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प्रश्न प्रदेश: योगी सरकार का चार साल का जश्न और गन्ना किसानों की परेशानी

किसान कहते हैं पैदावार की लागत बढ़ रही है, महंगाई बढ़ रही है लेकिन गन्ने का भाव नहीं बढ़ रहा। पेराई सत्र भी समाप्त हो गया,  लेकिन कोई राहत मिलती नहीं दिख रही।
प्रश्न प्रदेश: योगी सरकार का चार साल का जश्न और गन्ना किसानों की परेशानी

"चार दशकों में जो न हो पाया ......चार वर्षों में कर दिखाया         

 प्रधानमंत्री जी का विजन हो साकार....... काम दमदार योगी सरकार"

क्योंकि पिछले कुछ दिनों से उत्तर (प्रश्न) प्रदेश की सरकार का यह प्रिय स्लोगन बना हुआ है, इसलिए शुरुआत इसी से करना बेहतर है। अब यह बताते चलें कि आखिर क्यों यह स्लोगन यूपी सरकार का प्रिय बना हुआ है, कारण है योगी सरकार का बीते 19 मार्च को अपना चार साल का कार्यकाल पूरा करना और इसी चार साल के कामों का गुणगान करने के लिए सरकार की ओर से 19 से 24 मार्च तक इस स्लोगन को केंद्र कर प्रदेश में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए गए। कुल मिलाकर छह दिन सरकार पूरी तरह से जश्न में डूबी नजर आई, जश्न चार साल का कार्यकाल पूरा करने का, जश्न इस बात का कि चार दशकों में जो न हो पाया वे सब कुछ चार साल में भाजपा सरकार ने कर दिखाया।

अब अगले साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं तो चार साल का लेखा जोखा जनता के सामने रखने का समय आ ही गया लेकिन सरकार ने तय किया है कि चार साल की अति उपलब्धियों का लेखा जोखा यूं ही जानता के सामने नहीं रखना बाकायदा जश्न मनाकर रखा जाए, तो योगी सरकार इस मौके को चूके बिना हर माध्यम की मार्फत अपने हर उस एक काम का बखान जनता के सामने करना चाहती थी जिसे वह मानती है कि आज तक कभी उत्तर प्रदेश में हुआ ही नहीं।

सरकार के मुताबिक कुल मिलाकर सही मायनों में उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश अब बना है, जहां श्रमिक, किसान, महिलाएं, छात्र, सब के लिए बेहतर से बेहतरीन काम हुआ है, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी काम किए हैं। अब जब सरकार इतना कुछ मानती है तो जाहिर है इसके प्रचार प्रसार के लिए जोर शोर की तैयारियां भी की गई थीं। चार साल की उपलब्धियों पर बकायदा फिल्म प्रदर्शित की गई, गीत का माध्यम चुना गया, विकास पुस्तिकाएँ बांटी गई, कल्याणकारी योजनाओं की प्रदर्शनी आयोजित की गई, कुल मिलाकर गांव से लेकर प्रदेश स्तर तक कई कार्यक्रम आयोजित किए गए लोगों तक यह बात पहुंचाने के लिए कि "चार दशकों में जो न हो पाया, योगी सरकार ने चार साल में कर दिखाया" स्वाभाविक है कि इन कार्यक्रमों को आयोजित करने में पैसा भी पानी की तरह बहाया गया होगा, पर सरकार खुश है और खुश इस बात से कि उसने जनता को बता दिया कि उत्तर प्रदेश, उत्तम प्रदेश बन चुका है जहां सब कुछ बस अच्छा, अच्छा और अच्छा ही है। 

पर इन सब बखानों के बीच सरकार का सबसे ज्यादा जोर किसानों की खुशहाली पर रहा जहां सरकार यह मानती है कि उसके कार्यकाल में जितना खेती किसानी का विकास हुआ है उतना आज तक प्रदेश की किसी भी सरकार के कार्यकाल में नहीं हुआ। तो क्या यह मान लिया जाए कि प्रदेश के किसानों को सरकार से बहुत कुछ मिला है, अगर ऐसा है तो क्यूं हमें इस बार गन्ना किसान योगी सरकार से खासा नाराज नजर आ रहे हैं, क्यूं कर्ज के दबाव में किसान आत्महत्या कर रहे हैं (रायबरेली जिले में बीते छह महीने के अंदर दो किसानों ने आत्महत्या की) और सबसे महत्वपूर्ण यह बात कि अपने किन मुद्दों को लेकर यूपी के किसान इस बार हमें कुछ जिलों में महापंचायत करते नजर आए और यह सिलसिला अभी भी जारी है।

लखीमपुर खीरी ज़िले के पलिया ब्लॉक में 23 मार्च को किसान महापंचायत हुई। जिसमें गन्ना किसानों ने बकाया भुगतान और गन्ना मूल्य वृद्धि न होने पर नाराज़गी जताई। 

मार्च भर में अलग अलग दिन गाजीपुर, बलिया, बनारस, सीतापुर, रायबरेली लखीमपुर खीरी आदि जिलों में किसानों ने महापंचायत की जिसमें कई मुद्दे किसानों ने उठाए। आखिर किसानों को महापंचायत करने की जरूरत क्यों पड़ी, यह अपने आप में एक बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल है। बड़ा और महत्वपूर्ण इसलिए क्यूंकि जब सरकार यह मानती है कि उसके कार्यकाल में किसान खुशहाल है, तो आख़िर इन महापंचायतों के द्वारा किसान योगी सरकार के कानों तक क्या बात पहुंचाना चाहते हैं।

मुद्दे और सवाल तो बहुत हैं जो इन किसानों को योगी सरकार से पूछने हैं लेकिन जो सबसे बड़ा मुद्दा इस बार उत्तर प्रदेश में किसानों के बीच रहा वह है पिछले तीन सालों से गन्ने के मूल्य में वृद्धि का न होना। इस बार सरकार के आश्वासन के बाद भी गन्ना किसानों को निराशा ही हाथ लगी। आखिर इन गन्ना किसानों को इस बार सरकार से इतनी नाराजगी क्यों है, इस सवाल पर पिछले दिनों अलग अलग जिलों के कुछ किसानों से मेरी बातचीत हुई तो एक बात स्पष्ट हो गई कि गन्ना किसानों की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। आइए सबसे पहले आपको ले चलते हैं बस्ती जिले के पिपराकाजी गांव के गन्ना किसान राम इंदर जी के पास.........

बस्ती जिले (उत्तर प्रदेश) के अंतर्गत आने वाले हरैया तहसील के पिपरकाजी गांव के रहने वाले 55 वर्षीय किसान राम इंदर जी को उम्मीद थी कि इस साल तो कम से कम योगी सरकार गन्ने का रेट बढ़ाएगी लेकिन हुआ ठीक उनकी उम्मीद के विपरीत। उनके मुताबिक तीन साल से राज्य सरकार ने रत्तीभर रेट नहीं बढ़ाया जबकि गन्ना मूल्यवृद्धि का वादा योगी सरकार ने हर साल किया। वे कहते हैं "मैं एक छोटा किसान हूं, मेरे लिए गन्ने की पैदावार कोई व्यवसाय नहीं बल्कि जीविकोपार्जन का जरिया है, मेरे घर में छोटे बड़े सब मिलाकर आठ सदस्य हैं आर्थिक तंगी के कारण दोनों बेटों को ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं पाए तो अब दोनों मिलकर एक छोटा सा ढाबा चला रहे हैं उस पर भी पिछले एक साल से करोना का कहर जारी है, आमदनी सीमित हो गई है तो गन्ना बेचकरकर ही जो पैसा मिलता है उसी से घर का खर्चा निकलता है यदि रेट बढ़ जाता तो कुछ तो आमदनी बढ़ जाती पर इस साल भी निराशा ही हाथ लगी।" उन्होंने बताया रेट तो नहीं बढ़ा उल्टे इस बार मिल मालिक प्रति क्विंटल गन्ने पर दो रुपए की कटौती कर दे रहे हैं यानी गरीब किसान तो बेमौत मारा जा रहा है। 

राम इंदर जी ठीक कहते हैं कि मूल्य न बढ़ने का सबसे ज्यादा ख़ामियाजा उनके जैसे छोटी जोत वाले गरीब किसानों को इस लिहाज से भुगतना पड़ रहा है कि जब गन्ना बिकता है और उससे जो पैसा आता है तो घर का सारा खर्चा उसी आमदनी से चलता है। चावल और आटा को छोडकर सब कुछ बाज़ार से ही खरीदना पड़ता है। वे बताते हैं अब तो मिल मालिक मोटा गन्ना उगाने के लिए दबाव बना रहे हैं  क्यूंकि उससे ज्यादा चीनी निर्मित होती है, लेकिन कम पूंजी वाले  किसानों के लिए मोटे गन्ने की पैदावार आसान नहीं क्यूंकि मोटा गन्ना सूअरों का प्रिय आहार होता है तब ऐसे हालात में गन्ने को सूअरों और अन्य जानवरों से बचाने के लिए खेतों को जाली से घेरना पड़ेगा और लोहे की जालियां सस्ती तो आती नहीं तब अधिकांश पूंजी तो जाली खरीदने और लगाने में ही चली जाएगी तो साल भर का खर्चा चलेगा कैसे। किसान राम इंदर के बेटे नीरज कहते हैं इस समय 75 सौ रुपए क्विंटल जाली मिल रही है यानी उनके जैसे गरीब किसान जब एक पर्ची गन्ना बेचेगा तब जाकर कहीं एक बीघा खेत के लिए जाली आ पाएगी और एक बीघा को ही घेरने से तो काम चलेगा नहीं, उन सब खेतों को घेरना पड़ेगा जहां जहां गन्ना लगाया गया हो। वे हिसाब जोड़कर बताते हैं कि एक बीघा खेत में कम से कम दो क्विंटल जाली लगेगी यानी पन्द्रह हजार की लागत, तब अगर वे अपने पांच बीघा खेत में जाली लगवाएंगे तो गन्ना बेचने के बाद भी आखिर उनके पास कितना बचेगा। फिर साल भर गुजर बसर कैसे होगी। नीरज के मुताबिक जाली बेचने का काम तो चीनी मिल भी करती है लेकिन वहां लागत और ज्यादा है क्यूंकि मिल एक साल के लोन पर जाली उपलब्ध कराती है और गन्ना बेचने पर मिल उसी से पैसा काट लेती है। 

लागत और मेहनत ज्यादा लेकिन मुनाफा कम और उस पर चार वर्षों से मूल्यवृद्धि न होना, गन्ना किसानों के प्रति सरकार की संवेदनहीनता ही दर्शाती है। समय पर गन्ना चीनी मिल तो पहुंच जाता है लेकिन पूंजी समय पर कभी नहीं मिलती यानी कुछ क्विंटल का भुगतान कर मिल मालिक बाकी  यह कहकर रोक देता है कि जल्दी ही भुगतान कर दिया जाएगा लेकिन दो साल तीन साल बीत जाता है पर उनकी मेहनत की पूंजी उनके हाथ तक नहीं पहुंच पाती।

सीतापुर ज़िले के लहरपुर तहसील में 18 मार्च को किसान महापंचायत हुई। जिसमें बड़ी संख्या में गन्ना किसान मौजूद थे

लखमीरपुर खीरी ज़िले के पलिया तहसील के अंतर्गत आने वाले पटिहल गांव के किसान कमलेश कुमार राय ने बताया कि वे लगभग तीन सौ क्विंटल गन्ने की पैदावार कर लेते हैं, यदि कभी प्राकृतिक आपदा न आए तो पैदावार अच्छी खासी हो जाती है, लेकिन जब बात आती है उसे बेचने की तो पूरी पैदावार का भुगतान कभी समय पर नहीं हो पाता है। पलिया कला चीनी मिल पर उनका एक लाख साठ हजार रुपए पिछले एक साल से बकाया है। उनके मुताबिक 144 करोड़ रुपए इस मिल पर किसानों का बकाया है जिसका भुगतान कब होगा कुछ पता नहीं बावजूद इसके किसान गन्ना पैदा कर रहा है क्यूंकि दूसरे अनाजों की खरीद बिक्री का तो और बुरा हाल है। वे कहते हैं एक तरफ मिल मालिकों का शोषण तो दूसरी ओर राज्य सरकार द्वारा गन्ना किसानों की अनदेखी किसानों के लिए विकट समस्या पैदा कर रही है।

कमलेश जी बताते हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कई बार इस इलाके में दौरा हुआ और उतनी ही बार उन्होंने गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का संज्ञान भी लिया लेकिन जैसे वे दौरा करके चले जाते हैं वैसे ही बातें और वादें भी वहीं खत्म जाते हैं। उनके मुताबिक कई बार किसानों द्वारा बकाया भुगतान को लेकर आंदोलन भी हुए लेकिन उसका भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला।

सीतापुर जिले के हरगांव ब्लॉक के तहत आने वाले पिपराघूरी गांव के गन्ना किसान अर्जुन लाल जी ने कहते हैं गन्ने की खेती भी अब किसानों के लिए बहुत फायदेमंद नहीं रही, लागत मूल्य तक नहीं निकल पाता और उसपर राज्य सरकार चार साल से मूल्यवृद्धि तक नहीं कर रही। उनके मुताबिक गन्ने की खेती करने का मकसद केवल इतना है कि इसमें गन्ना बेचने पर नकद पूंजी हाथ में आ जाती है भले कुछ बकाया रह जाए और बिचौलिए वाला कोई सिस्टम नहीं होता यानी खेत से काटकर गन्ने को किसान सीधे चीनी मिल पहुंचा देता है लेकिन यह समझा जाए कि गन्ना किसान बहुत फायदे में है तो ऐसा नहीं क्यूंकि जितनी उसकी मेहनत और लागत होती है उतनी उसकी भरपाई नहीं हो पाती।

उन्होंने बताया कि जिन इलाकों में चीनी मिल पूरे सीजन चलती है वहां का किसान तो फिर भी ज्यादा गन्ने की खेती कर रहा है क्यूंकि मिलें पांच छह महीना खुली ही रहती हैं लेकिन जहां चीनी मिलें सीजन में मात्र दो तीन महीने ही खुली रहती हैं वहां का गन्ना किसान तो चाह कर भी ज्यादा गन्ने की पैदावार नहीं कर पाता अगर ज्यादा गन्ना उगा भी दिया तो बेचेंगे आखिर कहां? यह भी एक बड़ी समस्या है। वे कहते हैं जिन किसानों के पास कई एकड़ जमीन है यानी जो बड़ी जोत वाले किसान है वे तो गन्ने के अलावा अन्य फसलों की भरपूर पैदावार कर और उन्हें बेचकर अपने आर्थिक पक्ष को मजबूत कर सकते हैं लेकिन उन छोटे किसानों का क्या जिनकी जमीन परिवार का पेट पालने भर तक का ही अनाज पैदा करती है ऐसे में उन्हें नकदी के लिए गन्ने की खेती पर ही निर्भर रहना पड़ता है लेकिन उस पर भी न मूल्य वृद्धि होती है न पैसा ही समय पर मिल पाता है और जहां चीनी मिलें सीमित समय के लिए ही खुली रहती हैं वहां तो गन्ना किसानों के हालात और बुरे हैं क्यूंकि ज्यादा गन्ना उगाने का कोई लाभ उन्हें नहीं मिल पाता। 

कई गन्ना किसानों से बात करने पर पता चला कि मूल्यवृद्धि न होने के कारण इस साल तो मिल मालिकों ने पर्ची पर कोई रेट भी नहीं लिखा, यानी किसानों को जो पर्ची मिली उसमें "शून्य"  लिखा हुआ था। किसान के लिए यह दुविधा का ही प्रश्न था कि जो गन्ना वे मिल तक ले जाएगा उसका उस कितने दाम मिलेगा तब ऐसे में मिल मालिकों द्वारा मनमाना भाव तय करना स्वाभाविक ही है। 

तीन साल से गन्ना का रेट न बढ़ना, पर्ची पर जीरो लिखा होना और चीनी मिलों पर किसानों का करोड़ों बकाया होना जैसे मुद्दे किसान आंदोलन में भी अपनी जगह बनाए हुए हैं। 

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। भारत में कुल 520 चीनी मिलों में 119 तो अकेले उत्तर प्रदेश में ही है। यूं तो राज्य की मौजूदा सरकार अपने शुरुआती कार्यकाल से ही गन्ना किसानों को हर संभव राहत देने की बात करती रही है, उनके हित में कारगर कदम उठाने का  दावा करती रही है लेकिन जब किसान अपनी बात कहते हैं तो कहीं से नहीं लगता कि वे पूरी तरह से सरकारी दावों से संतुष्ट है। वे साफ कहते हैं कि जितना उनके पक्ष में किया जाना चाहिए सरकार उस स्तर तक पहुंच ही नहीं पा रही। राज्य में योगी सरकार बनने के बाद वर्ष 2017 में गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में दस रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई थी, जिसमें सामान्य प्रजाति के गन्ने का मूल्य 315 और खास क्वालिटी के गन्ने का मूल्य 325 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया था जबकि गन्ना किसानों की मांग 400 रुपए प्रति क्विंटल है।

किसान कहते हैं पैदावार की लागत बढ़ रही है, महंगाई बढ़ रही है लेकिन गन्ने का भाव नहीं बढ़ रहा। 

पेराई सत्र भी समाप्त हो गया,  लेकिन गन्ना किसान को कोई राहत मिलती नहीं दिख रही। किसान अब पूरी तरह से आंदोलन का रास्ता अपनाने के मूड में हैं। अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं तो ज़ाहिर है सरकार कोई जोख़िम नहीं उठाना चाहेगी इसी के मद्देनजर सरकार की और से कभी गन्ना किसानों को राहत पैकेज देने की बात कही जा रही है तो कभी उन चीनी मिलों पर सख्त कार्रवाई करने की बात कही जा रही है जिनपर किसानों का हजारों करोड़ बकाया है। गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य यानी एसएपी तय होने से पहले गन्ना आयुक्त और मुख्य सचिव की अध्यक्षता में चीनी मिल और किसान प्रतिनिधियों के मध्य होने वाली बैठक भी लगभग चार महीने पहले ही हो चुकी है जिसमें किसान प्रतिनिधियों ने अपना पक्ष रखते हुए साफ कहा था कि गन्ना उत्पादन की लागत 352 रुपए प्रति क्विंटल आ रही है और मिलता है लागत मूल्य से कम इसलिए उन्होंने 400 रुपए प्रति क्विंटल भुगतान की मांग रखी तो वहीं मिल मालिक शुगर इंडस्ट्री घाटे में चलने की बात कहकर दाम न बढ़ाने की मांग कर रहे थे। किसान कहते हैं सरकार उनकी सुनने की बजाए पूंजीपतियों की सुन रही है इसलिए इस बार भी मूल्यवृद्धि का कदम नहीं उठाया। 

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार।) 

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