ग्राउंड रिपोर्ट: कश्मीर में पाबंदियों के बीच डॉक्टरों ने अपने घरों को अस्पताल बना दिया

अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद लगाई गई पाबंदी में भले ही ढ़ील दी गई है फिर भी सड़कों पर सुरक्षा बल के जवान तैनात हैं और हर 300 से 500 मीटर की दूरी पर बैरिकेड और चेकप्वाइंट बना रखा है। ये चेकप्वाइंट न सिर्फ आम लोगों को प्रभावित कर रहे हैं बल्कि मरीज़ों के लिए भी परेशानी का सबब बने हुए हैं।
घाटी में पिछले 14-15 दिनों से अपने घरों में ही क़ैद होने के चलते मरीज़ और डॉक्टर क्लीनिक और अस्पताल जाने में असमर्थ हैं। नतीजतन कई डॉक्टरों ने अपने घरों पर ही मरीजों को देखना शुरू कर दिया है।
ऐसा ही एक मामला डॉक्टर सज्जाद का है (बदला हुआ नाम)। चार किलोमीटर के दायरे में ये एक मात्र डॉक्टर हैं और अपने घर पर ही मरीज़ को देख रहे हैं। शुरू में मरीज़ों की संख्या कम थी लेकिन जैसे ये ख़बर फैली बड़ी संख्या में मरीज़ यहां आने लगे।
सज्जाद का मानना है कि लोगों को मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में अस्पताल जाने से नहीं रोका जाना चाहिए। कर्फ्यू के चलते अब तक लोगों के पास अस्पताल जाने का साधन नहीं हैं यहां तक इमरजेंसी के समय भी लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
12 अगस्त को ईद-उल-अज़हा के मौके पर डॉ. सज्जाद ने अपने घर पर फूड प्वाइजनिंग के कई मरीज़ों को देखा। लोगों ने ईद-उल-अज़हा बेहद सख़्ती के दौरान मनाया था। फूड प्वाइजनिंग के चलते कई लोगों की हालत इतनी ख़राब थी कि उन्हें पानी (ग्लूकोज़) चढ़ाने की नौबत आ गई और उनकी निगरानी के लिए उन्हें घर पर ही रखना पड़ा।
उन्होंने कहा, “मेरे पास बहुत से मरीज़ आएं जिनके पास पैसे नहीं थे, इसलिए मैंने उनका इलाज बिना किसी पैसे के करने का फैसला किया। वे मेरे अपने ही लोग हैं। मैंने उन लोगों के लिए दरवाज़े खुले रखे हैं ताकि उन्हें पता चले कि वे आधी रात को मेरे दरवाज़े पर दस्तक दे सकते हैं।"
जिस दिन दुनिया भर के लोग ईद मना रहे थे, सज्जाद के पास पैलेट से कुछ ज़ख्मी लोग आए, उनमें से कुछ की पलकों और पीठ पर पैलेट की गोलियां लगी थीं। इन पर सुरक्षा बलों द्वारा गोलियां चलाई गई थीं। सज्जाद ने कहा, “9 साल की उम्र तक बच्चे थे। मैंने उनकी मदद करने की पूरी कोशिश की। मैं इस तरह की इमरजेंसी का इलाज करूंगा।”
पैलेट से मामूली रूप से ज़ख़्मी होने वाले ज़्यादातर पीडि़त अस्पताल जाने से बचने की कोशिश करते हैं और स्थानीय तौर पर पैलेट की गोलियां निकाले जाने या इलाज किए जाने को वे सही नहीं मानते हैं। वे कहते है “लोग आस पास के इलाक़े में ही इलाज कराते हैं क्योंकि सरकार अस्पतालों में इन लोगों की तलाश कर रही है और अगर वे मिल जाते हैं तो उन्हें हिरासत में लिया जा सकता है। हिरासत के इस डर के चलते वे अस्पतालों में जाने से बचते हैं।”
इससे पहले 2016 में ऐसे मामले सामने आए थे जिनमें पैलेट की गोलियों से पीड़ितों को सुरक्षा बलों द्वारा अस्पताल जाने के दौरान रास्ते में रोक दिए गए थे और उन्हें पीटा गया था और हिरासत में लिया गया था।
डॉ. सज्जाद कहते हैं कि स्थानीय मेडिकल दुकानों पर पैलेट के छर्रों को निकालना ख़तरनाक है जिनके पास इस काम को करने के लिए बेहतर उपकरण नहीं हैं जिससे गंभीर संक्रमण हो सकता है।
उन्होंने कहा, “कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने हिरासत के डर के कारण अस्पताल जाने से मना कर दिया और अपनी आंखों की रोशनी गंवा बैठे। उनकी आंखों की रोशनी बचाई जा सकती थी अगर उनका सही समय पर इलाज हो जाता।” लेकिन इन लोगों के लिए कोई और विकल्प नहीं बचा है।
पैलेट पीड़ितों के अलावा दूसरे मरीज़ों ने भी सज्जाद के घर पर दिखाना शुरू कर दिया है। 15 अगस्त को पाबंदियों के चलते ज़्यादा से ज़्यादा लोगों ने उनसे दिखाया क्योंकि सभी मुख्य मार्ग को सुरक्षा बलों ने बंद कर रखा था।
एक मरीज़ को हर्पीस ज़ोस्टर था। हर्पीस ज़ोस्टर एक वायरल संक्रमण है जो वैरिसेला-ज़ोस्टर वायरस के रिएक्टिवेशन के कारण होता है। यह काफी तकलीफदेह होता है। इसके लक्षण के शुरू होने के 72 घंटे के भीतर एंटीवायरल दवाओं द्वारा इसके इलाज की आवश्यकता होती है।
सज्जाद कहते हैं, “यह बहुत ही तकलीफदेह होता है। मरीज़ के साथी रो रहे थे क्योंकि वे असहाय थे और इलाज कराने में असमर्थ थे।”
सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में छह स्टाफ होने के बावजूद केवल सज्जाद और उनके एक सहयोगी 5 अगस्त से जा पाते हैं। सज्जाद इसी अस्पताल में कार्यरत हैं।
लगभग 8 घंटे तक इस स्वास्थ्य केंद्र में काम करने के बाद सज्जाद घर आने के बाद भी मरीज़ों को देखते है। औसतन वह प्रतिदिन अपने घर पर लगभग 75 मरीज़ों को देखते है और उन्हें वे मुफ्त इलाज करते है।
अस्पताल की स्थिति के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "अभी हमारे अस्पताल किसी भी तरह की आपात स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं, दवाओं और अन्य महत्वपूर्ण सामग्रियों का कोई उपयुक्त बैकअप नहीं है।"
उन्होंने कहा, “हम गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीज़ों को भी देखते हैं और उन लोगों को भी देखते हैं जिनको गंभीर चोटें आई हैं। लेकिन जब चीजें अधिक जटिल होती हैं तो हम उन्हें बड़े अस्पताल भेजते हैं। लेकिन अब, रेफरल मामले में भी उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि एम्बुलेंस को भी रोका जा रहा है।”
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