसमें सवार 20 मजदूर घायल हो गए। पटरियों पर सोए मज़दूरों की मालगाड़ी से कुचले जाने की ख़बर भी आप अभी नहीं भूलें होंगे। ऐसे में 20 लाख करोड़ के पैकेज का शोर जिसमें बड़ा हिस्सा लोन का है और रफ़ाल या बुलेट ट्रेन की बातें बेमानी ही लगती हैं। 

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