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कर्नाटक : 'कामदार' मोदी के निजीकरण के खिलाफ मज़दूर लामबंद

कर्नाटक में मज़दूर हड़ताल के लिए कमर कस रहे हैं ताकि 'कामदार' मोदी के निजीकरण के एजेंडा को करारा जवाब दिया जा सके। राज्य के वामपंथी दल और संबद्ध यूनियनें 6 जनवरी को सुबह 10:30 बजे टाउन हॉल के बाहर बेंगलुरु में एकत्रित होंगी।
सांकेतिक तस्वीर

[#श्रमिकहड़ताल : 8-9 जनवरी को दस ट्रेड यूनियनों द्वारा किए गए आह्वान के तहत दो दिवसीय ऐतिहासिक अखिल भारतीय हड़ताल को सफल बनाने के लिए लाखों मज़दूर जुट रहे हैं न्यूज़क्लिक आपके लिए देश के विभिन्न हिस्सों से औद्योगिक श्रमिकों के जीवन की झलक दिखा रहा है।]

10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और दर्जनों स्वतंत्र कर्मचारियों के महासंघों के आह्वान पर सभी औद्योगिक क्षेत्रों, सेवा क्षेत्र और सरकारी कर्मचारी 8-9 जनवरी, 2018 को दो दिवसीय हड़ताल पर जाएंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (BMS) को छोड़कर, हड़ताल का समर्थन सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों- सेंटर आफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू), ऑल इंडिया सेंट्रल कॉउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (ऐक्टू), इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिंद मजदूर सभा, ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस, ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन सेंटर, सेल्फ एम्प्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन, लेबर प्रोग्रेसिव फ्रंट और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस। विभिन्न किसानों और कृषि मजदूर संघों ने भी समर्थन दिया है।

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1 मई, 2018 को कर्नाटक के चामराजनगर जिले के संतमाराल्ली में एक विशाल चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को "कामदार" (यानी मज़दूर) कहा था। ऐसा कहते हुए, उन्होंने खुद को राहुल गांधी से अलग कर लिया था, जो उनके अनुसार कुलीन और बुर्जुआ हैं। विडंबना यह है कि वर्तमान भाजपा सरकार के तहत श्रमिक वर्ग इस सरकार की नीतियों से सबसे अधिक प्रभावित हैं, यह दर्शाता है कि सरकार का हित निजीकरण के माध्यम से कल्याणकारी अर्थव्यवस्था से दूर जाने में निहित है। देश के उच्च औद्योगिक राज्यों में से एक, कर्नाटक ने इस सरकार के निजीकरण के एजेंडे को करीब से देखा है।

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उदाहरण के लिए, प्रतिभा और जयराम, जो गारमेंट्स एंड टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन (GATWU) के सदस्य हैं, ने न्यूज़क्लिक को श्रमिकों के संघर्ष और अपर्याप्त मजदूरी के बारे में बताया जो कर्नाटक राज्य के सबसे बड़े अनौपचारिक क्षेत्रों में से एक है; और उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों के साथ छेड़-छाड़ करने बारे में भी बात की। प्रतिभा ने केंद्र में भाजपा सरकार के उस रवैये की ओर इशारा किया था, जो कि "मजदूर विरोधी" है। उन्होंने कहा था, “केंद्र सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहला काम श्रम कानूनों से छेड़छाड़ का किया। हमें नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं और वह क्या है जो वे चाहते हैं। हम सभी उस विरोध से अवगत हैं जिस विरोध का सामना केंद्र सरकार को उस समय करना पड़ा जब उन्होंने भविष्य निधि निकासी मानदंडों में बदलाव करने के लिए एक अधिसूचना जारी की थी। नतीज़तन सरकार को अधिसूचना वापस लेनी पड़ी। यह सरकार शुरू से ही ऐसा करती आ रही है। हम चिंतित हो जाते हैं जब यह सरकार सुधारों के बारे में बात करती है। सुधारों के नाम पर, वे ऐसे कानूनों को बेअसर करती हैं जो श्रमिकों के हित में हैं। ”

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प्रतिभा और जयराम ने देश में श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने के बारे में भी बताया। “कानून कहता है कि मजदूरी को हर तीन साल में न्यूनतम स्तर पर और अधिकतम स्तर पर हर पांच साल में बढ़ाना होगा। लेकिन पिछले 38 वर्षों में, हमने केवल चार वेतन में संशोधन देखे हैं जबकि कानून के अनुसार, आठ वेतन सम्बंधित संशोधन होने चाहिए थे। परिधान उद्योग में 10 लाख मतदाता काम करते हैं। यह केवल कपड़ा उद्योग नहीं है, बल्कि कपड़ा, छपाई, रंगाई, कताई उद्योग है जो एक ही नाव में हैं सवार है। हमें देखना होगा कि इस समय पाइपलाइन में क्या है। सच्चाई यह है कि कोई भी सरकार हमारे लिए कुछ भी अच्छा नहीं करती है।”

गारमेंट्स और टेक्सटाइल श्रमिकों की तरह, राज्य में परिवहन, सार्वजनिक शिक्षा, पंचायत, किसान, स्वास्थ्य मज़दूर जैसे अन्य क्षेत्रों के मज़दूर सभी सरकार की मज़दूर-विरोधी कानूनों और नीतियों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) स्टाफ और वर्कर्स फेडरेशन ने 9 अगस्त, 2018 से केंद्र की "कॉर्पोरेट अनुकूल श्रम नीतियों" का विरोध करते हुए 40 दिनों का लंबा विरोध प्रदर्शन किया था। इसी तरह राज्य में आंगनवाड़ी मज़दूरों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए हैं। एकीकृत बाल विकास सेवा योजना (ICD) के लिए सरकार ने आवंटन में काफी कमी कर दी है।

जैसा कि सुबोध वर्मा ने न्यूज़क्लिक के लिए लिखा है कि सरकार द्वारा संचालित सार्वजनिक उद्यमों के लगभग 2.4 लाख मज़दूरों ने अपनी नौकरी खो दी है जबसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2014 में सत्ता संभाली है। यह कार्यबल का 25 प्रतिशत का बड़ा हिस्सा है। इसके साथ ही, अस्थायी और संविदा (ठेकेदारी के तहत) कर्मियों की संख्या बढ़कर 3.8 लाख हो गई है। ऐसे कर्मचारियों का अनुपात 2014 के 36 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 53 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा सार्वजनिक उद्यम विभाग की वार्षिक सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण (पीईएस) श्रृंखला से निकाला गया है। इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति में रिकॉर्ड-तोड़ विनिवेश देखा गया है- दो लाख करोड़ रुपये से अधिक बैठता है जो एक समय बार भारत के गौरव, भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ और आत्मनिर्भरता की मिसाल रही है उसे तबाह किया जा रहा है। यह एक प्रमुख कारण है कि 8-9 जनवरी 2018 को सार्वजनिक क्षेत्र के मज़दूर दो दिवसीय हड़ताल पर जा रहे हैं।

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कर्नाटक में सभी वामपंथी दल और संबद्ध यूनियनें 6 जनवरी, 2018 को सुबह 10:30 बजे बेंगलुरु में टाउन हॉल के बाहर एकत्रित होंगे। न्यूज़क्लिक आपको विस्तार से कर्नाटक के विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्रों के श्रमिकों के जीवन और उनकी कहानियों की जानकारी देगा।

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