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'उन्माद का क्षेत्र'

आतंकवाद के चलते जब कभी एक व्यक्ति की मौत होती है पूरी मानवता मर जाती है।
kashmir
image courtesy - indian express

वर्षों पहले कश्मीर के लिए कहा जाता था कि, 'अगर ज़मीन पर जन्नत है, तो यही है, यही है, यही है!’ लेकिन हमने दिल दहला देने वाली ख़बर सुनी है कि एक विस्फोटक से भरी कार पुलवामा में सीआरपीएफ के क़ाफिले में घुस गई जिसमें कम से कम 40 कर्मियों की मौत हो गई जबकि कई अन्य घायल हो गए।

सबसे ज़्यादा बुरा यह है कि आत्मघाती हमलावर जो इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) से लदे वाहन को चला रहा था वह स्थानीय एक कश्मीरी युवक था। 22 वर्षीय आदिल अहमद डार को अपनी जान गंवाने और बड़ी संख्या में सीआरपीएफ कर्मियों की जान लेने के लिए किस चीज ने बढ़ाया वह एक प्रश्न है जिसकी हमें तलाश करनी  चाहिए। कश्मीरी युवा इतनी आहत, व्याकुल और अलग-थलग क्यों महसूस कर रहे हैं; हमने कहां गलत किया, हमने उन्हें कैसे विफल कर दिया?

इससे भी बदतर यह कि अगर हम कश्मीर से प्यार करते हैं तो कश्मीरी युवाओं से क्यों नहीं? कश्मीरियों पर गुस्सा क्यों निकाला जा रहा है। देहरादून में दो कॉलेज प्राचार्यों ने कहा है कि वे कश्मीरी छात्रों का दाख़िला नहीं लेंगे? विभिन्न क्षेत्रों में कश्मीरियों को पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता है।

शिवसेना और बीजेपी ने हिंदुत्व और पुलवामा का हवाला दिया है और देशविरोधी ताक़तों को कमजोर करने के लिए साथ आए। सोशल मीडिया यूजर्स और कई टेलीविज़न शो में देखा गया है कि वे काफी गुस्से में हैं और वे बदला लेने, प्रतिशोध और कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं।

लेकिन क्या हम एक साथ आ सकते हैं और कल्पना में गोता लगा सकते हैं? अब से कई सौ साल बाद यह बिना सीमाओं वाली एक दुनिया हो सकती है जब लोग निष्कपट, मोहित और सर्वथा आदिम के रूप में भूखंड के लिए रक्तपात करने की हमारी सामूहिक क्षमता को देखेंगे।

यह भूमि मेरी या आपकी भूमि नहीं है मगर प्रकृति की देन है और अगर सियाचिन ग्लेशियर को ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के चलते पिघलाना ही था तो यह अपने शरीर का अंग गंवाने वाले उन असंख्य लोगों का मज़ाक उड़ाएगा जो इसकी रक्षा करते हुए जमा देने वाले ठंढ के शिकार हुए।

प्रिय पाठक महज एक पल के लिए मत सोचिए कि मैं सशस्त्र बलों के बलिदान पर प्रकाश डालता हूं। मैं केवल पूछता हूं कि क्या उनका जीवन मौत से ज़्यादा क़ीमती नहीं है? क्या युवा भविष्य के लिए एक जलते हुए मशाल की तरह नहीं है कि इन्हें आत्मघाती हमलावर के रूप में ख़त्म हो जाना चाहिए? कश्मीर की माताएं शांति चाहती हैं जहां वे बेकाबू तलाशी से दखल महसूस न करें और इस बात को लेकर परेशान रहती हैं कि कब उनके बच्चे सुरक्षित घर लौट आएं। उन्होंने कर्फ्यू वाली रातों और गश्त के दिनों को काफी देखा है।

दो परमाणु शक्तियों के बीच सैन्य कार्रवाई से दोनों तरफ निस्संदेह विनाश हो सकता है। चाहे भारत लाहौर पर बम बरसाए ऐसे में अमृतसर प्रभावित होगा; और पाकिस्तान हमला करे तो इस उपमहाद्वीप में बड़ी संख्या में लोगों का नुकसान होगा।

इसके बजाय प्रिय पाठक मैं आपसे कहता हूं कि बिना सीमाओं वाली दुनिया की तरफ देखें। दूसरे शब्दों में कश्मीरी युवाओं के साथ संवाद शुरू करें और सुनें कि वे वास्तव में क्या चाहते हैं। सिर्फ सरकार ही नहीं स्वयंसेवी समूहों को इन युवाओं के दिलों और दिमागों से जुड़ने देना चाहिए जो हमें रंजिसजदा लगते हैं और हम अपने पैसे से उनके उचित सपने और इच्छा को पूरा करने में मदद करें।

हम पाकिस्तान के साथ बातचीत कर हल निकालें। भारत को अहिंसा और सत्याग्रह की विरासत है जो कमजोर नहीं बनाता है; वास्तव में हमें अपने अहिंसा के खोए हुए स्थान को फिर से प्राप्त करना चाहिए जिसे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद क़ायम रखा है। यूनाइटेड प्रेस के वेब मिलर ने देखा कि किस तरह से ब्रिटिश सैनिकों ने धरासना में काम कर रहे नमक सत्याग्रहियों पर लाठियों से हमला किया और उन्होंने जवाबी कार्रवाई करने से इनकार कर दिया। मिलर ने लिखा कि पश्चिम ने जो भी नैतिक श्रेष्ठता पाई थी वह आज ख़त्म हो गई है। यही एक वास्तविक विरासत है जिसके तहत हम अहिंसा के नक्शेकदम पर चल सकते हैं।

और हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को शामिल करें और हमें लस्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी गुटों को समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता की आवश्यकता है। हम इसे अकेले नहीं कर सकते।

संयुक्त राज्य अमेरिका जो कि अफगानिस्तान से हटने के लिए तैयार है और एक शांतिपूर्ण क्षेत्र चाहता है। क्या इसे पाकिस्तान के पक्ष में वापस जाना चाहिए या आतंकवाद को समाप्त करने के लिए बातचीत करनी चाहिए? चीन की भू-राजनीतिक स्थिति और क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए हमें उससे भी बातचीत करनी होगी लेकिन द्विपक्षीय और बहु-राष्ट्रीय संवादों के माध्यम से।

आतंकवाद राष्ट्रीय मुद्दा ही नहीं है बल्कि यह सीमाओं को पार करता है और सभी देशों पर प्रभाव डालता है। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के हमले के बाद कहा जाता था कि उससे अधिक सुरक्षित स्थान हो ही नहीं सकता है। आज क्यों नहीं?

और आखिर में प्रिय पाठक वह आदमी जो मर जाता है चाहे भारतीय हो या पाकिस्तानी वह एक उत्कृष्ट इंसान है जो एक बिखरे हुए परिवार को अपने पीछे छोड़ जाता है जो यादों और स्मृति चिह्नों से जकड़ जाता है क्योंकि लाखों जीवन को लीलने वाले भयावह विभाजन का कोई भी पीड़ित इसकी गवाही देगा। ये विभाजन एक राजसी भू-राजनीतिक खेल था जिसमें इस उपमहाद्वीप के लाखों लोगों ने एक भयानक क़ीमत चुकाया है; क्या हम इससे कुछ सीख सकते हैं?

यहां तक कि जब आतंकवाद के चलते एक भी इंसान मारा जाता है तो पूरी मानवता मर जाती है। आइए हम उन्माद के चक्र को रोकें, हम शांति क़ायम करें; प्रिय पाठक अब किसी युद्ध की बात न करें!

(लेखक फिल्म निर्देशक और पुरस्कार-विजेता-लेखक हैं)

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