Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

जम्मू-कश्मीर: प्राकृतिक आपदा और ‘भेदभाव’ की दोहरी चुनौती से जूझ रहे ट्रांसजेंडर!

“प्राकृतिक आपदाओं में वित्तीय और भौतिक सहायता मिलना तो भूल ही जाइए, मरम्मत कार्यों के लिए क्रेडिट प्राप्त करना भी ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के लिए एक बड़ा सिरदर्द है।”
jammu and kashmir

“मैं ऐसा महसूस करती हूं कि सरकार ने हमें त्याग दिया है। भूकंप में मेरा घर क्षतिग्रस्त हुए दो महीने हो गए हैं, लेकिन मुझे किसी तरह की राहत नहीं मिली है। मैं हर दिन ज़िला कार्यालय जाती हूं लेकिन हमेशा खाली हाथ ही वापस लौटती हूं। अब, मैं अपने समुदाय के सदस्यों के साथ रहती हूं। घर की मरम्मत का खर्चा इतना ज़्यादा है कि यह मेरी पहुंच से बाहर है।”

उत्तर कश्मीर की एक 30 वर्षीय ट्रांसजेंडर सिमरन लोन, 17 साल पहले अपनेपन की तलाश में घर से निकली थी। उनकी सफलता का मतलब एक ऐसी जगह का होना था जिसे घर कहा जा सके, और इसे हक़ीक़त बनाने के लिए, लोन ने कड़ी मेहनत की।

शादियों में परफॉर्म करना और कमाए गए हर पैसे को बचाना लोन के एजेंडे में सबसे ऊपर था, उस दिन तक जब 2020 में वे श्रीनगर के डाउनटाउन हब्बा कदल में 10 लाख रुपये का एक तीन-कमरों का घर खरीदने में कामयाब रहीं। हालांकि, उनकी खुशी और गर्व का ये एहसास ज़्यादा समय तक नहीं रहा क्योंकि इस साल 21 मार्च को इस क्षेत्र में एक बड़ा भूकंप आया था।

अब, केवल एक अच्छी-खासी मरम्मत ही दीवारों और छत में आई दरारें ठीक कर सकती है। लोन ने बताया, “मैंने एक कारपेंटर को नुकसान का आकलन करने के लिए बुलाया, और उसने मुझे 1.50 लाख रुपये का अनुमानित ख़र्च बताया। मैं बहुत हैरान थी।”

प्राकृतिक आपदाओं में वित्तीय और भौतिक सहायता प्राप्त करना तो भूल ही जाइए, मरम्मत कार्यों के लिए क्रेडिट प्राप्त करना भी ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों के लिए एक बड़ा सिरदर्द है। सरकारी योजनाओं और रोज़गार के अवसरों के प्रति उनकी सीमित पहुंच से, इस तथ्य को और भी बल मिलता है।

लोन की तरह ही, श्रीनगर की ज़ोया खान (27) का भी आपदा के दौरान नेविगेट करने की कठिनाइयों को लेकर अपना अनुभव है। 2014 की बाढ़ के दौरान, ज़ोया अपनी यूनीक जेंडर आइडेंटिटी के कारण राहत सहायता प्राप्त नहीं कर सकीं। लगभग 15 दिनों तक ज़ोया के घर का ग्राउंड फ्लोर पानी में डूबा रहा। जीवित रहने के लिए, समुदाय के सदस्यों पर निर्भर रहना ही एकमात्र विकल्प था।

“मैंने अपने पूरे जीवन में पूर्वाग्रह और हाशिए पर रहने का अनुभव किया है लेकिन एक आपदा की वजह से भोजन, आवास और चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा कर पाना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। संकट के समय में, हमें एक अधिक समावेशी समाज बनाने की कोशिश करनी चाहिए जो वंचित लोगों की चिंताओं पर विचार करे।”

खान ने कहा कि यहां तक कि बाढ़ के दौरान खाने के पैकेट बांटने में भी भेदभाव की तस्वीर नज़र आती है। “वे पैकेट किसी भी ज़रूरतमंद के लिए थे, लेकिन हम इस हद तक हाशिए पर थे कि हमें संसाधन का उपयोग करने से रोका गया। संकट की घड़ी में किसी को भी पीछे नहीं छोड़ना चाहिए।”

COVID-19 संकट के दौरान पीछे छूट जाने का एहसास ख़ुशी मीर (26) के मन में अब भी ताज़ा है। मीर ने बताया, “महामारी का दौर मेरे लिए बेहद कठिन रहा है। एक ट्रांसजेंडर के रूप में, अपने दैनिक जीवन में मुझे पहले से ही कई भेदभाव और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लॉकडाउन लगाए जाने के कारण, मैं एक गायक या डांसर के रूप में काम नहीं कर सकी, जो मेरी आय के सामान्य स्रोत थे। इसलिए, मेरे पास मज़दूर के रूप में काम करने के अलावा कोई चारा नहीं था।”

हालांकि, उस कड़वे अनुभव से ताकत पाकर, मीर ने एक वॉलंटियर ग्रुप बनाया और ज़रूरतमंद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की मदद के लिए क्राउडफंडिंग के ज़रिए पैसे जुटाए। वास्तव में, वॉलंटियर ग्रुप को लॉन्च करने का विचार तब आया जब एक मित्र ने महामारी के दौरान भोजन की गुहार लगाई। “हम पांच लोगों का एक ग्रुप था जो ज़्यादा से ज़्यादा ट्रांसजेंडर लोगों तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे थे। हमारे पास 400 लोगों की सूची थी और हम उन सभी को धीरे-धीरे उस कठिन समय में फूड किट दे रहे थे।”

LGBTQIA अधिकार कार्यकर्ता और हिजरस ऑफ़ कश्मीर के लेखक डॉ. एजाज़ अहमद: वंचित, परिवारों द्वारा अस्वीकार की गई पहचान, भेदभाव, और अपने धर्म और सेक्सुअलिटी/जेंडर आइडेंटिटी के साथ सामंजस्य स्थापित करने में असमर्थता, LGBTQIA मुस्लिम समुदाय के सामने सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं। इसके अलावा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आपदा के समय में आश्रय, आजीविका, स्वास्थ्य और सामाजिक-धार्मिक स्थानों तक पहुंच जैसी अतिरिक्त चुनौतियां भी हैं।

डॉ. एजाज़ अहमद कहते हैं, “आपदा प्रबंधन से संबंधित नीति-निर्माण में समाज के इस क्रॉस-सेक्शन के व्यक्तियों को शामिल करना जेंडर-सेंसिटिव फ्रेमवर्क बनाने में महत्वपूर्ण है।”

यह पूछे जाने पर कि सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय की ज़रूरतों को पूरा करने की योजना कैसे बनाई, इस पर आपदा प्रबंधन, राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण विभाग के वित्त निदेशक कुलभूषण कुमार ने ‘101 रिपोर्टर्स’ को बताया कि आपदा प्रबंधन दिशानिर्देश सभी व्यक्तियों के लिए समान थे। उन्होंने कहा, “यदि ट्रांसजेंडर लोग पीड़ित हो जाते हैं या आपदा के दौरान भेदभाव का सामना करते हैं, तो उन्हें सहायता के लिए सीधे डिप्टी कमिश्नर से संपर्क करना चाहिए। हालांकि डॉक्यूमेंटेशन में समय लग सकता है, लेकिन यह आवश्यक है कि हम समाज के सभी सदस्यों के लिए जवाबदेही और न्याय को प्राथमिकता दें।”

आपदाओं की तरह ही, पर्यावरणीय गिरावट और प्रदूषण का भी, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। साफ पानी और हवा तक पहुंच एक महत्वपूर्ण चुनौती है, खासकर सामाजिक बहिष्कार का सामना करने वाले व्यक्तियों के लिए। आपदा, हार्मोन थेरेपी और संबद्ध चिकित्सा उपचारों को भी बाधित कर सकती है। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन का असर ट्रांसजेंडर लोगों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

ह्यूमन राइट्स कैंपेन फाउंडेशन की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामान्य आबादी की तुलना में गरीबी, हिंसा और भेदभाव का अनुभव करने की संभावना अधिक रहती है। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार के अवसरों से वंचित किया जा सकता है और जीवित रहने के लिए अलग-थलग रहने या जोखिम भरी गतिविधियों में संलग्न होने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

डॉ. एजाज़ ने कहा कि कश्मीर का ट्रांसजेंडर समुदाय एक छोटा और आपस में जुड़ा हुआ समूह है जो एक-दूसरे को भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक तौर पर सहारा देता है। हालांकि, आपदा के समय उन्हें बाहरी सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है। यहीं समस्या है। जैसा कि कुलभूषण कुमार ने ठीक ही कहा था, आपदाएं भेदभाव नहीं करती हैं और न ही हमारे रेस्पोंस में यह भेद होना चाहिए।

(फ़हीम मट्टू और सदफ़ शब्बीर श्रीनगर के स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101रिपोर्टर्स के सदस्य हैं, जो ज़मीनी स्तर के पत्रकारों का एक पैन इंडिया नेटवर्क है।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Shaken, Not Stirred: Trans People in J&K Battle Discrimination to Rise Above Natural Disasters

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest