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यूपी 2022: ग़ाज़ियाबाद ही नहीं कई और बलात्कार मामलों में भी पुलिस-प्रशासन पर उठ चुके हैं सवाल!

इस साल हरदोई, कन्नौज, प्रयागराज समेत कई जिलों से ऐसे अनेक मामले ख़बरों में बने रहे, जो बार-बार पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठा चुके हैं।
up police
प्रतीकात्मक तस्वीर।

उत्तर प्रदेश पुलिस एक बलात्कार मामले को लेकर एक बार फिर सवालों के घेरे में है। मामला गाजियाबाद का है, जहां डीसीपी यानी डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस के जन संपर्क अधिकारी पर एक महिला कवि से दुष्कर्म का आरोप लगा है। खबरों के मुताबिक दरोगा ने पीड़िता के साथ रेप कर उसका वीडियो भी बनाया और जब वो प्रेग्नेंट हो गई तो अबॉर्शन करवा दिया। पुलिस ने इस मामले में रेप सहित कई धाराओं में केस दर्ज कर लिया है। फिलहाल आरोपी दरोगा को भी सस्पेंड कर दिया गया है। हालांकि इन सबके बीच एक बार फिर यूपी पुलिस की साख गिरती नज़र आ रही है।

बता दें कि यह पहला मामला नहीं है, जब लोगों का पुलिस पर भरोसा डगमगाया हो, इससे पहले भी ऐसी कई घटनाएं सुर्खियों में रही हैं, जो बार-बार यूपी पुलिस की वर्दी को दागदार करती रही हैं। इसी महीने हरदोई की दो दलित बहनों से 3 पुलिस वालों के रेप की ख़बर ने सबको झकझोर कर रख दिया था। पुलिस ने इस मामले में घटना के 4 महीने 7 दिन बाद एफआईआर लिखी थी। ऐसे और भी कई मामले इस साल खबरों में बने रहे, जो लगातार उत्तर प्रदेश पुलिस के प्रशासन पर सवाल उठाते रहे हैं।

बेटी के लिए इंसाफ़ मांगने गई महिला से दुष्कर्म

कुछ महीने पहले कन्नौज जिले के सदर कोतवाली क्षेत्र में अपनी बेटी के लिए इंसाफ की गुहार लगा रही एक महिला के साथ दरिंदगी ने सबको चौंका दिया था। रेप पीड़िता बेटी के लिए इंसाफ मांगने आई एक महिला से हाजी शरीफ पुलिस चौकी इंचार्ज ने कथित तौर पर बलात्कार किया था। मामले में पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर आरोपी चौकी इंजार्च को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। लेकिन सवाल अभी भी बरकरार है कि आखिर ये सब कब तक चलेगा। कभी पुलिस पीड़ित को प्रताड़ित करती नजर आती है तो कभी पुलिस खुद ही शोषण के आरोप में घिर जाती है। विपक्ष इसे लेकर सरकार पर लगातार हमलावर है, लेकिन सरकार इस मामले पर ध्यान देने के बजाय अपने आंकड़ों के जरिए एक अलग तस्वीर पेश करने की कोशिश कर रही है।

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यूपी पुलिस की दबिश भी अक्सर सवालों के घेरे में रही है। इसी साल मई महीने में एक के बाद एक करीब आधा दर्जन महिलाओं की यूपी पुलिस की दबिश के दौरान कथित तौर पर मौत की खबर सामने आई थी। एक मामले में तो पुलिस उपनिरीक्षक समेत छह लोगों के खिलाफ उत्पीड़न और उत्पीड़न के कारण आत्महत्या का मामला भी दर्ज किया गया था। इस मामले के बाद विपक्ष योगी सरकार पर हमलावर थी, तो वहीं समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बयान दिया था कि 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है।'

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पुलिस के उदासीन रवैये के चलते आत्महत्या

प्रदेश में पिछले कुछ महीनों से लगातार रेप पीड़िताओं की आत्मदाह की खबरें भी सामने आ रही हैं। पिछले महीने नवंबर में ही फर्रुखाबाद के फतेहगढ़ कोतवाली क्षेत्र के एक गांव में 16 साल की एक मासूम ने नाकाम पुलिसिया कार्रवाई से आहत होकर कथित तौर पर अपनी जान लेने की कोशिश की थी। पीड़ित परिवार का आरोप था कि आरोपी रेप पीड़िता को धमकाते थे। इसकी शिकायत परिवार ने पुलिस अधीक्षक के पास भी पहुंचाई थी लेकिन, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, आरोपी खुलेआम घूमते रहे। जिसके चलते पीड़िता ने परेशान होकर ये कदम उठा लिया। दुष्कर्म पीड़िता के द्वारा खुद को आग लगाए जाने के बाद नींद से जागी यूपी पुलिस ने 11 दिन बाद मामला दर्ज किया था।

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संभल में भी एक रेप पीड़िता ने कथित तौर पर पुलिस के उदासीन रवैये के चलते आत्महत्या कर ली थी। परिवार का कहना था कि वो आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से परेशान थी। वो पुलिस के सर्कल ऑफिसर से लेकर डीआईजी तक सबसे गुहार लगा चुकी थी, लेकिन आरोपियों के खिलाफ एक्शन नहीं लिया जा रहा था। इससे पहले 25 अगस्त को ही प्रयागराज के यमुनापार इलाके में एक नाबालिग लड़की के साथ कथित तौर पर गैंगरेप होने की खबर सामने आई थी। जिसके बाद परिवार वालों ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने इस मामले में हादसे का मुकदमा लिख केस को रफा दफा करने की कोशिश की थी।

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वहीं उसी हफ्ते सामने आए जालौन बलातकार मामले में भी पीड़िता के पिता का आरोप था कि घटना पर तुरंत कोई एक्शन लेने की बजाय पुलिस ने उन पर समझौता करने का दबाव बनाया। घटना के एक दिन बाद तक कोई एक्शन नहीं लिया गया। अंबेडकर नगर से ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जहां एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता ने आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से परेशान होकर कथित तौर पर सुसाइड कर लिया था।

इससे पहले प्रयागराज के यमुनापार इलाके में एक नाबालिग लड़की का कथित तौर पर गैंगरेप होने की खबर सामने आई थी। जिसके बाद परिवार वालों ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने इस मामले में हादसे का मुकदमा लिख केस को रफा दफा करने की कोशिश की है।

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इससे पहले भी उन्नाव के माखी कांड से लेकर हाथरस तक बार-बार पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठ चुके हैं। कई बार तो पीड़ित महिलाओं ने पुलिस की अनदेखी से परेशान होकर खुद को पुलिस चौकी, विधान सभा और सीएम आवास के सामने तक खुद को आग के हवाले करने की कोशिश की है।

पीड़ित को बार-बार प्रताड़ित करने की कोशिश

गौरतलब है कि आम लोगों की रक्षा का दायित्व संभालने वाली प्रदेश पुलिस यहां अक्सर अपने कारनामों को लेकर सुर्खियों में बनी रहती है। कभी गाड़ी पलटने के बाद एनकाउंटर हो, या पीड़ित को और प्रताड़ित करने का मामला। कभी पिस्तौल की जगह मुंह से ठांय-ठांय बोलकर हीरो बनते दरोगा हों या फिर कथित लव जिहाद के केस में सुपर एक्टिव अंदाज़ में प्रेमी जोड़ों को पकड़ कर केस करना हो, इन सब मामलों में यूपी पुलिस ‘सदैव तत्पर’ रहती है। अपराध, विवाद में कानून का सही ढ़ंग से पालन हो रहा है या नहीं इससे यूपी पुलिस को शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। तभी तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की कई बार फटकार के बाद दिल्ली हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से भी यूपी पुलिस को तगड़ी झाड़ लग चुकी है बावजूद इसके पुलिस के काम करने के तरीके में कोई बदलाव नज़र नहीं आता।

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‘सुरक्षा आपकी, संकल्प हमारा' मोटो के साथ इनदिनों यूपी पुलिस आम लोगों की छोड़िए कानून की रक्षा भी नहीं कर पा रही। आए दिन इसकी साख गिरती ही जा रही है और यूपी पुलिस खुद अपनी छवि रोज बद से बदतर करवाती जा रही है।

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वैसे अपराध की बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा क्राइम उत्तर प्रदेश में हुए हैं। यहां महिला अपराध के कुल 56,083 मामले दर्ज हुए हैं, जो साल 2020 में 49,385 थे। बलात्कार के मामले में भी उत्तर प्रदेश पूरे देश में तीसरे स्थान पर है। यानी राजस्थान और मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश ही वो राज्य है जहां महिलाएं सबसे अधिक बलात्कार का शिकार हो रही हैं।

सरकारी संस्था राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक़ साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट हुए, जो कुल शिकायतों का आधे से ज़्यादा का आंकड़ा है। आयोग की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 30 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए। जिसमें सबसे अधिक 15,828 शिकायत यूपी से थीं।

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उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और रेप के मामलों में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण समाज में सामंती विचारधारा का होना है। अभी भी इन मामलों को शर्म और इज़्ज़त से जोड़ कर देखा जाता है, लेकिन जब कुछ लोग आगे आकर इसकी रिपोर्ट दर्ज कराते हैं, तो पुलिस का रवैया प्रभावी और संवेदनशील नहीं होता। जैसे-तैसे अगर पुलिस मामला दर्ज भी कर ले, तो चार्जशीट कम दर्ज होती है। इसके बाद अगर ये मामले दर्ज होकर कोर्ट पहुंचते हैं तो उनमें से दो तिहाई मामलों में लोग छूट जाते हैं और केवल एक तिहाई में सज़ा होती है।

कुल मिलाकर देखें तो सीएम योगी आदित्यनाथ की 'ठोक दो' की नीति, 'न्यूनतम अपराध' और उत्तम प्रदेश के दावों से इतर प्रदेश की जमीनी सच्चाई ये है कि उत्तर प्रदेश में हर तरह के अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। वंचित, शोषित लोग न्याय की आस में दर-बदर भटक रहे हैं तो वहीं पुलिस पीड़ित को और प्रताड़ित कर रही है। सत्ता में वापसी के बाद भी बीजेपी की योगी सरकार कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा के मोर्चे पर विफल ही नज़र आती है।

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