Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

पंजाब विधानसभा चुनाव: आर्थिक मुद्दों की अनदेखी

सर्दी में भोजन करने के बाद रेवड़ी खाने से भोजन पचाने में मदद मिलती है। पिछले कई विधानसभा चुनावों की तरह, लोगों को लंबे वादों को पचाने के लिए एक बार फिर से राजनीतिक रेवड़ियाँ बांटी जा रही हैं।
punjab assembly
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

पंजाब समेत देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान अब कभी भी किया जा सकता है। चुनाव आयोग ने कोविड-19 महामारी के कारण चुनाव नहीं कराने की आशंका से इनकार किया है। पंजाब में विधानसभा चुनाव को लेकर माहौल दिन ब दिन नाटकीय होता जा रहा है। पिछले कई विधानसभा चुनावों की तरह, इस बार भी चुनाव जीतने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल वादे, दावे और नए वादों को फिर से दोहरा रहे हैं।

दरअसल, ये ज्यादातर दावे खोखले होते हैं और नए वादे उम्मीद जगाने से अधिक का काम नहीं करते हैं। सर्दियों में भोजन करने के बाद खाई जाने वाली रेवड़ी (गुड़ से बनी मिठाई) मुंह को अच्छी तरह से स्वाद देने और रोटी को पचाने में मदद करती है। पिछले कई विधानसभा चुनावों की तरह इस साल के विधानसभा चुनाव में बांटी जा रही राजनीतिक रेवडियाँ चीनी/गुड़ की जगह प्लास्टिक की लगती है जो लोगों की पाचन क्रिया को सुधारने के बजाय खराब कर देगी। अक्सर अलग-अलग राजनीतिक दल लोगों के विभिन्न समूहों को छोटी-छोटी रियायतें देने का वादा करते हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने के लिए कोई रोडमैप/ढांचा नहीं दिखाते हैं। कई वादे साफ तौर पर झूठे लगते हैं। इस संबंध में सबसे बुरा पहलू पंजाब के महत्वपूर्ण आर्थिक मुद्दों की उपेक्षा करना है।

पंजाब के लोगों ने देश की आजादी के संघर्ष में महान बलिदान दिया आता और पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1960 के दशक के दौरान, जब केंद्र सरकार को विदेशों से खाद्यान्न आयात करने की दुविधा का सामना करना पड़ रहा था, तो पीएल-480 के तहत, देश को संयुक्त राज्य अमेरिका से खाद्यान्न आयात करने के एवज़ में बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। पंजाब भौगोलिक रूप से बहुत छोटा है (इसका कुल भूभाग देश का 1.54 प्रतिशत है) लेकिन बहादुर किसानों, खेतिहर मजदूरों, ग्रामीण कारीगरों की कड़ी मेहनत और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक इस्तेमाल ने देश को खाद्यान्न की कमी से बचाया है।

1980 के दशक से पहले पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी। पंजाब में उभरे आतंकवाद के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार द्वारा तैनात अर्धसैनिक बलों का खर्च पंजाब सरकार द्वारा वहन किया जाता था, जबकि ऐसे माहौल में देश के अन्य राज्यों में तैनात अर्धसैनिक बलों का खर्च केंद्र सरकार उठाती थी। राज्य में उग्रवाद के चलते और केंद्र सरकार द्वारा पहाड़ी राज्यों को औद्योगिक विकास के लिए दी जाने वाली सब्सिडी के कारण, पंजाब की औद्योगिक इकाइयां अन्य राज्यों में स्थानांतरित हो गई थीं। पंजाब सरकार पर इस समय करीब 3 लाख करोड़ करोड़ का कर्ज़ है। पंजाब का यह कर्ज़ यहां रहने वाले लोगों के लिए कई असहनीय समस्याएं पैदा कर रहा है। आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ राजनीतिक दल कर्ज़ को तो कोस रहे हैं और उसे चुकाने की बात कर रहे हैं, लेकिन यह कब और कैसे किया जाएगा, इस पर मायूसी बढ़ती जा रही है।

पंजाब के किसानों, खेत मजदूरों और ग्रामीण कारीगरों की कड़ी मेहनत और इसके प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक इस्तेमाल ने खाद्यान्न के केंद्रीय पूल को बरकरार रखा है, लेकिन केंद्र सरकार की आर्थिक और कृषि नीतियों के कारण, ये तीन श्रेणियां अब कर्ज़ के ज़ाल में फंस गई हैं। लेखक द्वारा और उनकी देखरेख में पंजाब में किए गए विभिन्न शोध अध्ययनों से यह तथ्य सामने आए हैं कि लगभग सभी सीमांत और छोटे किसान, खेतिहर मजदूर और ग्रामीण कारीगर कर्ज़ गरीबी में पैदा होते हैं, वे कर्ज़ और गरीबी में अपना जीवन बड़ी कठिनता में जीते हैं। कर्ज़ के पहाड़ के इन पहाड़ों के चलते आने वाली पीढ़ियों के लिए घोर गरीबी छाई हुई है, जब उनकी सारी आशाएं सरकारों और समाज द्वारा धराशायी कर दी जाती है, तो फिर वे या तो भूख से मर जाते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं। पंजाब सरकार द्वारा पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के प्रोफेसरों की देखरेख में किया गया एक अध्ययन; गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर; और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना ने खुलासा किया है कि 2000-2016 के दौरान पंजाब में 16,606 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की थी।

इन आत्महत्याओं का मुख्य कारण इन वर्गों पर बढ़ता कर्ज़ का बोझ है। इनमें से लगभग 40 प्रतिशत आत्महत्याएं खेतिहर मजदूरों ने की है। किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं में लगभग तीन-चौथाई संख्या सीमांत और छोटे किसानों की है। कृषि में संलग्न इन तबकों पर भारी कर्ज़ क्षेत्रों के भीतर कई दुर्गम समस्याएं पैदा कर रहा है। इन वर्गों के जीवन स्तर में गिरावट आ रही है। इन वर्गों के बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है। ये तबके कर्ज़ के कारण बंधुआ मजदूर की तरह रहने को मजबूर हैं। कर्ज़ ने इन श्रेणियों में महिलाओं का शारीरिक शोषण बढ़ा दिया है, विशेष रूप से खेतिहर मजदूरों के साथ-साथ बाल श्रम जैसी अमानवीय गतिविधियों को भी काफी बढ़ा दिया है।

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और प्रति व्यक्ति जीडीपी को किसी देश या राज्य के आर्थिक प्रदर्शन का सूचक माना जाता है। 1981 में पंजाब प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में शीर्ष स्थान पर था जो 2021 में 19वें स्थान पर और जीडीपी के मामले में 16वें स्थान पर तेजी से फिसल गया है। पंजाब में प्रति व्यक्ति जीडीपी देश के 18 राज्यों से कम होना पंजाब और यहां रहने वाले अधिकांश लोगों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को दर्शाता है। पंजाब की अर्थव्यवस्था में कृषि, औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में कुछ संपन्न लोगों को छोड़कर, अधिकांश लोगों की आर्थिक स्थिति दयनीय है। कृषि क्षेत्र में सीमांत, लघु, अर्ध-मध्यम और मध्यम किसानों, खेतिहर मजदूरों और ग्रामीण कारीगरों की बहुत कम आय के कारण, उनमें से अधिकांश कर्ज़ के जाल में फंस गए हैं और घोर गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

सरकार की आर्थिक और कृषि नीतियों ने कृषि को घाटे का सौदा बना दिया है और कृषि उत्पादन के लिए मशीनरी और खरपतवारनाशक के इस्तेमाल ने रोज़गार के अवसरों को कम कर दिया है। उग्रवाद और पहाड़ी राज्यों के प्रति केंद्र सरकार की तरजीही की नीतियों के कारण, और पंजाब से औद्योगिक इकाइयों को अन्य राज्यों में स्थानातरित करने जैसे कुछ अन्य कारणों से औद्योगिक क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों में भारी गिरावट आई है। सेवा क्षेत्र में रोज़गार के अवसर कुछ ऐसे श्रमिकों के लिए बढ़े हैं जिनके पास अंग्रेजी भाषा और कंप्यूटर का ज्ञान है। इस क्षेत्र में रोज़गार की गुणवत्ता में भी लगातार गिरावट आ रही है।

पंजाब में रोजगार के कम अवसर और रोजगार के अवसरों की कम गुणवत्ता के कारण, राज्य के छोटे बच्चे विदेशों में पलायन कर रहे हैं। 2020 में शोधकर्ता गुरिंदर कौर, ज्ञान सिंह, धर्मपाल, रश्मि और ज्योति ने पटियाला जिले से अंतरराष्ट्रीय प्रवास का अध्ययन किया था। अध्ययन से पता चलता है कि पंजाब से छोटे बच्चों का अंतरराष्ट्रीय प्रवास एक प्रमुख नुकसान के रूप में उभर रहा है जिसके परिणामस्वरूप ब्रेन ड्रेन, पूंजी निकासी और जनसांख्यिकीय लाभांश का नुकसान हुआ है। विदेशों में प्रवास करने वाले अधिकांश छोटे बच्चों के पास उच्च माध्यमिक शिक्षा (12 वीं कक्षा) या उच्च स्तर की शिक्षा है। इन बच्चों की शिक्षा में समाज का बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन इससे विदेशों को फायदा हो रहा है। विदेशों में प्रवास करने वाले लगभग सभी छोटे बच्चे विदेशी कॉलेजों/विश्वविद्यालयों में नामांकित हैं। ये बच्चे बाद में पलायन करते हैं, लेकिन उनकी फीस और कुछ अन्य खर्चों को पहले विदेशों में जमा करना पड़ता है और प्रवास के बाद इन बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक पूंजी भेजनी होती है। इस संबंध में सबसे बड़ा उदाहरण पंजाब में संपत्ति/भूमि की बिक्री बढ़ना है। किसी भी देश या राज्य में छोटे बच्चों के उच्च प्रतिशत को जनसांख्यिकीय लाभांश कहा जाता है क्योंकि इन बच्चों को लंबे समय तक आर्थिक गतिविधियों में भाग लेना होता है। जनसांख्यिकीय लाभांश घाटा आज स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है और आने वाले वर्षों में यह और भी बदतर होगा।

देश की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए पंजाब में भूजल खतरनाक स्तर तक नीचे चला गया है। कुओं/नहरों की सिंचाई से अलग होकर अब डीजल इंजनों, मोनोब्लॉक मोटरों, और  सबमर्सिबल मोटरों से सिंचाई की जा रही है और उनकी संख्या जो कि 1960-61 में केवल 7,445 थी, वह अब पंजाब में बढ़कर 15 लाख के करीब है, जोकि किसानों के कर्ज़ के प्रमुख कारणों में से एक है। यह घटना पंजाब की अर्थव्यवस्था को तेजी से कमजोर कर रही है।

पंजाब में शैक्षणिक और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन यह वृद्धि सार्वजनिक क्षेत्र की कीमत पर निजी क्षेत्र के विस्तार में की जा रही है जो मज़दूर वर्ग की उपेक्षा करती है। राज्य में परिवहन की भी यही स्थिति है।

समय आ गया है कि पंजाब में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दल राज्य के आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें और लोगों को प्लास्टिक रेवड़ियां बांटने के बजाय अपने वादों को पूरा करने के लिए एक आर्थिक खाका/रोडमैप लेकर आएं ताकि पंजाब एक समृद्ध राज्य बन सके।

लेखक पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग, पटियाला के पूर्व प्रोफ़ेसर हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल लेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

Punjab Assembly Elections: Ignoring Economic Issues

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest