बर्ख़ास्त किए गए आईटीआई कर्मचारी नहीं निकाल पा रहे पीएफ़ का पैसा
बेंगलुरु स्थित इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज (आईटीआई) लिमिटेड के ठेका कर्मचारियों को जुलाई में बर्ख़ास्त कर दिया गया था। उस समय अपने भविष्य निधि (पीएफ़) खातों से पैसे नहीं निकाल पाने की स्थिति में वे परेशान हो गए थे। ठेकेदार वनिता उद्योग सहकार संघ (वीयूएसएस) जिसने उन्हें काम पर रखा था उसने उनके वेतन से पीएफ़ की राशि निकाल ली थी लेकिन उन पैसों को उनके खातों में जमा नहीं किया था। वीयूएसएस को बाद में हटाकर उसकी जगह नए ठेकेदार को बहाल किया गया था।
एक साल पहले, संचार उपकरण बनाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी आईटीआई के 100 से अधिक ठेका कर्मचारियों को बिना नोटिस के हटा दिया गया था और 1 दिसंबर, 2021 को उनके आने पर रोक लगा दी गई थी। इन कर्मचारियों का मानना है कि ट्रेड यूनियन के गठन और स्थायी रोज़गार की मांग के निर्णय के चलते उन्हें बर्ख़ास्त किया गया था।
बर्ख़ास्त कर्मचारियों ने कंपनी के गेट पर धरना शुरू कर दिया और 80 प्रदर्शनकारी बकाये के भुगतान करने और पुनः बहाल करने के लिए संघर्ष जारी रखे हुए हैं।
34 वर्षीय अरुण साल 2010 में डिफेंस एसेंबली डिपार्टमेंट में शामिल हुए थे। उन पर टेलीफ़ोन को असेंबल करने ज़िम्मेदारी थी।
अरुण ने न्यूज़क्लिक से बताया, “वीयूएसएस ने दिसंबर 2019 से जून 2020 तक पीएफ भुगतान जमा नहीं किया। जुलाई 2020 में वीयूएसएस के बदले पूजय्या सिक्योरिटी एंड मैनपावर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड नामक एक अन्य ठेकेदार को बहाल किया गया जिसने समय पर हमारे खातों में कटौती की पीएफ राशि जमा कर दी। लेकिन इसे 1 दिसंबर, 2021 को भी बदल दिया गया था।"
अरुण ने आगे कहा, “ठीक उसी समय 100 से अधिक ठेका कर्मचारियों को हटा दिया गया था। जब मैंने अपना पैसा निकालने के लिए पीएफ कार्यालय से संपर्क किया, तो उसने सात महीने [दिसंबर 2019-जून 2020] के पैसे न होने के बारे में बताया। मुझे बताया गया कि जब तक वह पैसा जमा नहीं हो जाता, मैं अपने पीएफ खाते से पैसा नहीं निकाल सकता।”
1 दिसंबर (गुरुवार) को प्रदर्शनकारियों ने अपने विरोध का एक साल पूरा किया। दलित संघर्ष समिति (अंबेडकर वडा), सीटू और गमना महिला समूह जैसे विभिन्न संगठनों के छात्र, संघ के सदस्य और कार्यकर्ता उनके साथ शामिल हुए। लगभग 100 से अधिक लोग इस विरोध में शामिल हुए और इस दौरान बर्खास्त कर्मचारियों के साथ एकजुटता दिखाई गई और उन्हें संबोधित किया गया।
कर्मचारियों ने धरना स्थल पर रेलवे और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा दिया गया एक बयान भी चस्पा किया है। यह बयान राज्यसभा सदस्य एल हनुमंथैया का जवाब था, जिन्होंने मंत्री को पत्र लिखकर आईटीआई कर्मचारियों की मनमानी बर्ख़ास्तगी की जांच करने का आग्रह किया था।
अपने जवाब में वैष्णव ने लिखा कि इस मुद्दे की "बेंगलुरू के डिप्टी चीफ़ लेबर कमिश्नर की सलाह पर फिर से जांच की गई थी” और सांसद को आश्वासन दिया था कि “विरोध करने वाले कर्मचारियों को बहाली के लिए नए ठेकेदार के साथ पंजीकरण करने की सलाह दी गई थी। ये बहाली उसके बाद चरणबद्ध तरीक़े से होगी।”
डिप्टी चीफ़ लेबर कमिश्नर ने दिया बहाली का आदेश
17 मार्च को आईटीआई प्रतिनिधियों और कर्नाटक जनरल लेबर यूनियन (ऐक्टू से संबद्ध) ने बेंगलुरु में डिप्टी चीफ़ लेबर कमिश्नर की उपस्थिति में द्विपक्षीय चर्चा की थी। इसके बाद, कमिश्नर ने आईटीआई को 35 बर्ख़ास्त कर्मचारियों को बहाल करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अन्य 45 कर्मचारियों को भी जल्द से जल्द बहाल किया जाए।
आईटीआई के प्रतिनिधि सजन अब्राहम (एचआर, बेंगलुरु प्लांट) और नरसिंह राज (चीफ़ मैनेजर, लीगल) कमिश्नर के निर्देश का पालन करने के लिए सहमत हुए लेकिन कंपनी समझौते का पालन करने में विफल रही।
बर्ख़ास्त कर्मचारियों को सूचित किया गया था कि स्थायी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले आईटीआई कर्मचारी यूनियन ने उनकी बहाली पर आपत्ति जताई थी। यूनियन कथित तौर पर इस समझौते के ख़िलाफ़ हड़ताल की धमकी दे रही थी। जल्द ही अब्राहम को दूसरे विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया था।
25 अप्रैल को आईटीआई ने हनुमंतैया को वैष्णव के लिखित आश्वासन दिए जाने से तीन दिन पहले कर्नाटक के उच्च न्यायालय में कमिश्नर के आदेश को चुनौती दी थी।
मनमाना वेतनमान
साल 2010 में अरुण का मासिक वेतन लगभग 5,000 रुपये था। धीरे-धीरे उनका वेतन बढ़ाकर 18,000 रुपये कर दिया गया, लेकिन कंपनी ने उनकी योग्यता का हवाला देकर मनमाने ढंग से 13,000 रुपये कर दिया। हाई स्कूल पास करने के बाद उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स में जॉब ओरिएंटेड कोर्स किया था। अरुण कहते हैं कि उन्होंने कभी ऐसा उदाहरण नहीं देखा है जहां किसी नकारात्मक प्रदर्शन की समीक्षा के बिना किसी व्यक्ति का वेतन कम किया गया हो।
27 वर्षीय इंजीनियर गंगाराज को साल 2018 में 18,000 रुपये के वेतन पर आरएंडडी विभाग के लिए महिला उद्योग सहकार संघ (एमयूएसएस) द्वारा एक ठेका कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया था।
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि वीयूएसएस और एमयूएसएस दोनों एक ही व्यक्ति द्वारा संचालित किए जाते हैं। पैसे बचाने के लिए गंगाराज ने कोलार से बेंगलुरु तक रोज़ाना दो घंटे की यात्रा की। वे कहते हैं, “जब लॉकडाउन लगाया गया था, मैं कोलार में था। मैं दो महीने से वहीं अटका हुआ था और बेंगलुरु के लिए कोई बस नहीं चल रही थी। मुझे उस अवधि के दौरान भुगतान नहीं किया गया था।”
उन्होंने आगे कहा, “जून में मैंने फेस शील्ड्स के उत्पादन पर काम करना शुरू किया। दो महीने अप्रैल और मई के लिए न तो मेरे वेतन और न ही मेरे पीएफ के पैसे को मेरे खाते में जमा किया गया। एमयूएसएस ने कहा कि प्रबंधन ने उस अवधि का पैसा नहीं दिया है। जब मैंने अपने पीएफ फंड से निकासी की कोशिश की तो मेरा अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया।'
गंगाराज ने पीएफ कार्यालय में एक शिकायत दर्ज की, लेकिन एक अटपटा जवाब मिला, "जैसा कि कर्मचारी ने कहा, मामला विचाराधीन है और इस मामले पर आदेश के बाद ही निपटाया जाएगा।"
गंगाराज ने इसके स्पष्टीकरण के लिए सूचना का अधिकार के तहत जवाब मांगा था। हालांकि, उन्हें जो जवाब मिला वह यह था कि पीएफ अंशदान के भुगतान के संबंध में शिकायतों को उचित संस्थान में निपटाया जाएगा।
बेंगलुरु प्लांट के एचआर के नए प्रमुख प्रसन्ना ने इस मामले पर विस्तृत जानकारी देने से इनकार कर दिया। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, ''मामला अदालत में है। हम अदालत के फै़सले का पालन करेंगे।"
सुनवाई की अगली तारीख़ 6 दिसंबर है। यूनियन के एक्टिविस्ट का मानना है कि उन्हें परेशान किया जा रहा है और वे चेहरा-विहीन व्यवस्था के ख़िलाफ़ हैं।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।