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क्या दिहाड़ी मज़दूरों को बायोमिट्रिक प्रमाणीकरण के माध्यम से धोखा दिया गया है?

सार्वजनिक वितरण प्रणाली एक ज़रूरी सामाजिक सुरक्षा उपाय है, ख़ासकर कोविड-19 महामारी जैसे संकट के दौरान यह सुविधा और भी ज़रूरी हो जाती है, लेकिन बायोमिट्रिक प्रमाणीकरण इसमें एक बड़ी बाधा बन कर उभरा है।
 Daily Wage Earners

पिछले कुछ हफ़्तों में, दैनिक वेतन भोगियों की स्थिति विशेष रूप से निराशाजनक रही है। रोड स्कॉलर्ज़ ने छह राज्यों (छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश) के ग्रामीण इलाकों में 100 से अधिक लोगों से टेलीफोन के माध्यम से दो चरणों (26-31 मार्च और 4-7 अप्रैल) का सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण में पता चला कि ज्यादातर लोग इस बात से वाकिफ हैं कि कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए उन्हे किस तरह की सावधानी बरतने की जरूरत है, लेकिन अकेले यह ज्ञान उन्हें सुरक्षित नहीं रख पाएगा। स्थिति वास्तव में विडंबनापूर्ण है।

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 और यह सिर्फ वह किसान ही नहीं है जो इस स्थिति से प्रभावित हुए हैं। बल्कि वे लोग भी हैं जो लोग हिमाचल में होम-स्टे, पैराग्लाइडिंग सेवा, टैक्सी, नाई की दुकान और अन्य किस्म के स्वरोजगार की गतिविधियां चलाते है, कोविड के बाद ये सब धीमी पड़ गई है।

सार्वजनिक सेवाओं के बंद होने का मतलब यहाँ यह भी है कि बीमार लोगों को अब डॉक्टर के पास ले जाने या यहां तक कि बैंक से पैसे निकालने के लिए परिवहन मिलना मुश्किल हो गया है। एक उत्तरदाता ने कहा कि वह पासबुक का इस्तेमाल कर बैंक से 1,000 रुपया भी नहीं निकाल पाया जबकि दूसरे व्यक्ति को पुलिस ने उस वक़्त प्रताड़ा जब वह केमिस्ट की दुकान से दवाएं खरीदने जा रहा था।

कई लोग अपने घरों में स्टोर किए सामान से गुज़ारा करने की कोशिश कर रहे हैं, और ऐसा वे वास्तव में अपने दैनिक भोजन कोटा में कटौती करके कर रहे हैं। कुछ लोगों के पास केवल एक सप्ताह का राशन बचा हैं। और भले ही उनमें से कुछ के पास अनाज या चावल लंबे समय तक के लिए हो, लेकिन उनके पास अन्य खाद्य सामग्री जैसे सब्जियां, तेल और मसाले नहीं है।

इस समय, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) जैसे सामाजिक सुरक्षा के उपाय, मुख्य जनसमर्थन का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। 2013 में बने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत, भारत की लगभग 63 प्रतिशत आबादी जिसमें कम से कम 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 50 प्रतिशत शहरी आबादी-प्रति माह 5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति सब्सिडी वाले अनाज की हकदार है, जिस पर भारत जीडीपी का लगभग एक प्रतिशत खर्च करता है। और कोविड-19 के चलते लॉकडाउन के कारण लोगों को परेशानी से उबारने के लिए, केंद्र सरकार ने अगले तीन महीनों तक, अनाज की पात्रता या हक़ को 10 किलो प्रति व्यक्ति यानि दोगुना कर दिया है और एक किलो अतिरिक्त दाल मुफ्त में देने के राहत उपायों की घोषणा की है।

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“हालांकि, वितरण थोड़ा विचित्र ढंग से हो रहा है, जिसके चलते कुछ राशन कार्ड धारकों को अप्रैल महीने का राशन अब तक नहीं मिला है। गुजरात, झारखंड और उत्तर प्रदेश में स्थिति और भी ख़राब होती दिख रही है।”

पीडीएस के साथ चल रही समस्या ने कार्डधारकों तक इन वस्तुओं की पहुंच को और कठिन बना दिया है। 2014 के बाद से, राज्य सरकारों ने पीडीएस को आधार प्रणाली से जोड़ अनिवार्य कर दिया है, जिससे दो संख्याओं को एक साथ जोड़ दिया है, और बिक्री के लिए आधार-आधारित बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण (एबीबीए) को अनिवार्य बना दिया है। आधार को कल्याणकारी अधिकारों से जोड़ने को सर्वोच्च न्यायालय ने उस वक़्त अनुमति दे दी थी, जब एक मामले में आधार एक्ट और परियोजना को पुट्टुस्वामी बनाम भारत संघ (2019 1 एससीसी 1) में चुनौती दी गई थी,  लेकिन न्यायालय की बहुमत पीठ ने यह भी कहा था कि सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आधार लिंक या बायोमेट्रिक विफलता के कारण किसी को राशन से बाहर नहीं किया जाए।

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इसके बावजूद, कई लोगों को पीडीएस प्रणाली से बाहर रखा जा रहा है। जहां पहले राशन लेने के लिए केवल राशन कार्ड की जरूरत होती थी, लेकिन आज इसे आधार प्रणाली से अनिवार्य रूप से जोड़ने से बहुत से लोगों राशन नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि केवल आधार संख्या से जुड़े राशन कार्ड ही राशन के हकदार हैं। एबीबीए प्रणाली को चलाने के लिए एक मजबूत तकनीकी व्यवस्था होनी चाहिए – ऐसा होने पर आधार का सर्वर कभी भी विफल नहीं होगा, प्वाइंट ऑफ़ सेल ("पीओएस") फिंगरप्रिंट मशीन में कोई कमी न होगी, कोई इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या या हार्डवेयर विफलता नहीं होगी तो यह व्यबस्था चलेगी। लेकिन ऐसा नहीं है, इसलिए आधार को पीडीएस से जोड़ने के और इसे अधिक कुशल और धोखाधड़ी मुक्त बनाने का दावा करने से सिस्टम ने कई को राशन की सुविधा से बाहर कर दिया है।

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वास्तविकता यह है कि प्रौद्योगिकी अविश्वसनीय है। टेक-सेवी हैदराबाद में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि कई लोगों को इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसे मुद्दों, पॉइंट ऑफ सेल  मशीनों की खराबी, फिंगरप्रिंट प्रमाणीकरण में कमी आदि का सामना करना पड़ा है। जैसा कि आप कल्पना कर सकते हैं, अधिक दूरदराज के गांवों में तो काफी अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है - इससे बहुत से लोग राशन प्रणाली से बाहर हो रहे हैं, क्योंकि जिनके पास आधार नहीं है उन लोगों के नाम सूची से बाहर हो जाते हैं, या उन्हें तब राशन से इनकार कर दिया जाता है जब एबीबीए प्रक्रिया में उपयोग की जाने वाली पॉइंट ऑफ सेल मशीन में फ़िंगरप्रिंट्स, उनके डेटाबेस के फिंगरप्रिंट से मेल नहीं खाते हैं, या यदि किसी बिंदु पर अन्य तकनीकी विफलता इसका कारण बन जाती हैं। इस प्रकार, आधार लिंकेज लोगों की बड़ी संख्या को उनके राशन के अधिकार का उपयोग करने से बाहर कर देता हैं।

इसके अतिरिक्त, एबीवीए का उपयोग करना खासकर जब भारत कोविड-19 से जूझ रहा है, और उस पर लोगों से एक ही मशीन पर उनकी उंगलियों के निशान को प्रमाणित करना अपने आप में कोविड-19 के प्रसारण की संभावना या जोखिम को बढ़ा सकता है और सामाजिक दूरी के प्रयासों को खतरे में डाल सकता है। हालांकि कई राज्यों ने कुछ महीनों के लिए पीडीएस के मामले में एबीबीए प्रणाली को रोक दिया है, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के उत्तरदाताओं ने दूसरे चरण में बताया कि उन्हें अभी भी एबीएसए का उपयोग अपने पीडीएस राशन के लिए अपनी पहचान को प्रमाणित करने के लिए करना पड़ रहा है।

इस तरह की हालत देखते हुए, यह वह समय है जब हमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली में एबीबीए और अन्य बायोमेट्रिक और तकनीक पर निर्भर तरीकों का सही मूल्यांकन करना चाहिए - क्योंकि वे जिस तरह की बाधा खड़ी करते हैं, वह केवल उस संकट को बढ़ाएगी जिससे हम वर्तमान में गुज़र रहे हैं।

शोइली कानूनगो द्वारा चित्रित। रोड स्कॉलर्ज़ स्वतंत्र विद्वानों और स्टूडेंट्स का कलेक्टिव है जो एक्शन-ओरिएंटेड रिसर्च, सामाजिक-आर्थिक अधिकारों और संबंधित मुद्दों में रुचि रखते हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए इस मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

Have Daily Wage Earners Been Betrayed By Biometric Authentication?

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