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राजस्थान हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को विवादास्मक बिल पर भेजा नोटिस

इस आर्डिनेंस से सरकार संविधान की धारा 14,19 और 21 का उललंघन कर रही है
राजस्थान सरकार

राजस्थान हाई कोर्ट ने 27 अक्टूबर शुक्रवार को केंद्र और राजस्थान सरकार को कुछ रिट पेटीशनों पर नोटिस भेजा है जो सरकार के द्वारा लाये गए एक आर्डिनेंस पर सवाल खड़े करते हैं. PUCL और राजस्थान कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट ने भी कोर्ट में राजस्थान सरकार के आर्डिनेंस को रद्द करने के लिए एक पेटीशन दायर किया था .

7 सितम्बर को राजस्थान सरकार ने विधानसभा “criminal laws (rajasthan Ordinance ) 2017 लागू किया.इस ऑर्डिनेंस के मुताबिक सरकार की स्वीकृति के बिना किसी भी पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ मेजिस्ट्रेट द्वारा जाँच नहीं हो सकती. इसके आलावा मीडिया भी किसी आरोपित पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ रिपोर्ट नहीं कर सकता और अगर ऐसा किया गया तो उसे 2 साल की सज़ा हो सकती है. इस ऑर्डिनेंस का विपक्षी पार्टियों , मानवाधिकार संगठनों और मीडिया से जुड़े लोग लगातार  विरोध कर रहे हैं  . विरोध के बावजूद 23 अक्टूबर को सरकार ने विधानसभा में ये बिल पेश किया. जस्टिस अजय रस्तोगी और दीपक महेश्वरी की एक डिवीज़न बेंच  ने ये नोटिस जारी किया है और नवम्बर 27 तक सरकार से जवाब माँगा है . पर नियमों के मुदाबिक , बिल सेलेक्ट कमिटी के सामने जा चूका है ,  यानी ये ऑडीनैन्स 5 दिसम्बर तक  लागू रहेगा .

सचिन पायलट का मानना है कि इस आर्डिनेंस से सरकार संविधान की धारा 14,19 और 21 का उललंघन कर रही है. आर्टिकल 14 कानून के आगे सबको बराबरी का अधिकार देता है और 19 अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार देता है .इससे पहले PUCL की राज्य सचिव कविता श्रीवास्तव ने भी कहा कि ये ऑर्डिनेंस मीडिया की आज़ादी पर रोक लगाने और मेजिस्ट्रेट की शक्तियों को सीमित करने के लिए लाया गया है और इससे मैजिस्ट्रेट द्वारा जाँच करवाने की सारी संभावनाएं ख़त्म हो जाएँगी.

इस पूरे प्रकरण से कई सवाल खड़े होते हैं , क्या सरकार लोगों के जनतांत्रिक अधिकारों का दमन करना चाहती है? क्या भारतीय लोकतंत्र ऐसे मुकाम पर आ खड़ा हुआ है कि एक प्रशासनिक अधिकारी की शिकायत भर एक गुनाह हो गया है? क्या ऐसे ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ी जाएगी?

 

 

 

 

 

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