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जन अधिवेशन: जल-जंगल-जमीन की लूट और आदिवासियों के हिंदूकरण की कोशिशों पर जनवादी संगठन नाराज

"छत्तीसगढ़ में जहां कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हो रहा है वहीं, जनता के सवालों पर विभिन्न जनवादी संगठनों ने भी 24-25 फरवरी को रायपुर में दो दिनी जन अधिवेशन आयोजित किया। आयोजन का मुख्य उद्देश्य वंचित तबकों के हक अधिकारों के सवाल पर प्रदेश व केंद्र की मोदी सरकार के रवैये पर सामाजिक आंदोलन और संघर्ष समूहों से रायशुमारी था।
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लब्बोलुआब देखें तो वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार के नेतृत्व में देश में हिंदुत्ववादी-फासीवादी ताकतों के पैरों तले लोकतंत्र और संविधान कुचला जा रहा है। किसानों, मजदूरों, महिलाओं, छात्र-युवाओं और मेहनतकश अवाम के अधिकारों का दमन करके सांप्रदायिक, बहुसंख्यवाद और परजीवी पूंजीवादी नीतियों को बेशर्मी के साथ देश पर थोपा जा रहा है। दशकों के संघर्षो से उपजे जन अधिकार कानूनों पेसा, वनाधिकार, सामाजिक सुरक्षा व पर्यावरण संरक्षण कानून आदि को भयानक पूंजीवादी लूट को सुगम बनाने के लिए विभागीय आदेशों के जरिये कमजोर किया जा रहा है। आयोजकों के अनुसार, प्रदेश में भी मूलभूत अधिकारों व सेवाओं की बदहाली बदस्तूर जारी है। भ्रष्टाचार चरम पर है और रोजगार के अभाव में गरीब परिवार पलायन कर रहे हैं। ऐसे हालात में प्रदेश के सभी जनवादी संगठनों, जनपक्षीय राजनैतिक ताकतों और नागरिक अधिकारों के प्रति समर्पित समूहों के बीच साझी समझ बनाना और साझा कदम उठाना समय की जरूरत है।

अधिवेशन की शुरुआत करते हुए ‘सर्व आदिवासी समाज’ के संरक्षक व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि आज सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि आदिवासियों के जल-जंगल जमीन की लूट बदस्तूर जारी है। संसद में कानून तो बनते हैं लेकिन सरकारें उनका पालन नहीं करतीं, बल्कि इसके विपरीत कार्य करती हैं। नेताम ने कहा कि पेसा और वनाधिकार कानून के साथ यही हुआ। छत्तीसगढ़ सरकार ने पेसा के नियम तो बनाए लेकिन कानून की मूल आत्मा को ही खत्म कर दिया। वहीं, प्रथम सत्र में स्वशासन पर बोलते हुए भारत जन आंदोलन के बिजय भाई ने कहा कि देश में लोकतांत्रिक शासन के ढांचे में असमानता व्याप्त है। आम राजनीति का केंद्र बिंदु, केंद्र व राज्य सरकारें होती हैं। देश में संघीय व्यवस्था है। केंद्र में संघीय सरकार है और प्रदेशों में राज्य सरकार। जिलों में जिला सरकार होनी चाहिए।

न्यूज पोर्टल जनचौक आदि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जन अधिवेशन में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो नंदिनी सुंदर ने कहा कि बस्तर में तीन तरह से आदिवासियों पर दमन हो रहा है। उनके अस्तित्व और पहचान पर हमला हो रहा है और उनका हिंदूकरण किया जा रहा है। जिस एसपीओ को सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधित किया, उसका नाम बदलकर उन्हीं को बंदूक थमा दी गई हैं। जो अपने ही आदिवासी भाईयों पर सरकार की ओर से हमला कर रहे हैं। ‘आदिवासी जन वन अधिकार मंच’ के केशव शोरी ने बताया कि नारायणपुर जिला लौह अयस्क के ढेर पर बैठा है, जिसे हड़पने के लिए आदिवासी संस्कृति, पहचान और उनके हकों को कुचला जा रहा है। इसके लिए अधिकार आधारित कानूनों का उल्लंघन और अर्धसैनिक बलों का दुरुपयोग किया जा रहा है।

दलित आदिवासी मंच की राजिम बहन ने कहा कि वनाधिकार प्राप्त भूमि पर प्लांटेशन व तारबंदी की जा रही है। महिलाएं वहां से वन उपज नहीं ला पातीं। उनके वनाधिकार को माना ही नहीं जाता। दावे साबित करने के लिए वर्ष 2005 के पहले के सबूत मांगे जाते हैं। कहा कि आदिवासियों पर वन विभाग ने बहुत अत्याचार किए हैं, और उसके सबूत भी मिटा दिए गए हैं। दूसरे सत्र में खेती किसानी और किसानों की स्थिति पर संजय पराते, शौरा यादव और सुदेश टीकम ने रिपोर्ट पेश की। संजय पराते ने बताया कि देश में प्रति लाख किसान परिवारों पर सबसे ज्यादा औसतन 40% आत्महत्या छत्तीसगढ़ में हो रही हैं जो गहरे कृषि संकट की अभिव्यक्ति है। बढ़ती लागत और घटती आय से किसान कर्ज में दबे हैं और उनकी जमीनें विकास परियोजनाओं के नाम पर गैर-कानूनी तरीके से छीनी जा रही हैं।

सुदेश टीकम ने इस स्थिति से निपटने के लिए आत्म-निर्भर किसानों की एकजुटता पर जोर दिया। उन्होंने धान की खेती करने और जंगल से जीवन-यापन करने वाले किसानों को एक साथ आने की जरूरत पर बल दिया ताकि सरकार की कार्पोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ लड़ा जा सके। ‘बस्तर जन अधिकार समिति’ के अध्यक्ष रघु ने कहा कि बस्तर में जो आदिवासी अपने अधिकार के लिए आवाज उठा रहे हैं, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। मुख्यमंत्री से तीन बार मुलाकात की जा चुकी है। डेढ़ महीने में न्याय देने की बात की थी लेकिन दो साल हो गए। सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने कहा कि बस्तर में 2005 से 2018 तक भयानक दमन व नरसंहार हुआ था। इस पर सीएम भूपेश बघेल ने कहा था कि बस्तर में शांतिपूर्ण संवाद के गंभीर प्रयास किए जाएंगे, लेकिन कुछ नही हुआ। उल्टे, बस्तर को अंधाधुंध सैन्यीकरण में धकेला जा रहा है।

वकील शालिनी गेरा ने कहा कि बस्तर में ‘बीज पंडुम’ मनाते निर्दोष आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ की घटनाओं की जांच और आयोग के लिए कांग्रेस ने खूब आंदोलन किया। आज जब दोनों रिपोर्ट आ चुकी हैं तो उन पर कार्यवाही के बजाए रिपोर्ट को दबा दिया गया। बाद में इंडियन एक्सप्रेस में रिपोर्ट लीक होने के बाद इसे विधानसभा पटल पर रखा गया। सरजू टेकाम ने कहा कि बस्तर में हमारी निजता और स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है। टेकाम ने कहा कि बस्तर में माओवादी होना भी जरूरी नहीं है, यहां पुलिस की गोली खाने के लिए आदिवासी होना ही काफी है। क्या संविधान हमारे लिए नहीं है? उन्होंने कहा कि आदिवासियों की आदिवासियत को ही बस्तर में खत्म किया जा रहा है। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश हो रही है लेकिन जब तक एक भी आदिवासी जिंदा है इस देश को हिंदू राष्ट्र नहीं बनाया जा सकता है।

साभार : सबरंग 

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