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शीतला सिंह : लोगों के मुद्दे उठाने के लिए याद किए जाएंगे 

जब अख़बार के पन्नों से लेकर टेलीविजन के स्क्रीन तक केवल सांप्रदायिकता दिखाई जा रही है, और "सार्वजनिक मुद्दे" कहीं ग़ायब से हो गये हैं, ऐसे समय में शीतला सिंह, अपने अख़बार की ख़बरों और संपादकीय में, जन-मानस से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए याद किये जाएंगे।
Sheetla Singh

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है;

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा !!

हिंदी दैनिक "जनमोर्चा" के प्रधान संपादक और धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर शीतला सिंह (93), का 16 मई, मंगलवार को फ़ैज़ाबाद (अब अयोध्या) में निधन हो गया। अयोध्या आंदोलन के दौरान "हिंदुत्व" की तीव्र लहर के बीच, निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले, शीतला सिंह, के साथ पत्रकारिता का एक युग समाप्त हो गया।

जब अख़बार के पन्नों से लेकर टेलीविजन के स्क्रीन तक केवल सांप्रदायिकता दिखाई जा रही है, और "सार्वजनिक मुद्दे" कहीं ग़ायब से हो गये हैं, ऐसे समय में शीतला सिंह, अपने अख़बार की ख़बरों और संपादकीय में, जन-मानस से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए याद किये जाएंगे।

ऐसा कहा जाता है कि पत्रकार और लेखक शीतला सिंह का झुकाव वामपंथ की तरफ़ था, लेकिन कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख नेताओं के साथ भी उनके हमेशा मित्रवत संबंध रहे।

शीतला सिंह एक पत्रकार के साथ एक लेखक भी थे। जनमोर्चा के संपादन के साथ उन्होंने भारतीय राजनीति की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना "बाबरी मस्जिद" विध्वंस (06 दिसंबर 1992) और "राम जन्म भूमि" पर एक बहुचर्चित किताब ‘अयोध्या: राम जन्म भूमि-बाबरी-मस्जिद का सच’ लिखी थी।

इस किताब कई मायनों में महत्त्वपूर्ण माना जाता है। एक स्थानीय वामपंथी नेता ने बताया कि, एक पत्रकार ने शीतला सिंह से सवाल किया था, आपने अपनी किताब में कौन से सच का ख़ुलासा किया है? शीतला का जवाब था, “मैंने उस तथ्य का विवरण दिया है, जिसमें मुस्लिम समाज के नेता राम मंदिर के निर्माण के लिए पहल कर रहे थे, लेकिन संघ अपने राजनीतिक लाभ के चलते ऐसा नहीं होने दे रहा था।”

वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान बताते हैं, शीतला सिंह ने मीडिया में अपनी यात्रा एक सहकारी उद्यम के साथ शुरू की थी। जिसे उन्होंने अपने गुरु हरगोबिंद के साथ लॉन्च किया। जन इंडिया के स्वामित्व वाले जनमोर्चा की शुरुआत 05, दिसंबर 1958 उत्तर प्रदेश में मात्र 75 रुपए की पूंजी से हुई थी।

आरंभ में जनमोर्चा साप्ताहिक बुलेटिन के रूप में निकाला गया। लेकिन बाद में ये दैनिक समाचार-पत्र के रूप में प्रकाशित होने लगा। इसके संस्थापक हरगोविंद एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनके बाद समाचार पत्र के संपादन का काम शीतला सिंह ने किया और उन्होंने लगभग 53 सालों तक इसके संपादन का दायित्व संभाला।

कई दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय शरत प्रधान मानते हैं कि जनमोर्चा अपने आप में एक अखबार से ज़्यादा एक मिशन था। यह सही अर्थों में जनता का मोर्चा था। इसने आम आदमी का मुद्दा उठाया। बतौर संपादक शीतला सिंह ने ख़ुद को समाज के सबसे निचले पायदान के लोगों के दर्द से जोड़ा।

जनमोर्चा के प्रधान संपादक शीतला सिंह को याद करते हुए शरत प्रधान बताते हैं कि एक बार उन्होंने बताया था कि “कितनी बार हरगोबिंद जी और हम (शीतला सिंह) और हमारे तीन और साथी, जो शुरू में ये अख़बार निकालते थे, वही दफ़्तर में खिचड़ी पका कर और खा कर टेबल पे अख़बार बिछा कर सो जाते थे।”

पत्रकार नवेद शिकोह कहते हैं कि अयोध्या आंदोलन के समय अयोध्या बाहरी मीडिया का केंद्र था। जनमोर्चा अयोध्या का मेज़बान बन के देशभर के पत्रकारों का मददगार और मार्गदर्शक बनता था।

जनमोर्चा की विश्वसनीयता को ताक़त देने वाले उसके संपादक शीतला सिंह थे। शीतला सिंह का मतलब जनमोर्चा था और जनमोर्चा का अर्थ शीतला सिंह था।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए नवेद शिकोह कहते हैं, उन दिनों देश की मीडिया अवध की पत्रकारिता का सहारा लेती थी। अयोध्या/फैजाबाद की ग्राउंड रिपोर्टिंग से ही कोई धमाकेदार ख़बरें हासिल होती थी। अवध के केंद्र और राम की नगरी अयोध्या के मिजाज़ के करंट तेवर की पड़ताल करने के लिए देश के कोने-कोने से आए वरिष्ठ से वरिष्ठ पत्रकार सबसे पहले जनमोर्चा पढ़ते थे।

वह कहते हैं कि अपनी पत्रकारिता को जनमोर्चा अख़बार में समर्पित करने वाले शीतला सिंह ने बतौर संपादक अपने अख़बार को अवध की पत्रकारिता की ऐसी भीनी-भीनी खुशबू बना दिया था, जिसकी ख़बरों की सुगंध पूरे देश की मीडिया में महकने लगी थी। ख़ासकर नब्बे के शुरुआती दशक में उनके इस स्थानीय अख़बार से लोग अयोध्या के नए मिजाज़ की पड़ताल करते थे।

नवेद शिकोह कहते हैं कि जब कॉरपोरेट, "मीडिया" पर कब्ज़ा कर रहा था, उस समय, धारदार पत्रकारिता से एक स्थानीय अख़बार को बड़ी पहचान दिलाने का काम शीतला सिंह ने किया। वह भारत प्रेस परिषद के सदस्य रहे और उनको "यश भारती" पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।

शीतला सिंह के साथ क़रीब 35 वर्षों तक कार्य करने वाली पत्रकार डॉ. सुमन गुप्ता बताती हैं, कि उन्होंने पत्रकारिता जनमोर्चा में सीखी है। उन्होंने बताया कि एक समय में शीतला सिंह का कार्यालय देश और विदेशी मीडिया का अतिथि गृह होता था। जहां दुनिया-भर पत्रकार जमा होकर अयोध्या की ख़बरें अपने संस्थानों को भेजते थे। डॉ. सुमन गुप्ता बताती हैं कभी भी किसी मीडिया संस्थान से मदद के बदले कुछ (किराया आदि) नहीं लिया जाता था।

रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव के अनुसार उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा 30 अक्टूबर, 1990 और 2 नवंबर, 1990 को कर्फ्यू का उल्लंघन करने और बाबरी मस्जिद पर हमला करने वाले हिंसक कारसेवकों पर गोलियां चलाने के बाद, अधिकांश समाचार पत्रों और निश्चित रूप से सभी स्थानीय लोगों ने "अयोध्या ने ख़ून से नहाया", और " सरयू में रक्त बहता है” जैसी हेडिंग लगाई।

लेकिन शीतला सिंह के संपादकीय जन मोर्चा ने पुलिस फायरिंग में 16 लोगों के मारे जाने की रिपोर्ट छापी थी।

राजीव यादव ने बताया कि यह बात उनको तब मालूम हुई जब वह अपनी पढ़ाई के दौरान शोध कर रहे थे और उन्होंने पुराने अख़बारों का अध्ययन किया। इसी दौरान उनकी शीतला सिंह से मुलाक़ात भी हुई थी।

बाबरी मस्जिद के पक्षधर रहे हाशिम अंसारी के पुत्र इक़बाल अंसारी ने कहा कि शीतला सिंह उनके पिता के दोस्त थे। वह कहते हैं शीतला सिंह हमेशा ईमानदारी से ख़बरें लिखते थे और उन्होंने हमेशा सभी धर्मों का सम्मान किया।

अयोध्या के वामपंथी नेता सूर्य कांत पांडे बताते हैं कि शीतला सिंह ने लिखा था कि दक्षिणपंथी संगठनों की रुचि अयोध्या में श्री राम के मंदिर बनाने में कम, दिल्ली में सरकार बनाने में अधिक थी। सूर्य कांत पांडे, जनमोर्चा के संपादक शीतला सिंह, के लेख के हवाले से कहते हैं, कि अयोध्या के एक पंडित जी ने एक विश्व हिंदू परिषद के नेता से कहा कि वह चाहते हैं कि उनके जीवन में राम मंदिर बन जाये। जिस पर विश्व हिंदू परिषद ने कहा इस से अधिक महत्त्वपूर्ण है दिल्ली में हमारी सरकार बन जाये।

वह आगे कहते हैं शीतला सिंह को इतिहास कभी नहीं भूला सकता क्योंकि उन्होंने दक्षिणपंथी संगठन के हमलों के बावजूद सांप्रदायिकता के साथ समझौता नहीं किया। वह सत्तापक्ष या विपक्ष के नहीं बल्कि "जन पक्ष" के पत्रकार थे।

यही वजह है कि उनके निधन का समाचार आते ही राजनीतिक गलियारों से मीडिया जगत तक शोक की लहर दौड़ गई।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वरिष्ठ पत्रकार व हिंदी दैनिक जनमोर्चा के प्रधान संपादक शीतला सिंह के निधन को अत्यंत दुःखद बताते हुए कहा कि उनकी संवेदनाएं शोकाकुल परिवार के साथ हैं।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा, शीतला सिंह पत्रकारिता को सामाजिक सरोकारों से जोड़कर नए प्रतिमान गढ़े थे। उनके निधन से पत्रकारिता जगत को अपूर्णीय क्षति हुई है।

कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी कहती हैं कि शीतला सिंह जी हिंदी पत्रकारिता के ऐसे मज़बूत स्तंभ थे जिन्होंने हमेशा लोकतंत्र एवं जनहित को सर्वोपरि रखा और कभी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनके जाने से पत्रकारिता जगत को अपूर्णीय क्षति हुई है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने भी शीतला सिंह की निधन को पत्रकारिता का बड़ा नुक़सान बताया है।

शीतला सिंह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चार बार सदस्य के रूप में और पत्रकारों और समाचार पत्रों के कर्मचारियों के लिए कई वेतन बोर्डों के सदस्य के रूप में उन्होंने पत्रकारों के अधिकारों की लड़ाई को भी लड़ा था। उनके इस योगदान को भी कभी नहीं भुलाया जा सकता है।

शीतला सिंह एक ऐसे व्यक्ति थे जो हमेशा मीडिया और मीडियाकर्मियों के प्रति उनके समर्पण के कारण सदा याद किये जाते रहेंगे।

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