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गिरिजा कुमार माथुर ने आधुनिकता को उचित संदर्भ में परिभाषित किया

कवि, नाटककार और समालोचक गिरिजा कुमार माथुर का जन्मशतवार्षिकी देश भर में विश्वविद्यालयों और साहित्यिक संस्थानों में मनाया जा रहा है। इस कड़ी में दिल्ली में साहित्य अकादमी ने ‘गिरिजा कुमार माथुर : व्यक्तित्व और कृतित्व’ विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया।
गिरिजा कुमार माथुर

गिरिजा कुमार माथुर की कविताओं और गीतों में प्रणय की अनूठी रागिनी बजती है तो इतिहास और यथार्थ से भी उनकी कविताओं का सघन रिश्ता रहा है। वे उस दौर के कवि रहे हैं जब विश्व दो-दो विश्वयुद्धों से गुजर कर घायल अवस्था में था। हिरोशिमा व नागासाकी भयानक अणुसंहार में ज़मीदोज़ हुए जिसने मनुष्य के अस्तित्व और मानवाधिकारों की चूलें हिला दीं। देश साठ के दौर के मोहभंग से गुजरा, आपातकाल देखा उन्होंने, आजादी की व्यर्थता भी। पर वे अपने प्रगतिशील जीवन मूल्यों से बंधे रहे। उनके सामने कविता में अनेक आंदोलन आए-गए।

कवि, नाटककार और समालोचक गिरिजा कुमार माथुर का जन्मशतवार्षिकी देश भर में विश्वविद्यालयों और साहित्यिक संस्थानों में मनाया जा रहा है। इस कड़ी में नई दिल्ली साहित्य अकादमी ने ‘गिरिजा कुमार माथुर : व्यक्तित्व और कृतित्व’ विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया।

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संगोष्ठी में उद्घाटन वक्तव्य देते हुए प्रख्यात हिंदी आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि “गिरिजा कुमार माथुर काव्य की सभी परंपराओं को तोड़ते हुए अपने वाक्य विधान पर विशेष ध्यान दिया। वे अनास्था के कवि नहीं थे और उन्होंने आधुनिकता को उचित संदर्भ में परिभाषित किया। वे अपनी कविता शब्दों से, लय से, छंद से तथा अन्य प्रतीकों को नए रूप में प्रस्तुत करके संभव करते हैं।”  

इस अवसर पर चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि माथुर के काव्य में गीतात्मकता है। वे कविता में ‘अनुभूति के ताप’ को महत्त्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने गीतों को एक नया संस्कार दिया। उन्होंने हिंदी साहित्य में विज्ञान लेखन की शुरुआत तो की ही बल्कि उपेक्षित विधा काव्य-नाटक आदि का सृजन भी किया।

वरिष्ठ आलोचक अजय तिवारी ने उनकी कविता के तीन प्रमुख तत्त्वों- रोमांटिकता, प्रकृति सौंदर्य और यर्थाथवाद को विस्तार से व्याख्यायित करते हुए कहा कि बिना रोमांटिक हुए प्रगतिवादी भी नहीं हुआ जा सकता। उनकी कविता एक-आयामी नहीं है बल्कि वे विभिन्न आयामों के कवि हैं।

साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि “गिरिजा कुमार माथुर ‘लोकल’ से लेकर ‘ग्लोबल’ तक के कवि हैं। उनकी बौद्धिक प्रखरता एवं सम्यक दृष्टि उनको एक बड़े कवि के रूप में प्रतिष्ठित करती है। उन्होंने हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए आकाशवाणी के माध्यम से कई नए प्रयोग किए।”

ब्रज श्रीवास्तव ने ‘गिरिजा कुमार माथुर की कविताओं में सामाजिक परिवेश और यथार्थ’ विषय पर कहा कि “उनकी कविताओं में जो भी प्रयोग किए गए उनका लक्ष्य ‘व्यापक सत्य’ को सामने लाना था। उन्होंने अपनी कविताओं में यथार्थ और सौंदर्य का संतुलित समन्वय किया है। वे अपनी कविता में मौलिकता और अनुभव की सत्यता का सम्मान करते थे। हम उन्हें आधुनिक और नए भारत के स्वप्निल कवि के रूप में याद कर सकते हैं। उनका सामाजिक यथार्थ गहन परिवेश और रचना-प्रक्रिया की सघनता पर आधारित था।”

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चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि “गिरिजा कुमार माथुर ने मार्क्सवाद को भारतीय परिवेश में रोपकर देखा है। उन्होंने उनकी कविताओं में आए मुख्य प्रतीकों- आग, रोशनी, चांदनी और दीपक का ज़िक्र करते हुए कहा कि वे आग और रोशनी को जहां परिवर्तन के प्रतीक के रूप में देख रहे थे वहीं चांदनी आशा के प्रतीक के रूप में थी। इस तरह उनकी कविताओं में सपनों को बचाने की आकुल पुकार को महसूस किया जा सकता है।”

सुरेश ढींगरा ने ‘गिरिजा कुमार माथुर नाटककार एवं एकांकीकार के रूप में’ विषय पर कहा कि “उनके नाटकों और एकांकियों में पौराणिक संदर्भ नहीं हैं बल्कि उन्होंने निकट इतिहास की घटनाओं को कथ्य के रूप में प्रयुक्त किया है। रेडियो की समय-सीमा को देखते हुए उन्होंने छोटे नाटक लिखे हैं लेकिन अपने कथ्य की व्यापकता में वे बड़े नाटक के रूप में भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं। उन्होंने अपने पात्रों को दैनिक बोलचाल की भाषा प्रदान की है, जो बेहद महत्त्वपूर्ण है। हम उनके नाटकों को उनकी कविता से कमतर नहीं माप सकते।”
सत्यकाम ने ‘गिरिजा कुमार माथुर: लेखकीय व्यक्तित्व के विविध आयाम’ विषय पर कहा कि “उनका श्रृंगार मध्यवर्गीय व्यक्ति का है। वे कविता में निराला के बाद ध्वनि संगीत की परंपरा को प्रतिष्ठित करने वाले महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनके लेखकीय व्यक्तित्व पर रेडियो और दूरदर्शन की स्पष्ट छाया है। वे अपने सृजन में आध्यात्मिकता के बारे में बहुत संतुलित दृष्टि प्रस्तुत करते हैं।”

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वरिष्ठ पत्रकार शरद दत्त ने कहा कि “गिरिजा कुमार माथुर ने आकाशवाणी को एक परिवार के रूप में रूपांतरित किया और लेखकों एवं आकाशवाणी के बीच सेतु का काम किया। उन्होंने उनके रेडियो नाटकों को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करने की अपील भी की, जिससे उनकी नाट्य प्रक्रिया को बेहतर रूप में समझा जा सके और उनकी प्रस्तुतियां भी की जा सकें।”

‘गिरिजा कुमार माथुर आलोचक के रूप में’ विषय पर कौशलनाथ उपाध्याय ने कहा कि “गिरिजा कुमार माथुर का आलोचक व्यक्तित्व उनकी कविता में आता रहा है। वे किसी भी रचना का मूल्यांकन किसी खांचे में रखकर नहीं करते हैं बल्कि वे उसके विश्लेषण के लिए एक ‘नई राह’ चुनते हैं जो एक आलोचक के रूप में उन्हें रामचंद्र शुक्ल के पास ले जाती है। वे अपनी आलोचना में किसी एक का पक्ष नहीं लेते हैं बल्कि वहां भी वे आधारभूत मूल्यों और तत्त्वों को खोजने-निकालने की कोशिश करते हैं।”

आलोचक रवि भूषण ने कहा कि “उनके आलोचकीय व्यक्तित्व में उनके बचपन, प्रारंभिक शिक्षा एवं निराला तथा रामविलास शर्मा के सान्निध्य का बहुत बड़ा हाथ है। उनका ‘नाद सौंदर्य’ विचारणीय है और कविता जैसा कि उन्होंने खुद कहा है कि कविता जीवन के आलोक की वाणी है। एक आलोचक के रूप में उनकी दृष्टि निरंतर विकसित होती रही है। उनकी आलोचना का सामाजिक पक्ष बहुत महत्त्वपूर्ण है तथा वे अपनी आलोचना में प्रयोगशीलता और आधुनिकता को साथ-साथ लेकर चलते हैं। उनका मूल्यांकन व्यापक और नई दृष्टि के साथ किया जाना आवश्यक है।”

‘गिरिजा कुमार माथुर परिवार में’ विषय पर उनके पुत्र अमिताभ माथुर ने उनकी कई रोचक आदतों का ज़िक्र करते हुए कहा कि वे अपने परिवार को बेहद प्यार करते थे और बहुत व्यस्त रहते हुए भी सभी के लिए समय निकालते थे। उन्होंने देर रात तक लिखने, घर आए प्रत्येक व्यक्ति की मदद करने आदि के कई रोचक संस्मरण भी सुनाए। इस अवसर पर गिरिजा कुमार माथुर के पुत्र पवन माथुर द्वारा संपादित ‘गिरिजा कुमार माथुर रचना-संचयन’ का लोकार्पण भी किया गया।

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