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तीन तलाक पर बने कानून से मुस्लिम औरतों का कितना भला होगा?

तीन तलाक विधेयक पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मुहर लग गई है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद तीन तलाक विधेयक अब कानून बन गया है।
triple talaq

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को तीन तलाक (मुस्लिम महिला-विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही यह कानून बन गया है। वैसे आपको बता दें कि तीन तलाक का मामला साल 1985 से लेकर साल 2019 तक आता है। 34 साल में दो मौके ऐसे आए, जब तीन तलाक का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद संसद तक पहुंचा और इस पर कानून बना। 

1985 में शाहबानो थीं, जिन्हें हक दिलाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद के जरिए कानून बनाकर पलट दिया गया था। वहीं, इस बार संसद ने ऐसा विधेयक पारित किया है, जिससे तीन तलाक अपराध की श्रेणी में आ जाएगा। यह विधेयक शायरा बानो जैसी महिलाओं के लिए याद रखा जाएगा। 

40 साल की शायरा बानो ने तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शायरा को उनके पति ने टेलीग्राम से तलाकनामा भेजा था। शायरा की याचिका पर ही अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाकर तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था।

यह मुस्लिम महिला (विवाह से जुड़े अधिकारों का संरक्षण) विधेयक है। कानून बन जाने के बाद यह तलाक-ए-बिद्दत यानी एक ही बार में तीन बार तलाक कह देने के मामलों पर लागू होगा। तीन तलाक से जुड़े मामले नए कानून के दायरे में आएंगे। 

वॉट्सऐप, एसएमएस के जरिए तीन तलाक देने से जुड़े मामले भी इस कानून के तहत ही सुने जाएंगे। तीन तलाक की पीड़िता को अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा-भत्ता मांगने का हक मिलेगा। तीन तलाक गैर-जमानती अपराध होगा। यानी आरोपी को पुलिस स्टेशन से जमानत नहीं मिलेगी। पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर मजिस्ट्रेट ही जमानत दे सकेंगे। 

उन्हें पति-पत्नी के बीच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा। मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा। आरोपी को उसका भी गुजारा-भत्ता देना होगा। तीन तलाक का अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा, जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य एफआईआर दर्ज कराएं। तीन तलाक देने के दोषी पुरुष को तीन साल की सजा देने का प्रावधान है।

सरकार ने तीन तलाक विधेयक के जरिए शादी जैसे मामले को सिविल लॉ से क्रिमिनल ऑफेंस में बदल दिया। आमतौर पर शादी जैसे मामले सिविल लॉ में आते हैं। इस कानून को सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर लाई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी तीन तलाक को क्रिमिनल ऑफेंस नहीं माना। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को सिर्फ असंवैधानिक और गैर-कानूनी करार दिया था। लेकिन सरकार ने इसे क्रिमिनल ऑफेंस बता दिया है। 

इस मामले पर कानूनी मामलों के जानकार प्रोफेसर फैजान मुस्तफा कहते हैं कि यूनियन लॉ मिनिस्टर ने यह कहते हुए बिल पास किया कि पिछले दो सालों में ट्रिपल तलाक के 473 मामले समाने आए है। यह जेंडर जस्टिस से जुड़ा सवाल है। इस वक्तव्य से यह साफ है कि तीन तलाक से होने वाले तलाकों की संख्या बहुत कम है। साथ में तीन तलाक के अध्यादेश में दंड का प्रावधान रहने के बाद भी इस पर रोक नहीं लग पाई है। यानी दंड के प्रावधान से डीटरेंस नहीं पैदा हुआ है। यह उन लोगों के लिए जवाब के तौर पर है, जो कहते हैं कि ट्रिपल तलाक के लिए दंड रख देने से इसमें डीटेरेंस पैदा हो जाएगा।

उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को अवैध घोषित किया था, इस पर सरकार से कानून बनाने के लिए नहीं कहा था। 

क्रिमिनल लॉ में लिखे दंड यानी पनिशमेंट के सिद्धांत को समझाते हुए फैजान कहते हैं कि दंड तभी दिया जाना चाहिए जब बहुत जरूरी हो। किसी दूसरे उपायों से गलत काम को रोकने की सारी कोशिशें नकाम हो गई हैं। अगर यह नहीं हो रहा है तो दंड का प्रावधान न्याय नहीं बल्कि अन्याय का हिस्सा होता है। इस बात को ट्रिपल तलाक के लिए समझते हुए कहते हैं कि जब ट्रिपल तलाक अवैध है। ट्रिपल तलाक को तलाक माना ही नहीं जाएगा, तलाक हुआ ही नहीं तो दंड क्यों? 

आगे कहते हैं कि इस बिल के तहत महिलाओं को यह जिम्मेदारी सौंपी गईं है कि वह साबित करें कि उनके साथ ट्रिपल तलाक यानी एक साथ तलाक बोलकर तलाक हुआ है। यह साबित करना हिमालय पहाड़ उठाने से भी बड़ा काम है। जरा आप ही सोचिए कि महिला कहे कि इन्होंने ट्रिपल तलाक के जरिए तलाक दे दिया है। कोर्ट एविडेंस मांगे और अभियुक्त जवाब दे कि मैंने तलाक दिया ही नहीं है, मैंने गुस्से में कह दिया था या मैं मजाक कर रहा था। या कुछ भी तर्क दे और कहे कि मैंने तलाक दिया ही नहीं था। या क्या मेरे तीन तलाक कहने से तलाक हो जाता है। यह तो अवैध है, मैंने कहा भी तो तलाक नहीं हुआ, तब क्या होगा? 

इस बीच अगर पत्नी की शिकायत पर पति को जेल जाना पड़ा तो क्या वह आपस लौटकर पत्नी को स्वीकार करेगा। इससे शादियां बचेंगी नहीं बल्कि टूटेगी। इस तरह से यह बिल का स्टेट के पॉवर की हैसियत का उल्लेख करता है ना कि उसके द्वारा किए गए न्याय का। जैसे कि यूएपीए बिल स्टेट के पॉवर को दिखाता है ना कि न्याय को।

इस मुद्दे पर रिसर्चर शमशुल इस्लाम कहते हैं कि तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत एक जंगली और अमानवीय प्रथा थी। इसे खत्म करना एक स्वागत योग्य कदम है। इसे बनाये रखने का सारा दोष मुस्लिम उलेमाओं पर जाता है। बहुत सारी मुस्लिम औरतें ने इसके खिलाफ निवेदन किया था कि इसे ख़ारिज किया जाए। लेकिन उलेमा ने इस पर कुछ नहीं किया। जिसका फायदा उस पार्टी ने उठाया जो मुस्लिमों से नफरत करती है। इसे राजनितिक मंशा से लाया गया गया लेकिन इसका परिणाम सुखद है।

अब मुस्लिम उलेमाओं को भी ही हिन्दू औरतों के हालातों पर अपनी बात रखनी चाहिए। इस्लाम में शादी एक करार है। यानी एक कॉन्ट्रक्ट की तरह है। यहीं से आधुनिक समय में कॉन्ट्रैक्ट जैसी व्यवस्थाएं बनी है। इसका इस्तेमाल कर मुस्लिम महिला और पुरुष अपनी शादी के लिए जो मर्जी वह शर्त रख सकते है। इसके अलावा भी मुस्लिम धर्म में तलाक की एक अच्छी खासी प्रक्रिया है,जिसे अपनाकर ही तलाक लिया जा सकता है। इसलिए शादीशुदा महिलाओं के अधिकारों के मामलें में मुस्लिम धर्म के बारें में जो आम राय बना दी गयी है। वह सच्चाई से बहुत दूर है। फिर भी जो हुआ है, वह सही हुआ है। 

वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं है एक साथ तीन बार कहकर तलाक दे देना गैरक़ानूनी था और गलत था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इसे असंवैधानिक करार दे दिया था। लेकिन जो कानून बना है वह सही नहीं है। शादी का मामला सिविल मामला है, इसे क्रिमिनल बना देना सही नहीं है। इसके साथ यह भी बात समझ में नहीं आती है कि जब दोषी को तीन साल की सजा दे दी जाएगी तब मेंटेनेंस कौन करेगा। इस तरह से यह कानून अस्पष्ट है। इसके खुद के प्रावधन ही एक-दूसरे से विरोधाभासी है। 

सामजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी कहती हैं कि जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इसे अवैध घोषित कर दिया गया था, तब  इसपर कानून बनाने की नहीं थी। अब जो कानून बनाया गया है, वह मुस्लिम मर्दों को प्रताड़ित करने से ज्यादा जुडा है।  

हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि विधेयक जुर्म साबित करने की जिम्मेदारी मुस्लिम महिला पर डालता है और उसे गरीबी के दुष्चक्र में ले जाता है। सांसद ने कहा कि यह एक महिला को एक ऐसे व्यक्ति के साथ वैवाहिक संबंध बनाए रखने को मजबूर करेगा जो जेल में कैद है और जिसने महिला को मौखिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित किया है।

ओवैसी ने उम्मीद जताई कि ऑल इंडिया पसर्नल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) तीन तलाक संबंधी विधेयक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देगा। मुझे उम्मीद है कि एआईएमपीएलबी भारतीय संविधान के बहुलवाद और विविधता के मूल्यों को बचाने के लिए हमारी लड़ाई में इसकी संवैधानिक वैधता को चुनौती देगा। कानून समाज को नहीं सुधारते हैं। अगर ऐसा होता तो लिंग चयन आधारित गर्भपात,बाल उत्पीड़न, पत्नी को छोड़ना और दहेज प्रथा इतिहास बन गए होते।
 
ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दखल करने वाली जकिया सोमन ने कहा कि इस बिल का पास होना एक ऐतिहासिक क्षण है। यह औरतों के अधिकारों की जीत है। पिछले २० सालों से मुस्लिम औरतें इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं, उन्हें न्याय मिला है। यह केवल भाजपा से जुड़ा मसला नहीं है। भाजपा पिछले पांच साल से शासन में हैं। इससे पहले की सरकारें क्या कर रही थी? उन्हें इसमें सुधार से कौन रोक रहा था। 

ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन एसोसिएशन द्वारा जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि तीन तलाक बिल का होना निंदनीय है और गलत है। इस बिल के जरिये एक सिविल मामले पर ही गलती को  क्रिमिनल केटेगरी में डाला जा रहा है। क़ानूनी तौर पर गलत है। यह बिल साम्प्रदयिक इरादे से लाया गया है। एक ऐसे माहौल में जहां मुस्लिमों को हर वक्त प्रताड़ित किया जा रहा है।

 इस बिल के कानून बनने के बाद उन्हें प्रताड़ित करने का एक और अधिकार मिल जाएगा। जब शाहबानों मामले में ही तीन तलाक की इस प्रक्रिया को असंवैधानिक घोषित किया जा चुका था, तब इसपर ऐसा कानून क्यों बनाया गया? जब तीन तलाक से तलाक होगा ही नहीं, इसे तलाक माना ही नहीं जाएगा, पत्नी के अधिकार में कोई खलल ही नहीं पड़ेगा तो इसे अपराध कैसे माना जाएगा? पति को जेल किसलिए भेजा जाएगा? एक साथ तीन तलाक की बात अगर पत्नी नहीं मानती है और उसके साथ हिंसा की जाती है तो पति के खिलाफ  SEC 498 A  के तहत केस दायर किया जा सकता है।

इस कानून को मजबूत करने की बजाए इस कानून को कई तरह से कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। उस तरीके का भी विरोध है, जिस तरीके से इस बिल को राज्यसभा में पास किया गया है। इसे सेलेक्ट कमिटी में भेजकर इस पर प्रभावी बहस होनी चाहिए थी। 

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