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फेसबुक क्या आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है?

फेसबुक ने 2012 में अपनी ख़बरों की फीड में बदलाव करके इससे लोगों में हो रहे भावनात्मक बदलावों का अध्ययन किया।
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: google

फेसबुक कोई साधारण कारोबारी कंपनी नहीं है। हाल ही में न्यू यॉर्क टाइम्स ने फेसबुक के बारे में जानकारी दी, ‘एक दशक से थोड़े ही अधिक वक्त में फेसबुक ने 2.2 अरब लोगों को जोड़ने का काम किया है। यह अपने आप में एक वैश्विक राष्ट्र बन गया है। पूरी दुनिया में चुनावी अभियानों, विज्ञापन अभियानों और रोजमर्रा के जीवन को इसने बदलने का काम किया है। इस प्रक्रिया में फेसबुक ने निजी डाटा का सबसे बड़ा जखीरा तैयार कर लिया है। फोटो, संदेशों और लाइक्स का जो अकूत भंडार इसने बनाया है उससे यह दुनिया की शीर्ष कंपनियों की फॉर्चून 500 सूची में शामिल हो गई है।’

फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म पर लोगों की सक्रियता से काफी पैसे कमाता है। सेंटर फॉर दि स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी के ‘सराय’ कार्यक्रम के तहत काम कर रहे मीडिया शोधार्थी डॉ. रवि सुंदरम कहते हैं, ‘कारोबारी, राजनीतिक और निजी बातें अलग हैं। फेसबुक इनके बीच के फर्क को मिटाकर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने का काम कर रहा है। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो हर तरह के संदेशों और संवाद को कारोबारी बातों में तब्दील करके पैसे कमाने के काम में लगा है।’

फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम तीनों मिलकर दुनिया में एक ऐसी कंपनी बन गई जो पूरी दुनिया में विचारों को अपने हिसाब से प्रभावित कर रही है। विश्व के इतिहास में इससे पहले कभी ऐसा नहीं देखा गया। 

2012 में फेसबुक ने एक बड़ा ही अजीब प्रयोग किया था। इसने अपनी ख़बरों की फीड में बदलाव करके यह पता लगाने की कोशिश की थी कि इससे फेसबुक इस्तेमाल करने वालों पर क्या भावनात्मक असर पड़ता है। 2014 में इस अध्ययन के परिणाम प्रकाशित हुए। इसके नतीजे हैरान करने वाले नहीं थे। जब फेसबुक इस्तेमाल करने वाले सकारात्मक सामग्री देखते थे तो वे ऐसी ही सामग्री पोस्ट भी कर रहे थे। वहीं जब उन्हें नकारात्मक सामग्री ख़बरों की फीड के जरिये दी गई तो उन्होंने नकारात्मक सामग्री पोस्ट करना शुरू कर दिया।

इसका मतलब यह हुआ कि फेसबुक अपने उपभोक्ताओं के भावनाओं पर असर डालकर उन्हें प्रभावित कर रहा है। किसी चीज के अतिरेक को दिखाने वाली सामग्री इसी तरह की प्रतिक्रिया पैदा करती है। इससे लोग फेसबुक पर अधिक सक्रिय बने रहते हैं। 

भावनाओं के इस खिलवाड़ के खेल को विज्ञापनदाताओं ने जल्दी ही पहचान लिया। राजनीतिक हैकरों ने जो तरीका अपनाया वह विज्ञापनदाताओं के तौर-तरीकों से ही लिया गया था। फेसबुक ने इसमें उनकी मदद की। फेसबुक ने उनकी मदद करके उन्हें इस काम में सक्षम बनाया कि बेहतर, अधिक प्रभावी और अधिक ध्रुवीकरण करने वाले संदेश तैयार कर सकें और इसे प्रभावी ढंग से लोगों तक पहुंचा सकें। 

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