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तिरछी नज़र: ‘अभी तुम चुप रहो’, अभी सिर्फ़ मैं बोलूंगा!

यह तो पता नहीं कि ‘सरकार जी’ का ‘अभी’ से मतलब कितना समय था परंतु सत्यपाल जी ने शायद इसे ‘चार वर्ष’ समझा और अब पुलवामा पर जो बोला वो ‘सरकार जी’ को नागवार लग सकता है।
Satyapal Malik

चुप रहना बहुत ही कठिन काम है। बचपन से हमें यही सिखाया जाता है, तुम चुप रहो फिर भी कई बार हम चुप नहीं रह पाते हैं। कोई बड़ा बोल रहा हो, कितनी भी बेवकूफी की बात कह रहा हो, अगर आप छोटे हो तो आपसे यही कहा जाएगा, यही सिखाया जाएगा, तुम चुप रहो। यही सुनते-सुनते अब उस उम्र तक पहुंच गए हैं कि दूसरों को कह सकते हैं कि अब तुम चुप रहो।

'तुम चुप रहो' एक बहुत ही बड़ा अस्त्र है, बहुत बड़ा शस्त्र है। आप समझो ब्रह्मास्त्र है। पास से दूर तक मार करता है। चुप रहने के बहुत फायदे हैं। ये फायदे बड़े लोगों को ही पता होते हैं इसीलिए वे छोटों को चुप रहने के लिए कहते हैं। ‘‘सरकार जी’’ बड़े हैं, सबसे बड़े हैं तो उन्होंने अपने से छोटे को चुप रहने को कहा तो उसमें ऐसी कौन-सी बड़ी बात हो गई। कई बार चुप रहने के फायदे चुप रहने वालों से अधिक उन्हें पता होते हैं जो चुप रहने के लिए कहते हैं। वे चुप रहने के लिए कहते ही इसलिए हैं क्योंकि आपके बोलने से कोई राज़ खुल जाएगा। और माना जाता है कि कुछ राज़ ऐसे होते हैं जो जब तक छिपे रहें, तब तक अच्छा ही होता है।

आप किसी को चुप रहने के लिए कह सकते हैं। हो सकता है वह आप की बात मान भी जाए। पहले बच्चों को चुप कराना आसान होता था। बच्चों को चुप रहने के एवज में बस टॉफी, आइसक्रीम या लॉलीपॉप जैसी कोई चीज़ दिलानी पड़ती थी। पर बच्चे भी अब समझदार हो गए हैं। चुप रहने की कीमत ढंग से वसूलते हैं। मोबाईल फोन तो छोड़ो, आईफोन तक मांग लेते हैं। आजकल इस मामले में बच्चे और बड़े एक जैसे ही हो गए हैं।

झूठ बोलना और चुप रहना, दोनों सच को दबाने के लिए ही किए जाते हैं। इसलिए दोनों में कोई खास फर्क नहीं है। जो झूठ बोलने में माहिर होते हैं वे चुप रहने और चुप कराने में भी माहिर होते हैं। जिन्हें पता होता है कि कब झूठ बोलना है उन्हें यह भी पता होता है कि कब चुप रहने के लिए कहना है। जो अभी चुप रहने के लिए कहते हैं वे यह जानते हैं कि अभी सच बोलने का समय नहीं है। अभी चुप रहने का समय है। झूठ बोलने वाले व्यक्ति को, और वह भी मनचाहा झूठ बोलने वाले को कोई नहीं कहता है कि ‘अभी तुम चुप रहो’, अभी झूठ बोलने का समय नहीं है। झूठ बाद में बोल लेना। ‘अभी चुप रहो’ सिर्फ़ सच बोलने वाले व्यक्ति से ही कहा जाता है।

वैसे कोई कहे, अभी तुम चुप रहो तो मतलब यह है कि अभी, हाल-फिलहाल में चुप रहना है। अभी चुप रहने में ही भलाई है। अभी बोलने से, पोल खोलने से हानि होगी। फिर बाद में कभी बोल देना, पोल खोल देना। उनका भला मानो जो तुम्हें अभी चुप रहने के लिए ही कह रहे हैं। वे तुम्हें न तो हमेशा चुप रहने के लिए कह रहे हैं और न ही झूठ बोलने के लिए कह रहे हैं। नहीं तो वे ‘हमेशा’ चुप रहने के लिए भी कह सकते हैं। ‘हमेशा’ के लिए चुप भी कर सकते हैं।

अभी हाल में ही सत्यपाल जी ने एक सत्य बोला। सत्य बोला कि चार साल पहले ‘सरकार जी’ ने उनसे कहा था कि ‘अभी तुम चुप रहो’, कोई व्यक्ति ‘अभी’ का मतलब चार दिन समझ सकता है और कोई इतना अधिक या फिर इससे भी अधिक। यह तो पता नहीं कि ‘सरकार जी’ का ‘अभी’ से मतलब कितना समय था परंतु सत्य जी ने शायद इसे चार वर्ष समझा। तो चार वर्ष बाद भूतपूर्व गवर्नर सत्य जी ने बता दिया कि ‘सरकार जी’ ने कहा था, ‘अभी तुम चुप रहो’।

सत्य जी ने बताया कि पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए अटैक के बाद उनकी जब ‘सरकार जी’ से बात हुई और कहा कि यह हमारी लापरवाही से हुआ है तो ‘सरकार जी’ ने कहा, अभी तुम चुप रहो, मैं बोलूंगा। उन दिनों सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘सरकार जी’ ही बोला करते थे और बाकी लोग चुप रहा करते थे। जिन लोगों को इस बात का पता था वे अपने आप ही चुप रहते थे और जिन लोगों को इस बात का पता नहीं था उन सभी को ‘सरकार जी’ चुप रहने के लिए कह देते थे। 

अब ‘सरकार जी’ को भी चुप रहने का महत्व पता चल गया है। अब वे चुप रहते हैं। अभी तक के ‘सरकार जी’ के बोलने और चुप रहने को तीन फेज़ में बांटा जा सकता है। पहला फेज़, ‘सरकार जी’ के ‘सरकार जी’ बनने से पहले का फेज़ था। उस समय ‘सरकार जी’ खूब बोला करते थे। बेरोज़गारी पर बोला करते थे, महंगाई पर बोला करते थे, डाॅलर की बढ़ती कीमत पर बोला करते थे, जीएसटी के ख़िलाफ़ बोला करते थे, चीन के ख़िलाफ़ बोला करते थे, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बोला करते थे। मतलब खूब बोला करते थे और तत्कालीन सरकार के ख़िलाफ़ भी बोला करते थे।

फिर आया दूसरा फेज़। ‘सरकार जी’ ने बोलना जारी रखा पर सेलेक्टिव कर दिया। अब ‘सरकार जी’, ‘सरकार जी’ बन गए थे। तो बोलना सेलेक्टिव कर दिया। ‘सरकार जी’, सरकार के ख़िलाफ़ न बोल कर भूतपूर्व सरकारों के ख़िलाफ़ बोलने लगे। धीरे धीरे ‘सरकार जी’ ने महंगाई के ख़िलाफ़ बोलना बंद कर दिया। बल्कि महंगाई के लाभ बताने लगे, उसे आर्थिक विकास से जुड़ा बताने लगे। ‘सरकार जी’ ने न सिर्फ़ बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ बोलना बंद कर दिया बल्कि रोज़गार के नए-नए तरीके सुझाने लगे। पकोड़े तलने को राष्ट्रीय रोज़गार बता दिया। चीन के ख़िलाफ़ बोलना भी बंद कर दिया। गलवान घाटी के बाद तो कहा जा सकता है कि देश के ख़िलाफ़ और चीन के पक्ष में बोले। बोले कि 'न कोई अंदर घुसा है'। मतलब चीन ने अंदर घुस कर हमारे जवानों को नहीं मारा है। मतलब, हमारे जवान ही चीन के अंदर घुस गए होंगे जो मारे गए। और भी बोले, बहुत कुछ बोले, और खूब बोले। कांग्रेस की विधवा बोले, पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड बोले।

पर अब ‘सरकार जी’ बोलते ही नहीं हैं। सभी बातों पर मौन रहते हैं। बेरोज़गारी और महंगाई के ख़िलाफ़ तो मौनव्रत पहले ही धारण कर लिया था, अब भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भी मौन रहते हैं। अब 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा' भी नहीं बोलते हैं। और तो और पार्टी के लिए चालीस प्रतिशत खाने वाले को भी खाने देते हैं। अपने उस कॉरपोरेट दोस्त के बारे में भी मौन हैं जिसे सारी ज़मीन जायदाद ही नहीं, घर के बर्तन-भाड़े भी बेच दिए हैं। कहते हैं तुम चाहे जो मर्ज़ी करो, बस दोस्ताना क़ायम रहना चाहिए। अब ‘सरकार जी’ ने चुप रहने की कसम खा ली है। ‘सरकार जी’ अब औरों से नहीं, अपने आप से ही कहते हैं, ‘अभी तुम चुप रहो।’

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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