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ऐप-आधारित पेमेंट सिस्टम के अनिवार्य इस्तेमाल के ख़िलाफ़ मनरेगा कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल

मनरेगा मज़दूर एनएमएमएस(NMMS) ऐप के ख़िलाफ़ इसलिए हैं क्योंकि एक तो यह हाज़िरी दर्ज करने की प्रक्रिया में देरी करता है और समय पर वर्क-डेज़ (कार्य दिवस) के रिकॉर्ड को बनाए नहीं रख पाता है।
MGNREGA
फ़ोटो साभार: PTI

नई दिल्ली : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम 2005 (मनरेगा) के तहत काम करने वाले मज़दूर, ऐप-आधारित अटेंडेंस सिस्टम (जिसने देश भर में ऐसे मजदूरों के लिए समस्याएं बढ़ा दी हैं) के अनिवार्य इस्तेमाल के खिलाफ जंतर-मंतर पर विरोध कर रहे हैं।

'मनरेगा संघर्ष मोर्चा' के बैनर तले विरोध प्रदर्शन में शामिल मज़दूरों ने कहा कि वे पहले से ही भुगतान में देरी समेत कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन ऐप ने स्थिति और भी बदतर बना दी है।

बिहार के मुजफ्फरपुर की एक मज़दूर फूल कुमारी देवी (30) ने न्यूज़क्लिक को बताया, "मैं पिछले सात सालों से मनरेगा के तहत काम कर रही हूं। इसके लिए पहले मैन्युअल हाज़िरी प्रणाली हुआ करती थी। दिहाड़ी या वेतन मिलने में देरी ज़रूर होती थी लेकिन फिर भी हमारे पास काम की डेटा रिकॉर्डिंग होती थी। लेकिन इस साल सरकार ने ऐप-आधारित पेमेंट सिस्टम को अनिवार्य कर दिया है। ऐप के साथ बहुत सारी समस्याएं हैं, जिसमें यह तथ्य भी शामिल है कि यह बड़ी संख्या में मज़दूरों की हाज़िरी दर्ज करने में असमर्थ है। हाज़िरी भले ही सफलतापूर्वक दर्ज हो जाए लेकिन डेटा कुछ दिनों के बाद भी सिस्टम में दिखाई नहीं देता है। इसने (मजदूरी के संबंध में) हमारे लिए एक बड़ी समस्या पैदा कर दी है।"

उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें और उनके इलाके के कई अन्य मज़दूरों को भुगतान नहीं मिला क्योंकि ऐप दर्ज हुए वर्क-डेज़ (कार्य-दिवस) को दिखाने में विफल हो गया था।

सरकार के नए निर्देश के अनुसार, सभी मनरेगा मज़दूरों को राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी ऐप (NMMS) के माध्यम से अपनी हाज़िरी दर्ज करानी होगी। भले ही इस नई सुविधा की घोषणा सरकार ने पिछले मई में की थी, लेकिन लागू इसे इस जनवरी से किया गया था।

बड़ी संख्या में ग्रामीण मज़दूरों, जिनमें अधिकांश महिलाएं हैं, के लिए ऐप प्रणाली एक बड़ा झटका साबित हो रहा है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि, योजना के तहत काम करने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी 57.8 प्रतिशत है।

विरोध कर रहे मज़दूरों ने हाज़िरी प्रक्रिया में देरी के लिए ऐप की आलोचना की, और यह भी बताया कि सफल ऑनलाइन हाज़िरी दर्ज करने के बाद भी यह ऐप मज़दूरों का रिकॉर्ड नहीं दिखाता है।

मनरेगा के तहत काम करने वाली पिंकी कुमारी(36) ने न्यूज़क्लिक को बताया कि ऐप के साथ हाज़िरी दर्ज करने की प्रक्रिया ने हाज़िरी प्रक्रिया में देरी दिखाई है।

पिंकी कहती हैं, "हम सुबह 9 बजे तक काम की साइट पर पहुंच जाते हैं। खराब इंटरनेट कनेक्शन के कारण, वेबसाइट हमेशा नहीं खुल पाती है। मान लीजिए कि 100 से अधिक मज़दूर हैं, तो यह केवल 50-60 मज़दूरों की ही हाज़िरी दर्ज करता है और बाकी को छोड़ देता है। 11-12 बजे तक, वेबसाइट बंद हो जाती है, जिसका मतलब है कि बाकी मज़दूर कहीं और भी काम नहीं कर सकते हैं। इससे, उनके सामने घर बैठने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है। और ऐसा अक्सर होता है।”

मज़दूरों ने कहा कि ऐसा ही एक और निर्देश तबाही मचा रहा है। 30 जनवरी, 2023 को ग्रामीण विकास मंत्रालय ने घोषणा की थी कि 1 फरवरी, 2023 से मनरेगा मज़दूरों को सभी भुगतानों के लिए आधार-आधारित पेमेंट सिस्टम (एबीपीएस) लागू की जाएगी। अपनी अधिसूचना में, मंत्रालय ने सभी केंद्र शासित प्रदेशों/राज्यों से अनुरोध किया कि वे एबीपीएस के अलावा किसी अन्य भुगतान मोड का इस्तेमाल न करें।

एक विशेषज्ञ के अनुसार, आधार-आधारित पेमेंट सिस्टम की शुरुआत एक आपदा बन जाएगी, क्योंकि बड़ी संख्या में मज़दूरों के पास आधार-कार्ड नहीं है। उनका मानना है कि इस तरह की चालबाज़ी से सरकार मनरेगा में मांग को धीरे-धीरे कम कर रही हैं।

एक सोशल वर्कर आयशा ने कहा, "जिन जगहों पर ये महिलाएं काम करती हैं, कभी-कभी वे घने जंगल होते हैं, जहां नेटवर्क एक बड़ी समस्या है। इस वजह से, मज़दूर काम तो कर रहे होते हैं, लेकिन उनकी हाज़िरी ठीक से दर्ज नहीं हो पाती है। कई बार ऐप बाद में किए संग्रहीत डेटा को दिखाता नहीं है। कुछ दिनों से, मज़दूरों के लिए काम करना मुश्किल हो गया है। अभी तक, मनरेगा श्रमिकों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली खाता-आधारित पेमेंट सिस्टम के लिए सरकार पहले से ही कर्ज़ में है। अब, इस ऐप-आधारित प्रणाली ने मज़दूरों को समय पर वेतन न देने का एक और तरीका खोज लिया है।"

एबीपीएस के मुद्दे पर, उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के डेटा से पता चलता है कि केवल 43 प्रतिशत मनरेगा मज़दूर एबीपीएस के पात्र थे। हालाँकि, वास्तविक संख्या सरकार द्वारा मुहैया कराई गई संख्या से बहुत अधिक है।

इस साल के अपने केंद्रीय बजट में, सरकार ने 2022-23 में 89,400 करोड़ रुपये के मुक़ाबले अगले वित्तीय वर्ष के लिए 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। 2021-22 और 2022-23 की तुलना में, जब खर्च 98,468 करोड़ रुपये और 89,400 करोड़ रुपये था, यह आवंटन दो साल में सबसे कम है।

मनरेगा आवंटन में भारी कटौती को लेकर विभिन्न सामाजिक और मज़दूर संगठनों द्वारा आलोचना करने के बाद, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इंडियास्पेंड.कॉम को दिए जवाब में एनएमएमएस ऐप में कम बजट और गड़बड़ियों के बारे में चिंताओं पर अपनी प्रतिक्रिया दी। मंत्रालय ने दावा किया कि मनरेगा बजट पर्याप्त है और इसकी पूरक धनराशि वर्ष के अंत में उपलब्ध कराई जाएगी। जवाब में यह भी कहा कि एनएमएमएस ऐप (NMMS) से संबंधित सभी मुद्दों का समय-समय पर समाधान किया जाएगा, और इसके कार्यान्वयन के दौरान कोई महत्वपूर्ण समस्या सामने नहीं आई है।

सरकार के इस दावे के तुरंत बाद, मनरेगा संघर्ष मोर्चा, जो ट्रेड यूनियनों, मज़दूर यूनियनों का एक राष्ट्रीय सामूहिक मंच है, ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा जिसमें उनके सभी दावों का खंडन किया और मज़दूरों के सामने पेश गंभीर समस्याओं को उजागर किया।

मोर्चा से जुड़े एक सामाजिक कार्यकर्ता संजय साहनी ने न्यूज़क्लिक को बताया, "लॉकडाउन के कारण, रोज़गार लगभग समाप्त हो गए हैं। लोगों के पास नौकरी का कोई अन्य विकल्प नहीं है। इस परिदृश्य में, (एमजी) नरेगा बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। अधिकांश ग्रामीण मज़दूर आज इस योजना पर निर्भर हैं। सरकार का बजट दो महीने भी नहीं चलेगा। इस बजट कटौती का ग्रामीण रोज़गार पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।"

इस बीच, मोर्चा ने कहा है कि उसका विरोध तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार एनएमएमएस प्रणाली को वापस नहीं ले लेती।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के किए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

MGNREGA Workers on Indefinite Strike Against Mandatory Use of App-Based Payment System

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