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श्रीलंका में युद्ध में बचे लोगों को न्याय दिलाने में उत्तरोत्तर सरकारें विफल रहींः यूएनएचआर

यूएन ह्यूमन राइट्स की प्रमुख मिशेल बैचेलेट ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में इंटरएक्टिव सेशन के दौरान श्रीलंका पर अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें सरकार पर वार क्राइम के दोषियों को बचाने का आरोप लगाया गया।
श्रीलंका

बुधवार 24 फरवरी को यूनाइटेड नेशन हाई कमिश्नर फॉर ह्यूमन राइट्स मिशेल बैचेलेट ने कहा कि श्रीलंका की पिछली सरकारें देश में 2009 की लड़ाई के पीड़ितों के लिए न्याय की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में विफल रही हैं यूएन ह्यूमन राइट्स काउंसिल को श्रीलंका पर वह अपनी रिपोर्ट पेश कर रही थीं। काउंसिल का आरंभ सोमवार को एक इंटरैक्टिव सेशन से शुरू हुआ

चेलेट ने कहा कि, "सशस्त्र संघर्ष की समाप्ति के लगभग 12 साल बाद घरेलू पहल पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने और सुलह को बढ़ावा देने के लिए बार-बार विफल रही थी।" उन्होंने कहा कि अपने पूर्ववर्ती सरकारों की तरह वर्तमान सरकार भी "वास्तविक जवाबदेही प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाने में" विफल रही है।

बैचेलेट ने यह भी कहा कि न्याय प्रदान करने में सरकार की विफलता के प्रभाव से देश में एक दशक तक चले युद्ध के पीड़ितों और बचे लोगों पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तरोत्तर सरकारों ने ऐसे कदम उठाए हैं जिसने देश में नागरिक समाज और प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया है।

इस रिपोर्ट में श्रीलंका में मुस्लिम और तमिल अल्पसंख्यकों के बढ़ते भेदभाव और उत्पीड़न पर भी प्रकाश डाला गया है। श्रीलंका में एक दशक से अधिक समय तक चला युद्ध जो ज्यादातर उत्तर में तमिल बहुसंख्यक क्षेत्रों तक सीमित था इसमें 100,000 से अधिक लोगों मारे गए जिनमें से लगभग आधे नागरिक थे। 2009 में युद्ध के अंतिम चरणों के दौरान अधिकांश पीड़ितों को मार दिया गया था जिसमें नागरिकों के खिलाफ श्रीलंकाई सशस्त्र बलों द्वारा अत्याचार और युद्ध अपराधों के कई आरोप भी सामने आए थे।

इस बीच श्रीलंका के विदेश मंत्री दिनेश गुनवरदना ने काउंंसिल में पेश किए गए प्रस्ताव पर आपत्ति जताई जो श्रीलंका में बिगड़ती मानव अधिकारों की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करता है। उन्होंने इसे "राजनीतिक" और "अभूतपूर्व प्रोपगैंडा कैम्पेन" का हिस्सा बताया है।

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