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एलजी विज़ाग : स्टाइरीन लीक के लिए कौन है ज़िम्मेदार?

एलजी विज़ाग प्लांट पर्यावरण नियमों के खुले उल्लंघन के साथ काम कर रहा था, या तो नियमक एजेंसियों ने इन उल्लंघनों के प्रति अपनी आंखे मूँद ली थीं, या फिर वे एक दूसरे पर इस मामले को डाल रहे थे।
एलजी विज़ाग
Image Courtesy: Scroll.in

7 मई, 2020 की सुबह के शुरूआती घंटों में विज़ाग स्थित एलजी पॉलीमर्स प्लांट से स्टाइरीन वाष्प का भयावह रिसाव हुआ, और इसने संयंत्र के आस-पास रह रहे सैकड़ों लोगों को घायल कर दिया तथा कम से कम 13 लोगों की जान ले ली, इस घटना ने 80 के दशक के दिसंबर माह में घटी भोपाल गैस त्रासदी की यादें ताज़ा कर दी हैं।

भोपाल की तरह, एलजी संयंत्र भी कभी शहर के उपनगरों का हिस्सा होता था, लेकिन इसके आसपास के क्षेत्र में घनी बस्तियों के बसने की इजाजत देने से संयत्र के आसपास आबादी बढ़ गई थी। भोपाल त्रासदी का निश्चित रूप से, दायरा और पैमाना काफी बड़ा था, क्योंकि रिसाव की वजह से मृत्यु और उससे उत्पन्न विकलांगता, पीड़ितों और उनके बच्चों पर आने वाले दीर्घकालिक प्रभाव काफी भयंकर थे। फिर भी दोनों में समानताएं महत्वपूर्ण और चौंकाने वाली हैं।

विशेष रूप से ख़तरनाक सामग्रियों और उनका उपयोग करने वाले उद्योगों के संबंध में देखा जाए तो भोपाल आपदा ने पर्यावरणीय नियमों की धज्जियां उड़ा कर रख दीं थी। हालांकि, यह बात अपने आप में चौंकाने वाली है कि लगभग चार दशक के बाद भी भारत में नियमों और विनियमों की समान रूप से धज्जियां उड़ाई जा रही है और सबसे बुरी बात यह है कि नियामक एजेंसियों और कॉरपोरेट संस्थाओं के बीच एक व्यवस्थित मिलीभगत है, जो पर्यावरण के मामले में आम लोगों के लिए जरूरी सुरक्षा को सुनिश्चित किए जाने का मज़ाक उड़ा रही है।

एलजी विज़ाग प्लांट पर्यावरण नियमों का खुला उल्लंघन कर अपना काम साध रहा था, नियामक एजेंसियों ने या तो इस उलंघन के प्रति अपनी आंखे मूँद ली थी या फिर उसे एक दुसरे पर टाल रहे थे। विडंबना यह है कि यह घटना पिछले सप्ताह ही लिखे स्तंभों के बारे में प्रस्तावित पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना 2020 पर ध्यान आकर्षित करती है, जिसमें एलजी प्लांट जैसे उल्लंघन को माफ करना और उसे बाद में पर्यावरण वैधता प्रदान करना चाहता है।

एलजी विज़ाग से स्टाइरीन का रिसाव भारत में पर्यावरण शासन में इस व्यवस्थित धोखाधड़ी का एक खास अध्ययन का मामला बन जाता है।

स्टाइरीन और उसका स्वस्थय पर प्रभाव 

स्टाइरीन दुनिया भर में औद्योगिक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले शीर्ष 20 हाइड्रोकार्बन में से एक है, जो विभिन्न प्रकार की सामग्री के उत्पादन में इस्तेमाल की जाती है, जैसे कि पॉलीस्टीरिन, एक्सटेंडेड पॉलीस्टीरिन (ईपी) और एनहेंस्ड प्लास्टिक यौगिकों (ईपीसी) का उपयोग, फाइबर ग्लास और अन्य कंपोजिट, खाद्य कंटेनर, इलेक्ट्रिक इंसुलेशन, सिंथेटिक रबर आदि के रेफ्रीजरेशन के लिए किया जाता है। खतरनाक रसायन नियम, 1989 के के मुताबिक, स्टाइरीन के विनिर्माण और भंडारण के लिए आयात को एक जहरीले और खतरनाक रसायन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

स्टाइरीन आम तौर पर एक तरल पदार्थ है, जिसे हाल ही में मीडिया द्वारा गलती से गैस के रूप में संदर्भित किया गया है। यह ज्वलनशील है और कम तापमान में भी आसानी से वाष्पीकृत हो जाता है। स्टाइरीन एक मोनोमर यानी एकल अणु है जो अन्य अणुओं के साथ मिलकर पॉलिमर या अणुओं की श्रृंखला बनाता है।

स्टाइरीन प्राकृतिक रूप से फलों और सब्जियों, मीट, दालचीनी, कॉफी और मूंगफली में पाया जाता है और यह पौधों, बैक्टीरिया और कवक द्वारा भी उत्पादित होता है। यह दहन उत्पादों, जैसे ऑटोमोबाइल निकास और सिगरेट के धुएं में भी मौजूद होता है, और यह फोटोकॉपीर्स और स्टाइरीन-उपयोग वाले उद्योगों से भी निकलता है।

तो, हमारी रोजमर्रा की आब-ओ-हवा में स्टाइरीन मौजूद होता है, यद्यपि इसका स्तर 0.06-4.6 पीपीपी (प्रति बिलियन पार्ट्स) के बाहरी स्तर पर यानि काफी कम होता है, ऑटोमोबाइल उद्योग भी इसे समान अनुपात में पैदा करते हैं। इनडोर यानि आंतरिक हवा में यह आमतौर पर 0.07-11.5 पीपीपी के उच्च स्तर पर होता हैं, वह भी ज्यादातर सिगरेट के धुएं के कारण।

स्टाइरीन के संपर्क में आने पर इसका स्वास्थ्य पर प्रभावों का अध्ययन ज्यादातर व्यावसायिक संदर्भों में किया गया है, जिसमें ज्यादातर अध्ययन स्टाइरीन वाष्पों को साँस के जरिए निगलने  और, कुछ हद तक त्वचा के साथ संपर्क में आने पर है। इसका मुख्य प्रभाव तंत्रिका तंत्र (nervous system) पर होता हैं, और इसके मुख्य लक्षणों में थकान, एकाग्रता की कमी और बिगड़ता संतुलन, धीमी प्रतिक्रिया और नशे जैसी स्थिति में होना शामिल है। हालाँकि इस तरह के प्रभाव इसके नीचे के स्तर की तुलना में केवल 1000 गुना या अधिक स्टाइरिन लेने पर होते हैं। यूएस ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ अथॉरिटी (OSHA) ने कार्यस्थलों पर आठ घंटे के कार्य दिवस में 100 पीपीएम स्टायरिन की कानूनी सीमा निर्धारित की गई है। श्रमिकों का औसत जोखिम शायद ही कभी 20 पीपीएम से अधिक हुआ हो। कुछ अध्ययनों ने 30 मिनट के भीतर 360 पीपीएम स्टायरिन को साँस के जरिए लेने को "तीव्र जोखिम" के रूप में वर्णित किया है।

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) और अन्य एजेंसियों का कहना है कि स्टाइरीन एक संभावित कैंसरकारी है, लेकिन निर्णायक रूप से नहीं है। संभावित जन्म दोषों, स्थिर  जन्म या कम वजन वाले जन्म पर कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं हैं।

एक बार शरीर में, स्टाइरीन अन्य यौगिकों में परिवर्तित हो जाता है जो आमतौर पर कुछ दिनों में पेशाब के जरिए बाहर निकलता हैं। जल निकायों और मिट्टी में अवशोषित इस तरह के स्टाइरीन को विभिन्न सूक्ष्म जीवों द्वारा जल्दी से खपा लिया जाता है।

हालाँकि, 7 मई को कई घंटों तक स्टाइरीन वाष्प का बड़े पैमाने पर रिसाव, एक्सपोज़र का काफी ऊंचा स्तर है, खासकर एलजी प्लांट के आसपास। स्थानीय मीडिया ने लगभग 700पीपीएम के स्तर की सूचना दी है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि प्लांट के 2-3 किमी नीचे की ओर स्टाइरीन के वाष्पों का महत्वपूर्ण प्रभाव होगा, और कहा गया है की इसके तत्काल आसपास के क्षेत्र में यह लगभग 1,100 पीपीएम के स्तर पर और एक किलोमेटर के दायरे में 130 पीपीएम, और दो से तीन किलोमीटर के दायरे में यह 20पीपीएम होगा। 

इस तरह के उच्च किस्म के जोखिमों के बारे में न तो पहले जानकारी थी और न ही उसके बारे में अध्ययन किए गए हैं। इसलिए, अब लोगों पर और साथ ही दुधारू पशुओं, मुर्गों, सब्जियों और पौधों पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव को व्यवस्थित रूप से जांच करने और उसके नुकसान को कम करने की आवश्यकता है।

एलजी विज़ाग संयत्र में रिसाव 

यह रिसाव कैसे और क्यों हुआ, यह मुख्य रूप से विभिन्न मीडिया आउटलेट्स, कुछ स्वतंत्र अध्ययनों और औद्योगिक और वैज्ञानिक साहित्य से प्रकाशित सामग्री पर निर्भर करता है। घटनाओं के अनुक्रम के सभी विवरण अभी तक ज्ञात नहीं हैं, लेकिन कुछ पहलू व्यवस्थित रूप से स्पष्ट हैं।

एलजी प्लांट ने बड़े टैंकों यानि विशाल कुओं में संग्रहीत लिक्विड स्टाइरीन का इस्तेमाल किया। संग्रहीत स्टायरीन को 20 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखा जाना था, लेकिन तापमान नियंत्रण विफल हो गया जिसके कारणों को अभी जानना बाकी है, और टैंक में तापमान बढ़ने लगा। ऑटो-पॉलीमराइजेशन इनहिबिटर स्पष्ट रूप से उपयोग नहीं किए गए थे जबकि उनका उपयोग किया जाना चाहिए था। टेट्रा ब्यूटाइल-कैटेचोल (TBC) जैसे इनहिबिटर का उपयोग आमतौर पर पोलीमराइजेशन की स्व-चालित प्रक्रिया को रोकने के लिए स्टाइरीन के भंडारण और परिवहन के दौरान किया जाता है, जो कि स्टाइलर मोनोमर को पॉलिमर में बदल देता है।

ऑटो-पॉलीमराइजेशन एक एक्सोथर्मिक प्रक्रिया है, जिसका अर्थ है कि यह गर्मी छोड़ती है, जो पॉलिमराइजेशन को बढ़ाती है, और साथ ही स्टाइरीन के वाष्पीकरण और वाष्प के दबाव को तेज करती है। खतरा चलती प्रतिक्रिया का है, जिसकी शुरुवात 65 सी के आसपास होती है और वह अपने चरम पर तब पहुंच जाती है जब तापमान स्टाइरीन 145 सी के उबाल बिन्दु से अधिक हो।

7 मई को, तापमान नियंत्रण में कमी के कारण टैंक में ऑटो-पॉलीमराइजेशन होने लगा था, स्टाइरीन वेपर्स को बढ़ती दरों पर उत्पन्न किया जा रहा था क्योंकि टैंक के अंदर तापमान और वाष्प दबाव दोनों तेजी से बढ़े थे। अगर प्रेशर कुकर में "वेट" की तरह सेफ्टी वॉल्व काम नहीं करता तो कभी भी विस्फोट हो सकता है। और ऐसा ही हुआ था, यहाँ सेफ्टी वॉल्व उद गई थी, जिससे स्टाइरिन वाष्प को लंबे समय तक हवा में छोड़ना पड़ा, जब तक कि तापमान कम करने के उपाय नहीं किए गए थे। कहा जाता है कि तापमान 180 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया था, और जिसे केवल धीरे-धीरे 100 डिग्री सेल्सियस के अपेक्षाकृत सुरक्षित स्तर पर लाया गया, और फिर 78 डिग्री सेल्सियस तक लाया गया था।

घटना के बाद, भारतीय वायुसेना के विमानों के माध्यम से विजाग में टनों अवरोधकों और अन्य स्थिर रसायनों को प्रवाहित किया गया था। टैंक में मौजूद पूरी की पूरी स्टाइरिन को ठोस और स्थिर पॉलिमर में बदल दिया गया था। विजाग बंदरगाह पर संग्रहीत हजारों टन स्टाइरिन  स्टॉक सिंगापुर या सियोल में एलजी मुख्यालय में वापस निर्यात किए जाने के लिए तैयार थी।

ऐसी रिपोर्टें हैं कि कुशल श्रमिक काम की जगह पर मौजूद नहीं थे, लेकिन यह "मानवीय त्रुटि" को दोष देने की प्रबंधन की रणनीति भी हो सकती है। विशेष रूप से तापमान और अवरोधक, ऑक्सीजन और पॉलिमर की मात्रा के संबंध में विशाल भंडारण की गई स्टाइरिन की स्थिति की नियमित रूप से निगरानी की जानी चाहिए थी।

कुछ रिपोर्टों में, वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) के अन्य सेंसर की समस्याओं की भी बात की है। प्रभावशाली निगरानी के अभाव के चलते और लंबे समय तक भंडारण के कारण पॉलिमर का निर्माण हो सकता है जिसके चलते वाल्व, पाइपलाइन, गेज और नियंत्रण को अवरूद्ध हो सकते हैं। क्या इसमें आवश्यक सावधानी बरती गई, इसकी देखरेख को सुनिश्चित किया गया, इसकी जानकारी नहीं है।

इन सभी संभावित विफलताओं और कमजोरियों, और घटनाओं के कारणों को जल्द ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) या भविष्य में अन्य जांच के द्वारा स्थापित जांच टीम द्वारा खोजा जाएगा।

अब तक दो प्रमुख मुद्दों को अपर्याप्त रूप से संबोधित किया गया है। सबसे पहला कि एलजी संयंत्र का संचालन शुरू करने से पहले सुरक्षा ऑडिट और ड्रिल किया जाना चाहिए था, और साथ ही उसे आज़माइश के रूप में चलाया जाना चाहिए था। दूसरा, और आदर्श रूप से, प्लांट को तब तक चलने दिया जाना चाहिए था जब तक कि स्टोर की गई स्टाइरीन समाप्त नहीं हो जाती, क्योंकि लंबे समय तक भंडारण से बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ता है। लेकिन केवल कुछ घंटों के नोटिस पर लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई, और सारे विकल्प को नकार दिया गया, वह भी अपर्याप्त नोटिस और तैयारी के साथ अचानक लॉकडाउन के परिणामों का एक और कड़वा सबक है।

केंद्र सरकार ने इन खतरों को स्वीकार किया है, लेकिन केवल विजाग रिसाव के बाद, इसलिए रासायनिक उद्योगों को सुरक्षा अभ्यास करने, जांच के लिए प्लांट को चलाना और पूरी तरह से प्लांट को चलाने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने के दिशानिर्देशों की घोषणा की है।

नियमों की धाज्जियाँ उड़ाना 

विजाग एलजी प्लांट मामले का सबसे चौंकाने वाला पहलू एलजी द्वारा पर्यावरण नियमों का निंदनीय उल्लंघन और अधिकारियों द्वारा लापरवाही भरा रवैया या यहां तक कि उनकी मिलीभगत शामिल  है।

विजाग में इस संयंत्र को पहली बार 1965 में हिंदुस्तान पॉलिमर द्वारा स्थापित किया गया था। इसे 1982 में मैकडॉवेल एंड कंपनी ने ले लिया था, जो बाद में शराब की दिग्गज कंपनी यूबी ग्रुप का एक हिस्सा बनी थी। एलजी ने 1997 में संयंत्र का अधिग्रहण किया, लेकिन उसने आयातित स्टाइरीन का उपयोग किया। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईएआईए) अधिसूचना 2006 से पहले, क्रमशः नवंबर 2001 और मई 2002 में आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एपीपीसीबी) से प्लांट की स्थापना और संचालन के लिए एलजी ने सहमति हासिल की थी, जिसमें पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) की आवश्यकता थी। हालाँकि, जब एलजी सिर्फ 415 टीडीपी (प्रति दिन) से 655 टीडीपी तक की प्लांट क्षमता का विस्तार करना चाहा, तो उसे पहले पर्यावरणीय मंजूरी चाहिए थी जिसके लिए उसने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) को 2018 में आवेदन दिया था। सितंबर 2018 में, SEIAA ने इस पर आपत्ति जताई। इस आधार पर कि संयंत्र पर्यावरणीय मंजूरी के बिना काम कर रहा था।

मई 2019 में बाद SEIAA के समक्ष दायर एक नोटरी एफिडेविट में, जिसे अब कई अखबारों में पुन: प्रकाशित किया गया है, एलजी ने स्वीकार किया कि उसने पहले संयंत्र क्षमता के "मामूली विस्तार" के छह दौर किए थे, विस्तार योग्य पॉलीस्टीरीन के लिए इसने 2004 से 2017 के बीच 45 से 102 टीपीडी और 235 से 313 टीपीडी किए थे वह भी बिना पर्यावरणीय मंजूरी के जो ईआईए 2006 अधिसूचना का उल्लंघन थी, लेकिन आशचार्य की बात है कि इसे एपीसीबी से अनुमति थी। एपीसीबी (APPCP) द्वारा ये अनुमतियाँ, स्पष्ट रूप से एसईआईएए (SEIAA) को दरकिनार करती हैं, जिसके लिए एपीसीबी (APPCP) सचिवालय काम करता है, लेकिन बिना प्राधिकरण की शक्तियों के, यह संभवतः अवैध हैं, जैसा कि पर्यावरण कानून के कई विशेषज्ञों ने इसकी पुष्टि की है।

एलजी ने तर्क दिया कि ईआईए अधिसूचना 2006 उनके प्रकार के संयंत्र पर लागू नहीं होती है, और इसलिए एलजी विजाग संयंत्र के मामले में लागू श्रेणी बी परियोजनाओं पर निर्णय लेने के लिए राज्य प्राधिकरण अधिकृत था। हालांकि, एसईआईएए (SEIAA) ने इस मामले को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को संदर्भित करते हुए कहा कि संयंत्र ए श्रेणी में आता है जिसे केंद्र से पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता होती है।

दिल्ली में पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने प्रेस में छपी कुछ रिपोर्ट में यह दावा किया है कि इस बारे में भ्रम था कि क्या केंद्र या राज्य को पर्यावरण मंजूरी देनी थी, लेकिन इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं की गई कि पर्यावरण मंजूरी के बिना यह संयंत्र इतने लंबे समय से कैसे चल रहा था? इस पर बड़ी ही लापरवाही से कह दिया गया कि इसकी "जांच की जाएगी।"

विशेष रूप से, एलजी ने विस्तार के मामले में दिए गए अपने आवेदन को मंत्रालय से वापस ले लिया है, और मंत्रालय की वेबसाइट पर एक "हटाई गई" प्रविष्टि नवंबर 2019 है जिसमें कहा गया कि कि अब एलजी की इसमें "कोई दिलचस्पी नहीं रखता है।" फिर भी, मामला केंद्र और राज्य (आंध्र प्रदेश) के बीच उछलता हुआ प्रतीत हो रहा है, और आवेदन जाहिरा तौर पर मार्च 2020 से केंद्र के पास लंबित है। और इस समय, एलजी पॉलिमर ने प्रयावरणीय मंजूरी के बिना विजाग में काम करना जारी रखा हुआ है, लेकिन यह काम एपीपीसीबी की संदिग्ध अनुमति से चल रहा है। 

एलजी का मामला अद्वितीय नहीं है। पर्यावरणीय मंजूरी के बिना या वर्षों से बड़े उलंघनों के साथ हजारों परियोजनाएं चल रही हैं। 2017 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा "उल्लंघनों" की एक विशेष परियोजना श्रेणी का गठन किया था, जिसमें से कई को नियमित करने के लिए वन टाइम एमनेस्टी यानि छुट देने की बात की गई थी, यदि इन परियोजनाओं के अधिकांश नहीं, तो ज्यादा से ज्यादा को मुख्यधारा में वापस लाया जाना चाहिए। हालाँकि, इसे अब ड्राफ्ट ईआईए अधिसूचना 2020 के तहत एक स्थायी प्रावधान में परिवर्तित करने की मांग की जा रही है, जिसमें बिना किसी पर्यावरणीय मंजूरी के, प्रचालन शुरू करने सहित परियोजनाओं द्वारा निरंतर उल्लंघनों को हवा देना, जो बात उनके पूरे ज्ञान में है कि ये नियम खुद किसी भी उलंघन के लिए उन्हे मात्र जुर्माना लगाकर काम की अनुमति देते हैं और बाद के लिए पर्यावरण मंजूरी भी प्रदान कर दी जाती है!

एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट ने कई बार दी इस तरह की डी गई पर्यावरण मंजूरी के खिलाफ फैसला सुनाया है। जैसा कि हाल ही में अप्रैल 2020 में, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने फैसला सुनाया था कि "बाद में दी गाई पर्यावरणीय मंजूरी की अवधारणा पर्यावरण न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांतों की अवहेलना है और 27 जनवरी 1994 की ईआईए अधिसूचना के लिए अभिशाप है।"

इसलिए, एनजीटी ने एलजी पॉलिमर पर 50 करोड़ रुपये के दंडात्मक हर्जाने को थोप दिया है, जबकि रिसाव से होने वाले जीवन और पर्यावरण को नुकसान का पूरा आकलन लंबित पड़ा हुआ है, इस आधार पर कि प्लांट नियमों और अन्य वैधानिक प्रावधान का पालन करने में "असफल" रहा है... [तथा] वैधानिक प्राधिकरण जो इस तरह की गतिविधियों को अधिकृत और विनियमित करने के लिए जिम्मेदार हैं, को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए।"

यह आशा की जाती है कि एनजीटी जांच दल एलजी विज़ाग संयंत्र रिसाव के हालत और कारणों को उजागर करेगा, और, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पर्यावरण के नियमों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदारी को स्पष्ट करेगा। हालांकि, इस टीम में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI), नागपुर के एक-एक प्रतिनिधि भी शामिल हैं, जिनकी दिल्ली में बैठी सरकार के दबाव का विरोध करने की क्षमता अनिश्चित है।

और सरकार के इरादे का पता इस बात से चल जाता है कि वह ईआईए अधिसूचना 2020 के ड्राफ्ट के साथ आगे बढ़ने के अपने दृढ़ संकल्प बढ़ रही है, जो एक स्पष्ट, पारदर्शी और निष्पक्ष परिणाम का विश्वास पैदा नहीं करता है।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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