Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

विनोद दुआ: निंदा या प्रशंसा से अलग समग्र आलोचना की ज़रूरत

ऐसे समय में जब एक तरफ़ विनोद दुआ के निधन पर एक वर्ग विशेष ख़ुशी मना रहा है और दूसरा तबका आंसू बहा रहा है, तब उनकी समग्र आलोचना या कहें कि निष्पक्ष मूल्यांकन की बेहद ज़रूरत है, क्योंकि मीटू के आरोपों के दौरान दुआ पत्रकारिता और पर्सनल दोनों मानकों पर खरे नहीं उतरे। पढ़िए हमारी सहयोगी सोनिया यादव की रिपोर्ट।
VINOD DUA
image credit- Social media

सोशल मीडिया पर एक ओर जहां विनोद दुआ को पत्रकारिता का एक शानदार पन्ना, स्वर्णिम युग और भीष्म पितामाह जैसी उपाधियां दी जा रही हैं, वहीं एक वर्ग ख़ासतौर पर दक्षिणपंथी खेमा उनके निधन पर ख़ुशी भी मना रहा है। लेकिन इससे अलग इस कहानी का एक तीसरा पक्ष भी है और वह है महिलाओं का पक्ष। कई नारीवादी महिलाओं और समाजिक कार्यकर्ताओं ने मीटू को लेकर दुआ की पत्रकारिता पर सवाल भी खड़े किए हैं। कई महिलाओं ने इस बात पर दुख भी व्यक्त किया है कि दुआ के मामले में प्रगतिशील और जनवादी लोगों ने “जनमत” में यौन उत्पीड़न पीड़ितों के मत को ग़ायब कर दिया है।

निष्ठा जैन ने भी लोगों की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं। फिल्ममेकर और दो बार की राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निष्ठा जैन कहती हैं- "क्या आप एमजे अकबर को एक पत्रकार के रूप में श्रद्धांजलि दे सकते हैं, ये याद किए बिना कि उन्होंने सालों तक कैसे अपनी महिला सहकर्मियों का उत्पीड़न किया? अगर नहीं तो विनोद दुआ के लिए यह अपवाद क्यों?"

यह सवाल निष्ठा जैन ने अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए उठाया है। निष्ठा जैन वही महिला हैं जिन्होंने साल 2018 में मी़टू आंदोलन के तहत पत्रकार विनोद दुआ पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। निष्ठा ने दुआ की मौत के बाद उन्हें मिल रही श्रद्धांजलियों और उनके पत्रकारिता के महिमामंडन के खिलाफ अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए सोशल मीडिया पर कई पोस्ट शेयर किए हैं। उन्होंने विनोद दुआ का बचाव करने वाले प्रोग्रेसिवलिबरल लोगों के प्रति तीखी प्रतिक्रिया देते हुए द वायर को भी इस पूरे मामले में जिम्मेदार ठहराया है।

निष्ठा ने विनोद दुआ की मौत के एक दिन बाद अपने सोशल मीडिया पर लिखा, “कल, हमने देखा कि दिल्ली में मौजूद एक गुट विनोद दुआ का बचाव पूरी ताकत से करने में लगा था। ये वही गुट है जिसने 2018 में दुआ के चारों ओर एक घेरा बना लिया था जब मैंने अपने उत्पीड़न की कहानी शेयर की थी। उस मंडली में द वायर का स्टाफ भी शामिल था, जिन्होंने मुझसे इस तथ्य को छुपाया कि दुआ पहले ही उनके द्वारा गठित जांच कमेटी के समक्ष पूछताछ और सवाल-जवाब के लिए इंकार कर चुके थे। वह केवल अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए ही सहमत हुए थे।"

निष्ठा ने आगे लिखा कि इस प्रभावी गुट में जूरी के सदस्य भी शामिल थे, जिन्होंने दुआ के पूछताछ से इनकार करने के बाद कमेटी को भंग कर दिया। और दोनों पक्षों से सहयोग नहीं मिलने का कारण बता दियाजो पूरी तरह से झूठ था। इतना ही नहीं कमेटी भंग होने के बाद उन्होंने निष्ठा के सवालों का जवाब देने से भी इनकार कर दियाये साफ तौर पर दर्शाता है कि यह पूरी कवायद द वायर द्वारा स्थापित एक दिखावा थी।

निष्ठा के शब्दों में, "मैंने गवाहों की गवाही के साथ अपनी प्रस्तुति को पूरा करने में दो महीने लगा दिए थेजो पूरी तरह मेरे समय की बर्बादी थी। उस गुटबंदी के घेरे में कई वामपंथी बुद्धिजीवी शामिल थे जिन्होंने दुआ का बचाव करना जारी रखा और मेरी कहानी से आंखें मूंद लीं। कई ने मुझे फेसबुक पर अनफ्रेंड कर दिया क्योंकि मैंने उनसे कुछ ऐसे सवाल पूछ लिए जिसने उन्हें असहज कर दिया। उस प्रभावी गिरोह में कई नारीवादी महिलाएं भी शामिल थीं जो चुप रहीं और यहां तक कि द वायर की महिला पत्रकार भी, जो जूरी के साथ सहयोग न करने के लिए मुझ पर आरोप लगाती रहीं, लेकिन उनमें से एक ने भी कहानी का मेरा पक्ष सुनने के लिए मुझसे संपर्क नहीं किया।"

 क्या कहानी है निष्ठा जैन की?

गुलाबी गैंग’ जैसी दमदार डॉक्यूमेंट्री बनाने वाली निष्ठा जैन ने अक्तूबर 2018 में चर्चित टीवी एंकर और तब द वायर में कंसल्टिंग एडिटर रहे विनोद दुआ पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। निष्ठा ने अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए साल 1989 की घटनाओं का जिक्र करते हुए दुआ के खिलाफ अश्लील जोक करने, यौन शोषण की कोशिश और स्टॉकिंग जैसे कई संगीन इल्ज़ाम लगाए थे।

एक लंबे फेसबुक पोस्ट में निष्ठा ने लिखा था कि वे जून 1989 में विनोद दुआ से एक नौकरी के सिलसिले में मिली थींजब वे ‘जनवाणी’ नाम का एक कार्यक्रम किया करते थे। जब वे उनसे मिली तब बातचीत की शुरुआत में ही दुआ ने धीमी आवाज़ में एक अश्लील चुटकुला सुनाया। निष्ठा ने लिखा है कि उन्हें याद नहीं कि वो क्या थालेकिन वह बहुत घटिया था। इसके बाद जब दुआ ने उनसे पूछा कि उनकी वेतन को लेकर क्या उम्मीद है। इस पर निष्ठा के ‘पांच हज़ार रुपये’ जवाब देने पर दुआ ने उनसे कहा, ‘तुम्हारी औकात क्या है?’

निष्ठा ने आगे लिखा था, "मैं उनकी इस बात पर दंग रह गई। मैंने पहले भी यौन उत्पीड़न का सामना किया था, लेकिन इस तरह की प्रताड़ना मेरे लिए एक नया अनुभव था।"

निष्ठा जैन

उन्होंने आगे बताया कि इसके बाद उन्हें दूसरी नौकरी मिल गयी। एक रात पार्किंग में विनोद दुआ उनसे मिले और यह कहते हुए कि वे उनसे बात करना चाहते हैं, अपनी गाड़ी में बैठने को कहा। निष्ठा ने लिखा कि उन्हें लगा कि शायद दुआ अपने पिछले बर्ताव के लिए माफी मांगना चाहते हैं, इसलिए वे उनकी गाड़ी में बैठ गईं। इसके बाद निष्ठा ने बताया कि वे अभी ठीक से बैठ भी नहीं सकी थीं कि दुआ ने उन्हें चूमने की कोशिश की, जिसके बाद वो किसी तरह दुआ की गाड़ी से निकल गईं। लेकिन इसके बाद काफी समय तक दुआ ने उनका पीछा किया।

निष्ठा ने अपने पोस्ट में आगे लिखा था कि जब अक्षय कुमार के सेक्सिस्ट कमेंट पर विनोद दुआ भड़के थे, उस वक्त उन्हें ऐसा लगा कि विनोद शायद भूल गए हैं कि वो भी कम सेक्सिस्ट नहीं हैं, पोटेंशियल रेपिस्ट हैं।

बता दें कि विनोद दुआ पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली निष्ठा अकेली महिला नहीं थीं। उसी समय निष्ठा की पोस्ट शेयर करते हुए एक अन्य महिला सामाजिक कार्यकर्ता ने भी अपना अनुभव साझा किया था। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाते हुए लिखा था कि एक इंटरव्यू के दौरान विनोद दुआ उनकी छाती को लगातार घूरते रहे थे।

USHA

इन आरोपों के बाद द वायर ने अपना पक्ष जारी करते हुए कहा था कि उसकी इंटरनल कम्प्लेंट्स कमेटी यानी आईसीसी ने इन आरोपों का संज्ञान ले लिया है और इस बारे में आईसीसी का निर्णय प्रतीक्षित है। हालांकि महज़ कुछ ही महीनों के भीतर ही जाँच शुरू होने से पहले ही कंप्लेन कमेटी भंग हो गई और इसका कारण दोनों पक्षों से बिना शर्त की सहमति नहीं मिलना बताया गया, जिसे निष्ठा जैन ने कोरा झूठ बताया है। निष्ठा के मुताबिक ये एक संगठन के तौर पर द वायर की नाकामी है, विफलता है।

किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा की सुरक्षा किसी के सम्मान की क़ीमत पर नहीं

निष्ठा की बातों का समर्थन करते हुए महिलावादी संगठन अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) की राष्ट्रीय सचिव और सीपीआई (एमएल) की पोलित ब्योरो सदस्य कविता कृष्णन ने न्यूज़क्लिक से कहा कि इंक्वाइरी कमेटी का भंग होना और विनोद दुआ का उसमें भाग लेने से इंकार करना निष्ठा जैन से उनकी बात सुने जाने का अधिकार छीनने जैसा है। एक पत्रकार होने के नाते दुआ ने अपनी पत्रकारिता के प्लेटफॉर्म 'जन की बात' का भी गलत इस्तेमाल किया, मीटू आंदोलन का मज़ाक उड़ाया, उसे खारिज़ किया ये उनके करियर पर एक धब्बे के समान है।

कविता ने इस संबंध में पूर्व कैबिनेट मंत्री एमजे अकबर और प्रिया रमानी केस के जजमेंट का जिक्र करते हुए कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा की सुरक्षा किसी के सम्मान की क़ीमत पर नहीं की जा सकती है। इस मामले में अदालत का ये फ़ैसला इस मायने में भी अहम है कि किसी भी ऊंचे पद पर आसीन व्यक्ति अपनी शक्ति या संसाधनों का इस्तेमाल कर किसी महिला के सम्मान को ठेस पहुंचाने का कतई अधिकार नहीं रखता।

कविता के मुताबिक अगर आप युवा महिला पत्रकारों का यौन उत्पीड़न करते हैं, नौकरी की तलाश में इंटरव्यू देने आई महिला का अपमान करते हैं, तो क्या आप बढ़िया पत्रकार कहलाने का हक़ रखते हैं? आज जो ढेर सारे लोग ओबीच्युअरी में दुआ जी को बढ़िया पत्रकार कह रहे हैं, उन्हें ये भी देखना चाहिए कि जब एक पत्रकार के तौर पर उनका मूल्यांकन हो रहा है तो ये भी मायने रखता है कि उन्होंने पत्रकारिता के लिए किस तरह का माहौल तैयार किया और अपने आस-पास के लोगों के लिए कैसी जगह बनाई? क्या उन्होंने महिला पत्रकारों को वो सम्मान और दर्जा दिया जिसकी वो हकदार हैं? जब उन्होंने महिला पत्रकारों को उस गंदी नज़र से देखा तो एक पत्रकार के तौर पर क्या मिसाल पेश की?

कविता आगे कहती हैं, " जिस समय हिंदी पत्रकारिता गोदी मीडिया के संकट दौर से गुजर रहा है उस समय विनोद दुआ ने निस्संदेह सत्ता के खिलाफ जाकर अपनी बात रखी, जो बहुता अच्छी बात है। लेकिन मीटू के आरोपों पर दुआ पत्रकारिता और पर्सनल दोनों मानकों पर खरे नहीं उतरे। उनके लिए लिखे जाने वाले दर्जनों ओबिचूएरी में इस मामले पर चुप्पी, महिलाओं के अस्तित्व और इंसानियत को ख़ारिज करता है। आख़िर दुआ पर आरोप लगाने वाली महिला क्या चाहती थी? शायद सिर्फ़ इतना कि वे कई सालों पहले किए अपने दुर्व्यवहार के लिए माफ़ी माँगें, स्वीकार करें कि उन्होंने किसी युवा महिला के साथ अन्याय किया। लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया, उल्टा उन्होंने निष्ठा जैन से उनकी बात साबित करने के मौके को छीना, और ऐसा जब कोई करता है तो ये पर्सनल के साथ-साथ प्रोफेशनल रिकार्ड पर भी एक धब्बे की तरह है।"

लोगों की चुप्पी पर सवाल

बता दें कि 2018 में निष्ठा के सथ जिन अन्य महिला सामाजिक कार्यकर्ता ने अपना अनुभव साझा करते हुए विनोद दुआ के खिलाफ आवाज उठाई थी उनका नाम उषा आरवामूधन सक्सेना है। दुआ की मौत के बाद उनकी तारीफ़ों के पुल बांधते संदेशों पर उषा ने भी कड़ी आपत्ति जताई है। उषा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वास्तव में उनकी पोस्ट निष्ठा जैन के समर्थन में थी, जिन्हें सच में विनोद दुआ द्वारा यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उषा के अनुसार निष्ठा का जब मीटू एक्सपोजर सामने आया, तब इस मामले में तरुण तेजपाल के अलावा किसी लिबरल, वामपंथी झुकाव वाले प्रगतिशील पुरुष पत्रकार का कोई जिक्र तक नहीं था।

उषा कहती हैं, "दुआ ने मेरे साथ सिर्फ बद्सलूकी की कोशिश की थी, लेकिन निष्ठा का मामला गंभीर था। इसलिए जब निष्ठा ने इस आदमी के खिलाफ अपनी बात सबके सामने रखी तो, मैंने भी अपनी सालों पुरानी चुप्पी तोड़ दी...।"

यहां साफ कर दें कि इस लेख के माध्यम से हमारा इरादा विनोद दुआ के काम को ख़ारिज करना कतई नहीं है, हमारा मकसद उनका समग्र मूल्यांकन है, जो उन्हें एक व्यक्ति और एक पत्रकार दोनों के नाते यौन उत्पीड़न के आरोपों पर जवाबदेह बनाता है।

मीटू आंदोलन ने महिलाओं को शोषण-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत दी

अगर महिला सुरक्षा, सशक्तिकरण और सम्मान के लिए एमजे अकबर गलत है तो विनोद दुआ का रवैया भी गलत था। क्योंकि दुआ ने अपने ऊपर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों से केवल इंकार भर नहीं किया था, उन्होंने पूरे मीटू आंदोलन का एक तरीके से उपहास किया था। वही मीटू आंदोलन जिसका मज़बूत आधार ही पत्रकार और पत्रकारिता है। ये आंदोलन अमेरिका में रोनन फैर, मेगन टूहे और जूडी कैंटर की दमदार पत्रकारिता के बल पर बनाया गया था। इन पत्रकारों ने ताकतवर हार्वे वेनस्टेन के यौन अपराधों की जांच की और उसे सही तरीके से रिपोर्ट किया, जिससे वेनस्टेन को न सिर्फ सज़ा हुई बल्कि दुनियाभर में महिलाओं को शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत मिली।

इसी साल फरवरी में दिल्ली की एक अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एम.जेअकबर के महिला पत्रकार प्रिया रमानी के ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि मामले में प्रिया रमानी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें बरी कर दिया था। फैसले के दौरान कोर्ट ने कहा था कि समाज को यह समझना ही होगा कि यौन शोषण और उत्पीड़न का पीड़ित पर क्या असर होता है। इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि यौन शोषण अक्सर बंद दरवाज़ों के पीछे ही होता है। कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया था कि यौन शोषण की शिकायतें करने के लिए मैकेनिज़्म की कमी है। शोषण की शिकार अधिकतर महिलाएं कलंक लगने और चरित्रहनन के डर से अक्सर आवाज़ भी नहीं उठा पाती हैं।

अदालत ने अपने फ़ैसले में एक महत्वपूर्ण बात ये भी कही थी कि यौन शोषण आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को ख़त्म कर देता है। इसलिए महिलाओं के पास दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है। लेकिन दुआ ने अपनी पत्रकारिता के मंच से जिस तरह इस आंदोलन पर सवाल खड़े किए वो पूरी महिला बिरादरी की अस्मिता और मूल्य को सिरे से खारिज कर देता है, जो उनके सालों के पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों प्रोफाइल पर एक दाग़ है।

  इसे भी पढ़ें: प्रिया रमानी की जीत महिलाओं की जीत है, शोषण-उत्पीड़न के ख़िलाफ सच्चाई की जीत है!

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest