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सरकार का आंकड़ा— सीवर में हर सप्ताह एक सफाईकर्मी की मौत, लेकिन फिर भी ख़ामोशी

प्रधानमंत्री पांच सफाई कर्मचारियों के पैर धोकर ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गये। शायद उन्हें लगता होगा कि पैर धोते हुए वीडियो बनवाने और फोटो खिंचवाने से सफाई कर्मचारियों की तक़दीर बदल जाएगी। लेकिन क्या कुछ बदला?
sanitation worker
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

बात लगभग साढ़े चार साल पुरानी है। आपको शायद होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंभ मेले के दौरान पांच सफाई कर्मचारियों के पैर धोए थे, तौलिए से पैरों को साफ किया था और सफाई कर्मचारियों को अंगवस्त्र पहनाया था। कारपोरेट मीडिया ने मोदी का खूब गुणगान किया था, तो कुछ लोगों ने इस पर सवाल भी उठाया था। किसी ने कहा था कि ये नौटंकी है, तो किसी ने कहा था कि प्रधानमंत्री सफाईकर्मियों का नहीं बल्कि खुद का सम्मान कर रहे हैं। सफाई कर्मचारी आंदोलन के संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने उस समय कहा था कि प्रधानमंत्री जी हमारे पैर नहीं अपने दिमाग की सफाई कीजिये।

प्रधानमंत्री पांच सफाई कर्मचारियों के पैर धोकर ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गये। शायद उन्हें लगता होगा कि पांच सफाई कर्मचारियों के पैर धोते हुए वीडियो बनवाने और फोटो खिंचवाने से सफाई कर्मचारियों की तकदीर बदल जाएगी। लेकिन क्या कुछ बदला? भाजपा सरकार को नौ साल से ज्यादा का समय हो गया। क्या कभी सफाई कर्मचारियों की सुध ली? हाथ से मैला उठाने को विवश औरतों और सीवर में उतर कर अपनी जान गंवाने वालों के बारे में कभी सोचा? क्या कोई स्थिति बदली? क्या सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की मौत बंद हो गई? आइये, पड़ताल करते हैं।

सीवर सफाई के दौरान पिछले पांच सालों में 308 मौत: सरकार

राज्यसभा में सीवर सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की मौत के संदर्भ में समाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय से सवाल (सवाल क्रमांक 3809) पूछा गया। समाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण राज्यमंत्री रामदास अठावले ने 5 अप्रैल 2023 को जिसका लिखित जवाब दिया। जवाब के अनुसार पिछले पांच सालों में सीवर साफ करते हुए 308 सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है। यानी हर सप्ताह एक सफाई कर्मचारी की मौत। सबसे ज्यादा 52 मौत तमिलनाडु में हुई हैं। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है जहां सीवर साफ करते हुए 46 सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है और तीसरे नंबर पर हरियाणा है जहां 40 सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है। इन मौतो का ज़िम्मेदार कौन है? सफाई कर्मचारी सीवर में मर रहे हैं, क्या सरकार के कान पर जूं तक रेंग रही है?

हाथ से मैला साफ करने प्रतिषेध एवं पुनर्वास अधिनियम 2013 का क्या हुआ?

सफाई कर्मचारियों और हाथ से मैला साफ करने के संबंध में हर सवाल के जवाब में सरकार कहती है कि हाथ से मैला उठाने की प्रथा खत्म हो चुकी है। जबकि दूसरी तरफ राज्यसभा में एक सवाल (सवाल क्रमांक 3800) के लिखित जवाब में कहती है कि हाथ से मैला साफ करने वालों की पहचान के लिए देश में 2013 और 2018 में दो सर्वे किए गए हैं। जिनके अनुसार भारत में 58,098 “इलिज़िबल” यानी पात्र हाथ से मैला साफ करने वाले हैं। हालांकि कायदे से ये भी बताना चाहिए कि इस “इलिज़िबल” शब्द से सरकार का क्या अर्थ है? हाथ से मैला साफ करने वालों की योग्यता और पात्रता का पैमाना क्या है? जब सरकार राज्यसभा में लिखित जवाब दे रही है कि देश में 58,098 व्यक्ति आज भी हाथ से मैला साफ करने को विविश हैं, तो दूसरी तरफ ये क्यों कह रही है कि देश में हाथ से मैला साफ करने की प्रथा खत्म हो चुकी है। सरकार बताए कि हाथ से मैला साफ करने प्रतिषेध पुनर्वास अधिनियम 2013 का क्या हुआ? कितने लोगों के खिलाफ कार्यवाही की गई?

ना उपकरण, ना सुरक्षा, बस मौत

राज्यसभा में समाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय से पूछा गया कि मशीन के जरिये सीवर सफाई के दौरान कितने सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है। 22 अप्रैल 2023 को सवाल क्रमांक 2522 के लिखित जवाब में मंत्रालय मशीनीकरण के सवाल पर मौन रहा। बस यह बताया कि सेप्टिक टैंक और सीवर सफाई जैसे ख़तरनाक काम को करते हुए 308 लोगों की मौत हुई है। मंत्रालय ने बताया कि सीवर सफाई के दौरान सुरक्षा के उन तौर-तरीकों को नहीं अपनाया गया जो हाथ से मैला साफ करने प्रतिषेध अधिनियम में बताए गए हैं। यानी स्पष्ट है कि कानून का उल्लंघन हुआ है। ना सुरक्षा इंतज़ाम है और ना ही सुरक्षा उपकरण। निहत्थे सफाई कर्मचारियों को सीवर और सेप्टिक की ज़हरीली गैस के हवाले किया जा रहा है। सरकार अभी तक सफाई कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण तक उपलब्ध नहीं करा पा रही है मशीनीकरण तो बहुत दूर की बात है।

सीवर में मौत का सरकारी आंकड़ा विवादित

“सफाई कर्मचारी आंदोलन” के संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने बताया कि सीवर में मौत का सरकारी आंकड़ा सही नहीं है। सरकारी आंकड़ों में कम मौत दिखाई गई हैं जबकि वास्तव में मौतों की संख्या कहीं अधिक है। गौरतलब है कि सफाई कर्मचारी आंदोलन पिछले एक साल से ज्यादा समय से सीवर में मौतों के खिलाफ एक अभियान चला रहा है। अभियान का नाम है Stop Killing Us यानी हमें मारना बंद करो।

विल्सन ने बताया कि जबसे ये अभियान शुरू हुआ है यानी मई 2022 से लेकर मई 2023 तक सीवर में 100 से ज्यादा मौतें हुई हैं। सरकार पांच साल में 308 मौत बता रही है जबकि हमने मात्र पिछले एक ही साल में 100 से ज्यादा मौत दर्ज की हैं। उन्होंने बताया कि 1993 से लेकर अब तक सीवर में 2000 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।

इन मौतों का ज़िम्मेदार कौन, कितने मुकदमें दर्ज, कितनों को सज़ा?

ऊपर दिए गए आंकड़े स्पष्ट कर रहे हैं कि हाथ से मैला साफ करने प्रतिषेध अधिनियम का खूब उल्लंघन हो रहा है। लेकिन क्या किसी की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही तय की गई? क्या किसी के खिलाफ मुकदमा दर्ज़ हुआ? कितने लोगों को सजा हुई? समाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय ने राज्यसभा में सवाल क्रमांक 3809 के लिखित जवाब में बताया है कि पिछले पांच सालों में सीवर साफ करते हुए 308 लोगों की मौत हुई है। जिनमें से मात्र 240 लोगों को पूरा मुआवजा मिला है और 33 लोगों को आंशिक मुआवजा मिला है।

308 मौतों के संदर्भ में 205 एफआईआर दर्ज़ की गई हैं लेकिन उनमें से किसी एक में भी आरोपी को आज तक सजा नहीं हुई है। मंत्रालय ने लिखित जवाब में बताया है कि सभी मामले अभी अलग-अलग चरण में है और किसी भी मामले में किसी तार्किक निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं।

ये सब बता रहा है कि सरकार सफाई कर्मचारियों को लेकर कितनी गंभीर है। हाथ से मैला साफ करने प्रतिषेध और पुनर्वास अधिनियम 2013 को लेकर कितनी गंभीर है। पिछले पांच सालों में हर सप्ताह एक सफाई कर्मचारी सीवर या सेप्टिक टैंक साफ करते हुए मर जाता है लेकिन कोई जवाबदेही तय नहीं हो पाती, किसी को सजा नहीं मिलती, सभी पीड़ित परिवारों को मुआवजा तक नहीं मिलता।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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