उत्तर प्रदेश: योगी के "रामराज्य" में पुलिस पर थाने में दलित औरतों और बच्चियों को निर्वस्त्र कर पीटेने का आरोप
उत्तर प्रदेश के जौनपुर की देवरिया दलित बस्ती में औरतों और बच्चियों के बदन पर जख्मों के निशान अभी ताजा हैं। कुछ लड़कियों की हालत ऐसी है कि अभी तक वो ठीक से चल-फिर पाने में असमर्थ हैं। इस दलित बस्ती में सन्नाटा और रोती-बिलखती औरतों का करुण क्रंदन है। पीड़ित औरतों ने पुलिसिया बर्बरता की जो कहानी सुनाई है वह दिल दहला देने के लिए काफी हैं। ये औरतें जब अपना पूरा दर्द बयां नहीं कर पातीं हैं तो कपड़े हटाकर जख्म दिखाना शुरू कर देती हैं। उनके पैरों और जांघों पर पिटाई के काले निशान अभी भी साफ-साफ देखे जा सकते हैं। दोबारा हुए मेडिकल मुआयने में भी इन औरतों के जख्म तस्दीक हो चुके हैं।
आधुनिक जमाने को शर्मसार कर देने वाली यह घटना बदलापुर थाने की है। पुलिसिया क्रूरता की शिकार सभी औरतें देवरिया गांव की दलित बस्ती की हैं। इस बस्ती की आबादी करीब 150 है, जिसमें कुछ ब्राह्मण हैं, तो कुछ यादव भी। जौनपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर इस गांव में 20 मार्च को बदलापुर थाने की यह घटना है। आरोप है कि निर्दोष औरतों और बच्चियों को पहले गांव में पीटा और जी नहीं भरा तो उन्हें थाने ले गए, जहां लॉकअप में बंदकर भयानक यातनाएं दी गईं। आरोप यह भी है कि दलित औरतों और बच्चियों को पुलिस ने नग्न कर बेल्ट और डंडों से बुरी तरह पीटा।
पुलिस बर्बरता की शिकार किशोरी आंचल और अंजली की आंखों से निकलते बेबसी के आंसू किसी भी अनजान आदमी को देखते ही छलकने लग जाती हैं। खासतौर पर वो महिलाएं जिनके छोटे-छोटे बच्चे जो अपनी माओं को रोते हुए उदास आखों से जब निहारने लग जाते हैं तब माहौल में निस्तब्धता छा जाती है। देवरिया गांव की इस बस्ती की पीड़ित औरतों से अब जब भी कोई सवाल पूछा जाता है तो वो अपना धीरज खो देती हैं और बेजार होकर रोने लगती हैं। जेल से लौटने के बाद शीला अपने परिजनों के साथ उदास बैठी थीं। आस-पास कई और महिलाएं थीं, जिनके चेहरे की उदासी साफ-साफ पढ़ी जा सकती थी। इन औरतों की आंखों से ढुलक रहे आंसू ही सब कुछ बता देने के लिए काफी थे।
आखिर किसने की ये दरिंदगी?
दलित औरतों और बच्चियों को बदलापुर थाने के लॉकअप में नग्न करने और फिर क्रूरता की सभी सीमाओं को लांघने पर हर कोई स्तब्ध है। दलित औरतों का दुखड़ा सुनने पहुंची शोभना स्मृति जौनपुर पुलिस और प्रशासन पर तल्ख सवाल खड़ा करती हैं। शोभना और उनकी संस्था दलित वूमन फाइट (डीडब्ल्यूएफ) यूपी में दलित औरतों पर जुल्म और ज्यादती के खिलाफ मुहिम चलाती है। वह कहती हैं, "बदलापुर पुलिस की कहानी फर्जी और मनगढ़ंत है। पुलिस उन दबंग सवर्णों की भाषा बोल रही है जिनके इशारे पर दलित औरतों और उनके बच्चों पर लाठियां तोड़ी गईं। अगर पुलिस का दावा सच है तो सवाल उठता है कि आखिर इन औरतों के साथ ये दरिंदगी किसने की? क्या दूसरे पक्ष ने औरतों को इतनी बेरहमी से पीटा? अगर हां तो फिर महिलाएं दूसरे पक्ष पर आरोप लगाने की जगह पुलिस पर आरोप क्यों मढ़ रही हैं? अगर दूसरे पक्ष ने औरतों और बच्चों को पीटा तो जौनपुर पुलिस ने उनपर क्या कार्रवाई की? देवरिया गांव में जिस समय पुलिस पहुंची उस वक्त गांव के ज्यादातर पुरुष राजगीर और गारा-मिट्टी का काम करने जा चुके थे। दलित बस्ती में सिर्फ महिलाएं और बच्चे ही थे। पुलिस के साथ मारपीट की वारदात अगर सचमुच सच है तो बदलापुर थाने में दो पक्षों की ओर से संगीन धाराओं में दर्ज कराई गर्ई रिपोर्ट में घटना के समय का उल्लेख क्यों नहीं है? ये वो चंद सुलगते सवाल हैं जिनका जवाब जौनपुर पुलिस को ज़रूर देना चाहिए।"
शोभना यह भी कहती हैं, "जौनपुर के एसपी और कलेक्टर से लेकर तमाम आला अफसरों को पीड़ित महिलाएं अपना जख्म दिखा चुकी हैं। यह भी बता चुकी हैं कि बदलापुर थाने में औरतों और बच्चियों को पीटने से पहले सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिए गए। पहले उनके कपड़े उतरवाए गए और फिर बेरहमी से बेल्ट व डंडों पीटा गया। औरतों और लड़कियों को पुलिस तब तक पीटती रही, जब तक वो बेसुध नहीं हो गईं। मुस्कान नामक एक लड़की जब बेहोश हो गई तो उसे दवा दी गई और होश आने पर उसे दोबारा पीटा गया। हैरान करने वाली बात यह है कि बदलापुर की बेअंदाज थाना पुलिस ने कई नाबालिग बच्चियों को न सिर्फ पीटा, बल्कि उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने भी पेश कर दिया गया। मजिस्ट्रेट ने जब बच्चियों से उनकी उम्र पूछी तब पुलिस को फटकार मिली। बाद में सभी को बाइज्जत छोड़ दिया गया। आधी रात में एक लड़की और बच्चे को बदलापुर थाने लगाया गया और बाद में उनके रिश्तेदारों को बुलाकर सौंपा गया।"
शोभना स्मृति कहती हैं, "अगर दलित औरतों के आरोप अगर सही हैं तो इनके जिस्मों पर जो जख्म मौजूद हैं वो पुलिस की वर्दी पर भद्दे दाग की तरह हैं। जौनपुर के बदलापुर में दलित औरतों ने रो-रोकर जो अपना दर्द बयां किया है वो किसी को भी हिला देने के लिए काफी है। यूपी की योगी सरकार को चाहिए कि वो इसे गंभीरता से ले और खाकी वर्दी पर लगे आरोपों की उच्चस्तरीय जांच कराए। अगर आरोप साबित होते हैं तो आरोपी पुलिस वालों पर एससी-एसटी एक्ट की धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज हो, क्योंकि दलित औरतों और उनके बच्चों की ज़िंदगी भी मायने रखती है।"
दर्दनाक दास्तान
जौनपुर के बदलापुर थाने से देवरिया दलित बस्ती तकरीबन दस किमी दूर है। इसी बस्ती में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा भी है। इसी के बगल में कुएं की पौदर है, जिस पर दलितों का एक समूह चबूतरे का निर्माण करा रहा था। मौके पर उसका ढांचा अब भी मौजूद है। दलित बस्ती के राम प्रसाद पुलिसिया जुल्म और ज्यादती की घटना का जिक्र करते हुए रो पड़ते हैं। बदलापुर थाना पुलिस ने लॉकअप में इनकी पत्नी शीला पर भी जुल्म का पहाड़ तोड़ा था। न्यूजक्लिक से बातचीत में उनके आंसू छलकने लगते हैं। वह कहते हैं, "कुएं की पौदर ग्राम समाज की जमीन पर थी, जिसके कुछ हिस्से को समतल कर पहले बाबा साहेब की प्रतिमा लगाई गई। बाद में चबूतरे का निर्माण किया जा रहा था। सवर्ण दबंगों के उकसाने पर दलित समुदाय के ही जियालाल, हरिलाल और बंशी ने वहां कचरा डालना शुरू कर दिया। हमारे पक्ष की औरतों ने रोकने का प्रयास किया तो प्रतिपक्ष यह दावा करने लगा ही कि वो पौदर उनकी निजी है। सरकारी अभिलेखों में पौदर की जमीन सामूहिक है। विवाद यहीं से शुरू हुआ और बात बढ़ी तो प्रतिपक्ष के लोगों ने योजनाबद्ध ढंग से पीआरबी को 112 नंबर फोन कर दिया। यह घटना 20 मार्च की सुबह करीब आठ बजे की है।"
राम प्रसाद कहते हैं, "पुलिस हम लोगों पर जुल्म-ज्यादती करने के लिए पहले से ही मन बनाकर आई थी। जब पुलिस की गाड़ी पहुंची तो उससे पहले ही दलित बस्ती के ज्यादातर पुरुष काम-धंधे के लिए निकल चुके थे। सुबह करीब नौ बजे जब पुलिस वाले मौके पर पहुंचे उस वक्त 25 वर्षीय अरविंद दातून कर रहा था। पुलिस ने उसे पकड़ लिया और लात-घूसों से पिटाई शुरू कर दी। उसकी मां शांति देवी पास में खड़ी थी। अकारण बेटे को पिटते देख शांति ने पुलिस की लाठी पकड़ ली। मार खा रहीं दूसरी औरतें भी अपने बचाव में जुट गईं। पुलिस वालों ने औरतों और बच्चों पर लाठियां तोड़ी। संभवतः इसी दरम्यान हाथापाई हुई और बवाल बढ़ गया। हमें नहीं मालूम कि राजेश नामक पुलिसकर्मी को चोट कैसे लगी?"
पुलिसिया जुल्म-ज्यादती की कहानी सुनाते हुए राम प्रसाद का गला रुध जाता है। वह कहते हैं, "बीस मार्च को ही दोपहर में बदलापुर थाने के जवान गाड़ियों से पहुंचे और नाबालिग-सुमित, पोसपाल के अलावा शशि (21), अंजलि (17), मुस्कान (16), सुमित (14), शीला (32), कुसुम (40), ऊषा (45), आंचल (17) और किशन (12) को पकड़ लिया। सभी को गांव में सरेआम लाठी-डंडों से पीटा गया। बाद में सभी को गाड़ियों में ठूंसकर बदलापुर थाने ले गए। जिन दबंगों के इशारे पर पुलिस दलित बस्ती में पहुंची थी वो पहले से ही वहां मौजूद थे। पुलिस से उनकी गहरी साठगांठ थी। औरतों और बच्चियों पर थर्ड डिग्री की पिटाई करने से पहले सीसीटीवी कैमरा बंद कराया गया। सिपाहियों ने मारपीट करते हुए सभी औरतों और बच्चों के कपड़े उतरवा दिए। फिर बेल्ट और बेंत से सभी को पीटा जाने लगा। थाने के लॉकअप में क्रूरता और बर्बरता तब तक जारी रही जब तक सभी के बदन नीले नहीं पड़ गए। औरतें और बच्चे चिंघाड़ मारकर रोते-बिलखते रहे। पुलिस वालों के पैर पकड़कर माफी भी मांगते रहे, मगर उनका दिल नहीं पिघला। पुलिस उन्हें तब तक पीटती रही, जब तक सभी औरतें और बच्चियां बेसुध नहीं हो गईं।"
बेल्ट व डंडों से पिटाई
राम प्रसाद कहते हैं, "17 वर्षीया आंचल जब पुलिसिया पिटाई से बेहोश हो गई तब भी पुलिस वाले उस पर लाठियां तोड़ते रहे। साथ ही जातिसूचक गालियां भी देते रहे। थाने में मारपीट करने वालों में महिला पुलिसकर्मी संध्या तिवारी, विद्या तिवारी, नंदिनी के अलावा कांस्टेबल राजेश यादव, अवधेश यादव और एक अन्य जवान था, जिसकी वर्दी पर नेमप्लेट नहीं थी। आंचल को पहले दवा दी गई और बाद में होश आने पर फिर उस पर लाठियां तोड़ी गईं। बदलापुर पुलिस ने देर शाम आंचल, मुस्कान और किशन को थाने से छोड़ दिया गया। अंजली, सुमित के अलावा शीला, ऊषा, शांति, कुसुम, सूरज को रात करीब 11 बजे जौनपुर में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। पुलिस वालों ने बच्चों को धमका रखा था कि मजिस्ट्रेट के सामने अपनी उम्र 18 साल से ज्यादा बताएं। अंजलि ने अपनी उम्र कम बताई तो मजिस्ट्रेट ने बारी-बारी से सभी की जन्मतिथि के बारे में पूछताछ की। अंजली व सूरज के नाबालिग होने की वजह से मजिस्ट्रेट ने दोनों को छोड़ दिया और बाकी सभी को जेल भेज दिया। रात करीब 11 बजे जौनपुर से बच्चों को बदलापुर थाने के लिए रवाना किया गया और आधी रात में हमारे रिश्तेदार सुनील पेंटर को बुलाकर दोनों बच्चों को उनके सुपुर्द किया गया। मजिस्ट्रेटी बयान दर्ज करने के बाद शांति, शीला, ऊषा, शशि, कुसुम और सूरज को जेल भेज दिया गया।"
वे आगे कहते हैं, "हैरानी की बात यह रही कि मजिस्ट्रेट के कड़े निर्देश के बावजूद बदलापुर थाना पुलिस ने किसी महिला का मेडिकल मुआयना तक नहीं कराया, जबकि उस समय सभी की स्थिति अपने पैर पर खड़ा हो पाने की भी नहीं थी। बाद में 23 मार्च को गिरफ्तार की गईं सभी औरतें जमानत पर रिहा हो गईं। जेल से छूटने के बाद सभी महिलाएं जौनपुर के एसपी और डीएम के दफ्तर गईं, लेकिन कोई अफसर मौजूद नहीं था।"
दलितों के अधिवक्ता अमरजीत गौतम बताते हैं, "पुलिसिया जुल्म-ज्यादती की शिकार दलित महिलाएं 25 मार्च को जौनपुर के पुलिस कप्तान अजय साहनी को बदलापुर थाने में अपने साथ हुई जुल्म-ज्यादती की कहानी सुना पाईं। औरतों ने कप्तान को अपने जख्म भी दिखाए। दो पड़ोसियों के झगड़े के बाद बदलापुर थाना पुलिस गांव के ही कुछ दबंग सवर्णों के इशारे पर एक पक्ष की ओर से खड़ी हो गईं। बाद एकतरफा कार्रवाई करते हुए लॉकअप में नाबालिग औरतों और बच्चों को नंगा किया और उन्हें इस कदर पीटा कि चमड़ी काली पड़ गई। पीड़ित औरतों ने पुलिस कप्तान को यह भी बताया कि पुलिस के जवानों ने उनके घर में घुसकर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए बुरी तरह से पीटा और मुंह खोलने पर जान से मारने की धमकी तक दी है।"
बदलापुर के देवरिया गांव की जिन दलित औरतों ने पुलिस पर मारपीट का आरोप लगाया है उनका वीडियो सोशल मीडिया पर छा गया है। वायरल वीडियो में कुछ महिलाएं अपने शरीर पर चोटों के निशान दिखा रही हैं। वीडियो में दावा किया जा रहा है कि इन औरतों को पुलिस ने बुरी तरह पीटा है, जिससे उनकी चमड़ी नीली पड़ गई है। वीडियो में महिलाएं अपने पैर, जांघों और कूल्हों पर पुलिस बर्बरता के निशान दिखा रही हैं। दलितों के बच्चे तो घटना के बाद से ही दशहत में हैं। कुछ भी पूछने पर वो सुबकने लगते हैं और उनकी आंखें बरसने लग जाती हैं। जौनपुर की दलित औरतों ने जिस तरह से कपड़े हटाकर जिस तरह से दर्द को बयां किया उसे देखकर कोई भी सिहर जाएगा।
गजब है पुलिसिया कहानी
बदलापुर थाना पुलिस और महकमे के अफसर दलित औरतों के आरोपों को सिरे से खारिज कर रहे हैं। अफसरों का दावा है कि विवाद होने पर पुलिस वहां गई थी, जहां बीच-बचाव में एक कांस्टेबल को ही चोट आ गई। इस घटना को लेकर जौनपुर पुलिस का भी बयान आया है, जिसमें बदलापुर के क्षेत्राधिकारी (सीओ) अशोक कुमार कहते हैं, "20 मार्च को देवरिया गांव में दो पक्षों के बीच मारपीट की घटना हुई थी, जिसके संबंध में मुकदमा दर्ज कर नामित अभियुक्तों को नियमानुसार गिरफ्तार किया गया था। अब सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें दिख रहीं महिलाएं मुकदमे में आरोपी थीं। इन सभी का मेडिकल परीक्षण कराने के बाद ही कोर्ट में पेश किया गया और फिर जेल भेजा गया। पुलिस थाने में किसी भी महिला के साथ अभद्रता या मारपीट नहीं की गई। विवाद अंबेडकर चबूतरे का नहीं, केले का पेड़ काटे जाने पर हुआ था। सोशल मीडिया पर लगाए जा रहे आरोप निराधार और झूठे हैं।"
क्षेत्राधिकारी अशोक कुमार के मुताबिक, "देवरिया गांव में पुलिस की एक टीम मौके पर पहुंची तो इस दौरान एक पक्ष ने पुलिस वालों पर ही हमला बोल दिया। इस हमले में एक पुलिसकर्मी कांस्टेबल राजेश यादव घायल हो गए थे। घायल कांस्टेबल की तहरीर पर पुलिस ने 14 लोगों के विरुद्ध केस दर्ज किया गया है।"
दलित महिलाओं की पिटाई का वीडियो वायरल होने के बाद बदलापुर थानाध्यक्ष संजय वर्मा लीपापोती में जुट गए हैं। वह कहते हैं, "देवरिया दलित बस्ती की घटना में बदलापुर थाने में दो एफआईआर दर्ज की गई है। इसमें एक पक्ष वो है जो पौदर की जमीन को अपना बता रहा है। दलित बस्ती में झगड़ा और मारपीट की घटना सुबह 9.30 बजे की है। इस घटना की रिपोर्ट जियालाल की पुत्री श्रीमती राधा की ओर से अपराह्न 3.21 पर दर्ज कराई गई। रिपोर्ट में सुमित, सूरज, शांति देवी, शशि, कुसुम देवी, ऊषा देवी और शीला आदि को नामजद किया गया है। इन्हें धारा 147, 148, 323, 504, 506, 452 आईपीसी में निरुद्ध किया गया है। इन्हीं लोगों के खिलाफ दूसरी रिपोर्ट शाम 4.11 बजे पीआरबी के पुलिसकर्मी राजेश कुमार ने धारा 147, 148, 323, 504, 506, 332, 353, 324 आईपीसी के तहत दर्ज कराई है। वायरल वीडियो में दिख रहीं महिलाएं भी गिरफ्तार किए गए लोगों में शामिल थीं। पुलिस ने किसी को न तो पीटा है और न ही उनके लिए जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया।"
पीड़ित औरतों का दर्द
बदलापुर के देवरिया गांव की पीड़ित दलित औरतों ने बातचीत में पुलिस पर मारपीट का आरोप लगाया। इस मामले की एक पीड़िता शीला के मुताबिक, "कुछ समय पहले हमने गांव की बस्ती में बाबा साहब अंबेडकर की मूर्ति स्थापित करके एक चबूतरा बनवाया था। इससे बस्ती के ही कुछ लोग रंजिश रखने लगे थे। इसे लेकर लेकर 20 मार्च को विवाद बढ़ गया। इस बीच हमारे विरोधियों ने बदलापुर थाने की पुलिस को फोन करके बुला लिया। विवाद के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए औरतों के साथ नाबालिग बच्चियों का कपड़ा उतारकर बुरी तरह पीटा। पुलिस की पिटाई में सबकी चमड़ी काली हो गई है।
पुलिस ने थाने में तो पीटा ही, घर में घुसकर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए गालियां दीं। और मुंह खोलने पर जान से मारने की धमकी भी दी गई। दोषी पुलिसजनों को दंडित करने के लिए पुलिस कप्तान को अर्जी दी गई है। विवाद जमीन को लेकर हुआ और पुलिस ने कहानी दूसरी गढ़ दी। पीड़ित पक्ष का आरोप है कि एक पक्ष ने पुलिस को मैनेज कर लिया था। पुलिस वाले जब अरविंद नामक युवक की पिटाई कर रहे थे तब किसी ने उनका वीडियो नहीं बनाया और जब प्रतिकार शुरु किया गया तो पुलिस के कहने पर दूसरे पक्ष ने उनका वीडियो बनाना शुरू कर दिया।
अफसरों के हस्तक्षेप के बाद दो डाक्टरों की टीम ने 25 मार्च की शाम सभी का मेडिकल मुआयना किया। 11 औरतों और बच्चों की मेडिकल रिपोर्ट में सभी के बदन पर अंदरूनी चोटों के निशान हैं। पीड़ितों के मुताबिक, दलित औरतों ने जांच रिपोर्ट के साथ जौनपुर के पुलिस कप्तान अजय साहनी को अपना जख्म दिखाया तो उन्होंने कहा है कि अगर वो चाहें तो विपक्ष के खिलाफ वह रिपोर्ट दर्ज करा देंगे। थाने के सीसीटीवी का फुटेज निकलवाकर जांच कराएंगे। औरतों का कहना था कि पीटने से पहले पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों को बंद कर दिया था। औरतों को पुलिस कप्तान को अपने शिकायती पत्र के साथ मेडिकल मुआयना की प्रतिलिपि भी दी है, जिसमें जख्मों की पुष्टि हुई है।
पूर्वांचल के दलितों में आक्रोश
जौनपुर में पुलिस बर्बरता को लेकर पूर्वांचल के दलित समुदाय में जबर्दस्त आक्रोश है। इस प्रकरण पर विपक्षी दलों ने ट्वीट कर बदलापुर थाना पुलिस के साथ योगी की बुल्डोजर वाली सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाया है। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद "रावण" ने भी इस घटना को अमानवीय कृत्य बताते हुए योगी सरकार पर निशाना साधा है। चंद्रशेखर ने ट्वीट किया है, ''जौनपुर यूपी में पुरुष पुलिस प्रशासन द्वारा दलित औरतों के साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार और उनके कपड़े उतारकर पीटना अमानवीय कृत्य है। @narendramodi @myogiadityanath जी क्या अब दलितों का दमन करना ही आपका 'रामराज्य' है। हमारी मांग है कि दोषी पुलिसकर्मियों पर सख्त क़ानूनी कार्रवाई हो।'' भीम आर्मी के जौनपुर के जिलाध्यक्ष सूरज मानव, रत्नेश बौद्ध कहते हैं, 25 नवंबर को हम लोग घटना की पड़ताल करने मौके पर पहुंचे तो मौके पर मौजूद बदलापुर पुलिस के कुछ जवानों ने उनसे उलझने की कोशिश की। इस बाबत हमने डीएम दफ्तर पर धरना दिया और प्रदर्शन किया था। तब मौके पर एसडीएम सदर हिमांशु नागपाल और नगर मजिस्ट्रेट अनिल अग्निहोत्री पहुंचे। पीड़ित पक्ष ने दोनों अफसरों को बदलापुर थाने में हुई बर्बरता की जानकारी ली।
दूसरी ओर, 24 मार्च 2022 को समाजवादी पार्टी के ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट से पुलिस बर्बरता की शिकार औरतों का एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें कहा गया है, "दलितों पर अत्याचार में नंबर-एक भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में एक और शर्मसार कर देने वाली पुलिसिया करतूत आई सामने। जौनपुर के बदलापुर में पुलिस द्वारा दलित औरतों की बर्बर पिटाई विचलित कर देने वाली घटना है। मामले में दोषी पुलिसकर्मियों पर हो सख्त कार्रवाई, पीड़ितों को मिले न्याय।" सपा के ट्विट के बाद से पूर्वांचल की सियासत गरमा गई है। दलितों पर पुलिसिया अत्याचार और क्रूरता को लेकर मानवाधिकार जननिगरानी समिति (पीवीसीएचआर) के संयोजक डा.लेनिन रघुवंशी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई है। 25 मार्च आयोग को भेजे गए शिकायती पत्र में घटना का हवाला देते हुए उन्होंने कहा है, "दलित औरतों और बच्चों का कपड़ा उतारकर बुरी तरह पीटा गया। साथ ही उनके घर में घुसकर भी मारपीट की गई और जातिसूचक शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया।"
जौनपुर के बदलापुर थाना पुलिस की कारगुजारियों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए सपा के प्रदेश सचिव विवेक रंजन यादव कहते हैं, "यूपी में दलितों और औरतों के ख़िलाफ़ अपराधों में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। औरतों पर अत्याचार तेजी से बढ़ रहे हैं। इस राज्य में दलित औरतों को लिंगभेद और जाति को लेकर दोहरा भेदभाव झेलना पड़ रहा है। पुरुषों की आपसी लड़ाई का बदला भी इन औरतों से लिया जाता है। यूपी में महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा संबंधी योजनाएं और कार्यक्रम या तो बंद हो चुके हैं या फिर वे केवल काग़ज़ों तक सीमित रह गए हैं। हिंसा, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का सामना करने वाली औरतों की मदद के लिए बनी 181 हेल्पलाइन भी फ़ंड के अभाव में बंद हो चुकी है। औरतों की सुरक्षा और बचाव के लिए केंद्र सरकार ने 2013 में निर्भया फ़ंड की स्थापना की थी, जो फिसड्डी साबित हो चुकी है। दलित औरतें ग़रीब होती हैं और उन्हें पुलिस की मदद नहीं मिल पाती है। आमतौर पर रिपोर्ट दर्ज करने से पहले पुलिस जो रिश्वत मांगती है वह देने के लिए इनके पास पैसा नहीं होता है। क्राइम इंडिया की रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि देश में साल 2015 से 2019 के बीच दलितों के ख़िलाफ़ अपराध 18.8 फीसदी और यूपी में 21 फीसदी बढ़ा है।"
विवेक रंजन यह भी कहते हैं, "जौनपुर के बदलापुर थाने में दलितों की बेल्ट और डंडों से बर्बरता से पिटाई के बाद महसूस होने लगा है कि सिस्टम उनके ख़िलाफ़ है। वे न्याय पाने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन उन्हें न्याय मिलेगा, इसकी उम्मीद अब वो नहीं करते हैं। वर्ग संघर्ष में भी दलित औरतों को आसान निशाने के तौर पर देखा जा रहा है। चाहे वह ज़मीनी विवाद हो या राजनीतिक। जौनपुर में पुलिस अपनी बात तो कह रही है, लेकिन दलित औरतों के आरोपों पर अभी तक उनका कोई पुख्ता जवाब नहीं आया है। बाबा का बुल्डोजर आखिर किस काम आएगा? सामने कोई खाकी वर्दी है तो क्या बुल्डोजर के पहिए थम जाएंगे?"
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