Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

उत्तराखंड: लंबित यमुना बांध परियोजना पर स्थानीय आंदोलन और आपदाओं ने कड़ी चोट की

पर्यावरणविद भी आपदा संभावित क्षेत्र में परियोजना के निर्माण पर अपनी आपत्ति जता रहे हैं, क्योंकि यह इलाक़ा बादलों के फटने, अचानक बाढ़ के आने और भूस्खलन की बार-बार होने वाली घटनाओं के लिहाज से अतिसंवेदनशील है।
Uttrakhand
उत्तराखंड में निर्माणाधीन बांध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर के पहले सप्ताह में उत्तराखंड के देहरादून जिले में मुख्य यमुना नदी बेसिन पर 120 मेगावाट की पहली व्यासी जल विद्युत परियोजना (एचईपी) का उद्घाटन किया। यह नदी परियोजना की दिशा में पहली है। इस कार्यक्रम को यहां आगामी विधानसभा चुनावों के संदर्भ में देखा जा रहा है क्योंकि परियोजना अभी बिजली उत्पादन के लिए तैयार नहीं है। इस परियोजना के लिए क्षेत्र के जिन लोगों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था, वे इसके बदले उपजाऊ भूमि देने और नकदी मुआवजा देने के सरकार के वादे को पूरा न किए जाने का अभी भी विरोध कर रहे हैं। पर्यावरणविद् हाल के वर्षों में राज्य में निरंतर होने वाली प्राकृतिक आपदाओं की ओर इशारा करते हुए इस परियोजना की व्यवहार्यता पर भी सवाल उठा रहे हैं।

व्यासी एचईपी हिमालय क्षेत्र में यमुना नदी की मुख्य धारा पर बनने वाली एक बड़ी परियोजना है। रन ऑफ द रिवर' परियोजना मूल रूप से 420 मेगावाट लखवार व्यासी बहुउद्देशीय परियोजना का एक हिस्सा थी। लखवार बांध व्यासी एचईपी हेड से करीब पांच किलोमीटर ऊपर प्रस्तावित है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण के समक्ष कानूनी जांच के अधीन लखवार परियोजना को बाद में अलग कर दिया गया और सरकार ने COVID-19 महामारी के बीच सूचना साझा करने या सार्वजनिक सुनवाई जैसी उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना सितंबर-अक्टूबर 2020 में अनिवार्य सार्वजनिक सुनवाई को खत्म कर दिया।

विकासनगर तहसील के लोहारी गांव के लोग अपने गांव की परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि के बदले किए जाने वाले पुनर्वास और उचित मुआवजे के भुगतान के वादे को पूरा नहीं करने को लेकर सरकार के खिलाफ लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं।

उत्तराखंड में निर्माणाधीन परियोजना

यमुना घाटी (लखवार-व्यासी) बांध प्रभावित समिति के सचिव दिनेश तोमर ने न्यूज़क्लिक को बताया, "सरकार ने परियोजना के लिए 16.5 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया है, जिसमें हमारे पूरे गांव की भूमि और आसपास के कुछ गांवों की जमीनों का भी कुछ हिस्सा शामिल किया गया है। चूंकि राज्य सरकार 1970 से ही टुकड़े-टुकड़े में भूमि का अधिग्रहण कर रही है, इसलिए कई ग्रामीणों को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम-2013 के तहत उचित मुआवजे और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियमित के पहले मामूली मुआवजा स्वीकार करने पर मजबूर किया गया था। अब उन्हें शांत करने के लिए कुछ अतिरिक्त राशि दी गई है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं है।”

दिनेश तोमर ने कहा, राज्य सरकार ने जनवरी 2017 में विकासनगर तहसील के रेशम बाग क्षेत्र में लोहारी गांव के लोगों के पुनर्वास के लिए उपजाऊ भूमि आवंटित करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी थी, लेकिन सरकार ने इस साल जुलाई में उसे वापस ले ली। यह ग्रामीणों के लिए एक बड़ा झटका था, जो उस फैसले को वापस लेने की मांग के साथ तभी से आंदोलन कर रहे थे।

“आगामी विधानसभा चुनाव जीतने की गरज से व्यासी एचईपी को लोगों के हित में एक सफल विकास परियोजना के रूप में पेश किया जा रहा है। यही कारण है कि परियोजना के प्रस्तावकों ने प्रधानमंत्री से इसका उद्घाटन करवाया,” रावत ने कहा, “सरकार हमारे विरोध को दबाने की कोशिश कर रही है। चार अक्टूबर को निर्माण स्थल पर काम में बाधा डालने के आरोप में 17 ग्रामीणों को पांच दिन के लिए जेल में बंद कर दिया गया था। लेकिन हम हार नहीं मानेंगे और अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे।"

पर्यावरणविद भी आपदा संभावित क्षेत्र में परियोजना के निर्माण को लेकर अपनी आपत्ति व्यक्त कर रहे हैं।

यमुना जिये अभियान के प्रमुख मनोज मिश्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया, "80 से अधिक मीटर ऊंचाई पर व्यासी बांध उत्तराखंड में यमुना प्रणाली पर नियोजित दो एचईपी 'डेविल्स' से अपेक्षाकृत कम है। दूसरा लखवार में 204 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाना है। यह लखवार-व्यासी नामक एक संयुक्त परियोजना के रूप में शुरू किया गया था पर बाद में इसे अलग कर दिया गया। व्यासी बांध अभी निर्माणाधीन है। बिजली उत्पादन के नदी तंत्र के साथ कम ऊंचाई पर, इसमें लखवार की तरह एक बड़ा जलाशय तो नहीं बनाया जा सकता है, लेकिन यमुना जैव विविधता पर इसके प्रतिकूल प्रभाव कम नहीं होंगे। इसके जल में सबसे महत्त्वपूर्ण मछली महसीर है, जो स्पष्ट रूप से हमेशा के लिए अपनी रिहाइश खो देगी, नदी में पानी का प्रवाह अनिश्चित हो जाएगा, वह बिजली उत्पादन की जरूरतों से निर्धारित होगा और गाद का बहाव भी बाधित होगा।“

यह भी सर्वविदित है कि हिमालयी राज्यों में निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं को अचानक बाढ़ से नुकसान पहुंचा है और जलविद्युत परियोजनाओं के गलत संचालन के कारण क्षेत्र में बाढ़ की आपदाएं भी बढ़ रही हैं।

देहरादून जिले में गंगा और यमुना घाटियों को बांटने वाली पचावदून और मसूरी पहाड़ियों में बिनहर रेंज में अगस्त में बादल फटने की श्रृंखलाबद्ध घटनाएं हुईं, जिनसे व्यापक विनाश हुआ। इनके परिणामस्वरूप आए जलप्रलय ने व्यासी एचईपी को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। इसने इस तथ्य को उजागर किया कि परियोजना मौजूदा एवं उभरती आपदाओं से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। यह क्षेत्र बादल के फटने, अचानक आने वाली बाढ़ों और बार-बार भूस्खलन की घटनाओं के लिहाज से अतिसंवेदनशील है।

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स रिवर एंड पीपल के एसोसिएट कोऑर्डिनेटर भीम सिंह रावत ने कहा, “यह क्षेत्र बादल फटने, अचानक आने वाली बाढ़ और बार-बार होने वाली भूस्खलन की घटनाओं के लिए अतिसंवेदनशील है। इसके अलावा, पिछले आठ वर्षों में 2.7 किलोमीटर लंबी, 7-मीटर व्यास वाली सुरंग के निर्माण के दौरान उत्पन्न कीचड़ का लापरवाह से किए गए निबटान ने स्थानीय लोगों और यमुना नदी के संकट को और बढ़ा दिया है।”

यह डंप नदी के इतने करीब हैं कि निर्माण का मलबा नदी में गिरता रहता है, खासकर मानसून के दौरान, जिससे नदी का स्तर बढ़ गया है। मौजूदा स्थिति भविष्य में और अधिक अचानक बाढ़ ला सकती है।"

रावत ने आगे बताया, “निर्माण गतिविधियों के साथ-साथ नदी के किनारे के पास ओवरबर्डन और निर्माण मलबे के दोषपूर्ण डंपिंग के कारण नदी का तल ऊपर उठ गया है, जिसके कारण भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि देखने को मिली हैं। खराब गुणवत्ता वाली निर्माण सामग्री के उपयोग की रिपोर्ट भी संरचना की स्थिरता और भविष्य पर सवालिया निशान लगाती है।”

उन्होंने रिटेनिंग वॉल, वायर क्रेट (गेबियन बॉक्स) दीवार बनाने जैसे उपायों पर तंज कसे, जो भूस्खलन को रोकने के लिए मुख्य रूप से मानसून के मौसम से ठीक पहले किया जाने वाला व्यर्थ का एक कर्मकांड बन गया है। रावत ने कहा,'' उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) ने हाथियारी डंपिंग यार्ड में जियो जूट और हाइड्रोसीडिंग (घास ढलान संरक्षण) के काम पर जो 40 लाख रुपये खर्च किए, वह भी जनता के पैसे की बर्बादी साबित हुई।”

परियोजना के पैरोकार अक्सर तर्क देते हैं कि व्यासी एचईपी यमुना के हिमनद क्षेत्र से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित है, इसलिए यह अपेक्षाकृत सुरक्षित क्षेत्र में है। हालांकि, यमुना बेसिन के हिमालयी खंड में पिछले एक दशक के वर्ष 2010, 2013, 2014, 2016 और 2019 में विनाशकारी बाढ़ आई है। यमुना पर पहला बड़ा बांध होने के कारण, परियोजना को समय-समय पर होने वाली ऐसी बाढ़ का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

व्यासी एचईपी, यूजेवीएनएल के कार्यकारी निदेशक राजीव अग्रवाल ने इन सभी संबंधित प्रश्नों का उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि सौभाग्य से अगस्त में बादल फटने की घटना में आपदा परियोजना की बाहरी चारदीवारी को ही क्षति हुई और परियोजना स्थल को अंदर से कोई नुकसान नहीं पहुंचा।

हालांकि यह परियोजना इतने वर्षों से निर्माणाधीन है, फिर भी यहां किसी आपदा की पूर्व चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस) लगाने या भूकंप सेंसर स्थापित करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया। इस पर, उन्होंने कहा, "हम ईडब्ल्यूएस स्थापित नहीं कर रहे हैं, लेकिन निश्चित रूप से एक निगरानी प्रणाली पर विचार कर रहे हैं जिससे कि जलाशय में जल स्तर को डिस्चार्ज किया जा सके ताकि खतरनाक स्थिति उत्पन्न होने पर स्थानीय ग्रामीणों को सायरन के साथ सतर्क किया जा सके।"

परियोजना स्थल को नुकसान पहुंचाने वाले भूस्खलन से बचाव के लिए परियोजना क्षेत्र में जल निकासी व्यवस्था का उचित रखरखाव ही एकमात्र रास्ता है, इसलिए कि जल निकासी में किसी भी तरह की गंदगी से भूस्खलन हो सकता है।

यह परियोजना भूकंप की दृष्टि से भी संवेदनशील है क्योंकि भू-भाग भूकंपीय क्षेत्र IV में आता है। उन्होंने कहा, यूजेवीएनएल ने प्रभावी भूकंप सेंसर प्रदान करने के लिए आइआइटी, रुड़की से संपर्क किया है।

स्थानीय लोगों के चल रहे आंदोलन के संबंध में उन्होंने कहा कि भूमि आवंटन के मामले से यूजेवीएनएल का कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह राज्य सरकार द्वारा किया जाना है। हालांकि, अग्रवाल ने कहा कि उत्तराखंड में यह पहली बार होगा कि उन निवासियों और किसानों को अधिक मुआवजा देने के लिए अतिरिक्त अनुग्रह भुगतान का प्रावधान किया गया है, जिन्हें उनकी भूमि अधिग्रहण पर पहले ही मुआवजा दिया जा चुका है।

यूजेवीएनएल ने 950 करोड़ रुपये के अनुमानित बजट वाले व्यासी एचईपी को दिसंबर 2018 तक चालू करने के लक्ष्य के साथ 2014 के प्रारंभ में ही उस पर काम करना शुरू कर दिया था। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के विवरण के अनुसार इस परियोजना के 2022-23 में पूरा होने का अनुमान है। जाहिर है कि परियोजना के पूरा होने में पहले ही चार साल से अधिक की देरी हो चुकी है, जबकि निर्माण लागत बढ़कर 1,777.30 करोड़ रुपये हो गई है। सीईए के अनुसार, परियोजना के अप्रैल 2022 तक चालू होने की संभावना है।

अग्रवाल ने कहा कि पिछले दो वर्षों में COVID-19 प्रतिबंधों के दौरान जनशक्ति की कमी के कारण परियोजना में देरी हुई, लेकिन अब इसने गति पकड़ ली है।

मनोज मिश्रा का सवाल है कि क्या परियोजना वैसा ही लाभ देगी जैसा कि इसके बारे में दावा किया गया है: लागत अनुपात के बारे में कोई भी अनुमान लगा सकता है क्योंकि अधिकांश एचईपी धरातल पर खराब प्रदर्शन कर रहे हैं। हिमालयी क्षेत्र में, जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव भी एक अज्ञात निर्धारक है, जिसके लिए इस और इसी तरह की अन्य परियोजनाओं का मूल्यांकन नहीं किया गया है।

हमेशा की तरह परियोजना की लागत में वृद्धि, उनमें देरी, उनसे उभरते भूगर्भीय, जलवायु संबंधी खतरे, मानदंडों के उल्लंघन और सामाजिक अन्याय के बीच पनबिजली परियोजना डेवलपर्स के लंबे दावे जमीनी हकीकत के लगातार विपरीत पड़ते हैं।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

Uttrakhand: Local Agitations And Disasters Hit Hard Already Delayed Yamuna Dam Project

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest