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ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वांचल में खाद के लिए हाहाकार, योगी सरकार ने किसानों को फिर सड़कों पर ला दिया

चंदौली के किसान कड़ाके की ठंड में सहकारी समितियों के सामने दिन भर लाइन लगा रहे हैं। खाद न मिलने से परेशान किसान हर रोज़ अपनी नाराज़गी व्यक्त कर रहे हैं। 1200 रुपये की बोरी ब्लैक में 1400 से 1500 रुपये में बेची जा रही है।
Purvanchal
चंदौली के सैदूपुर सहकारी समिति पर किसानों की लाइन बता रही है कि मुश्किल में हैं जिले के किसान

पूर्वांचल में रासायनिक खादों की जबर्दस्त किल्लत और योगी सरकार के मिस मैनेजमेंट ने किसानों को फिर सड़कों पर ला दिया है। धान से खाली खेतों की जुताई हो चुकी है और खाद के लिए चौतरफा हाहाकार मचा है। समस्या का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि धान का कटोरा का रुतबा हासिल करने वाले चंदौली के किसान कड़ाके की ठंड में सहकारी समितियों के आगे दिन भर लाइन लगा रहे हैं। ये किसान हर रोज अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। फिर भी रासायनिक डीएपी और यूरिया का टोटा है। यूपी में डीएपी खाद की एक बोरी की क़ीमत 1200 रुपये है, जबकि इसे ब्लैक में खुलेआम 1400 से 1500 रुपये में बेची जा रही है।

रबी सीजन में सरसो, गेहूं, आलू, चना, मटर, मसूर की बुआई के लिए डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और एनपीके (एनपीके), सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) और एमओपी की जरुरत होती है। इनमें भी सबसे ज्यादा जरूरत डीएपी की होती है जो किसानों को बुआई के वक्त जमीन में ही देना होता है। पूर्वांचल के चंदौली, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर, सोनभद्र, आजमगढ़, मऊ, बलिया, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, देवरिया समेत सभी जिलों में रासायनिक खादों का भीषण संकट है। दिन भर लाइन में लगने के बाद भी किसानों को खाद की एक बोरी भी नसीब नहीं हो पा रही है, हालांकि जिला प्रशासन इससे इनकार कर रहा है।

पिछले एक हफ्ते से स्थिति विकराल बनी हुई है। जिस सहकारी समिति पर खाद होने की सूचना मिल रही है, किसान उस ओर दौड़ जा रहे हैं। पूर्वांचल के सभी इलाकों में खाद के लिए किसानों में हाय-तौबा मची है। इसका फायदा कालाबाजारी करने वाले उठा रहे हैं। चकिया के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट प्रेम प्रकाश मीणा ने कुछ रोज पहले चंदौली से बिहार जा रही खाद की एक बड़ी खेप पकड़ी थी। जांच-पड़ताल करने पर पता चला कि इलिया के रास्ते धड़ल्ले से पड़ोसी राज्य बिहार में खाद की तस्करी की जा रही है। मीणा यह जानकारी जुटा रहे हैं कि खाद की तस्करी करने वाले गिरोह के हाथ कितने लंबे हैं? 

लंबी कतारें, हालात विस्फोटक

चंदौली जिले में सभी सहकारी समितियों पर किसानों की लंबी कतारें बता रही हैं कि खाद के संकट के चलते स्थिति विस्फोटक हो गई है। सहकारी समितियों पर रोज सुबह से किसान लाइन लगाकर खड़े हो जाते हैं। खाद नहीं मिलती है, तो फिर दूसरे दिन लाइन में लगने के लिए सुबह-सुबह घर से निकल पड़ते हैं। चंदौली जिले के चकिया सहकारी समिति पर लाइन लगाए खड़े पचवनिया के रामवृक्ष ने कहा, "पिछले पांच दिनों से खाद के लिए लाइन में लग रहे हैं, लेकिन खाद नहीं मिल पा रही है। हमें छह बोरी डीएपी चाहिए। समझ में नहीं आ रहा है कि खेती कैसे करें? खेत सूखते जा रहे हैं। खाद की बोरियों से लदी गाड़ी आते ही हम दौड़ते हैं, लेकिन पुलिस डंडे फटकारकर भगा देती हैं। रबी सीजन में गेहूं के अलावा दलहनी और तिलहनी फसलों की बुआई शुरू हो गई है। ऐसे में डीएपी और यूरिया की मांग बढ़ी है। एक-एक बोरी खाद के लिए हमारे जैसे न जाने कितने किसानों को घंटों लाइन में लगना पड़ रहा है। फिर भी खाद नहीं मिल रही है।"

खाद के लिए सुबह से शाम तक इस तरह लग रही लाइन

खाद के लिए लाइन लगाए ढोड़नपुर के छोटेलाल को धक्का-मुक्की में पैर में चोट लग गई, लेकिन वह लाइन से नहीं हटे। उन्होंने आरोप लगाया, "बाजार में खाद के लिए पैसा अधिक लग रहा है। खाद भी नकली ही मिल रही है। हमें सरकारी खाद पर ज्यादा भरोसा है, लेकिन वह नहीं मिल पा रही है। डीएपी न मिलने से बुआई में हो रही देरी के चलते हमारी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं।"

20 किमी दूर मूसाखाड़ से चकिया सहकारी समिति पर लगी हजारों किसानों की भीड़ से कुछ दूरी पर बैठे सुरेंद्र सिंह (45 वर्ष) सुस्ता रहे थे। खाद के लिए उमड़ी भीड़ में उनके परिवार के कुछ अन्य सदस्य खड़े थे। सुरेंद्र का यह पहला दिन नहीं था। वह पिछले पांच दिनों से यही कहानी हर रोज दोहरा रहे है। सुरेंद्र सिंह जैसे न जाने कितने किसान भूखे-प्यासे डीएपी के लिए सहकारी समितियों और खाद की प्राइवेट दुकानों के चक्कर लगा रहे हैं। भाग-दौड़ के बावजूद किसानों को खाद नहीं मिल पा रही है। सहकारी समितियों पर सुबह से लेकर देर रात तक मजमा लग रहा है। डीएपी की कुछ गिनी-चुनी बोरियां आ भी रही हैं तो कुछ ही देर में खत्म हो जा रही हैं।

किसान कहते हैं अगर समय पर डीएपी मिल जाए तो न सिर्फ डीजल के हजारों रुपये बचेंगे बल्कि उनकी फसल भी अच्छी हो जाएगी। चंदौली जिले के ज्यादातर इलाकों में अतिवृष्टि के चलते धान की फसल अच्छी नहीं हुई। चंदौली के किसान पहले से आर्थिक संकट की मार झेल रहे हैं।

नरेंद्र देव

चकिया के रघुनाथपुर गांव के नरेंद्र देव सीमांत किसान हैं। उनके पास ढाई एकड़ जमीन है। वह पांच दिनों से डीएपी खाद के लिए मशक्कत कर रहे हैं। नरेंद्र देव जैसे चंदौली जिले के हजारों किसानों के चहरे पर चिंता के बादल मंडरा रहे हैं। किसानों के मुताबिक अगर उन्हें समय पर खाद मिल जाए तो उन्हें डीजल के हजारों रुपये बच सकते हैं। नरेंद्र देव कहते हैं, "एक-दो बोरी डीएपी मिल भी जाए तब भी गेहूं की खेती कैसे हो पाएगी? हमें तो पांच-छह बोरियों की और जरूरत है। अब चिंता सता रही हैं कि खाद का इंतजाम कैसे होगा?"

चकिया में खाद के लिए किसानों की लंबी कतार

पचफेड़वा के किसान चंद्रिका यादव (45 वर्ष) कहते हैं, "समय पर किसानों को डीएपी खाद नहीं मिली तो खेत सूख जाएंगे। हमारे जैसे न जाने कितने किसान बर्बाद हो जाएंगे। डीजल के भाव आसमान छू रहे हैं। हम यह मौका खोना नहीं चाहते। हमें मटर, चना, मसूर, गेहूं की खेती हर हाल में करनी हैं।"

खाद के चक्कर में कई दिनों से भटक रहे छोटेलाल (42 साल) को किसी तरह से डीएपी की एक बोरी मिल पाई। उन्हें चार बोरियों की और जरूरत हैं। छोटेलाल चकिया के सुदूरवर्ती गांव ढोड़नपुर के रहने वाले हैं। वह कहते हैं,"खाद की इतनी किल्लत आज तक नहीं देखी। इस बार तो एक-एक डीएपी बोरी की मारा-मारी मची है। दो दिन डेरा डालने के बाद एक बोरी खाद ही मिल पाई।" छोटेलाल यह भी कहते हैं,"हमें इस वक्त खेत में होना चाहिए, लेकिन खाद के लिए हम सहकारी समितियों पर भटक रहे हैं। बाजार से डीएपी खाद गायब है। हमारे पास केवल खेती ही तो है, वह भी समय पर नहीं हुई तो हम बर्बाद हो जाएंगे।"

चंदौली के सैदूपुर, चकिया, सिकंदरपुर, शिकारगंज, शहाबगंज सहकारी समितियों पर रोजाना किसानों की लंबी कतारें लग रह हैं। इन समितियों पर 09 दिसंबर को छह-छह सौ बोरी डीएपी पहुंची और देखते ही देखते खत्म हो गई। क्रय केंद्र संचालकों का कहना है कि गोदाम से जितना स्टॉक मिल पा रहा है, वे प्रति दिन उसे बांट रहे हैं। उन्होंने बताया कि गोदाम से स्टॉक आने में देरी हो रही है जिसके चलते किसानों को खाद के लिए दिक्कत पैदा हो रही है।

रामचंद्रपाल

फिरोजपुर के रामचंद्रपाल, मुबारकपुर के घनश्याम ने "न्यूजक्लिक" से कहा, "खेतों में गेहूं की बुआई का समय है, लेकिन उन्हें खाद समय पर नहीं मिल पा रही है। दो से तीन दिन की देरी से खाद मिल रही है, जिस कारण फसल की बुआई में देरी हो रही है। वो सुबह से आकर लाइन में लग जाते हैं और शाम तक लाइन में लगे रहते हैं, लेकिन जब नंबर आता है, तब बताया जाता है कि खाद खत्म हो गई है।"

घनश्याम

प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि प्राइवेट दुकानों को भी खाद दिलाई गई है, लेकिन 10 बजे तक दुकानें ही नहीं खुलती हैं। प्राइवेट दुकानदार किसानों को खाद आसानी से नहीं दे रहे हैं। किसानों के मुद्दे पर मुखर आवाज उठाने वाली सपा नेत्री गार्गी सिंह पटेल कहती हैं, "मिस मैनेजमेंट के चलते चंदौली में खाद की जबर्दस्त किल्लत है। प्रभावशाली किसान तो किसी तरह से डीएपी का इंतजाम कर ले रहे हैं, लेकिन सीमांत किसान और बंटाई पर खेती करने वाले खासे परेशान हैं। खाद की बड़ी खेप ब्लैक करने के लिए बिहार जा रही है। गाहे-बगाहे पकड़ी भी जा रही है। चंदौली जिले के अफसर और कर्मचारी बेलगाम हो गए हैं। सब के सब गांवों में मंदिर बनवाने में जुटे हैं। इन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि खाद न मिलने से किसानों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।"

किसान विकास मंच से जुड़े किसान नेता राम अवध सिंह कहते हैं, "खाद की दिक्कतों को लेकर हम दो मर्तबा चंदौली के जिलाधिकारी से मिल चुके हैं। जिला कृषि अधिकारी और उप कृषि निदेशक को भी किसानों की परेशानियों से अवगत करा चुके हैं, लेकिन हालात जस के तस हैं। किसानों की समस्याओं का निवारण करने के लिए जिला स्तर पर आला अफसरों का एक फोरम बना था। महीने के हर तीसरे बुधवार को किसान दिवस का आयोजन होता था, लेकिन मार्च 2020 से वह बंद है। चंदौली के अफसरों को किसानों की न कोई चिंता है, न परवाह।"

"किसानों की नहीं, मंदिर की चिंता"

मजदूर किसान मंच के चंदौली जिला संयोजक अजय राय ने न्यूजक्लिक से कहा, "चंदौली में उन्होंने जब से कार्यभार संभाला है, तब से वह जगह-जगह मंदिरों के निर्माण कराने में ज्यादा समय दे रहे हैं। घपला-घोटाला करने के लिए जिला पंचायतों का काफी पैसा मंदिरों के निर्माण और जिर्णोद्धार पर खर्च किया जा रहा है। जिले के अफसरों को सिर्फ मंदिर की चिंता है, किसानों की बिल्कुल नहीं। नास्तिक घोषित होने के डर के चलते अफसरों और जनप्रतिनिधियों की मनमानी के खिलाफ बोल पाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा है। चंदौली जिले में खाद की खुलेआम ब्लैक मार्केटिंग की जा रही है और अफसर तमाशबीन बने बैठे हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की दोषपूर्ण नीतियों और अकर्मण्यता के चलते स्थिति विस्फोटक होती जा रही है। चंदौली में डीएपी की जबर्दस्त किल्लत हैं। खाद की जबरदस्त कालाबाजारी हो रही है। प्राइवेट दुकानों पर डीएपी 1400-1500 रुपये में बिक रही है, लेकिन प्रशासन को खाद की कालाबाजारी दिख नहीं रही है। पूर्वांचल में खाद का सर्वाधिक संकट चकिया इलाके में है। किसान खाद के लिए परेशान है। किराये पर देने के नाम पर उतरौत सहकारी समिति को बंद कर दिया गया हैं। भाजपा राज में खेती तबाह हो रही है।"

चंदौली का एक किसान, जो दस दिन से सहकारी समितियों पर लगा रहा लाइन

अजय कहते हैं, "एक ओर ग्रामीण इलाकों में बिजली की कटौती हो रही है, तो वहीं दूसरी तरफ अब समय पर खाद नहीं मिलने से किसान परेशान हो रहे हैं। प्राइवेट दुकानदार ब्लैक में खाद बेच रहे हैं, ऐसे में वे कहां जाएं? चंदौली के मुख्य़ विकास अधिकारी को किसानों की कोई चिंता ही नहीं है। किसानों के खाद मुहैया करा पाने में योगी सरकार विफल है।"

चकिया सहकारी समिति के कर्मचारियों का कहना है कि जितनी डीएपी खाद आ रही है, वह समिति के सदस्यों के हिसाब से अपर्याप्त है। इसके चलते किसानों का भारी दबाव आ रहा है। नौ दिसंबर को 600 बोरी डीएपी खाद आई है, उसका वितरण चल रहा है। लेकिन जरूरतमंद समिति के सदस्य किसानों की संख्या काफी ज्यादा है, इस कारण वे लगातार समिति कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं और चाहते हैं कि उन्हें भी डीएपी उपलब्ध हो जाए।

किसान विकास मंच से जुड़े राधेश्याम पांडे, अयूब खान, रमेश पांडे, त्रिलोकी नाथ यादव, रामदुलार यादव, इंद्रदेव यादव, अशोक दुबे, जय सिंह, नवीन चंद्र पांडे, लक्ष्मण सिंह योगी सरकार की नीयत पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, "देश में ऐसा क्या हो गया जिससे डीएपी और यूरिया की किल्लत खड़ी हो गई। पूर्वांचल के किसान रासायनिक खादों के लिए परेशान हैं। सरकार कह रही है उनके पास पर्याप्त खाद है। फिर किसान दिन-दिन भर लाइन क्यों लगा रहे हैं? हंगामा कर रहे हैं। किसानों को सामने आत्महत्या की नौबत क्यों आ रही है? गेहूं, सरसों और आलू की बुआई के मुख्य सीजन में पूर्वाचल में किसान डीएपी और यूरिया जैसे रासायनिक उर्वरकों के लिए परेशान हैं। पिछले एक हफ्ते से समस्या ज्यादा गंभीर हुई है। खाद के लिए किसान भटक रहे हैं। वह 1200 वाली डीएपी 1500 तो 1475 वाली एनपीके 1800 से 2000 रुपये तक में खरीदने को मजबूर हैं। कुछ किसानों ने तो लाचारी में बगैर खाद के ही बुआई कर दी है। यहां की खेती नहर में पानी आने पर निर्भर करती है तो किसान सरकार से खाद आने का इंतजार नहीं कर सकता। कई छोटे किसानों ने हमारे यहां मजबूरी में बिना डीएपी-एनपीके डाले ही बुआई कर दी है।"

अफसर नहीं मानते खाद की किल्लत की बात

पूर्वांचल समेत समूचे उत्तर प्रदेश के किसान खाद की किल्लत से परेशान हैं और सरकार लगातार किल्लत की बात से इनकार करती रही है। "न्यूजक्लिक" के सवाल के जवाब में चंदौली के जिला कृषि अधिकारी बसंत दुबे ने कहा, "जिले में कुछ समय के थोड़े हिस्से में किल्लत हुई थी, लेकिन वो भी सप्लाई के चलते। डीएपी की रैक आ चुकी है। अब हर जगह पर्याप्त उर्वरक हैं। धान की फसल एक साथ कटी। किसानों को एका-एक बुआई करनी पड़ी तो उर्वरक के लिए लोग एक साथ दौड़ पड़े। थोड़े समय के लिए खाद की सप्लाई में थोड़ी दिक्कत आई। लाइनअप में करने में थोड़ा समय लग गया। बस इतनी सी बात है।"

वाराणसी और चंदौली में डीएपी की किल्लत की सबसे बड़ी वजह है सप्लाई में गैप। वाराणसी और चंदौली समेत समूचे पूर्वांचल में सहकारी समितियों पर खाद की सप्लाई इफको और कृभको के जरिए की जाती है। करीब डेढ़ महीने बाद आठ दिसंबर 2021 को इफको की दो रैक में 6100 टन खाद बनारस पहुंची। इसकी आधी-आधी मात्रा चंदौली और बनारस के सेंटरों पर भेजी गई। कृभको के सेंटर खाली हैं और वहां खाद का संकट बना हुआ है। इफको के क्षेत्रीय अधिकारी आदर्श सिंह कहते हैं, "बनारस के शिवपुर में दो रोज पहले रैक उतरी और वहीं से चंदौली भेज दी गई। चार-पांच दिनों में एक रैक और डीएपी आने वाली है। पिछले डेढ़ महीने से विभाग के पास स्टाक नहीं था, इसलिए किसानों को थोड़ी कठिनाई हुई, लेकिन अब स्थिति सामान्य हो गई है।"

चंदौली से मिलती-जुलती स्थिति पूर्वांचल के सिद्धार्थनगर में है। वहां शोहरतगढ़ इलाके के किसान खाद की किल्लत से जूझ रहे हैं। गेहूं व सरसों की बुआई को लेकर जहां एक तरफ किसान डीएपी खाद के लिए परेशान हैं तो वहीं पर अब दूसरी ओर गेहूं फसल सिंचाई के बाद कुछ किसान यूरिया खाद की किल्लत से मुश्किल में हैं। अच्छी फसल उपज के लिए किसानों को यूरिया, पोटाश आदि उर्वरक की जरूरत है। किसान गेहूं की सिंचाई करने के बाद खाद के लिए दुकानों का चक्कर काट रहे हैं, लेकिन मिल नहीं पा रही है। तुलसियापुर, झुलनीपुर, सिसवा, गणेशपुर, बानगंगा, चिल्हिया, खुनवा, पकड़ी बाजार, शोहरतगढ़ इलाकों में प्राइवेट दुकानों पर यूरिया नदारद है। साधन सहकारी समितियों पर भी यूरिया का संकट है। यह स्थित तब है जब कुछ दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर में खाद के नए कारखाने का उद्घाटन किया है।

बुंदेलखंड में फिर गहराया संकट

रासायनिक खाद की किल्लत पूर्वांचल में अचानक इसलिए बढ़ गई कि यहां धान से खाली खेतों में गेहूं और दलहन-तिलहन की बुआई का समय है तो दूसरी ओर फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, कन्नौज, इटावा और चित्रकूट इलाके में आलू की फसल के लिए खेत तैयार किए जा रहे हैं। जो हाल पूर्वांचल का है, वैसा ही बुंदेलखंड इलाके में है। पीसीएफ के गोदामों पर खाद का भंडार है, लेकिन खाद क्रय केंद्रों तक समय से नहीं पहुंच पा रही है।

चित्रकूट जिले में खाद की किल्लत की वजह से किसान खासे परेशान हैं। किसानों की भीड़ सुबह से ही जुट रही है। समितियों के ताले खुलने से पहले ही सैकड़ों किसान खाद लेने के लिए लाइन में लग जाते हैं। भीड़ अधिक होने के कारण वितरण के दौरान उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। कर्मचारी बिना पुलिसकर्मी पहुंचे वितरण नहीं शुरू करते है। एक दिन पहले ही करीब 1400 एमटी डीएपी की रैक आई है। जिला प्रशासन ने वितरण के लिए तीन दर्जन सहकारी समितियों व वितरण केंद्र भिजवाया। डीएपी आने की सूचना मिलते ही किसानों की भीड़ रविवार सुबह से ही समितियों पर जुट गई और लाइन लगाकर जम गए। सहकारी समिति खोही में सुबह करीब छह बजे 50 से ज्यादा किसान पहुंच चुके थे। केंद्र खुलने से पहले खाद के लिए तीन सौ से अधिक किसानों का जमावड़ा लग गया। यही हालत गल्ला मंडी स्थित वितरण केंद्र में भी रहे। किसानों की भीड़ अधिक होने के कारण कर्मचारियों का खाद बांटना मुश्किल हो जाता है। हर किसान जल्दी से खाद लेना चाह रहा है।

खाद के चलते गई कई किसानों की जान

उत्तर प्रदेश में ललितपुर जिले में अक्टूबर महीने में चार किसानों की जान खाद के चलते गई थी, जिसमें दो लोगों की मौत खाद की लाइन में लगने के चलते हुई थी, जबकि दो अन्य ने आत्महत्या कर ली थी। दीगर बात है कि प्रशासन ने मौत की वजह खाद की किल्लत नहीं मानी थी। ललितपुर से सटे मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में एक किसान ने 29 अक्टूबर को खाद की किल्लत के चलते आत्महत्या कर ली थी। प्रशासन ने यहां भी आत्महत्या की वजह खाद नहीं माना था। दूसरी ओर, योगी सरकार का दावा है कि यूपी को यूरिया और डीएपी जरूरत से ज्यादा उपलब्ध कराया गया है। एनपीके की भी कोई किल्लत नहीं है। किसानों को चाहिए कि वो किल्लत की अफवाह पर ध्यान न दें और भंडारण न करें। कहीं भी खाद की किल्लत नहीं है।

क्या कहते हैं सरकारी आंकड़ें?

सरकारी आंकड़ों और बयानों से इतर जमीन पर सच्चाई ये है कि कई राज्यों के किसान अपनी फसल बोने के लिए डीएपी, एनपीके के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। नवंबर महीने में हालात थोड़े सुधरे, लेकिन दिसंबर में स्थिति दोबारा गंभीर हो गई। डीएपी की किल्लत लगातार बनी हुई है। इसके लिए कई तर्क दिए जा रहे हैं, जिसमें विदेशों में कच्चे माल का रेट बढ़ना, एकाएक बारिश के बाद मांग का बढ़ना, सरसो की ज्यादा बुआई, कोयला क्राइसिस के दौरान उर्वरकों के ट्रांस्पोर्टेशन में दिक्कतों का जिक्र आता है। लेकिन डीएपी-एनपीके की किल्लत को समझने के लिए ये समझना जरूरी है कि ये उर्वरक आते कहां से हैं?

उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 50 फीसदी फॉस्फेटिक उर्वरक का उत्पादन करता है बाकी माल विदेश से आता है। पोटाश,फॉस्फोरस और नाइट्रोजन तीनों विदेश से आते हैं। विदेशों से डीएपी तैयार और रॉ मैटेरियल दोनों रूप में मंगाई जाती है। जबकि भारत 80 फीसदी नाइट्रोजन (यूरिया) का उत्पादन करता है और बाकी विदेश से आता है। पिछले कई वर्षों की तुलना में स्टॉक सबसे कम पिछले काफी समय से अंतरराष्ट्रीय मार्केट में फॉस्फेटिक उर्वरकों और उनके रॉ मैटेरियल की ज्यादा मांग और महंगे होने से भारत का गणित गड़बड़ाया हुआ है।

उर्वरक मंत्रालय के अगस्त बुलेटिन के अनुसार साल 2020 में डीएपी का प्रति मीट्रिक टन रेट 336 यूएसडी (अमेरिकी डॉलर) था जो अगस्त 2021 में बढ़कर 641 मीट्रिक टन यूएसडी हो गया था। जो एक साल में 90.77 फीसदी की बढ़त दिखाता है। वहीं यूरिया 281 यूएसडी मीट्रिक टन से बढ़कर 513 यूएसडी हो गया जो 82.56 फीसदी हो गया। मूडीज की सहायक कंपनी आईसीआरए की रिपोर्ट और आंकड़ों को देखने पर पता चलता है कि पिछले कई वर्षों की तुलना में इस साल स्टॉक कम है।

मिस मैनेजमेंट से हालात बेक़ाबू

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, "रासायनिक खाद की किल्लत की सबसे बड़ी वजह ग्लोबल मार्केट में फर्टिलाइजर और रॉ मैटेरियल के रेट का बढ़ना है तो भाजपा सरकार का मिस मैनेजमेंट भी है। विदेश में जब दाम बढ़ते हैं तो भारत में कंपनियां डीएपी एनपीके के दाम बढ़ाती है, उसे कम करने के लिए सरकार सब्सिडी देती है। पिछले काफी समय से फॉस्फेटिक उर्वरकों और रॉ मैटेरियल के दाम ऊपर जा रहे हैं तो सब्सिडी समय से जारी करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।"

अप्रैल 2021 में विदेशी बाजार में कच्चे और तैयार माल की महंगाई को देखते हुए इफको समेत दूसरी उर्वरक कंपनियों और संस्थाओं ने डीएपी के रेट में 500-700 रुपये की बढ़ोतरी कर दी थी, जिसके बाद सरकार ने मई खरीफ सीजन के लिए 14,775 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी दी थी। जिसके बाद डीएपी दोबारा 1200 और यूरिया 265.50 पैसे में बिकने लगी थी।

सरकार ने कालाबाजारी करने वाले पर जेल भेजने के निर्देश दिए हैं। यूपी सरकार ने कहा कि अगर दुकानदार निर्धारित रेट से ज्यादा रेट पर उर्वरक की बिक्री करता पकड़ा गया तो उसके खिलाफ उर्वरक (अकॉर्बनिक, कार्बनिक या मिश्रित) नियंत्रण आदेश, 1985 एवं आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी।

वरिष्ठ साहित्यकार और ग्रामीण मामलों के जानकार रामजी यादव बताते हैं, "देश में उर्वरक की किल्लत नहीं, मिस मैनेजमेंट है। देश में भी उर्वरक की कमी नहीं है। लेकिन समय पर और जरुरत के मुताबिक किसानों तक पहुंच नहीं पाया।" उर्वरक किल्लत के लिए वे कई वजहें गिनाते हैं। कहते हैं, "देश में सबसे ज्यादा फर्टिलाइजर ट्रेन से जाता है, (कुल सप्लाई का करीब 80 फीसदी) लेकिन पिछले दिनों ज्यादातर ट्रेनें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का अनाज पहुंचाने में लगी थी, फिर कोयले की किल्लत हो गई तो ध्यान उधर चला गया। ऐसे में समय से माल पहुंच नहीं पाया। दूसरा मार्केट वालों ने माल को स्टॉक कर लिया।" तीसरा कारण कालाबाजारी, भारत में उर्वरक दो तरह से सप्लाई किए जाते हैं, जिनमें एक सोयासटी या कॉपरेटिव के माध्यम से और दूसरा खुले मार्केट के माध्यम से। खाद की किल्लत खुला सच इसकी कालाबाजारी भी है।

रामजी यादव यह भी कहते हैं, "उर्वरक को लेकर देश-विदेश के मार्केट में पिछले साल से ही उठापटक चल रहा है। सरकार रबी और खरीफ सीजन के लिए कंपनियों को कोटा आवंटित करती है फिर सप्लाई होती है। रबी सीजन में एक तो माल समय पर नहीं पहुंचा, दूसरा जहां पहुंचा वहां मार्केट वाले हिस्से में माल दबाकर रख लिया गया और फिर उसकी कालाबाजारी हुई। तीसरी वजह डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते ट्रांस्पोर्टेशन में आने वाली दिक्कत है। देश में ज्यादातर माल ट्रेन से जाता है लेकिन रैक से फिर ट्रक ही ले जाते हैं। डीजल महंगा हुआ तो ट्रांस्पोर्टर्स ने सस्ती ढुलाई की तरफ रुख नहीं किया।"

उर्वरक किल्लत के पीछे ये भी कहा गया कि विदेशों में माल महंगा होने से कई कंपनियों ने निर्धारित आवंटन के सापेक्ष में माल आयात नहीं किया। सरकारी अधिकारी इसे निराधार मानते हैं। उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग में संयुक्त निदेशक (उर्वरक) अनिल कुमार पाठक कहते हैं, "खाद की जो भी थोड़ी बहुत दिक्कत हुई वो एकाएक बारिश के चलते हुई, क्योंकि खेतों में नमी थी तो किसान जल्दी से जल्द बुआई करना चाहता था। अभी कहीं कोई किल्लत नहीं है। और प्रदेश के लिए निर्धारित सभी कंपनियों ने आवंटित मात्रा की सप्लाई की है।" उर्वरक की किल्लत पर इफको ने कहा कि उत्तर प्रदेश में सभी तरह की रासायनिक खादों में आपूर्ति में इफको कि हिस्सेदारी 40 फीसदी के करीब है। इफको के मुताबिक उसने प्रदेश में सरकार से आवंटित मात्रा से ज्यादा की आपूर्ति की है।

इफको के राज्य विपणन प्रबंधक अभिमन्यु राय, कहते है, "इफको की तरफ से उत्तर प्रदेश में कहीं कोई दिक्कत नहीं है। अक्टूबर महीने में 1 लाख 7 हजार मीट्रिक टन डीएपी आई है, जबकि नवंबर महीने में 1.90 लाख मीट्रिक टन का आवंटन हुआ। शत प्रतिशत स्टॉक मिल रहा है। सरकार द्वारा जिस जिले से जितनी डिमांड की जा रही है वहां खाद भेजी जा रही है।

विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में जितने डीएपी का उत्पादन होता है, उसके लिए कच्चा माल भी ज्यादातर विदेशों से आता है। विदेशों में दाम बढ़ने के कारण इफको के डीएपी की कीमत में भी 60 से 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। खादों के कीमतों में वृद्धि का सीधा असर कृषि लागत पर पड़ता है।

माना जा रहा है कि पूर्वांचल के किसानों के सामने खाद की ज्यादा जरूरत 15 से 20 दिसंबर तक रहेगी। यहां शुरू में डीएपी की दिक्कत थी और अब भी है। किसानों को मुश्किल से डीएपी के एक-दो बैग मिल पा रहे हैं। बंटाई पर खेती करने वाले और सीमांत किसानों के सामने दिक्कत बहुत ज्यादा है। इल्हें लाचारी में ब्लैक में खाद खरीदनी पड़ रही है। कई जगह किसानों को डीएपी नहीं मिली तो एनपीके लगाना पड़ा। एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने खाद को लेकर किसानों की समस्या और खाद की किल्लत को विधान परिषद में उठाने की बात कही है। आने वाले समय में यूपी में विधानसभा चुनाव है, जहां एक बड़ी आबादी किसानों की है।

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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