JNU CHS मामला: अब नहीं शिफ्ट होगी लाइब्रेरी

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज(CHS) की लाइब्रेरी को अब रिलोटेक नहीं किया जाएगा। ट्विटर पर CHS के एक छात्र ने लिखा कि ''हम जीत गए! JNU के इतिहास विभाग की लाइब्रेरी को रिटेन (Retain) किया गया।'' मतलब CHS की लाइब्रेरी पहले जहां थी वो वहीं रहेगी उसे कहीं और शिफ्ट नहीं किया जाएगा।
ANNOUNCEMENT!#SaveCHSLibrary HAS WON!
WE HAVE WON!
THE HISTORY DEPARTMENT IN #JNU GETS TO RETAIN ITS LIBRARY!
THANK YOU EVERYONE FOR ALL YOUR OVERWHELMING SUPPORT!
IT COULD NOT HAVE HAPPENED WITHOUT ALL OF YOU! pic.twitter.com/1UTAmHmtGb
— Saib Bilaval (@SaibBilaval) August 10, 2023
नए फैसले पर हमने CHS के पीएचडी स्टूडेंट सैब बिलावल (Saib Bilawal) से बात की। उन्होंने बताया कि ''वीसी और प्रोफेसर की मीटिंग में उन्हें (प्रोफेसर) बताया गया है कि अब हमारे डिपार्टमेंट की चौथी मंजिल के तीन कमरे तमिल अध्ययन सेंटर को दिए जाएंगे और हमारी लाइब्रेरी बिल्डिंग रिटेन की जाएगी जो किताबें निकाली गई हैं वो वापस शिफ्ट हो जाएंगी।''
वहीं आज देर शाम JNU प्रशासन की तरफ से भी एक नोटिफिकेशन जारी कर बताया गया कि CHS लाइब्रेरी जहां थी वहीं रहेगी। जबकि कुछ समय (temporary) के लिए तमिल अध्ययन के स्पेशल सेंटर, SCTS के लिए SSS-III की बिल्डिंग में चौथी मंजिल और दूसरी मंजिल पर व्यवस्था की जाएगी।
क्या है मामला ?
दरअसल, कुछ दिन पहले छात्रों ने आरोप लगाया था कि सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज (CHS) की लाइब्रेरी को हटाया जा रहा है और उसमें तमिल अध्ययन के लिए स्पेशल सेंटर, SCTS (Special Centre for Tamil Studies) की शुरुआत की जा रही है। जबकि CHS की लाइब्रेरी के क़रीब ही दूसरी जगह EXIM Bank Library में शिफ्ट किया जाएगा। CHS लाइब्रेरी को रिलोकेट करने के फैसले ने तूल पकड़ा और इस फैसले का विरोध शुरू हो गया।
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CHS की स्टूडेंट कम्युनिटी की तरफ से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर की गई जिसमें कहा गया कि CHS लाइब्रेरी होने के साथ ही एक डॉक्युमेंटेशन सेंटर है, जिसे UGC (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) से अनुदान भी मिलता रहा है। यहां करीब 18 हज़ार किताबें हैं, Ph.D थिसिस, जर्नल हैं जो सिर्फ रेफरेंस के लिए हैं। साथ ही इस लाइब्रेरी में 150 साल पुरानी किताबों का अनोखा संग्रह है।
इसके साथ ही बताया गया कि 1980 में CHS को UGC की तरफ DSA (Department of Special Assistance) का दर्जा मिला हुआ है और उससे मिले ग्रांट से इस लाइब्रेरी को बनाया गया था।
छात्रों के मुताबिक इस लाइब्रेरी में कई ऐसे दुर्लभ दस्तावेज (rare documents) हैं जो कहीं और उपलब्ध नहीं हैं।
छात्रों ने प्रशासन के फैसले के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध दर्ज करवाया, सोशल मीडिया पर हैशटैग #RightToRead #SaveCHSLi के साथ कैंपेन किया।
CHS के छात्रों के विरोध को JNU शिक्षक संघ (JNUTA) के साथ ही JNUSU का साथ मिला।CHS की पूर्व फैकल्टी की तरफ से वीसी को पत्र लिखा गया, जिसमें रोमिला थापर और हरबंस मुखिया समेत कई इतिहासकारों का नाम शामिल था, इन लोगों ने CHS के निर्माण उसे मिलने वाले ग्रांट और उसके महत्व को याद दिलाया।CHS की पूर्व फैकल्टी की तरफ से वीसी को लिखा गया
इनके अलावा समाज के बुद्धिजीवियों, सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज (CHS) के पूर्व छात्रों के साथ ही तमाम पढ़ने-लिखने वालों ने अपनी आपत्ति दर्ज करवाई। द टाइम्स ऑफ इंडिया पर छपी ख़बर के मुताबिक डीएमके सांसद (तमिलनाडु से) डॉ.डी रविकुमार ने भी JNU की वीसी को पत्र लिखकर CHS लाइब्रेरी को रिलोकेट ना करने की गुज़ारिश की।
डॉ.डी रविकुमार की इस गुज़ारिश के पीछे शायद सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त तरीके से चला कैंपेन बहुत हद तक काम आया हो सकता है। सैब बिलावल बताते हैं कि ''हमने सोशल मीडिया पर एक स्ट्रांग कैंपेन किया, हमने एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जिसमें हमने इतिहासकारों, पब्लिक फिगर से गुज़ारिश की कि आप भी इसमें शामिल हों और बहुत से लोग शामिल भी हुए।''
बिलावल कहते हैं कि ''हमने हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जिसमें बहुत सारे लोगों ने साइन किए क़रीब 2200 लोगों ने साइन किए, इतिहासकारों, प्रोफेसर, छात्रों के साथ ही जागरूक लोगों ने भी इसमें हिस्सा लिया, हमने हस्ताक्षर की इस लिस्ट को अपनी फैकल्टी, चेयरपर्सन, वीसी को दिखाया, साथ ही हमने ये लिस्ट डॉ. रविकुमार को भी दिखाई तो हो सकता है ये पब्लिक प्रेसर का असर हुआ हो।''
तमिल अध्ययन के लिए स्पेशल सेंटर, SCTS (Special Centre for Tamil Studies) की शुरुआत के लिए तमिलनाडु सरकार की तरफ से 10 करोड़ रुपये का फंड मिला है। इस सेंटर को मिले ग्रांट में डॉ. रविकुमार की अहम भूमिका थी।
छात्रों के लिए ये बड़ी जीत है। वे कहते हैं कि ''ये थोड़ी जल्दी मिली जीत लगती है, वर्ना हर मुद्दे के लिए कोर्ट जाना पड़ता है वैसे इस मुद्दे में भी लग रहा था कि हमें कोर्ट जाना पड़ेगा, सेंटर को मिले फंड के लिए RTI लगानी पड़ेगी लेकिन शायद प्रशासन को इस बात का एहसास हो गया इसलिए हमारी बात मान ली गई।''
लेकिन जब हमने छात्रों से पूछा कि लाइब्रेरी की जगह उनके ही सेंटर में,SCTS (Special Centre for Tamil Studies) को चौथी मंजिल पर खोलने की बात से उन्हें कोई ऐतराज है? तो बिलावल कहते हैं ''ये कुछ समय के लिए है, क्योंकि तमिल स्टडीज के लिए ज़रूर दूसरी बिल्डिंग बनेगी।''
वहीं एक दूसरे छात्र का कहना है कि '' क्योंकि ये अभी अधूरी लड़ाई है, क्योंकि अब वे हमारे सेंटर में शिफ्ट करेंगे, मुझे लगता है कि इसके पीछे एक बड़ी राजनीति है। क्योंकि अब तमिल सेंटर हमारे सेंटर में खोल दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो हमें दोबारा प्रोटेस्ट में बैठना होगा, दूसरा- हमसे जुड़े मुद्दों पर सबसे पहले हमसे (छात्रों से) बात करनी होगी। क्योंकि हम पर ही सबसे ज़्यादा असर पड़ता है। इसके अलावा एक बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है कि जो फंड SCTSके लिए मिला था वो कहां है?
वहीं एक और छात्र ने कहा कि ''ये जीत हम सबकी है CHS से जुड़े हर शख्स की और हमने बहुत ही शांतिपूर्वक प्रोटेस्ट किया था और ये आने वाले समय में किसी भी यूनिवर्सिटी प्रोटेस्ट के लिए उदाहरण हो सकता है कि अगर आप सही चीज़ के लिए शांति से प्रोटेस्ट करते हैं तो वो सफल होगा।''
लेकिन इन सबके बीच छात्रों की चिंता अब उन किताबों को लेकर है जिन्हें शिफ्ट कर दिया गया था। क्योंकि वे कहते हैं कि ''पता नहीं वे किताबें किस हालात में होंगी और दोबारा से उनकी कैटलॉगिंग एक मुश्किल काम होने वाला है।''
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