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नूंह हिंसा: एकतरफ़ा गिरफ़्तारी की बात कितनी सच? क्या है बबलू और तय्यब की कहानी?

नूंह हिंसा के बाद स्थानीय लोग लगातार एकतरफ़ा कार्रवाई का आरोप लगा रहे हैं, क्या वाक़ई इसमें कोई सच्चाई है कि पुलिस ने नाम देखकर लोगों को गिरफ़्तार किया?
Nuh Violence

31 जुलाई को नूंह में हुई हिंसा के बाद, बुलडोज़र एक्शन हुआ जिस पर 7 अगस्त को पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए रोक लगा दी। इस रोक को लगाते हुए कोर्ट ने सवाल किया कि "मुद्दा ये भी है कि क्या कानून व्यवस्था की आड़ में किसी एक ख़ास समुदाय की इमारतों पर बुलडोज़र चलाया जा रहा है? और क्या राज्य सरकार जातीय संहार (Ethnic Cleansing) की कोशिश कर रहा है?"

कोर्ट का ये सवाल उस कार्रवाई पर था जिसमें आरोप लग रहे थे कि तोड़े गए मकान-दुकान सिर्फ मुसलमानों के हैं। कोर्ट के आदेश के बाद बुलडोज़र एक्शन तो थम गया लेकिन एक कार्रवाई चलती रही और वो थी गिरफ़्तारियों की।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि गिरफ़्तारियां एकतरफा हो रही हैं। लोग आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस ने कई ऐसे लोगों को उठाया है जो उस दिन (31 जुलाई) शहर में ही नहीं थे। साथ ही ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि घटना को एक महीना होने जा रहा है लेकिन अभी तक पुलिस की धरपकड़ जारी है। लोगों पर संगीन धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। बेशक ये जांच का विषय है लेकिन गांव वालों और स्थानीय लोगों का भी एक पक्ष है, हम कई गांव गए, कई लोगों से मिले और लोगों ने बताया कि "प्रशासन कह रहा है कि डरने की बात नहीं है आराम से घरों में रहो लेकिन जब लड़के घर में होते हैं तो उन्हें उठाया जा रहा है तो ऐसे में क्या करें? हालात सामान्य हो रहे हैं लेकिन हम आज भी रात को जंगल या फिर पहाड़ों पर ही सोने जा रहे हैं।"

इन सबके बीच कई लोग पुलिस पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए अपनी 'परेशानी' बता रहे हैं जिनके घर के किसी सदस्य या फिर जान-पहचान या किसी रिश्तेदार को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है। लोगों का आरोप है कि "बहुत से ऐसे लोग हैं जो बेगुनाह हैं और उस दिन शहर में ही नहीं थे लेकिन पुलिस ने उन्हें सिर्फ मुस्लिम पहचान की वजह से पकड़ लिया।"

इन आरोपों में कितनी सच्चाई है? शायद ये भी अपने आप में जांच का विषय है। हम फिरोज़पुर पहुंचे, यहां हमें बबलू और तय्यब के परिवार से मिलना था। 

बबलू और तय्यब कौन हैं? 

मोहम्मद इकबाल उर्फ बबलू और तय्यब दोनों बल्लभगढ़ से गुड़गांव के बीच बस चलाते हैं। ये दोनों पिछले 10-12 साल से ये काम कर रहे हैं। दोनों एक ही बस में रहते हैं बबलू ड्राइवर हैं और तय्यब कंडक्टर, ये जिनकी बस चलाते हैं उनका नाम है विजय पाल। तय्यब के सात बच्चे हैं, चार बेटियों की शादी हो चुकी है और सबसे छोटा एक बेटा है। बूढ़े मां-बाप हैं, भाई हैं उनकी पत्नियां और बच्चे हैं, एक पूरा कुनबा है, थोड़ी-बहुत ज़मीन है तो खेती बाड़ी भी करते हैं। देखने से लग रहा था कि ये लोग मेहनत मज़दूरी करके घर चलाने वाले लोग हैं।

(मोहम्मद इक़बाल जिन्हें सब लोग बबलू के नाम से बुलाते हैं।)

क्या हुआ बबलू और तय्यब के साथ? 

31 जुलाई को नूंह में हिंसा भड़कने के बाद दोनों के ही घर से फोन आया कि घर चले आएं। हमें बताया गया कि "दोनों 31 जुलाई की रात को काम ख़त्म कर बस के मालिक से पूछ कर बल्लभगढ़ से घर के लिए निकल गए लेकिन पुलिस ने दोनों को 1 अगस्त को नूंह में पकड़ लिया। लेकिन पुलिस ने बबलू को छोड़ दिया और तय्यब जेल में है।" बबलू ने हमें उनके 31 जुलाई को नूंह में ना होने से लेकर पुलिस के द्वारा पकड़े जाने और उन्हें छोड़ दिए जाने के बारे में बताया।  

31 जुलाई

इकबाल उर्फ बबलू बताते हैं कि "हम बल्लभगढ़ से गुड़गांव के बीच बस चलाते हैं। हमें वहां से गांव आए हुए एक-एक महीना हो जाता है। 31 तारीख़ को नूंह में जो हादसा हुआ उस दिन हम काम पर थे। फिर गांव से, घर से, बच्चों के फोन आए तो हमने सोचा कि अपने बच्चों के पास जाएं। हम वहां (बल्लभगढ़) से काम कर के रात को दस-साढ़े दस बजे निकले, रास्ते में हमें कोई साधन नहीं मिला। रास्ते में घौंज (फरीदाबाद) के पास आलमपुर एक गांव है वहां पर एक जान पहचान वाले के पास रुक गए, उसने कहा कि तुम रुक जाओ सुबह निकल जाना तो हम रुक गए। सुबह खाना खाकर करीब साढ़े दस बजे वहां से हम ऑटो से निकल गए, मैं था और मेरे साथ तय्यब कंडक्टर था।"

1 अगस्त

"हम जब ऑटो में बैठे तो उस ऑटो वाले ने हमें घासेड़ा छोड़ दिया, कुछ देर आराम से बैठे। एक ऑटो आया हम उस ऑटो में बैठ गए हमने उससे पूछा कहां जाओगे तो उसने कहा कि नूंह जाऊंगा तो हमने उससे कहा कि हमें नूंह छोड़ दीजिए। उसने हमें नूंह छोड़ दिया हम नूंह स्टैंड पर रुक गए। ये सुबह 11 बजे की बात होगी या साढ़े ग्यारह, 10 मिनट आगे-पीछे हो रहा होगा। हमने कुछ गाड़ियों को हाथ दिया, बसें बंद थी, उस वक़्त ऑटो रुके नहीं फिर एक ट्रक आया, तीन लोग उसमें पहले से बैठे हुए थे, दो लोग हम और बैठ गए तो पांच लोग हो गए।"

बबलू बताते हैं कि "रास्ते में कुछ और लोग मिले जो घर जाना चाहते थे तो ड्राइवर ने उन्हें भी बैठा लिया। चूंकि ड्राइवर जहां बैठता है वहां जगह नहीं बची थी तो उसने बाकी लोगों को पीछे बैठने के लिए कह दिया और ये लोग गाड़ी के ऊपर बैठ गए। लेकिन जैसे ही गाड़ी गोहाना मोड़ से कुछ पीछे थी तो सामने से आ रही पुलिस ने ट्रक रुकवा लिया और उसमें बैठे सब लोगों को नीचे उतारा।"

गोहाना मोड़

"जब हम गोहाना मोड़ से सौ-डेढ़ सौ मीटर पर थे तो पुलिस की गाड़ी आ रही थी सामने से, वो क़रीब 6 से 8 गाड़ियां थीं जिसमें एक बस भी थी जो मुजरिमों को लेकर जाती है, वो ट्रक में से सबको उतारते गए और नाम पूछते गए। वे कह रहे थे क्या नाम है तुम्हारा, उन्होंने मुझसे पूछा तुम्हारा नाम क्या है मैंने कहा बबलू। मुझे बबलू के ही नाम से सब जानते हैं, मेरे मुंह से इक़बाल नहीं निकला बबलू ही निकल गया। उन्होंने कहा कि तुम साइड हट जाओ, जब उन्होंने सारे लोगों को बस में बैठा लिया तो मुझे भी बैठाया, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है, क्या मामला चल रहा है? हमें इतना तो पता था कि कल यहां कोई लड़ाई, दंगा हो गया है, लेकिन हमारी आंखों के सामने तो कुछ हुआ नहीं था हम अपने घर आ रहे थे।"

"तुम भागो यहां से, निकलो"

बबलू उस दिन क्या हुआ उसकी एक-एक बात बताते हैं वे आगे बताते हैं कि "उन्होंने नल्हड़ की तरफ गाड़ी घुमाई और सदर थाने में ले गए। जो पुलिस वाला हमारे साथ पीछे बैठा था उसने मुझसे कई बार कहा क्या तुम्हारा नाम बबलू है, तो मैंने कहा हां जी, मेरा नाम बबलू है, तो उसने कहा तुम्हें छोड़ देंगे, उसके बाद कुछ लोगों के साथ एक पुलिस वाला आया उसने पूछा कि तुम में से बबलू किसका नाम है, उसने कहा एक साइड में पार्क में बैठो आप, पार्क में बैठा दिया, दो लोग और थे जो कह रहे थे कि हम डॉक्टर हैं।" बबलू आगे बताते हैं कि "फिर पुलिस वाले आए पता नहीं उन्होंने क्या सोचा और कहा कि तुम भागो यहां से निकलो।"

बबलू कहते हैं कि "मेरा दिल ये मानता है कि उन लोगों ने मुझे मुस्लिम नहीं समझा इसलिए छोड़ा।"

बबलू ने बताया कि इसके बाद वो वहां से निकले और नूंह में ही उनकी बेटी रहती है उसके पास पहुंचे, उन्हें गांव के सिर्फ एक शख़्स का फोन नंबर याद था। उन्होंने दोपहर 2 बजे के करीब उस शख़्स को फोन किया कि और कहा कि जल्द से जल्द जा कर उनके (तय्यब) घर में जानकारी दे दो।

बस के मालिक ने दिया हलफनामा 

परिवार और बबलू के मुताबिक उनके पास सारे सबूत हैं कि 31 तारीख़ को वे नूंह शहर में ही नहीं थे।

बबलू और तय्यब के परिवार वाले दावा करते हैं कि उनके पास सारे CCTV की फुटेज हैं। वे बताते हैं कि "जो बसें चलती हैं बस अड्डे में हमारे पास नौ मिनट रहते हैं, हर नौ मिनट पर एक रोडवेज की बस लगती है और एक हमारी (प्राइवेट परमिट वाली) तो हमें आगे वाली बस ने देखा, हमारी पीछे वाली बस ने देखा है, बस अड्डे की CCTV फुटेज निकलवा कर लाए हैं, जिनकी हम बस चलाते हैं उनका नाम विजयपाल है, उन्होंने भी हलफनामा लिख कर दिया है, ये सब सबूत हैं हमारे पास।"

जिस वक़्त हम तय्यब के घर के सहन में एक पेड़ के नीचे बैठकर ये बातें कर रहे थे, उनकी बुजुर्ग मां रोती हुई हमें देख रही थीं। तय्यब के पिता नूर मोहम्मद भी डबडबाई आंखों से हमसे बात करते हैं "हमारी बात कहीं नहीं पहुंच पा रही है, सारे सबूत जमा किए हैं, हमारा बेटा छूटना चाहिए वो बेकसूर है।" हमने उनसे पूछा कि क्या वो प्रशासन से कुछ कहना चाहते हैं तो लड़खड़ाती ज़बान में बोले "कोई मदद नहीं हो पा रही है, वो बस पर था। छोड़ दें, ग़रीब आदमी है, ग़लत पकड़ा गया है।"

गांव वालों ने क्या कहा? 

हमने इसी गांव के उस शख़्स रमज़ानी से भी बात की जिन्हें बबलू ने फोन कर तय्यब के घर जानकारी देने के लिए कहा था। वो बताते हैं कि उनके गांव से एक भी शख़्स को नहीं उठाया गया था तय्यब को उठाया गया वो भी गांव से नहीं बल्कि गोहाना मोड़ से। हमने उसने पूछा कि जब उन्हें पता चला कि तय्यब शहर में नहीं था और फिर भी पुलिस ने उसे उठा लिया तो कोई ये बताने पुलिस के पास क्यों नहीं गया? तो वे बताते हैं कि "हम सब मिलकर सरपंच के पास गए, उनसे कहा कि नूंह चलो तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि मैं नहीं जा सकता, झगड़ा चल रहा है, पकड़ रहे हैं, किसी की नहीं चल रही है।"

"मैं कहां जाऊं, किससे कहूं"

तय्यब के आस-पड़ोसी भी परेशान दिखाई थे। तय्यब का घर और खेत मिले हुए हैं कहां पर घर ख़त्म हो रहा था और कहां से खेत शुरू हो रहे थे समझ नहीं आ रहा था, दो कमरों के आगे एक टीन शेड के नीचे खाना बनाने की व्यवस्था की गई थी। हमने तय्यब की पत्नी वहिदा से भी बात की, वो लगातार रोती हुई कहती हैं "मैं बस यही कहना चाहती हूं कि मेरे पति घर आ जाएं" वे आगे कहती हैं कि "हम सरपंच के पास गए तो उन्होंने साफ मना कर दिया कि मैं नहीं जाऊगा, मुझे ही पकड़ लेंगे। मैं कहां जाऊं, किससे कहूं, मेरा कौन साथ देगा, सबूत निकलवा लिए, पेट्रोल पंप के, बस अड्डे के (CCTV) लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ।"

जिस वक़्त हम वहिदा से बात कर रहे थे, उन्हीं के साथ बैठी तय्यब की मां लगातार अपने आंचल से आंसू पोंछ रही थीं, हालांकि पुलिस जांच के बाद तस्वीर साफ होगी कि कौन बेगुनाह है और कौन गुनहगार लेकिन पुलिस को इस जांच की रफ़्तार को थोड़ा तेज़ करना होगा ताकि दावे के मुताबिक़ जो बेकसूर हैं वे जल्द से जल्द अपने घरों को लौट सकें।

"मेरा लड़का घर आ जाए"

सिसकती, आंसू पोंछती तय्यब की मां कहती हैं कि "मेरा लड़का घर आ जाए उसे ग़लत तरीके से उठाया है। पूरे गांव ने बोल दिया, कंडक्टरी कर रहा था वो, डर के मारे घर आ रहा था लेकिन पता नहीं था ऐसा हो जाएगा। मेरा बेटा अपने बच्चों के पास आ जाए, हम खेती बाड़ी करते हैं, मेहनत मज़दूरी करने वाले लोग हैं।"

परिवार किन सबूतों की बात कर रहा है?

चूंकि बबलू और तय्यब साथ में थे तो बबलू का दावा है कि बस अड्डे पर टाइम टेबल के मुताबिक उनके आगे-पीछे चलने वाली बसों के ड्राइवर, बस अड्डे की CCTV फुटेज से ये साबित हो सकता है कि वो और तय्यब 31 जुलाई के दिन नूंह में थे ही नहीं। परिवार हमें बस के मालिक विजयपाल का हलफनामा भी दिखाता है।

हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने कहा है कि क़रीब 510 लोगों को गिरफ़्तार किया है जबकि 130 से 140 FIR दर्ज की गई हैं। वो आगे कहते हैं कि "पकड़े गए लोगों से पूछताछ के आधार पर ऐसा लगता है कि ये कांग्रेस ने किया है।"

हरियाणा सरकार तमाम एजेंसियों के साथ मिलकर हिंसा के असली आरोपियों की तलाश कर रही है लेकिन क्या वो एकतरफा कार्रवाई के आरोपों पर भी कोई जवाब दे सकती है? क्या सरकार इस बात का भरोसा दिला सकती है कि बेकसूर लोगों को परेशान नहीं किया जाएगा?

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