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हड़ताल पर रोक लगने के बाद रक्षा कर्मचारी संघ ओएफबी के निगमीकरण के ख़िलाफ़ लड़ेंगे क़ानूनी लड़ाई

एक अन्य कदम के बतौर 13 से 18 सितंबर के बीच एक जनमत-संग्रह आयोजित किया जाना है, जिसमें देश भर के आयुध कारखानों में मौजूद 76,000 रक्षा कर्मचारियों से केंद्र के कदम के बारे में अपना फैसला व्यक्त करने के लिए कहा जायेगा।
हड़ताल पर रोक लगने के बाद रक्षा कर्मचारी संघ ओएफबी के निगमीकरण के ख़िलाफ़ लड़ेंगे क़ानूनी लड़ाई
फाइल फोटो 

केंद्र सरकार को आवश्यक रक्षा सेवाओं में हड़ताल की कार्यवाई पर रोक लगाने के लिए अधिकार संपन्न बनाने वाले विधेयक के संसद में पारित हो जाने के एक महीने बाद, रक्षा कर्मचारियों के संघों ने अब आयुध कारखाना बोर्ड (ओएफबी) के विघटन के खिलाफ अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए कानूनी राह पर जाने का फैसला लिया है। 

मान्यताप्राप्त रक्षा कर्मचारियों के महासंघों द्वारा पिछले कुछ दिनों के दौरान आवश्यक रक्षा सेवा (ईडीएस) विधेयक 2021 एवं नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली सरकार द्वारा आयुध कारखानों के निगमीकरण के फैसले, इन दोनों के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई हैं। न्यूज़क्लिक को प्राप्त जानकारी के अनुसार अन्य रक्षा संघों से भी आने वाले दिनों में इस संबंध में क़ानूनी सहारा लिए जाने की उम्मीद है।

अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ़) की ओर से इस हफ्ते मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है ताकि केंद्र को ओएफबी के निगमीकरण के अपने फैसले को लागू करने से “रोका” जा सके।

इसी प्रकार एआईडीईएफ़ ने भी पिछले महीने ईडीएस अधिनियम 2021 को चुनौती देने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। यूनियन ने अपनी रिट याचिका में यह दावा करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय से राहत की मांग की थी कि अधिनियम की कुछ धाराएं संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती हैं।

जून में केंद्र ने 246 साल पुराने ओएफबी को निगमित किये जाने की योजना को मंजूरी दी थी। ओएफबी एक छतरी निकाय है जो देश भर में मौजूद 41 आयुध कारखानों की देखरेख करता है। मंत्रिमंडल के निर्णय के मुताबिक बोर्ड को अब सात नए रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (डीपीएसयूज) में रूपांतरित कर दिया जाएगा। रक्षा उपकरण निर्माण के क्षेत्र में शामिल ओएफबी वर्तमान में डीडीपी के नियंत्रण में एक सरकारी विभाग के तौर पर संचालन कर रही है, जिसे रक्षा मंत्रालय (एमओडी) द्वारा प्रशासित किया जाता है।

केंद्र सरकार के इस कदम को देखते हुए तीन मान्यता-प्राप्त रक्षा कर्मचारी संघों – एआईडीईएफ, भारतीय राष्ट्रीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (आईएनडीडब्ल्यूएफ) और आरएसएस से सम्बद्ध भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ (बीपीएमएस) ने विरोधस्वरुप अनिश्चितकालीन हड़ताल का आह्वान किया था।

वहीँ दूसरी तरफ, केंद्र की ओर से रक्षा उपकरणों के उत्पादन में शामिल कर्मचारियों की हड़ताल को प्रतिबंधित करने के लिए आदेश जारी करने के मकसद से एक विवादस्पद अध्यादेश को लाया गया। यह अध्यादेश सेना से जुड़े किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठान में रक्षा उपकरणों के उत्पादन, सेवाओं एवं संचालन या रखरखाव के साथ-साथ रक्षा उत्पादों की मरम्मत और रख-रखाव में कार्यरत कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने से प्रतिबंधित करता है। इसके अलावा, यह हर उस व्यक्ति को दण्डित करने की भी इजाजत देता है जो हड़ताल पर जाने की बात करता है, जिसे इस अध्यादेश के तहत गैर-क़ानूनी माना गया है।

अध्यादेश को बाद में विधेयक की शक्ल देने के लिए लाये गए ईडीएस विधेयक 2021 को हाल ही में संपन्न हुए मानसून सत्र के दौरान अगस्त में संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया और पारित करा लिया गया था। श्रमिक संघों की ओर से इसकी कटु आलोचना की गई, जिन्होंने इसे “काला कानून” करार दिया था।

एआईडीईएफ के महासचिव सी श्रीकुमार ने बृहस्पतिवार को न्यूज़क्लिक को बताया कि रक्षा महासंघ ने सरकार द्वारा ओएफबी को निगमित किये जाने के फैसले को चुनौती देने के लिए हर संभव रास्ते को अपनाने का फैसला लिया है। उनका कहना था, “हम पिछले कई वर्षों से इस संबंध में अभियान और प्रदर्शन करते आ रहे हैं। पिछले साल, हमने हड़ताल का भी सहारा लिया था जो कि लगभग एक सप्ताह तक चली थी। अब हम अदालतों का भी दरवाजा खटखटा रहे हैं, यह देखने के लिए कि क्या वहां से किसी प्रकार की राहत मिल सकती है या नहीं।” इसके साथ ही उन्होंने बताया कि दोनों याचिकाओं पर अगले हफ्ते से सुनवाई शुरू होने की उम्मीद है। 

श्रीकुमार ने खेद व्यक्त किया कि हालिया कदम उन रक्षा कर्मचारियों को दण्डित किये जाने के केंद्र के “असंवैधानिक” फैसले की पृष्ठभूमि में लिए गए हैं, जो हड़ताल पर जाने के विकल्प का चुनाव करते हैं। उन्होंने कहा “कानूनी राह मोदी सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों के खिलाफ हमारे संघर्ष को और ज्यादा मजबूती प्रदान करेगी। बीपीएमएस जैसे अन्य रक्षा महासंघों से भी उम्मीद है कि वे आने वाले दिनों में अदालतों में याचिकाएं दायर करेंगे।”

न्यूज़क्लिक की ओर से बीपीएमएस यूनियन के एक नेता से इस बारे में पुष्टि करने की कोशिश की गई जो कि नाकाम रही।

इस बीच रक्षा उत्पादन (डीपी) सचिव और मान्यता प्राप्त रक्षा महासंघों के बीच हुई नवीनतम वार्ता— जिसमें यूनियनों को इस संबंध में भरोसे में लेने की बात थी कि ओएफबी के डीपीएसयूज में रूपांतरण कर दिए जाने के उपरांत रक्षा कर्मचारियों की सेवा शर्तों में किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं किया जायेगा— पूरी तरह से बेनतीजा रही। इस बैठक के बाद महासंघों ने “आगे की कार्यवाई पर कोई फैसला लेने” से पहले एक जनमत-संग्रह कराने का भी मन बनाया है।

13 सितंबर से 18 सितंबर के बीच में जनमत-संग्रह सप्ताह आयोजित किया जाना है जिसमें देश भर के आयुध कारखानों के 76,000 रक्षा कर्मचारियों से ओएफबी के निगमीकरण के बारे में अपने फैसले को व्यक्त करने के लिए कहा जायेगा। श्रीकुमार का इस बारे में कहना था कि “हमारे ट्रेड यूनियन संघर्ष के कार्यक्रम में क़ानूनी लड़ाई कोई अड़चन नहीं हैं। लेकिन हम जनमत-संग्रह के बाद ही भविष्य की कार्यवाई के बारे में कोई फैसला लेंगे।”

जनमत-संग्रह, जिसके बारे में न्यूज़क्लिक को बृहस्पतिवार को बताया गया, उसका आह्वान इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) से सम्बद्ध आईएनडीडब्ल्यूएफ को छोड़कर बाकी सभी रक्षा महासंघों की ओर से किया गया है। अन्य महासंघों की कतार को तोड़ते हुए आईएनडीडब्ल्यूएफ ने पिछले महीने ओएफबी के निगमीकरण को अपना समर्थन देने के लिए अपनी स्थिति में बदलाव कर लिया था।

आईएनडीडब्ल्यूएफ के महासचिव आर श्रीनिवासन ने बृहस्पतिवार को न्यूज़क्लिक को बताया कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी यूनियन ओएफबी को निगमित किये जाने के फैसले का समर्थन करती है या नहीं क्योंकि केंद्र इस मामले में कोई भी बात सुनने नहीं जा रहा है। उनका कहना था “इसीलिए अब हम इस बात को सुनिश्चित करने पर अपना सारा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि कर्मचारियों के सेवा शर्तों की गारंटी की जा सके।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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