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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर: कैसे आस्था के मंदिर को बना दिया ‘पर्यटन केंद्र’

काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप सड़क के किनारे श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का न्यास सुविधा केंद्र है। यहां एक हेल्प डेस्क है, जिसके बाहर कांच के गेट पर 300 रुपये में सुगम दर्शन का पोस्टर चस्पा किया गया है। 300 रुपये का टिकट लेने पर मुफ्त शास्त्री, लॉकर, प्रसाद का ऑफ़र है। 
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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण के बाद मंदिर परिसर का जो नया स्वरूप सामने आया है उससे लगने लगा है कि काशी की पारंपरिक पहचान पीछे छूटती जा रही है। हाल यह है कि अब सिर्फ दैनिक दर्शनार्थी ही नहीं, शहर के तमाम कारोबारी और संत-पुरोहित सदमें में हैं। चिंता की बड़ी वजह यह है कि विश्वनाथ मंदिर को धर्म से ज्यादा पर्यटन की नगरी बनाने के साथ-साथ कॉरपोरेटीकरण विकास का सब्जबाग दिखाया जा रहा है। चमक-दमक में डूबा विश्वनाथ कॉरिडोर अब किसी फरियाद को तवज्जो नहीं देती। विस्थापित दुकानदारों को दुकानों के आवंटन का फर्ज निभाना भी उन्हें गवारा नहीं। बनारस के लोगों की एक चिंता यह भी है कि सत्ता समर्थित मूल्यहीन भव्यता के हवाले होती-होती वह बाबा भोले लायक रह पाएगा या नहीं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 दिसंबर को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया था। इसके बाद श्रद्धालुओं का भारी हुजूम उमड़ा, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह सामान्य है। तीन सौ रुपये की फीस लेकर विश्वनाथ मंदिर में सुगम दर्शन की व्यवस्था पहले से है, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी ने जब से विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया उसके बाद से वीआईपी दर्शन के प्रचार की मुहिम काफी तेज हो गई है। 

विश्वनाथ मंदिर के समीप सड़क के किनारे श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का न्यास सुविधा केंद्र है। यहां एक हेल्प डेस्क है, जिसके बाहर कांच के गेट पर 300 रुपये में सुगम दर्शन का पोस्टर चस्पा किया गया है। तीन सौ रुपये का टिकट लेने पर मुफ्त शास्त्री, लॉकर, प्रसाद का ऑफ़र है। आरती के लिए भी यहां 180 रुपये के टिकट का प्रावधान है, जिसका ब्योरा पोस्टर पर चस्पा है। न्यास सुविधा केंद्र के गेट के पास शिलापट्ट पर जो सूचना अंकित की गई है उस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम के साथ हेल्प डेस्क के उद्घाटन की तारीख 21 दिसंबर 2018 अंकित है। हेल्प डेस्क के निर्देश पर दर्शनार्थियों को सुगम दर्शन कराने वाले विनय शास्त्री और नित्यानंद शास्त्री दावा करते हैं कि साल 2018 के आखिरी महीने में सुगम दर्शन योजना शुरू की गई थी। यह तथ्य बेबुनियाद है कि सुगम दर्शन योजना की शुरूआत पीएम नरेंद्र मोदी ने की है।

मौजूदा समय में विश्वनाथ मंदिर में कई तरह की आरती के लिए रेट तय है, जिसके लिए ऑनलाइन बुकिंग की व्यवस्था भी की गई है। काशी विश्वनाथ मंदिर में हर तरह की पूजा के लिए रेट तय है। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक 180 रुपये में सप्तऋषि आरती, इतने में ही मिड-डे आरती और श्रृंगार भोग आरती, 350 रुपये में मंगला आरती, 300 रुपये में सुगम आरती, 450 रुपये में एक शास्त्री से रुद्राभिषेक, 1350 रुपये में पांच शास्त्री से रुद्राभिषेक का इंतजाम है। 

विश्वनाथ मंदिर में सावन, शिवरात्रि और अन्य पर्वों पर वीवीआईपी पूजा और आरती से लिए श्रद्धालुओं से मोटी रकम वसूली जाती है। पिछले साल जुलाई के आखिरी हफ्ते में पड़ने वाले सावन की शुरुआत 25 जुलाई से हुई थी। विश्वनाथ मंदिर में सावन भर मंगला आरती के लिए 700 रुपये शुल्क वसूला गया था। आम दिनों में मंगला आरती के लिए तय शुल्क 350 रुपये है। मंदिर आने वाले भक्तों को सावन सोमवार श्रृंगार के लिए 15,000 और पूर्णिमा श्रृंगार के लिए 3700 रुपये शुल्क तय था। श्रावण सोमवार संन्यासी भोग के लिए 7500, अखंड दीप के लिए 700, बीस साल तक रुद्राभिषेक के लिए 25,000, महामृत्युंजय जप (32 शास्त्री- एक दिन) के लिए एक लाख और सात शास्त्री से पांच दिन में पूजा कराने के लिए 51 हजार रुपये शुल्क लिया गया। संभावना व्यक्त की जा रही है कि अब इस शुल्क में पहले से इजाफा हो सकता है। 

मंदिर को बना दिया धार्मिक मॉल

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का कुल क्षेत्रफल पांच लाख वर्ग फीट है, जिसमें मंदिर का परिसर सिर्फ पांच फीसदी हिस्से में है। बाकी में होटल, फ़ूड कोर्ट, म्यूज़ियम, शो-रूम-मिठाई, कपड़े, लकड़ी का खिलौना, खादी के शोरूम खोले जाने हैं। यह सब उन स्थानों पर खोला जाना है जहां इस कॉरिडोर को बनाने के के लिए करीब 300 से अधिक मकानों को अधिग्रहित किया गया था। साथ ही काशी खण्डोक्त के 27 और 127 दूसरे मंदिरों को जमींदोज कर दिया गया था। प्रशासन ने दावा किया था कि कॉरिडोर के सभी मंदिरों का संरक्षण किया जा रहा है, जो मजाक बनकर रह गया है। मंदिर प्रशासन ने मंदिर में बिजनेस मॉडल विकसित करने के लिए ब्रिटेन की कंपनी ईवाई को ठेका दिया गया है। जिस मंदिर में विदेशियों का प्रवेश प्रतिबंधित था, उस मंदिर परिसर में बिजनेस मॉडल विकसित करने के लिए यह विदेशी कंपनी सुझाव देगी। यह कंपनी यह भी तय करेगी कि मंदिर परिसर में ठहरने से लेकर भोजन-पानी और पूजा-पाठ का शुल्क कितना होगा?

खास बात यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने जब से विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया है तभी से आम श्रद्धालुओं को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने पर प्रतिबंध है, लेकिन आला अफसरों और वीवीआईपी के लिए तो विश्वनाथ मंदिर के दरवाजे हमेशा के लिए खुले रहते हैं। 9 जनवरी 2022 को सूबे के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र और डीजीपी मुकुल गोयल बनारस आए तो उनके पूजा-पाठ के लिए श्रद्धालुओं को रोक दिया गया। इन अफसरों को मंदिर के अंदर ले जाकर रुद्राभिषेक कराया गया। यही नहीं, उससे कुछ रोज पहले सीएम योगी आए तब भी आम श्रद्धालुओं को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। श्रद्धालुओं को रोककर इन्हें मंदिर के गर्भगृह में बिठाकर काफी देर तक पूजा-अर्चना कराई गई। वहीं आम श्रद्धालुओं को सड़कों पर लाइन लगानी पड़ रही है। साथ ही मंदिर के बाहर बने अरघे में जलार्पण करना पड़ रहा है। जब भी कोई वीवीआईपी आता है, मंदिर के गर्भगृह में कब्जा करके पूजा-पाठ शुरू कर देता है।   

विश्वनथ मंदिर के गर्भगृह में बैठकर पूजा करते उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र और डीजीपी मुकुल गोयल

वरिष्ठ पत्रकार ऋषि झिंगरन कहते हैं, "काशी विश्वानाथ मंदिर अब काशी के लोगों से दूर होता जा रहा है। नेमी दर्शनार्थी खुद को खोया हुआ महसूस कर रहा है। बाजारीकरण के शोर के बीच स्थानीय नागरिक अब शहर के दूसरे शिवालयों की ओर मुड़ गए हैं। बाहर से आने वाले लोगों की भीड़ में श्रद्धालु कम, पर्यटक ज्यादा हैं जो भव्यता निहरने आ रहे हैं। अभी तो शुरुआत है। चलो काशी का मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई सभी जगहों पर होर्डिंग्स लगाकर जो दिव्य काशी-भव्य काशी का जो प्रचार किया जा रहा है, उससे भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है। 23 दिसंबर से दो जनवरी तक यहां इस बार भीड़ का रिकार्ड ही टूट गया। अभी जो लोग इस उम्मीद से बनारस आ रहे हैं उन्हें विश्वनाथ मंदिर में आसानी से दर्शन मिल जाएगा, लेकिन सड़कों पर लगने वाली कतारें सरकारी दावों की पोल खोलती नजर आ रही हैं।"

नए साल पर विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ा हुजूम

काशी विश्वनाथ मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना करने वाले वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं, "मंदिर में रोजाना नई-नई चीजें की जा रही हैं। अर्चक भी भव्यता के शिकार हो रहे हैं। वो सूतक में पूजा कराने से बाज नहीं आ रहे हैं और अपने धतकरम छिपा रहे हैं। शिव बारात को मजाक बन गई है। आने वाले दिनों में रंगभरी एकादशी साल में कई बार और बाबा के गौना-दोगा की रस्म बार-बार मनाया जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए जनता की दिक्कतों को धता बताकर कारिडोर बनाया गया था, मगर जनता सड़क पर लाइन लगा रही है, यह शर्म का विषय है।

वैभव त्रिपाठी यह भी कहते हैं, "एक चौथाई हिस्सा न्यास के पास है जो गर्भगृह के समीप है। बाकी तीन चौथाई हिस्सा गंगा के किनारे तक का है, जिसे होटल की तर्ज पर विकसित किया गया है। इससे मंदिर परिसर में व्यभिचार बढ़ेगा। आस्थावान लोग नहीं, पर्यटक और दुराचारी आएंगे, जबकि यहां व्यभिचारियों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है। मंदिरों को तोड़कर व्यावसायिकरण किया है। सनातन परंपरा का माखौल उड़ाया गया है। मंदिर के महंत श्रीकांत मिश्र के भतीजे की मौत हुई। छह दिसंबर को पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार हुआ। इसके बावजूद पीएम, सीएम, मेयर के साथ अभिषेक और पूजन कराया। यह अधर्म और अनर्थ का था, जो धार्मिक रूप से अक्षम्य अपराध है। सनातन की सत्ता को खाला का घर बना दिया है। विशुद्ध रूप से उन्हें वही पुजारी चाहिए जो उनका चहेता हो। इतना बड़ा कॉरिडोर बना दिया। गलियों में लाइन लग रही है। मंदिर प्रशासन को तो टिकट बेचना है। टिकट तीन सौ का है और पुलिस व पंडे दो-दो सौ में लोगों को दर्शन करा रहे हैं।"

विश्वनाथ मंदिर का मुआयना करते पुलिस और प्रशासनिक अफसर

विश्वनाथ मंदिर के समीप रहने वाले मनीष मर्तोलिया कहते हैं, "धर्म का मूल स्वभाव सेवा है। परिसर को धर्मशाला मुक्त करके होटल युक्त कर दिया। अन्नक्षेत्र की जगह फ़ूड कोर्ट बना दिया गया है। मंदिर का सेवा भाव खत्म हो गया है। पहले अमीर-गरीब एक साथ खाना खाते थे। अब अमीर फ़ूड कोर्ट में बैठकर खाना खाएंगे, और गरीब भक्त ललचाते हुए देखेंगे। मंदिर में समानता का सिद्धांत खत्म हो गया। यह धर्म और आस्था की विचारधारा पर चोट है। हमारे धर्म में अमीरी-गरीबी के लिए भेदभाव नहीं था। रहीसों के लिए यहां धार्मिक मॉल बना दिया है। बनारस के किसी मंदिर में फूड कोर्ट नहीं है। अन्नपूर्णा मंदिर के अन्न क्षेत्र में आज भी मुफ्त में भोजन की व्यवस्था है। मंदिर किसी जंगल में तो था नहीं। परिसर में यह सब बनाने की आखिर जरूरत क्या थी? "

दुकानदारों के साथ भितरघात

विश्वनाथ गली व्यावसायिक समिति के अध्यक्ष सोनालाल सेठ ने मंदिर प्रशासन पर आरोप लगाया है कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की भव्यता में जिन दुकानदारों ने अपनी जमीनें और दुकानें दीं उनके साथ अब विश्वासघात हो रहा है। जब मंदिर कॉरिडोर का निर्माण पूरा हो जाएगा तो वहां दुकानों के आवंटन में हमें वरीयता दी जाएगी, लेकिन मंदिर प्रशासन आवंटन में बाहरी लोगों को तरजीह दे रहा है। इसको लेकर विश्वनाथ गली व्यवसायिक समिति के पदाधिकारी मंदिर प्रशासन, डीएम, कमिश्नर, स्थानीय मंत्री नीलकंठ तिवारी तक से मिल चुके हैं, लेकिन उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। हमारी रोजी-रोटी दोनों मंदिर प्रशासन और सरकार दोनों ने मिलकर छीन ली है। 

सोनालाल कहते हैं, "विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के नाम पर सरकार ने पुराने दुकानदारों को हटा दिया। नया दुकान देने का आश्वासन देकर उनसे दुकानें खाली कराईं थीं। प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा था कि योजना पूर्ण होने पर दुकान के बदले दुकान दी जाएगी, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं। हमें उम्मीद थी कि श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने से देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालुओं को भव्य काशी और दिव्य काशी के दर्शन जरूर होंगे। इस बाबत इलाकाई व्यापारियों को उजाड़ कर कार्य किया गया, लेकिन उन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। हालांकि दुकान हटाने की एवज में प्रशासन ने तीन साल पहले उन्हें पैसे भी दिए थे। इस मुद्दे को लेकर हमने 25 दिसंबर को पराड़कर भवन में प्रेसवार्ता भी की थी। हमारी डिमांड है कि दुकानों के आवंटन में हमें प्राथमिकता दी जाए। कोई स्पष्ट नहीं कर रहा है कि कितनी दुकानें बनी है और उनका क्या रेट है? व्यापारी भयग्रस्त और तनाव में हैं। कुछ ही व्यापारी ऐसे हैं जो सेटल हो चुके हैं। पीड़ित व्यापारियों की संख्या बहुत अधिक है।"

"विश्वनाथ मंदिर परिसर में दुकान गंवाने वालों को डर सता रहा है कि अफसर न जाने किसे कितनी दुकानें आवंटित कर दें। हमारी संस्था में 80 फीसदी से ज्यादा लोग सत्तारूढ़ दल से जुड़े हैं। हम भाजपा के समर्थक हैं, इसके बावजूद हमें ही सताया जा रहा है। हमारी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। हम सीएम योगी से मिलना चाहते हैं, लेकिन अफसर हमें अंधेरे में रखे हुए हैं।"  

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व्यापारी नेता नवीन गिरि, अजय तिवारी, प्रदीप साहू, अजय विश्वकर्मा, चन्द्रशेखर सेठ (एडवोकेट), संजीव रत्न मिश्रा, शान्तेश्वर यादव, दिनेश कुमार गुप्ता, सोनू कपूर कहते हैं " हम अफसरों के भरोसे हैं। हमें लगता है कि वो हमारे साथ छल कर रहे हैं। हमें अंधेरे में रखा जा रहा है। आगे क्या होगा। भगवान जाने। अगर हमारी बात यहां नहीं सुनी गई, तो हम इसके विरोध में व्यापक आंदोलन करेंगे। कॉरिडोर के लिए करीब डेढ़ से दो सौ दुकानदारों को उजड़ा गया था। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था पूर्व कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह ने कहा था कि पुनर्वासित किया जाएगा। प्राथमिकता के आधार पर सभी को दुकानें देंगे। तभी से हम अफसरों के संपर्क में थे। कमिश्नर ने स्पष्ट कहा था कि हमने जो वादा किया उस पर कायम है। हम खुश हो गए। हमने 96 लोगों की सूची धर्मार्थ मंत्री नीलकंठ तिवारी को दी थी, जिसे उन्होंने कमिश्नर के पास भेजा था। दुकानों के आवंटन के बाबत सबसे पहले हमसे पूछा जाना चाहिए था, लेकिन उन्होंने पूछा ही नहीं। पिछले तीन साल से हम दुकानों के लिए आस लगाए बैठे हैं।"  

वरिष्ठ पत्रकार अमितेश पांडेय कहते हैं, "काशी विश्वनाथ कारिडोर में जिन लोगों के मकानों का अधिग्रहण किया गया और जिनकी दुकानें ली गई, उनके साथ न्याय नहीं हुआ। बनारस के पक्‍के महाल के जिन लोगों ने सदियों से देव-विग्रहों और मंदिरों को अपने आंगन और आंचल में छुपाकर जीना सीख लिया था उन्‍हें हुक्मरानों ने ''मंदिर चोर'' कहना शुरू कर दिया। इस अपराध में सत्‍ताधारी नेताओं का साथ दिया, बनारस के तमाम अखबार और देश के नाम पत्रकारों ने। अंजना ओम कश्‍यप सरीखे पत्रकारों की चारणकारिता ने तो काशी की खंडोक्‍त परंपरा और ज्ञान का जो पलीता लगाया, कि भांग में डूबी जनता और मदमस्‍त हो गई। जिनके भीतर आज भी बनारस धड़कता है, लेकिन वो चुप हैं। इस नगर को लूटा किसने है ये तो सामने दिख ही रहा है। मूल सवाल उन पहरेदारों से है जिन्‍हें 'जागते रहो' का हरकारा लगाना था।"  

आस्था से मजाक 

विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर में एक तरफ दुकान न मिलने से आहत व्यापारियों का कोलाहल है तो दूसरी ओर, काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाबा विश्वनाथ के गर्भगृह में पूजन करवाने वाले पंडित श्रीकांत मिश्र के शास्त्री विधान और उनसे पूजन कराने का बवंडर उठ रहा है। मंदिर के एक पूर्व न्यासी प्रदीप बजाज ने मंदिर प्रशासन और श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि श्रीकांत मिश्र ने जिस दिन मोदी का बाबा विश्वनाथ के गर्भगृह में पूजन करवाया था, उस दिन वह सूतक में थे। पीएम की पूजा कराने के लोभ में श्रीकांत मिश्र अब अपने सगे भतीजे को अपना मानने से इनकार कर रहे हैं। बीते पांच दिसंबर 2021 को सड़क हादसे में श्रीकांत मिश्रा के भतीजे का निधन हो गया था। दस दिनों तक उन्हें किसी भी तरह के कर्मकांड या पूजा पाठ की इजाजत शास्त्र नहीं देता है। 

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के मीमांसा विभाग के आचार्य पंडित कमलाकांत पांडेय कहते हैं, "आशौच में मंदिर में नहीं जाना चाहिए। मृतक के परिवारीजनों को दस दिनों का आशौच लगता है। ऐसे में वो अपने घर में भी पूजा नहीं कर सकते। तिलक भी नहीं लगा सकते। मंदिर में घुसकर पूजा नहीं करा सकते। मंत्रों का जाप तक नहीं कर सकते। ब्राह्मण गायत्री मंत्र का उच्चारण करके तीन अर्घ सूर्य को दे सकते हैं। मंदिर में प्रवेश का प्रश्न ही नहीं उठता। अगर कोई पुजारी और जजमान ऐसा करता है तो दोनों को बुरा फल भुगतना पड़ता है। धार्मिक नजरिए से यह एक बड़ा और अक्षम्य अपराध है। चरक संहिता में इस आशय का विस्तार से उल्लेख किया गया है। भाजपाइयों का वचन शास्त्र नहीं है।" 

सदियों पुराना है मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो कि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस मंदिर में प्राचीन काल से भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप की पूजा होती है। मंदिर में मुख्य देवता का लिंग विग्रह 60 सेंटीमीटर (24 इंच) लंबा और 90 सेंटीमीटर (35 इंच) परिधि में एक चांदी की वेदी में रखा गया है। मुख्य मंदिर चतुर्भुज है और अन्य देवताओं के मंदिरों से घिरा हुआ है। परिसर में काल भैरव, कार्तिकेय, अविमुक्तेश्वर, विष्णु, गणेश, शनि, शिव और पार्वती के छोटे-छोटे मंदिर हैं। मंदिर में एक छोटा कुआं है जिसे ज्ञानवापी कूप कहा जाता है। ज्ञानवापी कूप मुख्य मंदिर के उत्तर में स्थित है।

इतिहासकारों के अनुसार श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार 11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने करवाया था। सन 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया गया। कालांतर में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने स्वर्ण पत्रों से मंदिर के शिखरों को सुसज्जित करवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई थी। मोदी सरकार ने अब इस मंदिर के स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में छोटी बड़ी 23 इमारतें और 27 मंदिर हैं। 50 हजार वर्ग मीटर में बने कॉरिडोर को तीन हिस्सों में बांटा गया है। कॉरिडोर में चार बड़े-बड़े गेट और परिक्रमा पथ पर 22 शिलालेख को लगाया गया है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में शॉपिंग काम्प्लेक्स, मल्टीपर्पस हॉल, मंदिर चौक, मुमुक्षु भवन, तीन यात्री सुविधा केंद्र, सिटी म्यूजियम और वाराणसी गैलरी जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं।

हालांकि काशी विश्वनाथ मंदिर की मौजूदा व्यवस्था से मंदिर के महंत राजेंद्र तिवारी काफी कुपित हैं। वह कहते हैं, "मंदिर पर भाजपा और आरएसएस व विहिप वालों का कब्जा हो गया है। लोकार्पण के बाद मंदिर का प्रसाद और मोदी के गुणगान वाली पुस्तिका भी भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों के लोगों ने ही शहर भर में बंटवाया था। विश्वनाथ मंदिर में अब वही टिक पाएगा जो पीएम मोदी की डफली बजाएगा। मंदिर हम लोगों का था और हमें तो पूछा ही नहीं जा रहा है। मोदी ने पिछले महीने मेगा इवेंट किया, लेकिन हमारे परिवार के किसी व्यक्ति को न्योता नहीं भेजा गया। मंदिर के संचालन की व्यवस्था की जिम्मेदारी जिस ईवाई कंपनी को सौंपी गई है उसमें मुकेश अंबानी पार्टनर है।"

राजेंद्र यह भी कहते हैं, "विश्वनाथ कारिडोर का श्रेय लूटने वालों का चरित्र दोहरा है। एक ओर मंच से गांधी का नाम लेते हैं और दूसरी ओर गोलवरकर की पूजा करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि रावण अपने दौर में काल को भी चारपाई में बांधकर रखता था, लेकिन जब काल आया तो रावण खुद को नहीं बचा सका। अंग्रेज भी यहां आए, लेकिन उन्होंने विश्वनाथ मंदिर के साथ किसी तरह का छेड़छाड़ नहीं किया। मोदी ने विश्वनाथ कॉरिडोर को लेकर इस तरह का प्रचार किया जैसे वो खुद ही शिव के अवतार हों। मंदिर के स्थापत्य के साथ जिस तरह का छेड़छाड़ किया गया है उसे बनारस के लोग हमेशा याद रखेंगे।"

(विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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