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परंजॉय के लेख पढ़िए, तब आप कहेंगे कि मुक़दमा तो अडानी ग्रुप पर होना चाहिए!

“अब तक के अपने 40 साल के कैरियर में उन्होंने भारत के पूंजीपतियों और सरकारों के बीच की आपसी सांठगांठ को अपनी पत्रकारिता के जरिए उजागर करने में बड़ी भूमिका निभाई है।”
परंजॉय

परंजॉय गुहा ठाकुरता देश के जाने-माने मशहूर पत्रकार हैं। पॉलिटिकली इकॉनमी और बिजनेस पत्रकारिता की दुनिया में परंजॉय का नाम बड़ी अदब से लिया जाता है। इनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हुआ है। वारंट गुजरात के कच्छ जिले की मुंद्रा की अदालत ने जारी किया है। अदालत ने अडानी समूह द्वारा दायर की गई मानहानि के मुकदमे पर सुनवाई करते हुए पर परंजॉय के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है। जिला जज न्यायमूर्ति प्रदीप सोनी ने दिल्ली के निजामुद्दीन थाना को निर्देश दिया है कि वह परंजॉय को गिरफ्तार कर उनके समक्ष पेश करें।

मामला दरअसल परंजॉय गुहा ठाकुरता और कुछ अन्य सहयोगी लेखकों के जरिए लिखे गए दो आर्टिकल से जुड़ा हुआ है। यह दोनों आर्टिकल साल 2017 में अंग्रजी की प्रतिष्ठित इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली पत्रिका में प्रकाशित हुए थे। पहला आर्टिकल का शीर्षक “Did Adani group evade ₹1000 core as taxes?” था और दूसरे आर्टिकल का शीर्षक “Modi government 500 core bonaza to Adani group” था। यह आर्टिकल किसी तरह के ओपिनियन पीस नहीं है। बल्कि रिपोर्ट हैं। जिनमें प्रमाण के साथ यह बताया गया है कि सरकार किस तरह से अडानी समूह को अनुचित फायदे दिलवाने में मदद कर रही है।

अडानी ग्रुप ने इन आर्टिकल को लेकर ईपीडब्ल्यू प्रकाशन के खिलाफ लीगल नोटिस भेजा था। कहा कि यह आर्टिकल हटा लिए जाए। इन आर्टिकलों की वजह से अडानी समूह की मानहानि हो रही है। बाद में ईपीडब्ल्यू प्रकाशन ने इन आर्टिकलों को हटा लिया। लेकिन परंजॉय  गुहा ठाकुरता ने संपादक के पद से इस्तीफा दे दिया और ईपीडब्ल्यू छोड़ दिया।

यह आर्टिकल बाद में अंग्रेजी के द वायर वेबसाइट पर छपी। फिर से अडानी समूह की तरफ से लीगल नोटिस आया। लेकिन द वायर ने इन लेखों को नहीं हटाया। 

साल 2019 के आम चुनाव के बाद अडानी ग्रुप में इस मामले से जुड़े दूसरे लोगों के सभी तरह के सिविल और क्रिमिनल डेफिनेशन के केस को वापस ले लिया गया। लेकिन परंजॉय गुहा ठाकुरता के खिलाफ दायर केस को वापस नहीं लिया। कहने का मतलब यह है कि परंजॉय गुहा ठाकुर्ता को डरा धमका कर रोकने की पूरी योजना है। 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस पर प्रेस स्टेटमेंट जारी किया है। अडानी समूह की कड़ी निंदा की है। कहा है कि मजबूत कारपोरेट घराने खुद को मीडिया की छानबीन से रोकना चाहते हैं। इसलिए पत्रकारों के खिलाफ इस तरह की तरकीबें लगाई जाती हैं। 

ठाकुरता के खिलाफ जारी हुआ गैर जमानती गिरफ्तारी का वारंट एक और उदाहरण है जो यह बताता है कि मजबूत कारपोरेट घराने अपनी आलोचना सहन नहीं कर सकते हैं। एडिटर्स गिल्ड अदालतों के रवैए पर भी हैरान है कि आखिरकार वह कैसे आजाद पत्रकारिता की आवाज को बंद करने के काम इस्तेमाल की जा सकती है? एडिटर्स गिल्ड ने बड़ी मजबूत ढंग से अडानी समूह को कहा है कि वह ठाकुरता के खिलाफ जारी किए गए क्रिमिनल डिफेमेशन के मुकदमे को वापस ले ले।

अब सवाल उठता है कि अडानी समूह परंजॉय गुहा ठाकुरता पर इतना अधिक गुस्सा क्यों है? तो थोड़ा परंजॉय गुहा ठाकुरता के बारे में जान लेते हैं।

अब तक के अपने 40 साल के कैरियर में उन्होंने भारत के पूंजीपतियों और सरकारों के बीच की आपसी सांठगांठ को अपनी पत्रकारिता के जरिए उजागर करने में बड़ी भूमिका निभाई है। किसान आंदोलन में जिस अंबानी अडानी को देश लूटने का तमगा दिया जा रहा है, उनके गोरखधंधे के बारे में पिछले कुछ सालों में परंजॉय ने खूब लिखा है। परंजॉय की लेखनी की सबसे खास बात यह है, वह गहरे शोध के साथ लिखते हैं। अंबानी-अडानी पर लिखी हुई उनकी हर एक रिपोर्ट में दर्ज बातें नियम कानून दस्तावेज विशेषज्ञ से उद्धृत हुई होती हैं। कहने का मतलब यह कि अपनी रिपोर्ट में वह हर बात प्रमाण के साथ रखते हैं। यही बात उनकी रिपोर्ट से निकले निष्कर्षों को पुख्ता करती है।

मौजूदा समय में प्रंज्वाय newsclick के साथ काम कर रहे हैं। उनके द्वारा लिखे गए सभी आर्टिकल को न्यूज़क्लिक के अंग्रेजी और हिंदी वेबसाइट दोनों जगह पढ़ा जा सकता है। इन आर्टिकलों को पढ़कर आप अंदाजा लगा पाएंगे कि परंजॉय  किस तरह से एक सजग प्रहरी की तरह देश में चल रहे क्रोनी कैपितिलिजम के धंधे को उजागर करते हैं। 

जैसे अडानी ग्रुप को ही ले लीजिए। अडानी ग्रुप की कथित हेर-फेर की कारगुज़ारी बहुत लंबी है। अडानी पावर राजस्थान लिमिटेड का मामला, जहां पर घरेलू कोयला उत्पादन से लिंकेज न होने के बावजूद भी अडानी समूह को बिजली उत्पादन का कारोबार करने का मौका मिल जाता है। और जब शर्त के मुताबिक सरकार को पैसे देने की बारी आती है तो अडानी समूह के द्वारा यह कहा जाता है कि उसके पास कोयले का लिंकेज नहीं था। घरेलू कोयले की कीमतों में बहुत अधिक उछाल आया। इसलिए यह जायज नहीं है कि उससे कीमतों की वसूली की जाए। सुप्रीम कोर्ट यह तर्क मान जाती है। तकरीबन 8 हजार करोड रुपए की छूट दे देती है। जिसका नुकसान यह होता है कि खर्चे से जुड़ी सारी कीमत बिजली उपभोक्ताओं पर बिजली दर बढ़ाकर लाद दी जाती हैं। यानी अडानी ग्रुप ने कथित रूूूप से गलती भी की, उसे छुटकारा भी मिल गया और सारा का सारा भार आम जनता पर लाद दिया गया। इसी प्रकरण में यह मुद्दा भी जुड़ा हुआ है कि कैसे काथित तौर पर अडानी ने इंडोनेशिया से मंगाए हुए कोयले की कीमत बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया। और बढ़े हुए कीमतों से बिजली दर ऊंची हुई। और अंत में अडानी ग्रुप ने मुनाफा कमाया। 

एयरपोर्ट की दुनिया में बिना किसी अनुभव के केवल बेजा सरकारी मदद की वजह से अडानी ग्रुप देश का सबसे बड़ा प्राइवेट एयरपोर्ट घराना बन चुका है। इसके बारे में भी परंजॉय अपने एक आर्टिकल में बड़े तफ्सील से बताते हैं। 

कहने का मतलब यह है कि जब पत्रकारिता बड़े ही इमानदार तरीके से अपना काम करती है तो बड़े-बड़े लोग उसे दबाने की कोशिश करते हैं। उसे चुप कराने के जतन ढूंढते हैं। यही काम इस समय परंजॉय गुहा ठाकुर्ता के साथ किया जा रहा है।

(लेखक के निजी विचार हैं)

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