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श्रीनगर : ख़राब स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से घर पर ही पैलेट निकाल रहे निवासी

स्वास्थ्य सेवाएँ न होने की वजह से नौसिखियों को घर पर ही पैलेट बंदूकों से लगे ज़ख़्मों का इलाज करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
srinagar

57 दिनों से घेराबंदी में रह रही कश्मीर की जनता न सिर्फ़ संपर्क साधन बंद होने की वजह से हताश है, बल्कि उनकी स्वास्थ्य सेवाओं तक भी कोई पहुँच नहीं है। इसका हासिल ये है, कि कश्मीरी ख़ुद ही शरीर से पैलेट निकालने को मजबूर हैं, और लगातार ख़ुद को इस काम की ट्रेनिंग दे रहे हैं।

निवासियों का कहना है कि विरोध प्रदर्शनों के केंद्र सौरा में, पिछले दो महीने में 300 से ज़्यादा लोग पैलेट के हमलों का शिकार हुए हैं। ये इलाक़ा अब भारत सरकार और सेन के ख़िलाफ़ बग़ावत का गढ़ बनता जा रहा है। हर शुक्रवार को नमाज़ के बाद, जनाब साब मस्जिद के बाहर विरोध प्रदर्शन होते हैं। जनता और सेना के बीच लगातार होती झड़प की वजह से, इस इलाक़े को बाक़ी राज्य से अलग-थलग कर दिया गया है, जिसकी वजह से वहाँ तक स्वास्थ्य सेवाएँ भी नहीं पहुँच पा रही हैं।

अपने 65 वर्षीय चाचा के ज़ख़्म दिखाते हुए फ़िरोज़ी(बदला हुआ नाम) ने कहा, "उनको मस्जिद के बाहर गोली मारी गई थी। वो फ़ौज के सामने हाथ जोड़ रहे थे कि वो उनको गोली न मारें! इनकी दिमाग़ी हालत ठीक नहीं है, इनका चेहरा देखिये, आपको लगता है कि ये किसी को नुक़सान पहुँचा सकते हैं? उन्होंने इन्हें बेहद क़रीब से गोली मारी, जिसकी वजह से इनको गहरी चोट लगी है। इनका ज़ख़्म इतना गहरा था कि हमें इन्हें अस्पताल ले जान पड़ा। लेकिन हम आज भी इनकी पट्टी बदलवाने के लिए वहाँ से तारीख़ मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं। अब हमारे पास एक ही चारा है कि हम इंतज़ार करें और देखें कि इनका इलाज हो पाता है या नहीं!"
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फ़िरोज़ी के चाचा की तरह, हज़ारों लोग पैलेट का शिकार हुए हैं और किसी भी स्वास्थ्य सेवा से दूर अपने घरों में तड़प रहे हैं। 16 साल के इरशाद(बदला हुआ नाम) की माँ कहती हैं, "इसको हाल ही गोली लगी है। इस पर पूरी एक राउंड पैलेट से हमला किया गया था। फ़ौज कहती है कि वो हमारे बच्चों को मार रहे हैं, क्योंकि वो पत्थरबाज़ हैं। लेकिन मेरा बेटा तो बस सड़क पर खड़ा था जब उस पर हमला हुआ। उसके दिमाग़ में गहरी चोट आई है।"

इरशाद की माँ ने बताया कि वो अकेले ही इरशाद को पालती हैं। उन्होंने कहा, "इसके इलाज के लिए मैं सिर्फ़ अपनी क़ौम की मोहताज हूँ। हम इतने खौफ़ में हैं कि हम अपने घर भी नहीं जा रहे हैं और दूसरों के घर पर रह रहे हैं।"

इरशाद पर दो हफ़्ते पहले हमला किया गया था। उनकी माँ का कहना है कि क़रीब 200 पैलेट अभी भी उसके सर में मौजूद हैं, वहीं फ़िरोज़ी के चाचा के पैर से 250 पैलेट अभी तक नहीं निकाल सके हैं। उनको हमेशा के लिए न चल पाने का ख़तरा है।

सौरा में हाल में हर उम्र के 300 से ज़्यादा लोग ज़ख़्मी हैं। 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से विरोध प्रदर्शन बढ़े और साथ ही ज़ख़्म भी बढ़े हैं। निवासियों ने जनाब साब मस्जिद के अंदर एक छोटा एमर्जन्सी कमरा बन लिया है, जहाँ ख़ुद ही अपना इलाज करते हैं। वो छोटे से छोटे पैलेट निकालने के लिए ब्लेड, डेटोल लगी रूई और यहाँ तक कि मोमबत्तियों का भी इस्तेमाल करते हैं।

फ़िरोज़ी बताती हैं कि अस्पताल तक पहुँच पाना या इलाज के पैसे जमा कर पाना उनके लिए नामुमकिन है। उन्होंने कहा, "मैंने अपने हाथों से अपने छोटे भाई-बहनों, यहाँ तक कि ख़ुद अपने बदन से पैलेट निकाले हैं। मुझे कोई ट्रेनिंग नहीं मिली है, लेकिन मेरे पास और कोई ज़रिया नहीं है। मेरे भाई के आँख में पैलेट लग गई थी। हम उसकी आँख का इलाज घर पर नहीं कर पाए, हम ये भी नहीं जानते कि हमको अस्पताल में तारीख़ मिल पाएगी या नहीं।"

फ़िरोज़ी ने कहा कि तमाम लोग पैलेट का शिकार हुए हैं, इसलिए उन्हें ख़ुद ब्लेड उठाना पड़ा। वो कहती हैं, "ये प्रक्रिया बहुत मुश्किल है क्योंकि बहुत दर्द होता है और लगातार ख़ून बहता रहता है। अंग ख़राब हो जाने का भी ख़तरा होता है, लेकिन मुझे ख़ुद ही ब्लेड उठाना पड़ा और कुछ करना पड़ा। पैलेट बाहर निकालने की प्रक्रिया, हमले से भी ज़्यादा दर्दनाक है।"

20 साल के माजिद, जो अब व्हीलचेयर पर हैं, वो बताते हैं कि उनको 2 साल पहले गोली मारी गई थी। उन्होंने कहा, "मैं देख रहा हूँ फिर से वही सब हो रहा है। मेरे इर्द-गिर्द सभी नौजवान ज़ख़्मी हो रहे हैं। ऐसे हालात में जीने से तो मर जान अच्छा है।"

माजिद(बदला हुआ नम) अभी तक अपने दिमाग़ में लगे पैलेट से उभर रहे हैं। दिमाग़ में लगे ज़ख़्म की वजह से उनके लिए बात करना भी मुश्किल है। निवासी बताते हैं कि माजिद का इलाज करवाने के लिए उनके घरवालों को अपनी ज़मीन बेचनी पड़ी थी। जब उनसे इलाज के ख़र्च के बारे में पूछा गया, उन्होंने कहा, "मैंने 2 लाख से ज़्यादा पैसे ख़र्च कर दिये हैं, जो कि पैलेट निकलवाने के लिए एवरेज रक़म है। मैं अभी भी दवाइयाँ खाता हूँ और नियमित चेक-अप करवाता हूँ। मेरे परिवार इतन ख़र्च करने में असमर्थ है।"

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