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बाराबंकी में योगी सरकार ने ढहाई 100 साल पुरानी मस्जिद, वक़्फ़ बोर्ड देगा उच्च न्यायालय में चुनौती

मस्जिद 1968 से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति के रूप में दर्ज है। जबकि 1959 से मस्जिद में विधुत कनेक्शन है।
बाराबंकी में योगी सरकार ने ढहाई 100 साल पुरानी मस्जिद, वक़्फ़ बोर्ड देगा उच्च न्यायालय में चुनौती

बाराबंकी ज़िले में अतिक्रमण के नाम पर 100 साल पुरानी मस्जिद ढाने को मुस्लिम संगठनों व सियासी पार्टियों ने योगी सरकार का सांप्रदायिक क़दम बताया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मस्जिद ढाने को दुर्भागपूर्ण बताया है और कहा है की सरकार मस्जिद के मलबे को मौक़े से हटाने की कार्रवाई को रोककर और ज्यों की त्यों हालत बरकरार रखे।

सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने मस्जिद के पुनःनिर्माण के लिए अदालत  के दरवाज़े पर दस्तक देने का फ़ैसला लिया है। प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने कहा है की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 2021 चुनावों से पहले प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना चाहती है।

राजधानी लखनऊ के पड़ोसी ज़िले बाराबंकी रामसनेहीघाट के तहसील परिसर में बनी मस्जिद को स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने सोमवार को ढहा दिया। क़रीब एक सदी पुरानी मस्जिद ”गरीब नवाज़” के ढहाने की खबर पूरे जंगल में आग की तरह फैल गई।

जिसके बाद फैले तनाव को देखते हुए मंगलवार की सुबह से वहाँ भारी पुलिस बल तैनात है। स्थानीय प्रशासन इलाक़े में अभी दुकानों को खुलने नहीं दे रहा है। एसडीएम और सीओ मुस्लिम समुदाय से मिलकर के शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं।

स्थानीय मुस्लिम समुदाय का कहना है कि रामसनेहीघाट के उप-जिलाधिकारी ने मस्जिद प्रबंधन कमेटी से मस्जिद की भूमि  के दस्तावेज़ मांगे थे। प्रशासन के नोटिस के खिलाफ प्रबंधन कमेटी ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करी  थी। अदालत ने कमेटी को 18 मार्च से 15 दिन के अंदर जवाब दाखिल करने की मोहलत दी थी। जिसके बाद 01 अप्रैल, को जवाब दाखिल कर दिया गया था। 

बता दें कि इस नोटिस के विरोध में लोगों ने कई दिनों तक मुस्लिम समुदाय ने  प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी किया था। उस समय ज़िला प्रशासन ने मस्जिद की मीनार से माइक हटाने की भी कोशिश की थी।

विरोध के दौरान कुछ लोगों ने पथराव भी किया, जिसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों लाठीचार्ज किया जिसमें कई लोग घायल हो गए थे। बाद में  कई लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज करके उनको जेल भी भेजा गया।


मस्जिद प्रबंधन का दावा है कि उनके पूर्वज इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ते आ रहे थे। मस्जिद में पाँच वक़्त की अज़ान भी होती थी। लेकिन जुमे के दिन नमाज़ में भीड़ ज़्यादा होती थी। जिस से प्रशासनिक अधिकारियों में नाराज़गी रहती थी। आरोप है इसी नाराज़गी के चलते ग़ैरक़ानूनी ढंग से मस्जिद ढहाने की कार्यवाही की गई है।

कमेटी के पदाधिकारियों का कहना है कि नया तहसील परिसर का निर्माण  1992 में हुआ था और समय एसडीएम आवास इस मस्जिद के निकट बनाया गया। जबकि इस से पुराना तहसील भवन मस्जिद के पीछे हुआ करता था।

सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का कहना है की 100 साल पुरानी मस्जिद ”गरीब नवाज़” जो कि “तहसील वाली मस्जिद” के नाम से मशहूर थी, सरकारी दस्तावेज़ो में दर्ज है। बोर्ड के अध्यक्ष ज़ुफ़र फ़ारूक़ी ने कहा कि वह मस्जिद को ग़ैरक़ानूनी ढंग से ढाने की कार्यवाही में चुनौती देंगे। उन्होंने कहा है कि प्रशासन ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है।

ज़ुफ़र फ़ारूक़ी के अनुसार मस्जिद का कोविड-19 महामारी के दौरान ढ़ाना अदालत की अवमानना है। उनके अनुसार उच्च न्यायालय ने 24 अप्रैल को कोविड-19 महामारी को देखते हुए सभी तरह निष्कासन, बेदखली और तोड़-फोड़ प्रक्रिया पर 31 मई तक रोक लगा रखी है।

मस्जिद 1968 से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति के रूप में दर्ज है। जबकि 1959 से मस्जिद में विधुत कनेक्शन है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक शताब्दी पुरानी मस्जिद को ढहाये जाने पर रोष व्यक्त करते हुए कहा है कि योगी सरकार से मस्जिद ढहाने जिम्मेदार अधिकारियों को निलंबित कर मामले की न्यायिक जांच करवाए और मस्जिद का तुरंत पुनर्निर्माण किया जाये। 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव (कार्यवाहक) मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा है कि  "बोर्ड ने इस बात पर रोष का इज़हार किया है कि रामसनेहीघाट तहसील में स्थित गरीब नवाज मस्जिद को प्रशासन ने बिना किसी कानूनी औचित्य के सोमवार रात पुलिस के कड़े पहरे के बीच शहीद कर दिया है।”

बोर्ड ने माँग करी है  कि प्रदेश सरकार हाईकोर्ट के किसी पूर्व न्यायाधीश से इस मामले की जांच कराए और साथ ही मस्जिद के मलबे को वहां से हटाने की कार्रवाई को रोका जाये। वहाँ ज्यों की त्यों हालत बरकरार रखा जाये। मस्जिद की जगह पर कोई दूसरी इमारत का निर्माण न हो।

मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी के अनुसार यह सरकार का कर्तव्य  है कि वह इस जगह पर मस्जिद का पुनः निर्माण कराकर मुसलमानों के हवाले करे।"

बोर्ड के महासचिव (कार्यवाहक) ने कहा, "यह मस्जिद 100 साल पुरानी थी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के दस्तावेजों में भी थी। इस मस्जिद को लेकर कभी भी किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं हुआ।

उन्होंने कहा मस्जिद के प्रबंधन कमेटी ने इसके सारे दस्तावेज़ प्रशासन को अप्रैल में ही दिखा दिए थे। लेकिन इस सब के बावजूद बगैर किसी सूचना के बलपूर्वक एक पक्षीय कार्यवाही जिला प्रशासन ने हमारी इबादतगह को  शहीद कर दिया।

उधर बाराबंकी में मस्जिद ढाने को लेकर प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने योगी आदित्यनाथ सरकार की निंदा की है और सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सौ साल पुरानी मस्जिद को तोड़े जाने की घटना को निंदनीय बताया है।

पूर्व मुख्यमंत्री ने  कहा कि शासन-प्रशासन का यह कृत्य भारतीय संविधान के सामाजिक सद्भाव की अवधारणा के विरुद्ध है। यूपी में चुनाव निकट आता देख भाजपा सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने में सक्रिय हो गई है। देश की गंगा जमुनी संस्कृति को तार-तार कर के  भाजपा अपनी राजनीति करती रही है।

उन्होंने कहा, “भाजपा नफरत की राजनीति से धार्मिक उन्माद फैलाना चाहती है। प्रदेश की जनता को इससे सतर्क रहने की आवश्यकता है। भाजपा का ऐसे कृत्यों में संलिप्त रहने का हमेशा से इतिहास रहा है।” सपा अध्यक्ष ने बाराबंकी की घटना की जाँच उच्च न्यायालय के सिटिंग जज से किए जाने और मस्जिद का पुनः निर्माण किये जाने की माँग की है।

उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी का एक प्रतिनिधि मंडल जिसमें अरविन्द सिंह गोप पूर्व कैबिनेट मंत्री, राम सागर रावत पूर्व सांसद, फरीद महफूज किदवई और राकेश वर्मा पूर्व कैबिनेट मंत्री, सुरेश यादव विधायक, राजेश यादव राजू सदस्य विधान परिषद, गौरव रावत विधायक, हाफिज अयाज जिलाध्यक्ष बाराबंकी और चौधरी अदनान शामिल हैं, अधिकारियों से सम्पर्क कर इस घटना के बारे में वार्ता करेंगे।

इस बीच, बाराबंकी के ज़िलाधिकारी आदर्श सिंह ने मस्जिद और उसके परिसर में बने कमरों को 'अवैध निर्माण'  बताते हुए कहा है कि इस मामले में संबंधित पक्षकारों को पिछली 15 मार्च को नोटिस भेजकर स्वामित्व के संबंध में सुनवाई का मौका दिया गया था। 

लेकिन परिसर में रह रहे लोग नोटिस मिलने के बाद कहीं चले गए। जिसके बाद तहसील प्रशासन ने 18 मार्च को ही परिसर पर कब्जा हासिल कर लिया था। यह बयान ज़िलाधिकारी ने एक विडीयो क्लिप के ज़रिए  ट्विटर पर दिया। लेकिन बाराबंकी का कोई भी प्रशासनिक अधिकारी इस बारे में किसी प्रश्न का सीधे जवाब नहीं दे रहा है।

हालाँकि महामारी के इस दौर में बाराबंकी प्रशासन द्वारा एक धार्मिक स्थल को यूँ तोड़ना एक बड़ा ग़ैर-ज़िम्मेदाराना क़दम माना जा रहा है। ऐसे में राज्य सरकार को ऐसा करने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख़्त कदम उठाना चाहिए है और मुस्लिम समाज को विश्वास दिलाना चाहिए है कि उनके साथ कोई नाइंसाफ़ी नहीं होगी।

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