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कटाक्ष : कानून काम करेगा तो बोलेंगे कि करता है!

सब मोदी विरोधियों का दुष्प्रचार है। इन्हें तो यह हजम ही नहीं हो रहा है कि अब इनके राज का टैम खत्म हुआ, जब सरकार कोई काम ही नहीं करती थी।
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सत्यपाल मलिक फोटो साभार : PTI

मोदी जी के विरोधियों ने क्या हद ही नहीं कर दी? क्या चाहते हैं, मोदी जी की सरकार अपना काम ही न करे? बताइए, सत्यपाल मलिक को सीबीआई के एक पुराने मामले में पूछताछ के लिए बुलाने भर पर, विरोधियों ने आसमान सिर पर उठा लिया है। और यह तो तब है जबकि सीबीआई ने सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया है।

गिरफ्तारी वगैरह की तो खैर अभी कोई बात तक नहीं आयी है। जानकार सूत्रों की छोड़ो, व्हाट्सएप योद्धा तक एक बार भी गिरफ्तारी का शब्द तक जुबान पर नहीं लाए हैं। पर विरोधी हैं कि राहुल गांधी की सांसदी जाने की तरह, सत्यपाल मलिक के सम्मन जारी किए जाने को भी, मोदी जी की बदले की कार्रवाई साबित करने में जुटे हुए हैं। कह रहे हैं कि राहुल गांधी की सांसदी छिनी, वह अडानी जी से मोदी जी के रिश्ते पर सवाल उठाने का बदला था और अब सत्यपाल मलिक को सम्मन जारी हो गया है, यह पुलवामा से मोदी जी के रिश्ते पर सवाल उठाने का बदला है। दोनों में बदला कॉमन है क्योंकि मोदी जी कॉमन हैं और उनके रिश्ते पर सवाल उठाना भी कॉमन है। रिश्ता कैसा भी हो, जो भी मोदी जी के रिश्ते पर सवाल उठाता है, मोदी जी से उसका रिश्ता, दुश्मनी का हो जाता है। अब अडानी से पुरानी दोस्ती हो या सत्यपाल मलिक से नई दुश्मनी, मोदी जी को रिश्ता निभाना खूब आता है।

लेकिन, यह सब विरोधियों का दुष्प्रचार है। इन्हें तो यह हजम ही नहीं हो रहा है कि अब इनके राज का टैम खत्म हुआ, जब सरकार कोई काम ही नहीं करती थी। हां! सरकार भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद जरूर करती थी। और हां! तुष्टीकरण भी। तब कानून के राज की जगह, बस पीएम-वीएम की मनमानी चलती थी। लेकिन, अब मोदी जी अमृतकाल ले आए हैं, जहां सरकार काम ही काम करती है। दिन में अठारह-अठारह घंटे काम। और हरेक काम, देश के कानून के अनुसार। सत्यपाल मलिक का ही मामला ले लीजिए। सीबीआई ने सम्मन भेजा है - क्या इसमें देश का कानून जर्रा भर टूटा है! सीबीआई का कानून कहता है कि वह सम्मन भेजकर, किसी को भी पूछताछ के लिए बुला सकती है? उल्टे सम्मन भेजकर ही बुलाया है, पकडक़र नहीं बुलाया है, वर्ना कानून में तो उसकी भी इजाजत है। रही बात सत्यपाल मलिक के पुलवामा वगैरह वाले इंटरव्यू के बदले के लिए, सीबीआई के सम्मन भेजे जाने की बात, तो इसका कोई साक्ष्य है क्या? बिना साक्ष्य के आरोप लगाना, सीबीआई को बदनाम करना है और मोदी जी को भी। अब मोदी जी अपनी बदनामी का विष तो बीस साल से ज्यादा से पीते ही आए हैं, उन्हें जरा सी और बदनामी से फर्क नहीं पड़ता है, पर भारत के शासन की एक एजेंसी की बदनामी, मोदी जी कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते। फिर भी सीबीआई   को बदनाम करने वालों पर भी, दिल से माफ नहीं करने की बात दूसरी है, मोदी जी की सरकार ने अब तक राहुल गांधी वाली जेल पहुंचाने वाली मानहानि का एक मुकद्दमा तक दर्ज नहीं कराया है? पर विपक्षी बात करते हैं - बदले के सम्मन की! सम्मन भेजकर भी कोई बदला लेता है, लल्लू!

फिर सत्यपाल मलिक को सम्मन देकर बुलाने में गलत ही क्या है? लाट गवर्नर जब थे, तब थे। सीबीआई तब भी थी और अब जिस मामले में बुलाया है, वह केस तब भी था। मोदी जी भी तो तब थे ही। पर तब क्या सीबीआई ने सम्मन देकर बुलाया था? नहीं। पर क्यों? सिंपल है, देश का कानून कहता था, नहीं बुला सकते, सो तब नहीं बुलाया। अब लाट गवर्नर नहीं हैं, देश का कानून कहता है कि बुला सकते हैं, सो बुलाया है। वैसे भी सत्यपाल मलिक को और उनकी वाह-वाह करने वालों को तो मोदी जी की सीबीआई का थैंक यू करना चाहिए क्योंकि वह तो उन्हीं की शिकायत पर काम कर रही है। डेढ़-डेढ़ सौ करोड़ रुपये के घूस के दो-दो ऑफर की शिकायत तो उन्हीं की थी। जनाब तब तो तीन सौ करोड़ का ऑफर ठुकराने की एक्टिंग कर के हीरो बन गए, अब सरकार सचाई की तह तक पहुंचने की कोशिश कर रही है, तो सीबीआई के सवालों तक का जवाब देने में नखरे कर रहे हैं। कुछ साल लेट सही, सीबीआई कानून के हिसाब से अपना काम कर तो रही है। अब कानून के हिसाब से काम करने में, थोड़ा फालतू टैम तो लगता ही है। पर कानून के हिसाब से काम करना भी जरूरी है। ऐसा थोड़ा ही है कि गवर्नर ने आज कहा कि उसे रिश्वत देने की कोशिश हुई है, और सीबीआई रात होते-होते बड़े-बड़े लोगों पर हाथ डालने के लिए पहुंच जाए। अब सिर्फ डेढ़ सौ करोड़ का ऑफर, कर्नाटक वाले 40 परसेंट के चालू रेट को ही लें तो, कम से कम 400 करोड़ का सौदा करने वाला कर सकता है। जरा सोचिए, जब सौदा कम से कम 400 करोड़ का था, तो सौदा करने वाले की औकात कितने की होगी!

और यह किस कानून में लिखा है कि अगर राज्यपाल कहेगा कि उसे रिश्वत देने की कोशिश हुई थी, जो मान लिया जाएगा कि वाकई ऐसा हुआ होगा। राजशाही थोड़े ही है। कानून का राज है कानून का। और कानून सब के लिए बराबर है, क्या राज्यपाल और क्या अनिल अंबानी। कानून प्रक्रिया से चलता है। कानून सबूत मांगता है। सत्यपाल मलिक ने अब तक तो कोई सबूत दिया नहीं है। बिना सबूत के ही पट्ठे ने छोटे अंबानी तो अंबानी, मोदी जी के खासुलखास एक भाजपा कम संघ ज्यादा नेता पर भी इल्जाम लगाए हैं। भाई सबूत तो देने पड़ेंगे। मोदी जी के ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा के एलान का मतलब यह थोड़े ही है कि कोई भी, किसी पर भी खाने की तोहमत लगा देगा और यूं ही निकल जाएगा। फिर खाने की यह तोहमत तो सीधे मोदी जी के अपने घर तक जाती है। इसे सीबीआई यूं ही थोड़े ही छोड़ देगी। यह पता लगाना भी तो जरूरी है कि मोदी सरकार की छवि बिगाडऩे की यह साजिश किस ने की है? साजिश देसी ही है या इंटरनेशनल?  कश्मीर का मामला था, पाकिस्तान वाले भी तो एडवांटेज ले सकते हैं।

रही सत्यपाल मलिक की पुलवामा वाली बकझक की बात। अव्वल तो उसमें ऐसा नया है ही क्या जो मीडिया को बल्कि पब्लिक को भी पहले से ही पता नहीं था। पुलवामा प्रकरण के वक्त मोदी जी के फिल्म की शूटिंग कर रहे होने की बात या हवाई जहाज देने से इंकार किए जाने की बात या काफिले का रास्ता सुरक्षित नहीं किए जाने की बात या पुलवामा का चुनाव में मोदी जी के भर-भरकर एडवांटेज लेने की बात। जब सब कुछ जानते-समझते हुए, एक सौ तीस करोड़ भारतवासियों ने मोदी जी को पुलवामा के फौरन बाद अपना आशीर्वाद दिया था और साथ में पीएम की कुर्सी भी दी थी, तो 2023 में वह सब मलिक साहब के दोबारा याद दिलाने पर, मोदी जी भला उनसे क्यों तो नाराज होंगे और क्यों बदले के लिए उनको सीबीआई से सम्मन भिजवाएंगे? और वह भी तब जबकि दोबारा वही सब सुनाकर पब्लिक को बोर नहीं करने का ख्याल रखकर, ज्यादातर मीडिया ने तो पब्लिक को पुलवामा की भूली चोट याद दिलाने की गलती ही नहीं की है। फिर भी सीबीआई ने अगर मलिक को सम्मन भेजा है या दिल्ली पुलिस ने उनसे थाने के चक्कर लगवाने शुरू कर दिए हैं, तो सब कानून करा रहा है। किसी दिन जेल भी पहुंचाएगा, तो कानून ही पहुंचाएगा। मोदी जी के लिए इसमें कुछ भी पर्सनल नहीं हैं। हां! कानून से उसका काम कराने की उनकी जिद को ही कोई पर्सनल मानना चाहे तो, मोदी जी क्या कर सकते हैं।

(इस व्यंग्य स्तंभ कटाक्ष के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।) 

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