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यूपीः ‘लव जिहाद’ क़ानून के तहत गिरफ़्तार व्यक्ति की साल भर बाद भी शुरू नहीं हुई सुनवाई

उत्तर प्रदेश के 'लव जिहाद' क़ानून के लागू हुए एक साल होने पर लीफलेट की पड़ताल
UTTAR PRADESH

भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने जबरन धर्मांतरण को रोकने के उद्देश्य से 28 नवंबर, 2020 को गैरकानूनी धर्मांतरण पर रोक लगाने वाला एक अध्यादेश पारित किया था। 'लव जिहाद' के खिलाफ कानून के रूप में यह मुद्दा विभिन्न दक्षिणपंथी समूहों के साथ-साथ उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कई मौकों पर उठाया गया है। इस कानून की पहली वर्षगांठ पूरी होने, और अब तक दर्ज की गई 108 से अधिक प्राथमिकी (एफआइआर) के साथ, द लीफलेट ने आरोपित व्यक्तियों, अंतरधार्मिक जोड़ों और कई अन्य लोगों के जीवन पर इस कानून के प्रभावों की पड़ताल की है। सीधे ग्राउंड से की जाने वाली कई रिपोर्टों की यह पहली रिपोर्ट है।

बरेली/मुंबई:

उवैस अहमद के लिए, भारतीय सेना में शामिल होने का उनका सपना अब एक ठहराव पर आ गया है। उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी बरेली जिले के गांव शरीफ नगर के रहने वाले 22 वर्षीय उवैस अपने 10 भाई-बहनों के बीच कॉलेज में पढ़ने वाले अकेले युवा थे। 28 नवंबर, 2020 को, गैरकानूनी धर्मांतरण पर यूपी निषेध अध्यादेश, 2020 के लागू होने के मुश्किल से 12 घंटे भी न बीते होंगे कि उवैस अहमद को इस कानून के तहत निरुद्ध कर लिया गया। वे इस मामले में गिरफ्तार किए जाने वाले पहले व्यक्ति थे।

अहमद ने कहा,"कानून 28 नवंबर 2020 की आधी रात से लागू हुआ था और इसकी अगली सुबह 11 बजे इसी कानून के तहत मेरे खिलाफ एफआइआर दर्ज किए जाने की मुझे खबर मिली।"

शरीफनगर के गांव में अहमद के पड़ोस में रहने वाले टीकाराम राठौर नाम के एक व्यक्ति की शिकायत पर देवरानिया थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। इस एफआइआर के अनुसार, राठौड़ ने शिकायत की थी कि उनकी 20 वर्षीया और पहले से शादीशुदा बेटी आशा, जो अहमद के साथ स्कूल और कॉलेज में सहपाठी थी, उसे धर्म बदलने के लिए और अहमद से शादी करने के लिए 'जबरदस्ती, बहलाया-फुसलाया और लुभाया' जा रहा था।

उवैस अहमद पर यूपी धर्मांतरण विरोधी कानून की धारा 3 और 5 के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन्हें 24 दिसंबर, 2020 को जमानत पर रिहा होने से पहले बरेली की जिला जेल में 22 दिनों तक कैद में रहना पड़ा था।

22 साल के उवैस अहमद, कॉलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़ने से पहले के अपने कागजात दिखाते हुए। फोटो-सबाह गुरमत

इससे पहले अक्टूबर 2019 में आशा राठौर अपने घर से भाग गई थी और उसके पिता टीकाराम ने उवैस अहमद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस ने प्राथमिकी में, उन पर भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 363 (अपहरण के लिए सजा) और धारा 366 (अपहरण, भगाकर ले जाने या महिला को उसकी शादी के लिए मजबूर करने इत्यादि) के तहत आरोपित किया था। उस समय, अहमद को दस दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा गया था, जब तक कि राठौर ने मजिस्ट्रेट को अपना बयान नहीं दे दिया। आशा ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज कराए अपने बयान में, यह स्वीकार किया कि वे अपनी मर्जी से घर से भागी थी, और उवैस अहमद का इससे कोई लेना-देना नहीं था। इसके बाद मामला रफा-दफा कर दिया गया था और पुलिस ने इस पर अपनी फाइनल रिपोर्ट भी लगा दी थी।

उवैस अहमद और उसके परिवार के लिए यह एक रहस्य बना हुआ है कि पुलिस ने इस कानून के पारित होने के बाद 2020 में उन पर मामला क्यों चलाया? अहमद ने कहा कि “हम स्कूल और कॉलेज में साथ पढ़ते थे। आशा ने इस घटना के बाद मार्च या अप्रैल 2020 में शादी भी कर ली। मुझे नहीं पता कि इस लव जिहाद के दावे के तहत कोई मेरे पीछे फिर क्यों लगेगा; क्या यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि मैं मुसलमान हूं?"

ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग)-वर्चस्व वाले इस गांव में अधिकतर लोग हिंदू हैं, जिसमें मुसलमानों की आबादी लगभग 10 प्रतिशत है। हालांकि द लीफलेट ने राठौर परिवार संपर्क करने की कोशिश की किंतु टीकाराम राठौर और आशा राठौर की प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी। शरीफनगर में उनके घर का दौरा करने पर, वहां आशा के बड़े भाई कामेश राठौर से मुलाकात हुई, जिसने संवाददाता को बताया कि "हमारी तरफ से कुछ भी नहीं कहा जाना है" और यह भी कहा कि उसकी बहन, जो शादी के बाद से अपनी ससुराल चली गई हैं, वे इस मुद्दे पर "किसी से कुछ भी नहीं कहना चाहती है।"

सुनवाई में देरी से पुलिस की भूमिका पर उठे संदेह

यूपी का धर्मांतरण विरोधी विवादास्पद कानून दक्षिणपंथी समूहों द्वारा मिथ्या प्रचार के बाद लागू हुआ था। इसके बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तथाकथित 'लव जिहाद' (हिंदुत्ववादी एवं दक्षिणपंथी समूह द्वारा गढ़ा गया एक जुमला है, जिसके तहत मुस्लिम पुरुष का कथित तौर पर गैर-मुस्लिम महिलाओं को धर्मांतरण के मकसद से शादी के लिए लुभाने का आरोप लगाया जाता है।) की समस्या पर अंकुश लगाने का वादा करते हुए एक सार्वजनिक बयान दिया था। तब से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश समेत देश के 10 राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कठोर कानून पारित किए जा चुके हैं।

उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून का एक साल से भी अधिक वक्त गुजर गया है। इसके लागू होने के पहले नौ महीनों में 340 लोगों के खिलाफ कुल 108 प्राथमिकी दर्ज की गई हैं- इस बात की तसदीक कई रिपोर्ट करती हैं। इनमें से 189 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 72 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई है। इस बीच, उवैस अहमद और उनके वकील मोहम्मद आरिफ अभी भी चार्जशीट का इंतजार कर रहे हैं। द लीफलेट से बात करते हुए, आरिफ ने कहा,"पुलिस अदालत में चार्जशीट सौंपने में देरी कर रही है क्योंकि उसे पता है कि अगर वह इसे भेजती है तो मुकदमा शुरू हो जाएगा, और यह इस मामले की हकीकत का खुलासा कर देगा।"

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने वाले एक वकील रमेश कुमार, जिन्होंने गैरकानूनी धर्मांतरण अध्यादेश को न्यायालय में चुनौती दी है और नए कानून (व्यापक रूप से रिपोर्ट किए गए बिजनौर में एक नाबालिग के मामले सहित) के तहत मुट्ठी भर मामलों में जमानत हासिल की, उन्होंने कहा कि इस काननू के तहत आज तक एक भी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सका है। “पिछले हफ्ते, कुछ मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि कानपुर के जावेद नाम के एक व्यक्ति को इस तथाकथित लव जिहाद कानून के तहत सबसे पहले दोषी ठहराया गया है, लेकिन यह खबर फर्जी निकली। जावेद पर कभी भी धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत आरोप नहीं लगाया गया; उनका केस इस कानून के पारित होने से बहुत पहले 2017 का है,” कुमार ने जानकारी दी। उन्होंने आगे कहा, "अब तक की गई सभी गिरफ्तारियों को और चार्जशीट दाखिल किए गए मामलों को देखें। क्या आपको एक भी मामला ऐसा लगता है, जिसमें गुनाह साबित हो सकता है?"

उवैस अहमद के वकील मोहम्मद आरिफ भी इससे इत्तेफाक रखते हैं। वे कहते हैं, “पुलिस चार्जशीट जमा करने से क्यों टालमटोल कर रही है? एक साल से भी अधिक वक्त गुजर गया है, और सुनवाई शुरू नहीं हुई है। यह मामला सौ फीसदी मनगढ़ंत है। यदि मामला कभी सुनवाई तक पहुंचता है, तो उवैस को पूरी तरह से बरी कर दिया जाएगा और यह केवल पुलिस को ही दोषी ठहराएगा।” आरिफ ने यह भी बताया कि जिस समय जबरन धर्म परिवर्तन की प्राथमिकी में उवैस अहमद का नाम घसीटा गया था तो पुलिस ने उनके 70 वर्षीय पिता और उनकी बहनों को देवरानिया पुलिस स्टेशन में हिरासत में लिया था। उन सभी को उवैस के आत्मसमर्पण के लिए कथित तौर पर धमकाया था।

वकील आरिफ ने कहा “उवैस ने बगल के बहेरी पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण कर दिया; वह देवरानिया में आत्मसमर्पण करने से भी डरते थे। लेकिन देखिए कि पुलिस के रिकार्ड में उनकी गिरफ्तारी देवरानिया में दिखाई गई है। इतना ही नहीं, पुलिस ने इस मामले में महिला (आशा राठौर) का 164 सीआरपीसी के तहत बयान भी दर्ज नहीं किया। पुलिस ने 2019 के मामले में आशा के दिए गए बयानों का फिर से इस्तेमाल किया, जो कि इस कानून के पारित होने से बहुत पहले का एक बिल्कुल अलग मामला था।”

लीफलेट ने इस पर बहेरी क्षेत्र के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) अजय कुमार की राय जानने के लिए उनसे संपर्क करने की कोशिश की। हालांकि, उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई। (जब पुलिस जवाब देगी तो उसे इस रिपोर्ट में शामिल कर लिया जाएगा।)

इस बीच, उवैस अहमद को अपने भविष्य को लेकर चिंता बनी हुई है। उवैस को अपनी गिरफ्तारी की वजह से बी.एससी. (जीव विज्ञान) की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी। वे आज झांसी आते-जाते हैं और अपने परिवार के गुजर-बसर के लिए दिहाड़ी का काम करते हैं, और कभी-कभार स्क्रैप-डीलिंग और सिलाई जैसे काम करते हैं। इसके बावजूद उवैस की भारतीय सेना में भर्ती होने की ख्वाहिश बरकरार है। वे कहते हैं, “मुझे जमानत तो मिल गई है लेकिन जब तक मैं इन सभी आरोपों से मुक्त नहीं हो जाता, मुझे सेना में कौन रखेगा? बिना किसी सुनवाई के अब एक साल गुजर चुका है, अब सेना में भर्ती के लिए मेरे पास केवल दो प्रयास और बचे हैं।”

(सबाह गुरमत द लीफलेट में स्टाफ-रिपोर्टर हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित खबरों को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

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