सबसे पहले हरियाणा की महिलाओं ने खट्टर सरकार को घुटनों के बल बैठने पर मजबूर किया: जगमती सांगवान
हरियाणा में विधानसभा चुनाव एक ऐसे समय संपन्न हो रहे हैं जब राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। जहाँ एक ओर बीजेपी ने अपने 2019 के चुनावी घोषणापत्र में महिलाओं की सुरक्षा के उपायों को लागू करने का वादा किया है वहीँ कांग्रेस की ओर से महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में 33% कोटे का वादा किया गया है।
न्यूज़क्लिक ने इस सिलसिले में महिला अधिकारों के लिए कार्यरत और आल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन (AIDWA) की पूर्व महासचिव जगमती सांगवान से राज्य में महिलाओं की दशा के बारे में बातचीत की।
न्यूज़क्लिक: राज्य में हो रहे विधानसभा चुनावों में अपने प्रचार अभियान में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), राज्य में महिलाओं की उपलब्धियों को भुनाने में लगी रही, हालाँकि ढेर सारी रिपोर्टें हरियाणा में महिलाओं की गंभीर सच्चाई को दर्शाती हैं। आप इन दोनों स्थितियों को कैसे देखती हैं?
जगमती सांगवान: सबसे पहले मैं बीजेपी के प्रमुख अभियान- ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ से अपनी बात शुरू करना चाहूंगी, जिसे पहली बार सिर्फ हरियाणा में जारी किया गया था। इतने वर्षों में यह योजना कितनी प्रभावी रही, इसे अगर वास्तव में देखें तो हम पाते हैं कि इस स्कीम के तहत आवंटित धनराशि का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों में (आंकड़ों के अनुसार 2014-15 से 2018-19 के बीच 56% से अधिक फण्ड “प्रचार से सम्बन्धित कार्यवाहियों”) में खर्च होकर अपनी कहानी खुद बयाँ करता है।
अब हरियाणा में महिलाओं की दशा पर वापस लौटते हुए मेरा मानना है कि बीजेपी सरकार महिलाओं के हितों के संवर्धन और महिलाओं की आकांक्षाओं की रक्षा करने में पूरी तरह से विफल रही है। मतदाताओं को लुभाने के लिए सरकार कुछ महिला प्रतिनिधियों की उपलब्धियों को अपनी उपलब्धि के रूप में दिखाकर दावा भले ठोंके, लेकिन लोगों को पता है कि राज्य मशीनरी के अंदर महिला सशक्तिकरण के लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है।
वास्तव में, जब रेवाड़ी जिले में लड़कियों ने अपने स्कूल की दशा के सुधार के लिए भूख हड़ताल की, तो राज्य सरकार ने इसका बदला स्कूल में शिक्षकों की नियुक्ति में रोक लगाकर लिया। राज्य के शिक्षा मंत्री ने यह कहकर जवाब दिया कि आजकल हड़ताल करना एक फैशन बन गया है। कहा कि स्कूलों को अपग्रेड करने की मांग करना एक फैशन बन गया है।
(हंसते हुए) अगर सच में ऐसा हो जाता है तो क्या यह अच्छी बात नहीं होगी?
न्यूज़क्लिक: आपने बेटी बचाओ-बेटो पढ़ाओ के बारे में बात रखी। बीजेपी के उम्मीदवार अपने चुनावी अभियान में ‘बेटी खिलाओ’ को जोड़कर महिलाओं के लिए खेलों की वकालत भी कर रहे हैं। आप इस समावेशी नारे को किस प्रकार से देखती हैं?
जगमती सांगवान: हरियाणा के लोगों और खासकर गाँवों में, हमेशा से खेलों से जुड़ाव रहा है। वर्षों से हम देख रहे हैं कि लड़कियों ने विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में पदक हासिल किए हैं और अपने राज्य और देश दोनों का मान बढ़ाया है। हालाँकि यहाँ पर मैं यह भी रेखांकित करना चाहूंगी कि यहाँ सरकारी प्रयासों की कमी दिखी, जिसकी बेहद आवश्यकता थी। अक्सर खिलाड़ी आर्थिक रूप से कमजोर तबकों से आते हैं, और उनके परिवार दो जून की रोटी के लिए जूझ रहे होते हैं। सीमित अवसरों के चलते, महिलाओं के लिए खेल एक अवसर के रूप में सामने नजर आता है।
लेकिन सरकार उन क्षमताओं को पोषित करने और उनका सही आकलन करने में विफल रही है। भाजपा सरकार ने पुरस्कार की राशि में कटौती की थी, और इसके चलते उसे शीर्ष खिलाड़ियों से काफी कुछ सुनने को मिला।
एक और बात यह है कि, सरकार के हस्तक्षेप और आवश्यक पोषण के अभाव में, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले भी बढ़ जाते हैं। भाजपा सरकार के शासन के दौरान हरियाणा में सबसे अधिक सामूहिक बलात्कार हुए हैं। पिछले साल एक सीबीएसई टॉपर, जिसे राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था, के साथ बलात्कार की घटना हुई थी। यह है बीजेपी का ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ और बेटी खिलाओ’ अभियान।
न्यूज़क्लिक: क्या आप यह कहना चाहती हैं कि महिलाओं की उपेक्षा का एक कारण महिलाओं की भारतीय राजनीतिक दलों में प्रतिनिधित्व की कमी के चलते है?
जगमती सांगवान: बिल्कुल। अगर मैं सिर्फ हरियाणा की बात करूँ तो राजनीतिक भागीदारी के मामलों में महिलाओं की हिस्सेदारी में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। हजारों की संख्या में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, राज्य और केंद्र सरकार से अपनी न्यायोचित मांगों पर दबाव बनाने के लिए सड़कों पर उतरी हैं। राज्य सरकार के खिलाफ लंबे समय से चली आ रही लड़ाई में आशा कार्यकर्ता पिछले साल विजयी हुईं। जब 2014 में खट्टर सत्ता में आए, तो यह हरियाणा की महिलाएं ही थीं जिन्होंने सबसे पहले राज्य सरकार को घुटनों के बल लाने का काम किया। निष्क्रिय भीड़ बनने के बजाय, हमने देखा कि महिलाओं ने सचेत राजनीतिक रूप से अपनी मांगों को उठाकर इस आन्दोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई।
हालांकि, यह दुखद पहलू है कि हमारे मुख्यधारा के राजनीतिक दलों में महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद कम है। महिलाओं की राजनीतिक चेतना में वृद्धि के बावजूद, इस बार चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या पिछली बार की तुलना में कम हुई है (104 महिला उम्मीदवारों के साथ 2019 के विधानसभा चुनावों में कुल प्रतिभागियों का हिस्सा केवल 9 प्रतिशत है, जबकि 2014 में महिला उम्मीदवारों की संख्या 115 थी)।
महिलाओं ने सभी मोर्चों पर अपनी क्षमता का परिचय दिया है, लेकिन राजनीतिक दल चुनावों के दौरान चुनाव जिताऊ तिकडमों पर ही अपना पूरा ध्यान लगाते हैं। घटती महिला उम्मीदवारों की संख्या निराशाजनक हैं क्योंकि इसका मतलब है कि विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी कम होगा।
न्यूज़क्लिक: क्या इसी वजह से मुख्यधारा के राजनैतिक दलों में 33% महिला आरक्षण को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं दिखती?
जगमती सांगवान: जी। वैधानिक दबाव के बिना, कोई भी दल इसे कार्यान्वित करने के लिए आगे कदम नहीं बढ़ाएगा। यह मैंने खुद के अनुभव से सीखा है।
न्यूज़क्लिक: क्या अपने चुनावी घोषणापत्र में इस मुद्दे पर अपने घोषित वायदे के बावजूद?
जगमती सांगवान: जी हां, क्योंकि यह प्रबंध उनके मनमाफिक है। चुनाव में महिला वोट को हथियाने के लिए ही राजनैतिक पार्टियाँ महिला आरक्षण का समर्थन करती हैं। पितृसत्तात्मक व्यवस्था पुरुषों को राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका में जमे रहने की इजाज़त देती है, और इसे सभी मुख्य राजनीतिक दलों में मर्दवादी विशिष्टताओं के रूप में देख सकते हैं।
न्यूज़क्लिक: आपको क्या लगता है कि यदि आपके अनुसार, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए, तो इसके चलते जमीनी स्तर पर क्या बदलाव देखने को मिलेंगे?
जगमती सांगवान: संविधान के 73 वें संशोधन के जरिये [1994 में] पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण को अनिवार्य कर दिया गया। नतीजतन, गांवों में, एक महिला सरपंच के तहत, लोगों के रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करने वाले कहीं अधिक मुद्दों की पहचान हो सकी है हरियाणा के गांव लखन माजरा का उदाहरण लें, जहां पंचायत की महिला मुखिया ने स्कूलों में मध्याह्न भोजन सुनिश्चित किया। मैं यह नहीं कह रही हूं कि पुरुष सरपंच ऐसा नहीं करते हैं, लेकिन उनके लिए यह मुद्दा उतना ही संवेदनशील हो यह थोडा मुश्किल है क्योंकि उनकी दिनचर्या में ये गतिविधियाँ न के बराबर होती हैं।
न्यूज़क्लिक: आपके कार्यकर्ता जीवन का अधिकांश हिस्सा हरियाणा में खाप पंचायतों के खिलाफ संघर्षों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है। क्या आप देखती हैं कि पहली बार राज्य में भाजपा के सत्ता में आने के बाद यह लड़ाई भी प्रभावित हुई है?
जगमती सांगवान: खाप पंचायतों के खिलाफ AIDWA के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन को 2014 के बाद एक बड़ा झटका लगा है। बीजेपी के राज में, ऑनर किलिंग के मामले बेरोकटोक जारी रहे, जिसका अर्थ है कि हरियाणा में खाप पंचायतों ने वास्तव में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। जरा देखिए कि किस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी एक चुनावी रैली में हरियाणा को 'खापों की धरती' बताते हुए शुभकामनाएं दीं। उन्हें किसानों, महिलाओं और यहां तक कि हरियाणा के खिलाड़ियों की याद भी नहीं आई।
न्यूज़क्लिक: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी आरएसएस के पूर्व प्रचारक रहे हैं। आप राज्य में भगवा संगठन के बढ़ते प्रभाव (2014 तक शाखाओं की संख्या 400 से बढ़कर 2017 में 1700 हो चुकी है) को किस प्रकार से देखती हैं, जो एक खास विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं जहाँ महिलाओं को बेहद रूढ़िवादी चश्मे से देखा जाता है?
जगमती सांगवान: राज्य में बीजेपी की जीत ने आरएसएस को समाज में महिला विरोधी मान्यताओं को फैलाने में मदद दी है, जिसे खाप पंचायतों के नेताओं द्वारा आगे बढ़ाया गया है। हरियाणा राज्य ने एक पत्रिका जारी की थी जिसके मुखपृष्ठ पर घूंघट ओढ़े एक महिला की फोटो थी। जब प्रगतिशील महिला संगठन ने इसका विरोध किया, तो शिक्षा मंत्री ने घूंघट को 'हरियाणा का गौरव' बताया।
(हंसते हुए) याद रखें, ये वही लोग हैं जो ट्रिपल तालक के खिलाफ खड़े हुए हैं।
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