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अग्निपथ योजना : सेना में पहले से ही संघर्ष कर रही महिलाओं के लिए नई चुनौती

अग्निपथ स्कीम के ज़रिये सेना और सरकार आज जिस नारी शक्ति और सशक्तिकरण की बात कर रही है, उसी के उलट अदालत में कभी महिलाओं की बायोलॉजी, उनके शरीर, प्रेग्‍नेंसी, पीरियड्स, मैटरनिटी लीव जैसी बातों को अपने पक्ष में एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश की गई थी।
women in army

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 14 जून 2022 को सेना में भर्ती के लिए ''अग्निपथ स्कीम' की घोषणा की। इस स्कीम के तहत अब महिलाओं के पास भी सेना में शामिल होने का मौका होगा, उनके लिए भी पुरुषों की तरह ही सेना में तैनाती के दरवाज़े खुल जाएंगे। इससे पहले महिलाएं केवल थलसेना में ही जवानों के पद के लिए आवेदन कर सकती थीं, जबकि वायुसेना और नौसेना में महिलाएं केवल अधिकारी रैंक के लिए ही योग्य मानी जाती रही हैं। ऐसे में अब अग्नीपथ की नई योजना को महिलाओं के नए भविष्य से जोड़कर ऐतिहासिक बताने की खूब कोशिशें जारी हैं।

हालांकि अब तक सेना में महिलाएं शॉर्ट सर्विस कमीशन से स्थाई सर्विस कमीशन और कॉमबेट रोल के लिए लड़ाई लड़ रही थीं लेकिन अब उनके सामने चार साल की एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। ऐसे में सेना की ये स्कीम भावी महिला सैनिकों के लिए कितनी लाभकारी या विनाशकारी साबित होगी, ये समझने से पहले हमें सेना में महिलाओं के संघर्ष को समझना पड़ेगा।

बता दें कि अब तक सेना में महिला अधिकारियों ने कमांड पोस्ट और परमानेंट कमीशन को लेकर एक लंबा संघर्ष किया है। लगभग एक दशक से अधिक हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक मुकम्मल लड़ाई लड़ने के बाद 17 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने से इंकार करना समानता के अधिकार के ख़िलाफ़ है। सरकार द्वारा दी गई दलीलें स्टीरियोटाइप हैं जिसे क़ानूनी रूप से कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

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सेना और सरकार की नीयत और नीति में फ़र्क़

अग्निपथ स्कीम के जरिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार आज जिस नारी शक्ति और महिला सशक्तिकरण की बात कर रही है, उसी सरकार ने कभी अदालत में महिलाओं के खिलाफ अपनी दकियानुसी दलील में कहा था कि महिला अधिकारियों के लिए कमांड पोस्ट में होना इसलिए मुश्किल है, क्योंकि उन्हें प्रेग्नेंसी के लिए लम्बी छुट्टी लेनी पड़ती है। उन पर परिवार की जिम्मेदारियां होती हैं। इसके अलावा सरकार ने ये भी कहा था कि सैन्य अधिकारी महिलाओं को अपने समकक्ष स्वीकार नहीं कर पाएंगे क्योंकि सेना में ज़्यादातर पुरुष ग्रामीण इलाकों से आते हैं।

जब कोर्ट इस पर भी राज़ी नहीं हुआ तो सेना और सरकार ने महिलाओं की बायोलॉजी, उनके शरीर, प्रेग्‍नेंसी, पीरियड्स, मैटरनिटी लीव जैसी बातों को अपने पक्ष में एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश की। और आखिर में जब बात नहीं बनी तो सेना ने अपने भेदभावपूर्ण फिटनेस और मेडिकल नियमों को अपनी रक्षा का सहारा बना लिया। अब ऐसे में भला कोई भी कह सकता है कि यहां सरकार और सेना दोनों की नीयत और नीति में बड़ा अंतर है।

अग्निपथ स्कीम में महिलाओं के लिए क्या है?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक नई योजना के तहत महिलाओं को आर्मी में 'महिला-जवान', एयरफोर्स में 'एयर-वुमन' और नेवी में 'वुमन-सेलर' के नाम से एंट्री मिलेगी। हालांकि उन्हें किस पद पर और किस ड्यूटी के लिए तैनात किया जाएगा इसको लेकर अभी तक कुछ भी साफ नहीं कहा जा रहा है। इससे पहले साल 2019 में पहली बार भारतीय थलसेना में महिला जवानों को भर्ती करने का फैसला लिया गया था। 2021 में 100 महिलाओं ने आवेदन किए जिसमें से 83 महिलाओं को मिलिट्री ट्रेनिंग देने के बाद आगे सेना में नौकरी करने के लिए चुना गया। इन महिला जवानों के कॉर्प ऑफ मिलिट्री पुलिस (CMP) में तैनात किया गया। यह पहली बार हुआ था कि सेना में बिना ऑफिसर रैंक की भर्तियों में महिलाओं को शामिल किया गया।

अग्निपथ के संबंध में नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने बताया कि अग्निपथ योजना में महिलाएं भी शामिल हैं। अभी तक नौसेना में महिलाएं सिर्फ अधिकारी रैंक के लिए ही योग्य हैं, लेकिन अग्निवीर योजना के जरिए महिलाएं नौसैनिक के पद के लिए भी योग्य हो जाएंगी।

एडमिरल आर हरि कुमार के मुताबिक महिला अग्निवीरों को भी छह महीने की ट्रेनिंग और साढ़े तीन साल की सेवा देनी होंगी। उसके बाद 25 प्रतिशत महिलाएं आगे अपनी सेवाएं जारी रख सकेंगी और बाकी 75 प्रतिशत को रिटायरमेंट दे दिया जाएगा।

इसके अलावा वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने भी एयरफोर्स में महिलाओं के शामिल होने की जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि एयरफोर्स में भी अग्निवीर के पद के लिए महिलाओं को स्वीकृति दे दी गई है। वायुसेना में भी महिलाएं अफसर रैंक के लिए आवेदन कर सकती हैं। लेकिन अग्निवीर योजना में वे एयर-मैन (वूमेन) के पद के लिए भी योग्य मानी जाएंगी।

महिलाओं को अब तक नहीं मिल सका है सेना में उचित सम्मान

ज्ञात हो कि अब तक नेवी और एयरफोर्स में महिलाओं ने PBOR यानी पर्सनल बिलो ऑफिसर रैंक के नीचे काम नहीं किया। वहीं आर्मी में अफसर रैंक से नीचे उनकी सेवाएं मिलिट्री बेस पर पुलिस ड्यूटी, जेल ड्यूटी मैनेजमेंट, स्किल डेवलपमेंट और अंतिम संस्कार की ड्यूटी और ड्यूटी के दौरान गाड़ी चलाना और सिग्नल कम्यूनिकेशन के सभी उपकरण चलाना जैसे कामों में लगाई जाती रही है। आज महिलाएं फाइटर प्लेन उड़ाने और लड़ाकू जहाजों पर जिम्मेदारियां संभालने लगी हैं लेकिन बावजूद इसके अभी भी उन्हें वॉर जोन या हाई रिस्क एरिया में मेडिकल सुविधाओं तक ही सीमित कर दिया जाता है।

गौरतलब है कि अपने ऐतिहासिक फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि सेना में करियर कई इम्तिहानों के बाद बनता है और यह तब और मुश्किल होता है जब समाज महिलाओं पर बच्चों के देखभाल और घरेलू कामों की जिम्मेदारी को डाल दे। ऐसे में पहले से ही सेना में संघर्ष कर रही महिलाएं इस योजना इस योजना के बाद किन चुनौतियां का सामना करेंगी, फिलहाल तो ये कहना मुश्किल है, लेकिन इतना जरूर तय है कि उनके रास्ते आगे भी आसान नहीं होने वाले। क्योंकि जब चार साल के बाद ये महिलाएं दोबारा बेरोज़गार हो जाएंगी तो न तो इनके पास इतनी अच्छी डिग्री ही होगी की कहीं और नौकरी कर सकें। और नाही पेंशन का सहारा होगा जो अपने भविष्य के लिए सुरक्षित हो सकें।

भारत की तरह दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां कम अवधि के लिए सेना में भर्तियां होती हैं. लेकिन ज़रूरी बात यहां ये है कि इन देशों में सेना में सेवा देना अनिवार्य है और इसके लिए कानून बनाया हुआ है, लेकिन अग्निपथ योजना में ऐसा नहीं है। बहरहाल, अग्निपथ से जो समाज में सैन्यीकरण का खतरा है, उससे कहीं न कहीं महिलाओं पर सामाजिक और मानसिक दोहरी मार भी पड़ सकती है। अव्वल तो ये कि हथियार चलाने में माहिर सैनिक पति कभी भी अपने गुस्से का शिकार अपनी बीवी को बना सकता है, जो अक्सर खबरों में भी सुनने को मिलता है। और दूसरी संभावना ये भी है कि महिला सैनिक कहीं खुद ही सेना और समाज के पितृसत्तामक सोच के बीच खुद के लिए हथियार का गलत इस्तेमाल न कर ले। जाहिर है फिलहाल कुछ भी पुख्ता तौर पर कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना जरूर तय है कि इस स्कीम का विरोध कर रहे सड़कों पर उतरे युवा पुरुषों से किसी भी हालात में युवा महिलाओं की चुनौतियां कम नहीं है।

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