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हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल, ब्रिटेन की महारानी की सम्मान सूची में प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी को शीर्ष स्थान और अन्य खबरें

पाटीदार नेता हार्दिक पटेल बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। कुछ दिन पहले ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दिया था।

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हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल

गांधीनगर/भाषा: पाटीदार नेता हार्दिक पटेल बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। कुछ दिन पहले ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दिया था।

भाजपा की गुजरात इकाई के अध्यक्ष सी. आर. पाटिल और राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने पार्टी में उनका स्वागत किया।

भाजपा में शामिल होने से पहले पटेल ने ट्वीट किया था, ‘‘राष्ट्रहित, प्रदेशहित, जनहित एवं समाज हित की भावनाओं के साथ आज से नया अध्याय शुरू करने जा रहा हूं। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रहे राष्ट्र सेवा के भगीरथ कार्य में छोटा सा सिपाही बनकर काम करुंगा।’’

पटेल (28) ने 2015 में पाटीदार समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर एक आंदोलन का नेतृत्व किया था। पटेल 2019 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

पटेल ने 18 मई को कांग्रेस से इस्तीफा देने से पहले पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे एक पत्र में दावा किया था कि पार्टी ने देश में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर केवल ‘‘एक अवरोधक की भूमिका निभाई’’ है और वह ‘‘हर चीज का केवल विरोध करने तक ही सिमट गई’’ है।

भाजपा में शामिल होने से पहले हार्दिक ने ट्वीट किया: ‘‘नरेंद्र मोदी के सिपाही के तौर पर काम करुंगा’’

अहमदाबाद/भाषा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कभी कटु आलोचक रहे पूर्व कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल ने बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने से पहले ट्वीट किया कि वह प्रधानमंत्री के एक ‘‘सिपाही’’ के तौर पर काम करेंगे और एक ‘‘नए अध्याय’’ का आरंभ करेंगे।

पटेल गुजरात की सत्तारूढ़ भाजपा में बृहस्पतिवार दोपहर 12 बजे शामिल होंगे।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘राष्ट्रहित, प्रदेशहित, जनहित एवं समाज हित की भावनाओं के साथ आज से नए अध्याय का प्रारंभ करने जा रहा हूं। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी के नेतृत्व में चल रहे राष्ट्र सेवा के भगीरथ कार्य में छोटा सा सिपाही बनकर काम करुंगा।’’

गुजरात की 182-सदस्यीय विधानसभा के लिए इस साल के अंत में चुनाव होने हैं।

पटेल (28) ने 2015 में पाटीदार समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया था। कभी भाजपा के धुर आलोचक रहे पटेल के खिलाफ गुजरात की तत्कालीन भाजपा सरकार ने राजद्रोह सहित कई आरोपों में मामले दर्ज किए थे।

पटेल 2019 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे और बाद में उन्हें राज्य इकाई का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि, इस महीने की शुरुआत में उन्होंने कांग्रेस से अलग होने का फैसला किया था। कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद, ऐसी अटकलें थीं कि वह राज्य में सत्तारूढ़ दल भाजपा में शामिल हो सकते हैं। उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व की कड़ी आलोचना की थी, जबकि फैसले करने की भाजपा की क्षमता और कार्यशैली की तारीफ की थी।

पटेल ने कांग्रेस छोड़ने से पहले पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे एक पत्र में दावा किया था कि पार्टी ने देश में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर केवल ‘‘एक अवरोधक की भूमिका निभाई’’ है और वह ‘‘हर चीज का केवल विरोध करने तक ही सिमट गई’’ है।

वह 2015 में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पाटीदार समुदाय के सदस्यों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर किए गए आंदोलन के दौरान चर्चा में आए थे। उन्होंने इस आंदोलन का नेतृत्व किया था। आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में एक पुलिसकर्मी सहित 10 लोग मारे गए थे और सार्वजनिक संपत्तियों तथा वाहनों को काफी नुकसान पहुंचा था।

पटेल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (ए), 121 (ए) तथा 120 (बी) के तहत मामला दर्ज किया गया था और वह 2016 से जमानत पर हैं।

भाजपा सरकार ने भी हाल ही में 2015 के आरक्षण आंदोलन के संबंध में हार्दिक पटेल और अन्य के खिलाफ दर्ज कई मामलों को वापस लेने के लिए कदम उठाए हैं।

ब्रिटेन की महारानी की सम्मान सूची में प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी को शीर्ष स्थान

लंदन/भाषा: ब्रिटेन की महारानी के जन्मदिन के अवसर पर सम्मानित किये जाने वाले भारतीय मूल के 40 से ज्यादा पेशेवर तथा सामुदायिक कार्य करने वाले लोगों की सूची में प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी का नाम सबसे ऊपर हैं। रुश्दी का जन्म मुंबई में हुआ था और उन्हें “मिडनाइट्स चिल्ड्रन” उपन्यास के लिए बुकर पुरस्कार मिला था। उन्हें साहित्य जगत में सेवा के लिए, ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वारा ‘कम्पेनियन ऑफ ऑनर’ से नवाजा जाएगा।

किसी भी समय यह पुरस्कार एक बार में 65 से अधिक लोगों को नहीं दिया जाता। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के ब्रिटेन पर शासन के 70 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में बुधवार रात को यह सूची जारी की गई। तीस साल से ज्यादा समय पहले अपने विवादास्पद उपन्यास “द सैटनिक वर्सेज” के लिए ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामनेई का फतवा झेलने वाले रुश्दी (74) ने कहा, “इस सूची में शामिल होना सम्मान की बात है।”

महारानी द्वारा दिया जाने वाला ‘कम्पेनियन ऑफ ऑनर’ एक विशेष पुरस्कार है जो कला, विज्ञान, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाता है। अतीत में यह पुरस्कार ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, जॉन मेजर और विख्यात भौतिकशास्त्री स्टीफेन हॉकिंग को प्रदान किया जा चुका है।

रुश्दी को दिए जाने वाले प्रशस्ति पत्र पर अंकित है, “बंबई में जन्मे, बाद में उन्होंने रग्बी स्कूल और किंग्स कॉलेज से पढ़ाई की जहां उन्होंने इतिहास का अध्ययन किया।”

पत्र पर लिखा गया, “विज्ञापन की दुनिया से करियर की शुरुआत की और ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ को दो बार (1993 और 2008) जनता के बेस्ट ऑफ बुकर्स घोषित किया गया। उन्हें साहित्य में सेवा के लिए 2007 में नाइटहुड की उपाधि दी गई। उन्होंने कथेतर साहित्य की भी रचना की, निबंध लिखे, सह संपादक रहे और मानवीय कार्य भी किया।"

इज़राइली सैनिकों ने दो फलस्तीनियों की हत्या की

यरुशलम/एपी: इज़राइल के सैनिकों ने बुधवार को वेस्ट बैंक में एक फलस्तीनी महिला की गोली मारकर हत्या कर दी। सैनिकों ने दावा किया कि महिला उनकी ओर चाकू लेकर बढ़ रही थी। वहीं, एक हमलावर के मकान पर सेना के हमले में एक अन्य फलस्तीनी की मौत हो गई।

सेना ने एक तस्वीर जारी की और दावा किया कि यह वह चाकू है, जो महिला के पास था। उसने बताया कि घटना उस समय की है, जब दक्षिणी वेस्ट बैंक में अल-अरब शरणार्थी शिविर के पास एक राजमार्ग पर सैनिक गश्त पर निकले थे। घटना में कोई सैनिक घायल नहीं हुआ है।

फलस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने महिला की पहचान गाफरान वरसना के तौर पर की और बताया कि उनके सीने में गोली मारी गई थी।

‘फलस्तीन प्रिज़नर क्लब’ ने बताया कि 31 वर्षीय महिला को अप्रैल में ही इज़राइल की एक जेल से रिहा किया गया था, जहां वह तीन महीने तक कैद थी।

इज़राइल के एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि वेस्ट बैंक के हेब्रोन शहर में एक इज़राइली पुलिस अधिकारी पर चाकू से हमला करने की कोशिश के मामले में वरसना जनवरी से मार्च तक जेल में थी।

अधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर बताया कि महिला ने बुधवार को एक सैनिक पर हमला करने की कोशिश की। हालांकि, इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए कोई तस्वीर या वीडियो अभी उपलब्ध नहीं है।

‘फलस्तीन जर्नलिस्ट सिंडिकेट’ ने बताया कि एक दशक से अधिक समय में वरसना ने कई बार पत्रकार के तौर पर भी काम किया। हेब्रोन के स्थानीय रेडिया स्टेशन ‘ड्रीम रेडियो’ ने बताया कि वह एक कार्यक्रम के लिए स्टूडियो आ रहीं थी, जब उन पर हमला किया गया।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, एक अन्य घटना में उत्तरी वेस्ट बैंक के जेनिन शहर में या उसके पास कम से कम एक फलस्तीनी मारा गया। उसने इस संबंध में अतिरिक्त जानकारी मुहैया नहीं कराई।

इज़राइल बल द्वारा हालिया सप्ताह में कम से कम 35 फलस्तीनी मारे गए हैं।

डेनमार्क जनमत संग्रह: यूरोपीय संघ की साझा रक्षा नीति में शामिल होने के पक्ष में बहुमत

कोपनहेगन/एपी: डेनमार्क में जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ की साझा रक्षा नीति से बाहर रहने के देश के 30 वर्ष पुराने निर्णय को त्यागने के पक्ष में अधिकतर मत पड़े हैं।

डेनमार्क में बुधवार को लोगों ने इस बात के लिए मतदान किया था कि क्या उन्हें यूरोपीय संघ (ईयू) की साझा रक्षा नीति से बाहर रहने के देश के 30 वर्ष पुराने निर्णय को त्याग देना चाहिए या नहीं।

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद देश में हो रहा यह जनमत संग्रह यूरोपीय देशों द्वारा सहयोगियों के साथ करीबी रक्षा संबंध बनाने की इच्छा को दिखाने का ताजा उदाहरण है।

निर्वाचन आयोग के अनुसार, डेनमार्क के 92 चुनावी जिलों में से 84 में पूरी तरह से मतपत्रों की गिनती हो गई है और 66.9 प्रतिशत मत यूरोपीय संघ की साझा रक्षा नीति से बाहर रहने के देश के 30 वर्ष पुराने निर्णय को त्यागने के पक्ष में दिए गए हैं और 33.1 प्रतिशत मत इसके खिलाफ आए हैं।

डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने कहा, ‘‘डेनमार्क के भारी बहुमत ने साझा रक्षा नीति से बाहर रहने के निर्णय को खत्म कर दिया। मैं इसे लेकर बेहद खुश हूं।’’

फ्रेडरिक्सन ने कहा, ‘‘हमने (रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर) पुतिन को एक स्पष्ट संदेश दिया है।’’

जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेरबॉक ने भी ट्वीट कर डेनमार्क के लोगों के इस फैसले की सराहना की। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा हरेक कदम हमें और मजबूत बनाता है।’’

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर डेनमार्क यूरोपीय संघ की रक्षा नीति में शामिल होता है, तो विशेष रूप से स्वीडन और फिनलैंड के नाटो में शामिल होने की तुलना में इससे यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था पर हल्का प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, ‘डेनिश इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज़’ की शोधकर्ता क्रिस्टीन निसान ने कहा कि दोनों कदम ‘‘एक ही सिक्के के दो पहलू हैं’’ और यूक्रेन में युद्ध से स्तब्ध महाद्वीप में सैन्य सहयोग को मजबूत करेंगे।

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