स्मृति शेष : अब रिज़वाना की कोई ‘ख़बर’ नहीं आएगी...
हम नहीं सुलझा पाते अपनी ही उलझनें
नहीं खोल पाते अपनी ही गिरह...
रिज़वाना चली गईं...उनका तबस्सुम चला गया...उनकी ख़बरें चली गईं। न अब उनकी कोई ख़ैर ख़बर आएगी, न वो किसी की ख़बर भेजेंगी। कोई बाइलाइन (Byline) नहीं...। बाइलाइन समझ रहे हैं न आप...रिपोर्टर के नाम के साथ स्टोरी। अब हम उनसे नहीं कहेंगे, अच्छी ख़बर लिखी। अब हम उनसे नहीं पूछेंगे कि इस ख़बर में इनकी या उनकी बाइट क्यों नहीं है, फ़ोटो कहां है? अब वो नहीं कहेंगी कि ‘सर’ (हालांकि इस शब्द से मुझे आपत्ति है और हमारे न्यूज़क्लिक में तो इसकी बिल्कुल मनाही है। फिर भी बहुत साथी और हम खुद एक-दूसरे को आदतन सर बोल जाते हैं।), क्या ये ख़बर कर लें..., सर, मेल/व्हाट्सएप पर स्टोरी आइडिया भेजा है, कर लें।
रिज़वाना तबस्सुम एक बेहद प्रतिभाशाली युवा पत्रकार थीं। स्वतंत्र पत्रकार। न्यूज़क्लिक सहित तमाम वेबसाइट और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों में लिखतीं थीं। यही उनकी आजीविका का भी साधन था। बताते हैं कि उनके ऊपर अपने घर की बड़ी ज़िम्मेदारी थी।
2019 में एक दिन ऐसे ही फोन आया कि सर, मैं रिज़वाना तबस्सुम बोल रही हूं, बनारस में रहती हूं। फलां से नंबर मिला। मैं यहां...यहां लिखती हूं। मैं न्यूज़क्लिक के लिए भी स्टोरी करना चाहती हूं। मैंने कहा, करिए। बस, जनता की बात ज़्यादा हो। जनपक्ष मजबूत हो। और हां, स्टोरी आइडिया पहले शेयर कर लिया कीजिए। और इस तरह सिलसिला चल निकला।
आप रिज़वाना तबस्सुम न्यूज़क्लिक गूगल पर सर्च कीजिए, ढेर सारी स्टोरी आपको मिल जाएंगी। और हर स्टोरी में जनता के दुख-दर्द, उनके संघर्ष। यह शायद उनका स्वभाव भी था। अभी कोई साथी बता रहा था कि कोरोना संकट के दौरान भी वह ज़रूरतमंदों तक राशन पहुंचाने के काम में लगी हुई थी। ख़बरें तो लिख ही रहीं थीं। अभी 24 अप्रैल को फूल वालों की दुर्दशा पर स्टोरी लिखी।
वाराणसी: लॉकडाउन के चलते खेतों में ही बर्बाद हो रही फूलों की फसल, बेहाल हैं किसान
इससे पहले 13 अप्रैल को गेहूं की फ़सल में आग लगने की ख़बर
सैकड़ों बीघा गेहूं की तैयार फसल जलकर ख़ाक, किसानों की सालभर की मेहनत बर्बाद
7 अप्रैल को लिखा- कोरोना संकट: नहीं थम रहा मज़दूरों का पलायन, पैदल लौट रहे हैं घर!
2 अप्रैल को अपनी साथी मीरा जाटव के साथ मिलकर बुंदेलखंड का हाल लिखा - बुंदेलखंड की सुनो : 'सरकार कहत कुछ है करत कुछ'
बनारस के बुनकर का हाल तो कई बार लिखा- वाराणसी : दूसरों का तन ढकने वाला बुनकर आज खुद हैरान-परेशान
मुसहर की दुर्दशा पर बेबाक लिखा- इस डर के बावजूद कि उनपर भी मुकदमा हो सकता है- पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में 'अंकरी' खाने को मजबूर हुए कोइरीपुर बस्ती के मुसहर!
सीएए विरोधी आंदोलन को भी काफ़ी क़रीब से कवर किया।
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में लोगों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार नहीं?
आज़मगढ़ : यूपी पुलिस ने सीएए का विरोध कर रही महिलाओं पर किया लाठीचार्ज
और होली पर बनारस की परंपरा भी- होली पर बनारस में मुस्लिम परिवार के हाथ की बनी पगड़ी पहनते हैं बाबा भोलेनाथ
ये बताने का मकसद यह है कि रिज़वाना के लेखन के क्या विषय थे, दायरा कितना बड़ा था। इसके लिए उन्होंने तमाम ख़तरे भी उठाए। उन्हें धमकियां भी मिलीं। लेकिन वे बेबाक, बेख़ौफ़ लिखती रहीं।
आमने-सामने की मेरी उनसे एक ही मुलाकात है। इसके अलावा उनसे टेलीफोन या मेल-व्हाट्सएप के जरिये ही बात हुई। वे कुछ समय पहले दिल्ली में न्यूज़क्लिक के दफ़्तर ही आईं थीं। इस दौरान उन्होंने अपने लेखन और रिपोर्टिंग की योजनाओं पर बात की। तभी मैंने देखा कि अपने लेखन में काफी परिपक्व रिज़वाना तबस्सुम, बातचीत में एक बच्ची की तरह मासूम हैं और उनका तबस्सुम यानी मुस्कान वाकई बहुत मनभावन है। शायद तभी उनके नाम के आगे तबस्सुम लगाया गया, या उन्होंने खुद जोड़ा।
यह फोटो उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है।
उनसे हमेशा पत्रकारिता और ख़बरों के संबंध में ही बात हुई। सोमवार, 4 मई की सुबह जब मेल खोला तो रिज़वाना की स्टोरी देखी। पहली नज़र में थोड़ी झुंझलाहट हुई कि अरे, फिर बिना प्लान किए, बिना बात किए स्टोरी भेज दी। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका था। अन्य साथी भी ऐसा करते रहते हैं। इसलिए कई बार गुस्सा भी आ जाता है कि बिना प्लान के इतनी ख़बरें आ जाती हैं कि पढ़ना और लगाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन फिर सोचता हूं कि साथियों ने कितनी मेहनत से स्टोरी लिखी होगी। यही इस बार हुआ। देखा कोरोना संकट में बनारस के हाल पर स्टोरी है। अपने सहयोगी को स्टोरी फारवर्ड करते हुए मैंने मैसेज लिखा कि यह स्टोरी देख लें, अगर ठीक लगे तो एडिट कर दें। अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जब इस बात की सूचना दी तभी दूसरे सहयोगी साथी ने पलटकर पूछा कि ये ख़बर आपको रिज़वाना ने कब भेजी? मैं इस बात का मतलब एकदम से समझ नहीं पाया। लेकिन उन्होंने जैसे ही बताया कि रिज़वाना की खुदकुशी की सूचना आ रही है, मेरे पांव के नीचे से जैसे ज़मीन खिसक गई। मैं हक्का-बक्का भौंचक रह गया। मुझे यक़ीन नहीं हुआ कि रात में 9.27 बजे स्टोरी भेजने वाली रिज़वाना रात या सुबह में कैसे आत्महत्या कर सकती है। लेकिन रिपोर्टर साथी ने थोड़ी देर में सब कन्फर्म कर दिया। हम सभी साथी काफी हताश और दुखी थे। कई साथी उनसे पहले से परिचित थे।
इसके बाद मैंने खुद रिज़वाना की आख़िरी ख़बर एडिट करने का तय किया। मैं उनकी ख़बर में उनकी उस मनोदशा के सूत्र तलाशना चाहता था जिसमें कोई इतना हताश या मजबूर हो जाए कि आत्महत्या तक कर ले, लेकिन इस स्टोरी में मुझे लेशमात्र भी व्यक्तिगत हताशा या निराशा नहीं पकड़ में आई। कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि वे किसी व्यक्तिगत बात को लेकर परेशान रही होंगी। कोरोना और लॉकडाउन का संकट है, लेकिन वो सबका है। हम सभी रोज़ उससे जूझ रहे हैं। इस पूरी स्टोरी में भी उनकी दूसरों के प्रति चिंता और सरोकार ही नज़र आ रहा था। उन्होंने इस कोरोना संकट में पूरे बनारस (वाराणसी) का हाल लिखने की ही कोशिश की। इसमें वह रिक्शा वाले भैया से लेकर नाव चलाने वाले मांझी, डोम राजा, बुनकर और पुरोहित सबकी चिंता करती हैं, सबका हाल लेती हैं। आप भी इस स्टोरी को यहां पढ़ सकते हैं-
रिज़वाना तबस्सुम की आख़िरी रिपोर्ट : कोरोना का संकट और बनारस का हाल
इस स्टोरी को वे अपना शीर्षक देती हैं- “कोरोना संकट : वाराणसी की वो पहचान जिसे कोरोना ने पूरी तरह कर दिया तबाह”। लेकिन हमें नहीं पता था कि वे खुद को इस तरह तबाह-बर्बाद कर लेंगी। अब उन्होंने ऐसा क्यों किया, किसने उन्हें मजबूर या परेशान किया। क्या हालात थे, ये सब पुलिस जांच का विषय है। रिज़वाना के कमरे के राइटिंग बोर्ड पर एक शख़्स शमीम नोमानी का नाम लिखा मिला है जिसे उन्होंने अपनी मौत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है। पिता की तहरीर पर पुलिस ने शमीम नोमानी को गिरफ़्तार कर लिया है। और प्रथम दृश्टया मामला प्रेम प्रसंग का बताया है।
फोटो साभार : जनपथ
रिज़वाना की मन:स्थिति जानने के लिए हम उनकी फेसबुक वॉल भी टटोलते हैं, लेकिन वहां भी कुछ ऐसा नहीं दिखता। अलबत्ता शनिवार-रविवार की दरमियानी रात वे वाराणसी के रेड लाइट एरिया कहे जाने वाले मंडुआडीह-शिवदासपुर की सेक्स वर्कर्स की मुश्किलें लिखती हैं। बताती हैं कि वे लॉकडाउन के चलते भुखमरी के कगार पर हैं। वह लिखती हैं- “मुझे नहीं मालूम कि मैं ये पोस्ट लिखकर सही कर रही हूँ या नहीं, लेकिन इतनी गुजारिश जरूर है कि इन महिलाओं की स्थिति काफी खराब है, मुझे उस एरिया में जाते हुए काफी डर लग रहा था, अगर हो सके तो इन महिलाओं के लिए कुछ खाने का इंतजाम कर दिया जाए।”
25 अप्रैल की पोस्ट में वे सबको रमज़ान मुबारक कहती हैं, मगर अफ़सोस हम उन्हें ईद मुबारक न कह सके!
रिज़वाना तबस्सुम एक बहादुर और बेहद संजीदा रिपोर्टर थीं। पूरे न्यूज़क्लिक परिवार की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि...इस अफ़सोस के साथ कि हमने-आपने असमय ही एक बेहतरीन पत्रकार को खो दिया है।
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