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भारत की विकास योजनाएँ : ग़लत प्राथमिकताएँ, विकृत विचार

जोशीमठ का डूबना/दरकना अनियोजित निर्माण से पैदा हुई पारिस्थितिक बर्बादी का उदहारण तो है ही साथ ही यह ग़ैर-ज़रूरी सड़क और राजमार्ग क्षेत्र को ज़बरदस्ती बढ़ाने का एक ज्वलंत उदाहरण भी है।
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जोशीमठ का डूबना अनियोजित निर्माण से पैदा हई पारिस्थितिक बर्बादी का एक ज्वलंत उदाहरण है। जहां सरकार चुनिंदा सूचनाओं और आंकड़ों को पेश कर खासकर सड़क क्षेत्र में अपने प्रदर्शन का प्रचार करती रही है, वहीं परेशान करने वाले सवाल भी उठ रहे हैं। ये दो प्रकार के सवाल हैं- एक, फंडिंग क्यों बढ़ रही है, जबकि सड़कों की गुणवत्ता स्पष्ट रूप से गिर रही है? दो—पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण से होने वाले जोखिमों के बारे में विशेषज्ञों की चेतावनियों सहित सड़क सुरक्षा को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जाता है?

आइए धन के बारे में बात करते हैं, जो सड़कों तथा किसी भी बुनियादी ढांचा गतिविधियों का  सबसे बड़ा मुद्दा है। भारत में, जैसे-जैसे राजमार्गों के निर्माण के लिए बजट परिव्यय में वृद्धि हुई है, राजमार्गों के निर्माण या उन्हे चौड़ा करने के मामले में जो परिणाम निकले वे एक किस्म के ठहराव को दर्शाते हैं। 2020-21 में, भारत में 13,327 किलोमीटर राजमार्गों का निर्माण या विस्तार किया गया था, जो अगले वर्ष 10,457 किलोमीटर तक सीमित हो गया था। यह 2018-19 में हुई कम प्रगति को दर्शाता है।

इस गिरावट को महत्वपूर्ण बजट वृद्धि के संदर्भ में देखें। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लिए 2020-21 में व्यय 46,062 करोड़ रुपये था। अगले वर्ष इसका संशोधित बजट 65,686 करोड़ रुपये था, यानि 30 प्प्रतिशत की वृद्धि थी। इसलिए, सरकार जितना अधिक खर्च करती है, तो वह उतना ही कम हासिल करती है। जबकि मीडिया को सरकार इस किस्म के हालात बनने पर सवाल उठाने चाहिए थे लेकिन इसके बजाय वह इसे सरकार का उत्कृष्ट प्रदर्शन बताते पाया गया।  

दूसरा, सड़क विकास या निर्माण में मात्रात्मक उपलब्धि हस्सिल करना इसका सिर्फ एक पहलू है। लेकिन काम की गुणवत्ता के बारे में क्या? अक्सर राजमार्गों/सड़कों के डूबने या टूटने की रिपोर्ट आती रहती है, यहां तक कि योजनाओं में भी यह नज़र आता है, खासकर जब पिछले साल की बरसात के दौरान, निर्माण की खराब गुणवत्ता का पता चला था। सड़कों के टूटने/धसने/पतन या गड्ढों की अधिकांश खबर हिमालयी राज्यों से आई थीं, जहां यात्रियों की सुरक्षा और रक्षा के दृष्टिकोण से गुणवत्ता सबसे ज्यादा मायने रखती है। हम देख सकते हैं कि जोशीमठ में कैसे लापरवाह निर्माण कार्य किया गया और अत्यधिक पेड़ काटे गए जिससे नए भूस्खलन क्षेत्रों का निर्माण हुआ और मौजूदा स्थिति को बिगाड़ दिया गया। इसने गांवों में कहर बरपा दिया है, ट्रैफिक जाम में वृद्धि हुई है, और पहाड़ से गिरने वाले पत्थरों से दुर्घटनाओं और अन्य किस्म के जोखिमों की संभावना बढ़ गई है।

मलबे के लापरवाह जमाव ने उत्तराखंड की ऊंची जगहों में प्राकृतिक भूमिगत जल झरनों को दबा दिया है या जोखिम में डाल दिया है। दुर्भाग्य से, अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के कारण दुर्घटनाओं में निर्माण श्रमिकों की मृत्यु और चोट की भी अनदेखी की जाती रही है।

इसलिए, जोशीमठ में जो हम देख रहे हैं वह स्थिति और बिगड़ सकती है - शायद पहले से ही यह स्थिति खराब हो रही थी, क्योंकि कुछ घंटों की दूरी पर बसे कर्णप्रयाग से भी ऐसी ही रिपोर्टें आ रही हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 14 जुलाई 2022 की एक अधिसूचना में सीमावर्ती क्षेत्रों में राजमार्गों को पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दी थी। केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित मानक संचालन प्रक्रिया के तहत सीमावर्ती क्षेत्रों में राजमार्ग विकासकर्ताओं या कंपनियों को खुद ही समय-समय पर  अनुपालन सुनिश्चित करना होगा सीमे सरकार का कोई दखल नहीं होगा। 

आम तौर पर, एक सरकारी एजेंसी को बढ़े हुए बजट की जरूरत होती है, तब-जब वह अधिक काम करना चाहती है। लेकिन एनएचएआई का मामला अजीब हैं, इसमें सबसे महत्वपूर्ण जो बजट वृद्धि हुई वह राजमार्ग और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए निजी क्षेत्र पर बढ़ती निर्भरता के कारण हुई है। 2022 में घोषित बजट में, एनएचआईए को हाल के दिनों में अपने बजट में सबसे उदार बढ़ोतरी मिली- एक ऐसा सपना बजट जिसका सपना बहुत कम सरकारी एजेंसियां देखती होंगी! 2021-22 के बजट में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी (65,686 करोड़ रुपये) जो 2022-23 के बजट में दोगुनी से भी अधिक बढ़कर 1,34,015 करोड़ रुपये हो गई थी।

फिर भी, पिछले साल के मध्य में, एनएचआईए ने अपनी फंडिंग और कॉन्ट्रैक्टिंग मॉडल को बदलने और बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर या बीओटी (टोल) मॉडल पर लौटने का फैसला किया। द इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने पिछले जुलाई में रिपोर्ट किया था कि, "पिछले दशक के बेहतर हिस्से के तौर पर सार्वजनिक धन के माध्यम से राजमार्ग परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के बाद, एनएचएआई निजी निवेश के माध्यम से वित्त पोषण पर लौटने को तैयार हो रही है और निजी खिलाड़ियों को कम से कम दो राजमार्ग उन्नयन परियोजनाओं की पेशकश करने की योजना बना रही है। मौजूदा तिमाही के दौरान इसे बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी) मॉडल बताया गया।” इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011-12 में आवंटित सभी परियोजनाओं में बीओटी मॉडल का हिस्सा 96 प्रतिशत था, जो समय के साथ अब शून्य हो गया है।

इस बदलाव से बीओटी मॉडल में कई समस्याएं पैदा हुई हैं। एनएचएआई एक ऐसे मॉडल की ओर लौटने का इच्छुक क्यों है जो टिकाऊ नहीं है? दूसरे, क्या राजमार्गों के लिए सार्वजनिक धन की कमी हो रही है? यदि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय धन से भरपूर है, जैसा कि हाल के आवंटनों से संकेत मिलता है, तो केंद्र ग्रामीण सड़कों और सड़क सुरक्षा में सुधार पर अधिक खर्च क्यों नहीं कर रहा है, जिन्हें वित्तीय सहायता की जरूरत है?

फरवरी 2020 में, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के शक्ति गाँव की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि एक बीमार महिला को भारी बारिश के बीच 20 किलोमीटर दूर एक कुर्सी पर ले जाना पड़ा ताकि निकटतम सड़क पर पहुँचा जा सके जहाँ एक एम्बुलेंस उसे अस्पताल ले जा सके। यह कोई अकेली घटना नहीं थी। दिसंबर 2022 में एक और रिपोर्ट आई कि एक स्वास्थ्य टीम को वायरल के प्रकोप से पीड़ित लगभग दो दर्जन बच्चों के इलाज के लिए उसी शक्ति और उसके पड़ोसी गांव में 20 किमी पैदल चलना पड़ा। गंभीर रूप से बीमार रोगियों को एक मोटर योग्य सड़क तक पहुंचने से पहले खाटों या कुर्सियों या अन्य उपकरणों द्वारा लंबी दूरी तक ले जाने की छवियां आना कोई दुर्लभ बात नहीं हैं।

फिर भी ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रचारित प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के लिए 2022-23 का बजट केवल 19,000 करोड़ रुपये है। जिसके जरिए एनएचएआई की तुलना में पांच लाख से अधिक गांवों को 15 फीसदी से भी कम मिलता है। क्या यह समय ग्रामीण सड़क क्षेत्र को बेहतर आवंटन देना का नहीं है? केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के भीतर आवंटन बड़ा ही विषम हैं। 2022-23 के बजट में अनुसंधान, प्रशिक्षण और सुरक्षा को केवल 356 करोड़ दिए गए थे – जो एनएचएआई के आवंटन का मात्र 0.3 प्रतिशत बैठता है, एक ऐसे देश में जहां यातायात दुर्घटनाओं से मृत्यु दर सबसे अधिक है।

पिछले वर्ष (2021-22) के दौरान, संसाधन की कमी के बावजूद, संशोधित अनुमानों में एनएचएआई के आवंटन में 8,000 करोड़ रुपये से अधिक की वृद्धि हुई है। लेकिन अनुसंधान, प्रशिक्षण और सुरक्षा में लगभग एक तिहाई की कटौती कर उसे मात्र 228 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह अजीब है कि लोगों की जान बचाने के लिए दिए गए 128 करोड़ रुपए में से 8,000 करोड़ रुपए निचोड़ लिए गए हैं।

हम यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि सड़क परिवहन क्षेत्र को जनता की निगरानी के मद्देनजर अधिक सावधानीपूर्वक बनाया जाए। जोशीमठ के बाद, विशेष रूप से मीडिया को सरकार की प्रशंसा करना तब तक रोक देना चाहिए जब तक अगले साल के बजट की घोषणाएं न हो जाए। 

लेखक, कैंपेन टू सेव अर्थ नाउ के मानद संयोजक हैं। उनकी हाल की पुस्तकों अ डे इन 2071 प्लेनेट इन पेरिल एंड मैन ओवर मशीन शामिल हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

India’s Development Plans: Incorrect Priorities, Distorted Ideas

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