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न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई 1919 में पंजाब में हुए प्रेस दमन की याद दिलाती है

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद पंजाब में मार्शल लॉ के तहत कई अख़बारों के संपादकों की गिरफ़्तारी की गई और मुक़दमा लगाया गया, जो आज न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ पुलिस द्वारा की गई कठोर कार्रवाई में परिलक्षित नज़र आता है।
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न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ (बाएं) और एचआर हेड अमित चक्रवर्ती। फ़ोटो: PTI

वेब पोर्टल न्यूज़क्लिक और इसके योगदानकर्ताओं, कर्मचारियों और यहां तक कि पूर्व-कर्मचारियों के रूप में जुड़े लोगों पर बड़े पैमाने पर पुलिस छापे ने दुनिया को चौंका दिया है। देश भर में लगभग 50 पत्रकारों सहित लगभग 80 लोगों के घरों पर इस तरह की छापेमारी संभवतः स्वतंत्र भारत में किसी एक मीडिया आउटलेट के ख़िलाफ़ की गई अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है।

न्यूज़क्लिक के संस्थापक संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर हेड अमित चक्रवर्ती के ख़िलाफ़ कठोर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां [रोकथाम] अधिनियम) लगाना और कथित 'चीनी लिंक वाले आतंकवादी मामले' के नाम पर उनके ख़िलाफ़ जांच, गिरफ़्तारी और पुलिस रिमांड, एक तरह से स्वतंत्र पत्रकारिता की तुलना आतंकवाद से करने जैसा है।

वेब पोर्टल के कार्यालय को दो दिनों तक सील कर देना जो खुद में काफी अस्वीकार्य बात है, जिसके कारण समाचार और विडिओ प्रसारित करने की गतिविधियां पूरी तरह से बंद हो गईं, जो हमारे लोकतंत्र के कामकाज और सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए बहुत ज़रूरी है।

इससे पहले भी साल 2021 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पुरकायस्थ समेत न्यूज़क्लिक से जुड़े कई लोगों पर एक हफ्ते तक छापेमारी की थी। लेकिन इस मामले पर कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है और दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें और अन्य को किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षित किया हुआ है।

1919 में मार्शल लॉ के तहत पंजाब में प्रेस का दमन

ये सभी डराने वाले और चिंताजनक क़दम, विशेष रूप से यूएपीए के तहत आतंक का आरोप लगाना, 1975-1977 के दौरान के आपातकाल के दिनों की ही नहीं, बल्कि 1919 में पंजाब पर लगाए गए ब्रिटिश काल के मार्शल लॉ की याद दिलाता है, तब-जब जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। उन डरावने दिनों के दौरान, प्रेस पर लगाम लगाने की भयावहता इतनी थी कि इसकी तीव्रता (Intensity) की तुलना न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ उठाए गए खतरनाक कदमों से की जा सकती है।

महात्मा गांधी की रिपोर्ट

1919 के भयानक जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद साल 1920 में महात्मा गांधी द्वारा लिखित "पंजाब अव्यवस्थाओं पर कांग्रेस रिपोर्ट" के निम्नलिखित अंशों पर विचार करें।

इस बिंदु को उजागर करते हुए कि स्थानीय प्रेस को बंद करके और पंजाब के बाहर के राष्ट्रवादी समाचार पत्रों को बंद करके जनमत का दमन किया गया था, रिपोर्ट में कहा गया है कि:

“यहां तक कि श्री मनोहर लाल जैसी शख़्सियत जो एक विद्वान वकील थे उन्हें भी, द ट्रिब्यून अखबार के ट्रस्टी होने के नाते, 18 अप्रैल को सुबह लगभग 7.30 बजे गिरफ़्तार कर लिया गया था। कोई वारंट नहीं था, न ही उन्हें वह आरोप बताया गया जिस पर उन्हें गिरफ़्तार किया गया था।”

1919 के वे शब्द प्रबीर पुरकायस्थ और अमित चक्रवर्ती के ख़िलाफ़ पुलिस कार्रवाई में गूंजते सुनाई देते हैं, जिन्हें बिना किसी वारंट के गिरफ़्तार किया गया और उन्हें यह भी नहीं बताया गया था कि उन्हें किस आधार पर पुलिस हिरासत में भेजा जा रहा है (वे अब न्यायिक हिरासत में हैं)। उन्हें यूएपीए के तहत दर्ज एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) की कॉपी तक नहीं दी गई थी। वे अदालत के ज़रिए ही एफआईआर की कॉपी हासिल करने में सफल हुए, जिसने अधिकारियों को एफआईआर की सामग्री का खुलासा करने और उन्हें एक कॉपी प्रदान करने का आदेश दिया था।

2023 में न्यूज़क्लिक और 1919 में मार्शल रूल के तहत पंजाब में प्रेस के साथ जो हुआ, उसके बीच गहरी समानता है। फिर, उपरोक्त कांग्रेस रिपोर्ट के कुछ और अंशों को यहां पुन: प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

द ट्रिब्यून के काबिल संपादक कालीनाथ रॉय को देशद्रोही लेख लिखने के लिए विधिवत टूर पर गिरफ़्तार किया गया, मुकदमा चलाया गया और दोषी ठहराया गया। हमें यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि श्री रॉय के लेखन में राजद्रोह का एक भी शब्द नहीं था। उनका मुकदमा राजनीतिक जीवन में शालीनता पर आघात से कम नहीं था। 'प्रताप' के संपादक के ख़िलाफ़ मुकदमा भी कम क्रूर नहीं था, एक अखबार जिसने अपना करियर अभी शुरू ही किया था और जिसका संपादक अपनी नम्रता और अपने लेखन के मामले में बिना किसी हानि वाले धार्मिक चरित्र के रूप में जाना जाता था। मार्शल लॉ शासन के दौरान स्वतंत्र पत्रकारिता का अस्तित्व असंभव हो गया और द ट्रिब्यून, पंजाबी और प्रताप ने प्रकाशन बंद कर दिया।

पंजाब के प्रेस दमन की पुनरावृत्ति

1919 में पंजाब में प्रेस पर ढाया गया दमन और कई समाचार पत्रों के संपादकों की गिरफ़्तारी और मुकदमेबाज़ी, न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ पुलिस द्वारा की गई कठोर और खतरनाक कार्रवाई में परिलक्षित होती नज़र आती है। गांधी की टिप्पणी कि "मार्शल लॉ शासन के दौरान स्वतंत्र पत्रकारिता का अस्तित्व असंभव हो गया था" 2023 के भारत में यह बहुत समसामयिक सा लगता है, जब न्यूज़क्लिक और कई अन्य मीडिया इकाइयों को अत्यधिक दंडात्मक पुलिस मीज़र्स के अधीन लाया जा रहा है, जिससे इसकी स्वतंत्र कार्यप्रणाली बाधित हो रही है।

इससे पहले भी, दैनिक भास्कर जैसे समाचार पत्र, द वायर, न्यूज़लॉन्ड्री और कारवां जैसे समाचार आउटलेट और अन्य को ज़बरदस्त पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ा है, भले ही वे स्वतंत्र पत्रकारिता के लोकाचार के केंद्रीय मानदंडों और मूल्यों के अनुसार अपनी भूमिका निभाने में लगे रहे हैं। यह काफी दुखद है कि ऐसे गंभीर और कठोर क़दम तब उठाए जा रहे हैं जब न तो आपातकाल की घोषणा की गई है और न ही मार्शल लॉ की घोषणा की गई है, जबकि भारत के सत्ताधारी नेताओं ने यह धारणा बना दी है कि भारत 'लोकतंत्र की जननी' है।

गांधी की दूरदर्शी टिप्पणियां

उस कांग्रेस रिपोर्ट का मसौदा तैयार करने के कुछ दिनों बाद, महात्मा गांधी ने 23 अगस्त, 1920 को बेजवाड़ा में एक भाषण दिया। उन्होंने भारत में ब्रिटिश सरकार के बारे में जो कहा वह देश के सत्तारूढ़ शासन पर लागू होता है जो अब राज्य तंत्र को नियंत्रित कर रहा है। गांधी ने कहा, "यह एक सरकार है," ...अपने लाभ के लिए उचित या अनुचित साधनों का इस्तेमाल करने में संकोच नहीं करती है।" जब उन्होंने ये बातें कहीं तो उन्हें सुनने के लिए एकत्रित आम जनता चिल्लाने लगी "शर्म करो, शर्म करो।" यह देखते हुए कि "कोई भी शिल्प या कला उस सरकार से ऊपर नहीं है", गांधी ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि, "यह सरकार भयावहता, आतंकवाद का सहारा ले रही है। यह उपाधियों, सम्मानों और उच्च पदों के रूप में रिश्वतखोरी का सहारा ले रही है।" एक बार फिर, लोगों ने "शर्म करो, शर्म करो" का नारा लगाया। उन्होंने दावा किया कि, "किसी भी मायने में, यह लोकतंत्र की आड़ में बढ़ती निरंकुशता से दोगुना आसवित है..."

फिर उन्होंने आगे कहा, "...एक चालाक, धूर्त आदमी का सबसे बड़ा उपहार तब तक बेकार है जब तक चालाकी उसके दिल में रहती है।" गांधीजी ने आगे कहा कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार की उन विशेषताओं को रेखांकित किया है जो लोगों के गुस्से को भड़काने के लिए नहीं बल्कि उन्हें उन ताकतों की पूरी तरह से सराहना करने में सक्षम बनाने के लिए हैं जो उनके ख़िलाफ़ थीं। उन्होंने कहा, "क्रोध से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।" उन्होंने ज़ोर देकर कहा, 'हमें' उनके असत्य का सामना सत्य से करना होगा"..."आतंकवाद और उनकी भयावहता का मुकाबला बहादुरी से करना होगा..."

गांधी जी ने बहुत मज़बूती के साथ कहा कि भारत में कायम ब्रिटिश शासन को हराने के लिए प्रत्येक पुरुष, महिला और बच्चे से अदम्य साहस की चाहत है, इसे उन्होंने भयावहता का सिद्धांत कहा था, जो डायरवाद (जनरल डायर) के रूप में पंजाब में प्रकट हुआ था, जिसने अन्य बातों के अलावा, बलपूर्वक कार्रवाई के माध्यम से प्रेस का गला घोंट दिया।

न्यूज़क्लिक का अदम्य साहस

यह दुखद है कि भयावहता के उस सिद्धांत की पुनरावृत्ति हो रही है और इससे उत्पन्न होने वाली चुनौतियां कठोर आतंकवादी कानून के अनुप्रयोग में प्रकट हो रही हैं, और प्रबीर और अमित द्वारा न्यायपालिका का रुख करके जो उपाय खोजा गया है, वह गांधी द्वारा कही गई बात का प्रतिनिधित्व करता है। उनके असत्य का सत्य से सामना करने का 'अटूट साहस'...सत्य मेव जयते।

एस.एन. साहू भारत के राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी रहे हैं। विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Punitive Action Against Newsclick Echoes Muzzling of Press in Punjab in 1919

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