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यूपी: बुंदेलखंड में ‘उर्वरक संकट’ ने एक सप्ताह में ली 5 किसानों की जान

सहकारी समितियों के गोदामों में रबी की बुआई के लिए बेहद जरुरी डीएपी, यूरिया सहित अन्य उर्वरक खाद का स्टॉक खत्म हो गया है। ललितपुर और उसके आसपास के किसान या तो आत्महत्या से या मिट्टी के लिए जरुरी पोषक तत्वों की कुछ बोरियों को हासिल करने की कोशिश में थककर अपनी जान से हाथ धो रहे हैं।  
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खाद के लिए अपनी बारी के इंतजार में कतार में लगे किसान।

पिछले करीब एक सप्ताह से उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के किसानों की ओर से उर्वरकों की भारी कमी की सूचनाएं दी जा रही हैं, वो भी एक ऐसे समय में जब फसलों की बुआई का सीजन अपने चरम पर है। कई जिले उर्वरक की भारी कमी के संकट से जूझ रहे हैं, जिनमें खासतौर पर हमीरपुर, ललितपुर, हाथरस, इटावा, फर्रुखाबाद, फ़िरोजाबाद, एटा, बाँदा, मैनपुरी और कन्नौज प्रमुख हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि कई बार तो सुबह से लेकर शाम तक भारी संख्या में किसान सहकारी समितियों के सामने स्टॉक की खरीद के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगाये रहते हैं।

खासकर ललितपुर क्षेत्र में इस संकट ने घातक स्वरुप धारण कर लिया है, जहाँ पर पिछले एक सप्ताह में कम से कम पांच किसानों की मौत हो गई है, जबकि वे मात्र उर्वरकों की कुछ बोरियों को ही अपने अधिकार में लेने की बेतहाशा कोशिश कर रहे थे।

शनिवार को ललितपुर जिले के जखौरा ब्लॉक के मसौरा खुर्द गाँव में उर्वरकों की भारी कमी और आर्थिक तंगी ने कथित तौर पर एक अधेड़ उम्र के किसान को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। मृतक के बड़े भाई ने न्यूज़क्लिक को बताया कि पिछले 5-7 दिनों से वह बेकार में ही प्रतिदिन उर्वरक वितरण केन्द्रों का चक्कर काट रहा था। उन्होंने कहा कि उसके परिवार के मुताबिक, उसने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि वह इस कमी और बैंक को चुकाने के लिए आवश्यक कर्ज की वजह से बेहद परेशान चल रहा था।

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रघुवीर पटेल का शव उनके खेत के पास लटका हुआ पाया गया। सदर कोतवाली पुलिस थाने के एसएचओ वीके मिश्रा ने बताया कि पुलिस को पटेल की जेब से एक नोट बरामद हुआ है, जिसमें उन्होंने आत्महत्या का कारण खाद की अनुपलब्धता बताया है। हालाँकि, प्रथमदृष्टया इस बात को प्रमाणित नहीं किया जा सकता है कि वह नोट असली था या नहीं, क्योंकि उस पर कोई हस्ताक्षर नहीं हो रखा था।

एसएचओ मिश्रा के मुताबिक “उक्त व्यक्ति की पहचान रघुवीर पटेल के तौर पर हुई है। शनिवार को अपने घर से खेत जाने के कुछ घंटों बाद उसे एक पेड़ से लटका पाया गया था। शव को कुछ साथी किसानों द्वारा देखा गया था, जिन्होंने परिवार को इस बाबत सूचित किया। हमने शव को पोस्टमार्टम जांच के लिए भेज दिया है और उस रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्यवाई की जाएगी। उनके परिवार के सदस्यों का दावा है कि उर्वरकों की अनुपलब्धता के कारण भारी दबाव में होने की वजह से उन्होंने अपने हाथों अपनी जान दे दी है।”

इस बीच, ज़िलाधिकारी अलोक सिंह के निर्देश पर एसडीएम सदर ने घटना की जांच की। बताया जा रहा है कि मृतक के पास 3.899 हेक्टेयर की खेती योग्य जमीन थी, जिसमें 60% बुआई की जा चुकी है। किसान ने कथित तौर पर अपने किसान क्रेडिट कार्ड से 10 लाख रूपये का कर्ज ले रखा था। उनकी पत्नी और माँ के देहांत के बाद से वे आर्थिक तंगी में फंस गए थे, जिसके चलते वे मानसिक दबाव में जी रहे थे। सदर एसडीएम का कहना था कि खाद की कमी की वजह से आत्महत्या करने का आरोप गलत है।

हालाँकि, रघुवीर के बड़े भाई पहलवान सिंह ने आरोप लगाया है कि पिछले एक हफ्ते से करीब दर्जन भर केन्द्रों पर जाने के बावजूद खाद न मिलने से उनका भाई परेशान चल रहा था। मृतक के बड़े भाई ने कहा “जब मेरा भाई रघुवीर और मैं अपने क्षेत्र से उर्वरक प्राप्त कर पाने में असफल रहे; तो मैं झाँसी चला गया था और वहां से 1,500 रूपये प्रति बोरी की दर से चार बोरी खाद ले आया था, जिसमें से दो बोरियां मैंने अपने भाई को दे दी थीं। उसने मटर बो रखी थी और उर्वरक की कमी के चलते वह चिंतित चल रहा था।”

रघुवीर अपने पीछे दो बेटों और एक बेटी को छोड़ गए हैं। 13 साल पहले कैंसर की वजह से उनकी पत्नी की मौत हो गई थी और उसके बाद से वे खेती के जरिये ही उनकी देखभाल कर रहे थे।

ऑल इंडिया किसान सभा के राज्य सचिव मुकुट सिंह का कहना था कि यूपी उर्वरकों की भारी किल्लत से जूझ रहा है और किसानों को कई-कई दिनों तक लाइनों में लगना पड़ रहा है। कालाबाजारी का आरोप लगाते हुए सिंह ने बताया कि कैसे 1,200 रूपये वाली डीअमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की एक बोरी आजकल बाजार में 1,400 रूपये से लेकर 2,000 रूपये प्रति बोरी की दर पर बेची जा रही है।

सिंह ने आगे कहा “किसानों के लिए योगी सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनायें सिर्फ कागजों पर हैं। रबी सीजन शुरू हो चुका है और डीएपी की भारी कमी बनी हुई है और किसानों को लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा है। मौजूदा बिजली संकट के बीच में किसानों के लिए यह दोहरी मार के समान है।” उन्होंने ‘बेखबर’ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर किसानों की मदद करने के बजाय चुनाव प्रचार में व्यस्त रहने का आरोप लगाया है।

पहली मौत 23 अक्टूबर को दर्ज की गई थी, जब जिले के जुगपुरा क्षेत्र में एक खाद की दुकान पर कतार में लगे हुए एक किसान की मौत हो गई थी, जहाँ पर वह कथित तौर पर पिछले दो दिनों से अपनी बारी आने के इंतजार में खड़ा था।

मृतक भोगी पाल, जो ललितपुर जिले के बिरधा ब्लॉक के नयागांव गाँव के निवासी थे और गुरूवार को उर्वरक की खरीद के लिए जिला मुख्यालय गए हुए थे। प्रत्यक्षदर्शियों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वे जुगपुरा इलाके की एक दुकान पर गये थे, जहाँ उनकी तबियत बिगड़ती चली गई और कतार में खड़े-खड़े गिर पड़े थे। जिला प्रशासन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राहत कोष से मृतक के परिवार के लिए 10 लाख रूपये के मुआवजे की सिफारिश की है।

मृतक किसान के बेटे के अनुसार, उसके पिता दो एकड़ जमीन के मालिक थे जिसके लिए वे पिछले तीन दिनों से खाद हासिल करने की कोशिशों में जुटे हुए थे। आपूर्ति कम होने के कारण उन्हें कई दुकानों पर बार-बार खड़े होना पड़ रहा था। इसी तरह के एक अन्य मामले में ललितपुर जिले के बनयाना गाँव के निवासी महेश बुनकर भी अपनी जमीन के लिए खाद खरीद पाने की आस में लगातार तीन दिनों से लाइन में खड़े रहे। भोगी पाल की तरह ही महेश भी दुकान के बाहर गिर पड़े थे। उन्हें तत्काल जिला अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था।

मृतक के चचेरे भाई ज्ञानचन्द्र ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वे उर्वरक के लिए महेश के साथ लगातार तीन दिन ललितपुर के इलीट सर्किल जा रहे थे। 25 अक्टूबर को सोमवार के दिन दोपहर 12 बजे जब मेरे चचेरे भाई कतार में खड़े थे, तो उनकी तबियत बिगड़ गई। वे वहीँ पर धड़ाम से गिर गये थे।

ललितपुर जिले में मैलवाड़ा खुर्द गाँव के 40 साल के किसान, सोनी अहिरवार ने भी अपने खेत के लिए डीएपी हासिल न कर पाने के कारण निराशा में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। उनके परिवार के सदस्यों के मुताबिक, पिछले तीन दिनों से उन्होंने कई केन्द्रों का चक्कर काट लिया था लेकिन कहीं से भी उन्हें सफलता हाथ नहीं लग सकी।

अहिरवार की 2 अक्टूबर को आत्महत्या से मौत हो गई थी और स्थानीय लोगों ने उन्हें अपने खेत में मृत पाया था। हालाँकि, जिला प्रशासन ने उर्वरकों की अनुपलब्धता के कारण अहिरवार की मौत से इंकार किया है।

इसी प्रकार बुंदेलखंड के बल्लू पाल भी खाद लेने के लिए कतार में खड़े थे। जैसा कि वे भी कुछ दिनों से उर्वरक प्राप्त कर पाने में विफल रहे थे, ऐसे में उन्होंने भी कथित तौर पर आत्महत्या कर जान गँवा दी थी।

इस बीच, शुक्रवार को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में उर्वरकों की कालाबाजारी में सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए इसकी जांच किये जाने की मांग उठाई है क्योंकि इसकी कमी अब तक कम से कम चार किसानों की मौत से जुड़ी हुई है।

उर्वरकों की कमी के चलते भुखमरी की आशंका 

डीएपी की कमी के कारण बुंदेलखंड क्षेत्र के गांवों में गेहूं सहित अगले फसल के सीजन की बुवाई में देरी की खबरें हैं। किसान नेताओं का आरोप है कि राज्य में किसानों को हर स्तर पर भाजपा सरकार की उदासीनता का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

इटावा के एक किसान रमेश ने न्यूज़क्लिक को बताया “गेहूं की बुवाई आमतौर पर 15 अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर के बीच में की जाती है। डीएपी खाद के लिए किसानों को दर-दर भटकना पड़ रहा है। लेकिन इस सबके बावजूद, कई दिनों से पुलिस सुरक्षा बंदोबस्त के बीच कई दिनों से लंबी-लंबी लाइनों में लगकर इंतजार करने के बाद भी हमें पर्याप्त खाद नहीं मिल पा रहा है। इसकी वजह से अगले फसल के सीजन की बुवाई में देरी हो रही है।”

उन्होंने आगे कहा कि  “खाद की अनुपलब्धता के कारण फसलों की बुवाई में विलंब हो रहा है। वहीं इसी दौरान, पहले से पक चुकी फसलों को भी नुकसान हो रहा है। किसान अब इस बात को लेकर चिंतित हैं कि यदि हालात ऐसे ही बने रहे तो फसल की पैदावार इस बार अच्छी नहीं होने जा रही है। अगर खाद की कमी की वजह से फसलों को नुकसान होता है तो आने वाले दिनों में उन्हें भूखों मरने की नौबत से गुजरना पड़ सकता है।”

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ललितपुर के बंजारा गाँव के एक निवासी 58 वर्षीय, नवल किशोर ने कहा, “यह बुवाई का पीक सीजन है और मैं पिछले 10 दिनों से रोज लाइन में खड़ा हो रहा हूँ। इसके बावजूद अभी तक मुझे मेरे तीन एकड़ जमीन के लिए सिर्फ दो बोरी खाद ही मिल पाया है। (सहकारी समिति) के प्रबंधक द्वारा एक बार में एक किसान को सिर्फ दो बोरी ही उपलब्ध कराया जा रहा है। (खुले) बाजार में यही बोरी 1,500 रूपये में बिक रही है। सरकार कालाबाजारी को बढ़ावा दे रही है।” उनका आगे कहना था कि बुवाई में लंबी देरी से फसल की गुणवत्ता खराब होगी।

राज्य में उर्वरक संकट की वजहों के बारे बारे में जब न्यूज़क्लिक की ओर से बाँदा के कृषि विशेषज्ञ, प्रेम कुमार से सवाल किया गया तो उनका कहना था “सरकार हर साल डीएपी और यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी को कम करती जा रही है। सरकार जितना अधिक सब्सिडी जारी करती है, उतनी ही अधिक मात्रा में उर्वरकों की बिक्री हो रही है। इस साल, ऐसा लगता है कि सरकार ने कम सब्सिडी जारी की है। इसकी एक वजह यह भी है कि भूमि की उर्वरता कम हो रही है और भूमि की उत्पादकता में कमी होते जाने के कारण हाल के वर्षों में उर्वरकों की मांग पहले की तुलना में कई गुना बढ़ चुकी है।”

उन्होंने आगे बताया कि 2019-20 में “सरकार ने रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और कीटनाशक दवाओं पर 1,20,000 करोड़ रूपये तक की सब्सिडी दी थी। इस साल हालाँकि सब्सिडी में कमी कर दी गई है, जिसकी वजह से यह संकट पैदा हो गया है।”

इस बीच बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डीएपी और कुछ अन्य गैर-यूरिया उर्वरकों पर 14,775 करोड़ रूपये सब्सिडी में बढ़ोत्तरी करने का फैसला लिया है, ताकि लागत में वृद्धि के बावजूद किसानों के लिए फसल के पोषक तत्वों की कीमतों को कम रखा जा सके।

पिछले महीने, केंद्र ने डीएपी खाद पर सब्सिडी को 140% तक बढ़ाने का फैसला लिया था। यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय बैठक में लिया गया।

एक सरकारी बयान में कहा गया है कि सरकार ने किसानों को बाजार मूल्य से कम दामों पर उत्पादों को बेचने के मुआवजे के तौर पर उर्वरक कंपनियों को तकरीबन 28,656 करोड़ रुपयों का आवंटन किया है।

कुमार का कहना था “सरकार जितना अधिक सब्सिडी को बढ़ाएगी, किसानों को उर्वरक उतना अधिक बाजार मूल्य से सस्ता मिलेगा। यदि सरकार सब्सिडी हटा देती है तो उर्वरक के दाम तीन गुना तक बढ़ जायेंगे। फिलहाल, उर्वरक की कीमत 1,400 रूपये प्रति बोरी है, जिसपर सरकार की ओर से 2,000 रूपये की सब्सिडी दी जा रही है।

जब उनसे उर्वरक की मांग में अचानक से वृद्धि के कारणों के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि “हालाँकि उर्वरकों की मांग तो पूरे सालभर बनी रहती है, लेकिन अगस्त से अक्टूबर के बीच में जब इस क्षेत्र में बारिश होती है तो मांग बढ़ जाती है।” उन्होंने आगे कहा कि बरसात के कारण, भूमि में नमी की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे में किसान गेहूं और सरसों की बुवाई कर इस नमी का फायदा उठाना चाहते हैं। “चूँकि डीजल बेहद महंगा हो गया है और बिजली के दरें भी अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश में काफी अधिक हैं, ऐसे में किसान बारिश का लाभ उठाना चाहते हैं। यही वजह है कि मानसून के साथ साथ उर्वरकों की मांग भी बढ़ गई है।” 

बुवाई के दौरान डीएपी का महत्व इतना अधिक क्यों बढ़ जाता है, की ओर इशारा करते हुए गोरखपुर के कृषि विभाग के प्रोफेसर, अमित प्रकाश ने बताया कि रबी की फसल के लिए डीएपी एक मूल पोषक तत्व है। “गेहूं और सरसों जैसी फसलों की बुवाई के वक्त बीजों के साथ डीएपी का इस्तेमाल किया जाता है। एक एकड़ गेहूं के खेत के लिए कम से कम 45 किलोग्राम डीएपी बैग की जरूरत पड़ती है। डीएपी की आपूर्ति में किसी भी प्रकार की देरी से फसलों की बुवाई पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।”

प्रकाश के मुताबिक, “चीन डीएपी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और भारत का सबसे प्रमुख आपूर्तिकर्ता भी है। कभी हमारे देश में भी डीएपी का उत्पादन होता था, लेकिन अब आयात करने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है क्योंकि भारत में दशकों पूर्व छह उर्वरक संयंत्र बंद हो गए थे।”

इस बीच, उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने दावा किया है कि राज्य में उर्वरकों की कोई कमी नहीं है।

शाही ने लखनऊ में संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद मीडिया को बताया “राज्य में तकरीबन 5 लाख टन डीएपी का स्टॉक मौजूद है। कोई कमी नहीं है।”

इस बीच, बीकेयू के जिलाध्यक्ष रंजीत सिंह यादव ने न्यूज़क्लिक को बताया है कि भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत, प्रदेश अध्यक्ष राजवीर सिंह जादौन के साथ उर्वरक की कमी के कारण मारे गये पांच लोगों के परिवारों से मिलने के लिए सोमवार को ललितपुर में दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

UP: Acute Fertiliser Shortage in Bundelkhand Takes Lives of Five Farmers in a Week

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