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झारखंड में 'डीलिस्टिंग-राजनीति' का मुद्दा गरमाया

कई वरिष्ठ एक्टिविस्ट्स का आरोप है कि 'डीलिस्टिंग' जैसे मुद्दों को हवा देकर समाज में 'सांप्रदायिक विभाजन' की कोशिश की जा रही है।
Delisting-politics

बीते दिनों झारखंड, कई ‘मॉबलिंचिंग’ घटनाओं को लेकर काफी सुर्ख़ियों में रहा था। अबकी बार जिस प्रकार से ‘डीलिस्टिंग’ का मुद्दा उछालने की कवायद की जा रही है, उससे साफ़ दिख रहा है कि इसाई समुदाय टारगेट पर है। इसके हवाले से आरोप है कि इसाई समुदाय के सबसे प्रमुख एक्समस त्योहार के दिन ही ‘जनजाति सुरक्षा मंच’ के बैनर तले ‘उलगुलान आदिवासी डीलिस्टिंग रैली’ की जाएगी। इस रैली की मुख्य मांग है कि - धर्मांतरण (ईसाई) कर चुके आदिवासियों को उन्हें मिलने वाली एसटी-आरक्षण इत्यादि सभी सुविधाओं से बाहर करने के लिए विशेष कानून बनाया जाए। 

इस रैली में देश के कई राज्यों में सक्रीय संघ-भाजपा संचालित आदिवासी संगठनों के बड़े-बड़े नेताओं के रांची पहुंचने की ख़बरें आ रही हैं। यह भी बताया जा रहा है कि डीलिस्टिंग रैली के आयोजकों ने राज्यपाल से मिलकर उन्हें भी आने का न्यौता दिया तो उन्होंने कार्यक्रम से पूरी सहमती जताते हुए प्रशंसा की और आने की स्वीकृति भी दी।

ख़बर ये भी है कि डीलिस्टिंग-रैली के लिए स्थान की उपलब्धता को लेकर राज्य सरकार व प्रशासन से खींचतान चल रही है। इस कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक व भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता कड़िया मुंडा ने तो खुलकर राज्य की सरकार-प्रशासन पर इस कार्यक्रम को विफल करने का आरोप भी लगाया है क्योंकि रांची जिला प्रशासन की ओर से अभी तक रैली के लिए मोरहाबादी मैदान की अधिकारिक अनुमति नहीं दी गयी है।

कड़िया मुंडा ने यह भी कहा है कि "हमारा यह कार्यक्रम, आदिवासी-जनजाति की एक बड़ी आबादी के साथ किये जा रहे 'धर्मांतरण' के षडयंत्र के ख़िलाफ़ एक संगठित मुहीम है। जिसका मुख्य एजेंडा ही है कि - ईसाई-इस्लाम अथवा अन्य किसी धर्म में धर्मांतरण करने वाली आदिवासी आबादी को मिल रहे आरक्षण समेत तमाम संविधानिक सुविधाओं को ख़त्म किया जाए।"

प्रदेश के व्यापक आदिवासी समुदाय में इस बात लेकर काफी रोष है कि "ठीक त्योहार के दिन 24 दिसंबर को डीलिस्टिंग-रैली की आड़ में समाज में सांप्रदायिक सौहार्द के माहौल को ख़राब करने की कोशिश की जा रही है।"

कई वरिष्ठ आदिवासी एक्टिविस्ट ये आरोप लगाते हैं कि "डीलिस्टिंग/रीलीस्टिंग मुहीम वनवासी कल्याण केंद्र संचालित संघ-भाजपा की साज़िश है जिसके ज़रिए झारखंड प्रदेश के आदिवासियों को आपस में लड़वाने की राजनीति की जा रही है।"

कई आदिवासी एक्टिविस्ट सोशल मिडिया मंचों से समुदाय के लोगों से गुमराह नहीं होने की अपील कर रहें हैं जिसमें ये बताया जा रहा है कि कैसे पूर्व में भी जब इस मामले को लेकर देश के सुप्रीम कोर्ट तक ले जाया गया था तो उसने भी इसे कानून सम्मत मानने से साफ़ इनकार करते हुए खारिज कर दिया था। ये मामला था कि जब राज्य के एक कद्दावर आदिवासी नेता ने 'डीलिस्टिंग' का मुद्दा खूब ज़ोर से उठाते हुए कानूनी लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने इलेक्शन ट्राइब्यूनल एवं पटना हाई कोर्ट में मुकदमा किया लेकिन हार गए। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने “केरल सरकार एवं अन्य बनाम चन्द्रमोहन” के मामले में फैसला देते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि - धर्म बदलने से किसी व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति की सदस्यता से वंचित नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके झूठ का कुचक्र रचकर 'सरना बनाम ईसाई' का विभेद पैदाकर वोट ध्रुवीकरण की साज़िश की जा रही है।

कई एक्टिविस्ट का कहना है कि इस मुद्दे हो हवा देने वाले लोग सामाजिक उन्माद पैदा कर आदिवासी समाज के लोगों को आपस में लड़वाने की बजाय देश के सुप्रीम कोर्ट में मामले को क्यों नहीं ले जा रहें हैं?

आदिवासी बौद्धिक एक्टिविस्ट इमिल कंडूलना समेत कई वरिष्ठ एक्टिविस्ट अपने लोगों से,  24 दिसंबर की डीलिस्टिंग-रैली में शामिल नहीं होने की अपील करते हुए कहते हैं, "संघ परिवार-भाजपा 'मनुस्मृति' के आधार पर 'वर्ण-व्यवस्था' थोपने का प्रयास कर रहें हैं।"         

जानकारों का मानना है कि आदिवासी समाज में पकड़ बनाने के लिए 'डीलिस्टिंग' यानी धर्मांतरण का मामला संघ और भाजपा के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है जिसे लेकर बीते कई दशकों से भाजपा कम करती आई है। कई जानकारों ने तो हालिया संपन्न हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान खासकर छत्तीसगढ़ स्थित बस्तर जैसे आदिवासी इलाकों में 'धर्मांतरण/ डीलिस्टिंग’ की राजनीति से चुनावी ध्रुवीकरण की बात कही है।

ये सच है कि यह मुद्दा झारखंड में राज्य गठन के पहले से ही उठता रहा है। अक्सर आरोप लगता है कि चुनावों के दौरान 'सांप्रदायिक विभाजन' किया जाता है। झारखंड जैसे प्रदेश के लिए ये बेहद चुनौतीपूर्ण है। देखने की बात होगी कि झारखंड के जिस बहुसंख्य आदिवासी समाज के लोगों ने भाजपा को अपनी पसंद नहीं बनाई, वे आगे क्या करते हैं!

ख़बर है कि झारखंड की राजधानी में कई आदिवासी सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने प्रेस वार्ता के माध्यम से 'उलगुलान आदिवासी डीलिस्टिंग रैली' का मुखर विरोध किया है जिसमें आदिवासी समन्वय समिति, आदिवासी जन परिषद, केन्द्रीय सरना समिति समेत कई संयुक्त आदिवासी सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने आदिवासी समाज को सावधान और सचेत रहने की अपील की है।

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